खत
खत
दामिनी पर्दे की ओट से दो घण्टे से निहार रही थी। कब मैं लैप टॉप बंद करूँ, कब वो अपनी बात कहे।
काम खत्म होते ही लगभग कूदकर आ गई, जीजी सुनो न। एक काम कर दो। दुल्हन बनने के बीस दिन बाद रूप निखर आया था उसका। हाँ बता- मैंने कहा।
वो आप मुझे लिखना सिखा दो। वो जा रहे हैं फिर दुइ महीना में लौटेंगे।
अच्छा तो ये बात है, पर सिर्फ लिखना?
वो सोच में पड़ गई।
अरे वो लिखेंगे तो पढ़ोगी कैसे। हम तो दोनों सिखायेंगे। मंजूर तो कल से आ जाना। जल्द ही सीख भी गयी, मोती जैसे अक्षरों में लिखा था उसने अपने पति को पहला खत, जिसका एहसान बहुत दिनों तक मानती रही।