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Jyoti Sagar Sana

Classics Inspirational Children

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Jyoti Sagar Sana

Classics Inspirational Children

पिंजरा

पिंजरा

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नव्या बड़ी उदास सी खिड़की से झांक रही थी,जैसे कुछ ढूंढ़ रही हो।माँ के कई बार बुलाने पर भी खाने के लिए नहीं आ रही थी। माँ को अपनी गुड़िया को मनाने आना पड़ा। 

माँ ने नव्य्या को प्यार से गोद में बिठाया और समझाया।बेटा मिठू का पिंजरा तो तुमसे ही खुला रह गया।उसके पास पंख थे वो उड़ गया।अब वो शायद नहीं आयेगा। आ भी सकता है। तुम खाना तो खा लो।

पर माँ मैं तो रोज़ उसे दाना खिलाती थी।कुरकुरे भी खिलाती थी,पानी भी पिलाती थी, पर वो फिर भी चला गया।मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा।कोई नहीं थोड़ा सा खा लो। नव्या खाना खाकर सो गई। अचानक उसने सपने में देखा मिठू खिड़की पर बैठा है-नव्या ने चहकते

हुए पूछा मिठू कहाँ चले गए थे तुम?तुम तो मेरे दोस्त थे, क्यूँ चले गए वापस आ जाओ।अरे इसलिए तो बताने आया हूँ, मैं सामने जो बरगद का पेड़ है उस पर रहता हूँ।पिंजरा मुझे कभी अच्छा नहीं लगा।कोई तुम्हे कैद करके रखे ,कही जाने न दे, माँ पापा से न मिलने दे तो बहुत बुरा लगता है।हम्म अच्छा तो नहीं लगेगा-नव्य्या बोली।अब वो समझ चुकी थी मिठू पिंजरे में खुश नहीं था। सोकर उठी तो सीधे खिड़की पर पहुंची,खुश थी सामने पेड़ पर बहुत से पक्षी शोर मचा रहे थे, माँ से बोली - माँ देखो हमारा मिठू वहाँ रहता है,अपनी माँ के पास खुशी से अपने दोस्तों के साथ। अपनी लाडो की खुशी देखकर माँ ने भी हाँ में हाँ मिला दी।


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