जादू की टोकरी
जादू की टोकरी
रोहन दस साल का बच्चा, जिसके माँ बाप चल बसे माँग माँग कर अपना गुज़र बसर करने लगा। एक दिन भटकते हुए सर्कस जा पहुंचा। वहाँ जादूगर का खेल चल रहा था। जादूगर के पास एक जादुई टोकरी थी जिसमें से वो अलग अलग चीज़ें निकाल कर लोगों का दिल बहला रहा था। सबके साथ रोहन भी खूब मजे ले रहा था और ताली बजा रहा था। अचानक उसके मन में ख्याल आया क्यूँ न मैं ये टोकरी चुरा लूँ, जब भी भूख लगेगी जिस चीज का मन करेगा इससे ले लिया करूंगा।
इतना सोचकर वो खेल खत्म होते ही जादूगर के खेमे तक जाने की कोशिश करने लगा। किसी तरह जुगाड़ लगाकर वो वहाँ तक पहुंच गया। जैसे ही अंदर घुसा जादूगर उसे देखते ही बोला, तुम अंदर कैसे आ गये? सच बोलो वरना तुम्हें चूहा बना दूँगा।
रोहन डरकर बोला नहीं अंकल नहीं मुझे चूहा मत बनाना, मैं तो ये टोकरी चोरी करने आया था, जिससे भूख लगने पर खाना और जरूरत पड़ने पर खिलौने निकल सकें।
-क्यूँ तुम्हें घर पर खाना नहीं मिलता? जादूगर ने आश्चर्य से पूछा।
रोहन ने अपनी सारी कहानी बयान कर दी। उसके हालात सुनकर जादूगर को बहुत दुख हुआ। उसने पूछा तुम मेरे साथ काम करना चाहोगे, सुबह स्कूल जाना और शाम में जादू सीखना, और जानना टोकरी से इतनी चीजें कैसे निकलती हैं। बेसहारा रोहन को जादूगर के रूप में सहारा दिखाई दिया उसने तुरंत हाँ कर दी। रोहन ने पढ़ने में और जादू के खेल सीखने में उसने खूब मेहनत की। कुछ नए खेल भी अपनी तरफ से बना लिए और कुछ सालों बाद उस शहर का मशहूर जादूगर बन गया। उसने शहर में अनाथ बच्चों के लिये एक स्कूल भी खुलवाया जिससे बेसहारा बच्चे भी पढ़ सकें।