पंछी
पंछी


चेप्टर -9 भाग-3
‘क्यों उसे क्या हुआ है?’ अंशिका ने बड़े ही बेपरवाह होकर पूछा, पर वो जानती नहीं थी कि मसला क्या है वरना हवाइयां तो इसकी भी उड़नी ही थी।
‘आफरीन की वजह से अपसेट था…’ जवाब तो मैंने अंशिका को दिया था पर क्वेश्चन मार्क पिया के चेहरे पर बन गया था।
‘आफरीन… कौन आफरीन?’ पिया ने हम दोनों की तरफ देखते हुए पूछा। वह बस समीर को ही जानती है, क्योंकि आफरीन के बारे में हमने पिया से कभी बात ही नहीं की तो बेचारी जानती कैसे तो भई अब आफरीन का सबसे पहले इंट्रो ही देने की जरूरत थी मसला तो डिस्कस बाद में होगा।
‘आफरीन, समीर की गर्लफ्रेंड है। हाई कोर्ट में वकील है ना… सैयद आसिफ अली, उनकी बेटी है। समीर की क्लासमेट है, दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करते हैं। ग्रेजुएशन के बाद दोनों शादी करना चाहते थे। समीर को वैसे तो आफरीन की फैमिली काफी पसंद करती थी पर जब आफरीन ने ग्रेजुएशन के बाद शादी की बात की तो उसके पापा ने शादी के लिए मना कर दिया क्योंकि समीर हिंदू है और वह एक हिंदू से अपनी बेटी की शादी नहीं करेंगे। ’ सारी कहानी मैंने एक ही सांस में सुना दी।
‘हम्म…’ लंबी सी सांस छोड़ते हुए पिया ने कहा।
‘तो ये बात है… पर वो तो वकील है इतने पढ़े लिखे हैं ये क्या बेकार की धर्म और जाति की बातों में उलझे है। अगर पढ़े लिखे और हाई सोसाइटी के लोग भी ऐसी बातें करेंगे तो ख़ाक इस देश के दूसरे लोगों की सोच कुछ बदलेगी। ’
पिया की बातें मुझे हमेशा ही अच्छी लगती है कितनी समझदारी की बातें करती है।
‘अब जैसी सोच है वैसी है… कर भी क्या सकते हैं वैसे समीर से क्या बात हुई थी तेरी?’ अंशिका ने मुद्दे पर आते हुए कहा।
‘कुछ खास नहीं… परेशान था, रोये जा रहा था। चुप कराने में ही दिमाग खाली हो गया’
‘आफरीन से बात हुई उसकी। ’
‘हाँ हुई थी, वो भी परेशान है… कुछ
कर नहीं सकते हैं… काश समीर सेटल होता तो इन दोनों को ऐसी कोई प्रॉब्लम नहीं आती।
‘हेयर यू आर… अब कही तूने पॉइंट की बात…’ पिया ने बीच में उछल के कहा
‘किसी भी इंसान का वक़्त रहते सेटल होना अपना करियर बनाना बहुत जरूरी होता है और फिर केवल समीर ही क्यों आफ़रीन को भी अपने करियर के बारे में सोचना चाहिए, सभी लड़कियों को अपने करियर के बारे में सोचना चाहिए, हमें भी अपने करियर पर ध्यान देना चाहिए…’
‘हाँ सही कहा… तू बता रही थी ना तेरे प्लान के बारे में चल अब बता… क्या सोचा तूने… इससे पहले कि वो और भाषण देती मैंने उसे बीच में ही टोक दिया।
‘हाँ वही मैं बता रही थी कि मेरे भइया आए थे…’
‘हां… डब्लू भइया’ कहते हुए मैं और अंशिका एक दूसरे की तरफ देखते हुए मुस्कुरा दिए।
‘यार मज़ाक नहीं…’ पिया ने थोड़ा नाराज़गी से भर कर कहा। बात भी ठीक थी भाई 24 घंटे मज़ाक की बात थोड़े ही होती है। लाइफ़ में सीरियस होना भी तो ज़रूरी है।
‘हाँ, हाँ… तू बोल…’
‘भइया से मैंने पूछा कि भइया ग्रेजुएशन के बाद क्या करूँ, मैं कुछ अलग करना चाहती हूँ मुझे क्या करना चाहिए’
‘तो क्या कहा भइया ने?’ वही पुरानी बीच में टोकने की अंशिका की बुरी आदत।
‘यही तो बात है… भइया ने कोई सलाह नहीं दी दूसरों की तरह कि ये कर लो इसका स्कोप अच्छा है या वो कर लो उसका स्कोप अच्छा है फैसला मुझ पर ही छोड़ दिया। पर मैं बहुत कंफ्यूज़ थी तो उन्होंने मुझे समझाया कि मुझे अपनी ज़िंदगी का ये बड़ा फैसला कैसे लेना है…’
‘अच्छा… क्या-क्या कहा भइया ने?’
इस बार मैं खुद को रोक ना सकी टोकने से। बात ही कुछ ऐसी कही थी उसने। आज तक मैंने ऐसा कहीं नहीं देखा कि किसी ने अपना व्यू थोपा ना हो, वरना किसी से भी पूछ लो कि ‘क्या करना चाहिए’ तो बिना जाने पूछे अपना ज्ञान हांकने में लग जाते हैं।