Nisha Singh

Drama

4.6  

Nisha Singh

Drama

पंछी

पंछी

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290




 चेप्टर -10 भाग-4


'हम्म गुड़, अब मैं चलती हूँ। पहले ही काफ़ी देर हो चुकी है।' कहते हुए मैंने समीर की तरफ़ देखा। वो तो हम दोनों को घूरके देखे जा रहा था, आखें बड़ी-बड़ी, मुँह खुला हुआ सा काफ़ी अजीब लग रहा था।

'क्या है?' आफ़रीन ने उसकी तरफ़ देखते हुए कहा 'ऐसे घूरने वाली कौनसी बात है ?'

'अ कुछ नहीं तुम लोग इतनी सीरियस बातें कर सकती हो मैंने सोचा नहीं था।'

'क्या मतलब सीरियस बातें कर सकती हो' मुझे उसकी बात कुछ समझ में नहीं आई तो मैंने पूछ लिया।

'मुझे लगता है कि लड़कियां मेकअप और कपड़ों के अलावा कुछ जानती ही नहीं है'

'अच्छा मतलब ये कहना चाहते है, कि लड़कियों को मेकअप और कपड़ों की बातों के अलावा कुछ आता जाता नहीं'

मेरी बातों में थोड़ा गुस्सा था, पर इससे उसे क्या फ़र्क पड़ने वाला था।

'हाँ कुछ ऐसा ही' कहते हुए वो हंसने लगा। उसकी हंसी ने आग में घी काम किया मुझे इतनी ज़ोर से गुस्सा आया कि मैंने उठ कर दोनों हाथों से उसके बाल पकड़ लिए और ज़ोर से खींच डाले मज़ा आ गया बदला लेकर।

'वेल डन अवनी' आफ़रीन ने मुझे हाई फ़ाइव देते हुए कहा।

'तुम दोनों बिल्लियां हो' अपना सर सहलाते हुए समीर बोला, शायद कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से खींच दिए मैंने उसके बाल पर क्या फ़र्क पड़ता है मैं सॉरी बोलने वाली थोड़े ही थी।

'ओके आफ़रीन, मैं चलती हूँ काफ़ी सारा काम पड़ा हुआ है'

'ओके, बाय' कहते हुए आफ़रीन ने वेव किया।

मैं कैंटीन से बाहर आ गई, बस की तरफ़ जा रही थी पर चलते-चलते ख्यालों की उथल पुथल मची हुई थी। एक साल से मैं भी इसी बात में उलझी हुई हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए और आज एक साल होने को आ गया कोई फैसला नहीं ले पाई। एक-दो चीज़ों के बारे में सोचा भी तो उनमे भी मन नहीं लगा। मुझे कुछ क्रिएटिव सा चाहिए पर समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूँ। एम्ब्रॉयिरी वगैरह पसंद नहीं है मुझे जिसकी सलाह मुझे पिया ने दी। अब तो कोई फ़रिश्ता ही मेरी मदद कर सकता है।

'हाय दीदी' आज घर का डोर सचिन ने खोला। सचिन, राहुल का बेस्ट फ्रेंड है हमारी ही गली में रहता है।

'हाय सचिन, आज यहाँ कैसे?' घर में अंदर आते हुए मैंने सचिन से पूछा। वो क्या है ना कि ये मंडली घर पर कम रहती है, गली में ज़्यादा घूमती है। जवाब में सचिन बस मुस्कुरा दिया, ज़्यादा बात करने की आदत नहीं है उसे। अंदर आकर देखा तो सौरभ भी बैठा हुआ था।

'हाय दीदी' कहते हुए सौरभ ने वेव किया।

'हाय सौरभ' कहते हुए मैं अंदर चली गई।

'जल्दी से फ्रेश हो के आजा चाय नाश्ता कर ले' मम्मी की आवाज़ किचन से आई।

'हाँ, मम्मी'

'क्या बनाया है मम्मी?' किचन में अंदर आते हुए मैंने पूछा। फ्रेश होकर मैंने मेरा फेवरेट ब्लू एंड व्हाइट प्रिंटेड सूट पहना था। ब्लू मेरा फ़ेवरेट कलर है, पिंक तो बिलकुल भी पसंद नहीं है, एक भी पिंक ड्रेस नहीं है मेरे पास।

'देख ले, चीज़ तेरी पसंद की ही है' मम्मी ने प्लेट्स अलमारी से बाहर निकालते हुए कहा।

पकोजड़यां बनाई थी मम्मी ने, मुझे बहुत पसंद है आलू और प्याज़ के पकोड़े। पर आलू, प्याज के पकोड़ों के अलावा भी मुझे कुछ दिख रहा था, ब्रेड पकोड़े। सौरभ के फेवरेट है, मम्मी ने स्पेशल उसी के लिए बनाये होंगे मैं देखते ही समझ गई।

'ये ब्रेड पकोड़े सौरभ के लिए है ना' मैंने मम्मी से पूछा।

'हाँ'

'तुम सौरभ का बहुत ख्याल रखती हो दोस्त ही तो है राहुल का इतनी सेवा करने की क्या ज़रूरत' मैंने थोड़े से शिकायती लहज़े में कहा।


मम्मी हम लोगों के लिए प्लेट्स लगाने में बिज़ी थीं। एक प्लेट में सारे ब्रेड पकोड़े और थोड़े से आलू पकोड़े, सॉस के साथ और दूसरी प्लेट में आलू और प्याज के पकोड़े, ऑफ़कोर्स मेरी प्लेट थी वो।

'अरे काम ही आता है सौरभ और कितना प्यारा बच्चा है, कितने प्यार से बात करता है।' चाय छानते हुए मम्मी ने जवाब दिया।

वैसे सही कह रहीं थीं मम्मी। राहुल के दोस्तों में सबसे शरीफ़ समझदार सौरभ ही है बाकी तो सारे लफ़ंगे है।

'ठीक है' कहते हुए मैंने अपनी प्लेट और चाय की ट्रे उठा ली। दूसरी प्लेट ले कर मम्मी मेरे पीछे चल पड़ीं।

'लो बच्चों' कहकर मम्मी ने प्लेट्स टेबल पर रखीं और अपने किचन की तरफ़ चलीं गईं। उन लोगों को चाय के कप देकर मैं भी टीवी ऑन करके वहीं बैठ गई पर थोड़ा उनसे दूर और टीवी के पास

'क्या भाई मज़ा आ गया, आंटी ने ब्रेड पकोड़े बनाये है, सौरभ ने लगभग उछलते हुए कहा, 'थैंक यू आंटी' सौरभ ने इतनी ज़ोर से कहा मम्मी ने किचन में सुन लिया होगा।

'कोई बात नहीं बेटा और कुछ चाहिए हो तो बता देना' मम्मी का जवाब आया किचन से।

'बड़ा लाड़ आ रहा है? मैंने फ़ुसफ़ुसाते हुए कहा। किसी ने सुना नहीं।

मैं नाश्ता कर रही थी, आखें टीवी पर थीं पर ध्यान पूरा उन लोगों की बातों पर था।

'भाई तू आलू के पकोड़े नहीं खायेगा?' राहुल ने पूछा शायद सौरभ से।

'नहीं भाई और मुझे चाय नहीं पीनी बस सॉस से खाऊंगा' जवाब सौरभ की तरफ़ से आया, मतलब सवाल भी उसी से था।

कोई बात नहीं भाई चाय मैं पी लूंगा तू कहे तो तेरे ब्रेड पकोड़े भी खा लूँ' सचिन था ये।

'नहीं भाई इतनी मेहरबानी मत कर, वैसे आजकल तू सुबह-सुबह कहाँ निकल जाता है। एक दो दिन से मैं तुझे नोटिस कर रहा हूँ।' राहुल ने पूछा पर मुंह में शायद पकोड़ा था तो समझने में प्रॉब्लेम हो रही थी कि क्या कहा टी.वी भी तो चल रहा था ना।

'भाई तेरे भाई ने जिम ज्वाइन कर ली है पंगा ले लियो तू अब किसी से भी' सचिन ने बड़े जोश में जवाब दिया।


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