Nisha Singh

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4.7  

Nisha Singh

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पंछी

पंछी

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चैप्टर ९ भाग २

इससे पहले कि पिया के गुस्से का लावा टूटता मैंने बात संभालने की कोशिश की…

"पहले तू बता तूने क्या सोचा अपने फ्यूचर के बारे में… फिर हम बताते हैं…" शायद मेरी बात अंशिका को याद दिलाने के लिए काफी थी कि पिछली बार क्या मुद्दा छिड़ा था।

'हाँ... सोच तो मैंने भी लिया है पर पहले तू ही बता…" समझदार के जलए इशारा काफी… जिओ मेरी झल्ली, बच गई वरना मार डालती पिया तुझे…

"चल ठीक है… मैं ही बताती हूँ…"

हम दोनों उसकी बात सुनने बैठ गए। उस वक़्त का सीन तो कुछ ऐसा था कि दादी अम्मा कहानी सुनाने जा रही हो और बच्चे इस इंतज़ार में बैठे हों कि अब दादी अम्मा कहानी सुनाएंगी…

"कल मेरे भइया आए थे इंदौर से… पीएससी की तैयारी कर रहे हैं…"

"तो अब तू पीएससी की तैयारी करेगी?" अंशिका कभी नहीं सुधरेगी। कभी किसी को पूरी बात नहीं बोलने देती बीच में टोकने की गंदी आदत है… हम सब परेशान हैं… पर मानती नहीं है ना अगली, आप क्या कर सकते हो, तो बस… झेलो कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है।

"तेरा दिमाग खराब है… कम से कम बात तो पूरी सुन लिया कर…" पिया लगभग झल्लाते हुए बोली।

"सही कहा तूने… मैंने भी हामी भर दी पर कम तो मैं भी नहीं हूँ मुद्दे पे इतनी जल्दी कैसे आ जाने देती।

"वैसे कौन से वाले भइया आए थे?"

"अरे वो इंदौर वाली मौसी है ना… उनके बेटे…डब्लू भइया। "

नाम सुनके तो हम दोनों की हंसी छूट पड़ी। अबे ये कोई नाम होता है "डब्लू"… काफी कुछ कहने का मन कर रहा था पर हमने कहा कुछ नहीं… कहते तो तब ना जब कुछ कह पाते… हूँसी ही नहीं रुक रही थी क्या नाम है अगले का "डब्लू भइया"। हूँसना अच्छी बात होती है… खून बढ़ता है हूँसने से,पर अगर किसी और पर हंसो और उससे दूसरे का खून जल जाए तो महंगा भी पड़ सकता है। हमारा हंसना भी महंगा पड़ने वाला था हमे… पिया ने गुस्से में आकर हम दोनों की चोटी पकड़ ली… 


"मैं तुम दोनों को मार डालूंगी… मेरे भइया पर मत हंसो… वो बहुत अच्छे हैं…"

"हमने कब कहा कि बुरे है..." कहते हुए मेरी फिर से हंसी छूट गई।

"ये कोई नाम होता है… "डब्लू", कुछ ढंग का नाम नहीं मिला रखने के लिए…"अंशिका भी कम नहीं है दोनों हाथ से चोटी पकड़ रखी थी क्योंकि पिया उसी की चोटी ज्यादा जोर से खींच रही थी, तब भी चैन नहीं था।

"इंदौर वाली मौसी के दो बेटे हैं एक का नाम बबलू है और दूसरे का डब्लू…" पिया ने हमे समझाया।

पर समझाया भी तो उसी को जाता है जो समझना चाहता हो। और फिलहाल हमें कुछ भी समझने की कोई जरूरत नहीं थी।

"अबे… बच्चों के नाम रखने थे की शायरी करने थी जो काफिया मिलाया" कहते हुए मेरी फिर से हंसी निकल गई।

इस हंसी के साथ को हमारी शामत आ गई, ये समझ लीजिए। पिया ने हम दोनों की चोटियाँ जोर से खींचनी शुरू कर दी। पर उसका ज्यादा ध्यान अंशिका पर था इस बात का फायदा उठाकर मैंने उसकी गिरफ्त से अपनी चोटी छुड़ा ली और जल्दी से उठ कर खड़ी हो गई…

"ले मोटी, मैं बच गई… मैंने खुश हो कर कहा।

"देख मुझे मोटी मत बोल…" पिया थोड़ा सा चिढ़ गई मुझे मज़ा आता है लोगों को चिढ़ाने में…

अरे मेरी चोटी तो छोड़ दे…" अंशिका ने रोते हुए कहा तो पिया ने उसे छोड़ दिया। वैसे तो अंशिका ड्रामा कर रही थी पर उसके मगरमच्छ के आंसू मुझे कुछ याद दिला गए। मेरे चेहरे से हूँसी गायब हो गई जो उन दोनों को भी संजीदा कर गई।

"क्या हुआ… तेरी शक्ल पर 12 क्यों बज गए अचानक" पिया ने मुझे मुरझाया हुआ देखकर कहा।

"कुछ नहीं यार समीर की याद आ गई…"

"क्यों समीर को क्या हुआ? पिया ने पूछा, वैसे पिया समीर को नहीं जानती पर हमारी बातों में उसका जिक्र होता है तो नाम से जानती है कि समीर हमारा दोस्त है।

"कल समीर का फोन आया था, दो-तीन दिन से कॉलेज नहीं आया तो मैंने ही फोन किया था तब तो उसने पिक नहीं किया पर शाम को कॉल किया तो काफी देर बात की। बहुत उदास है अभी तक…"


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