दादा जी का पेड़
दादा जी का पेड़
मैं बूढ़ा सा पेड़ इस घर के सामने मुझे निहाल के दादाजी ने लगाया था।और मेरी बहुत सेवा की। जब मुझे भरपूर प्यार मिलता था,जब मैं खूब पोषित हुआ ,बडा हुआ,पत्ते, डालियां,फल सब चीजों से भरा मैं। निहाल के दादाजी सुबह शाम मुझे पानी देते, समय समय पर खाद देते।मैं भी बढकर घर के आंगन मे छाया देता रहा।फिर समय आया निहाल के पापा की शादी का,घर का नवीनीकरण हुआ।कुछ घर के लोग मुझे काट देना चाहते थे कुछ बचाना। किसी को बिखरे पत्तों से परेशानी थी किसी को पक्षियों द्वारा आंगन गंदा होने की।पर निहाल के दादा दादी ने मुझे जीवन दान दिया। पर उनके जाने के बाद मुझे दरकिनार सा किया जाने लगा।धीरे मुझमें सूखापन समाने लगा।सब इतने व्यस्त हैं काम करने मे, पैसे कमाने मे, अजीब है ये मनुष्य भी। मेरी जिजीविषा भी खत्म सी हो रही थी एक दिन नन्हे निहाल ने मुझे छुआ ,खुश होते हुए कहने लगा ये मेरे दादा जी का पेड़ है। घर की आया उसे समझाने लगी-पर बेटा पेड़ को खाद पानी सब चाहिए कौन दे और उसने देखा छोटा सा निहाल छोटी सी कटोरी मे पानी लाया और मेरी जड़ों मे डाल गया।आया ने देखा तो उसने मेरी देखभाल शुरू कर दी,धीरे धीरे मुझपर फिर हरियाली छाने लगी है और निहाल के प्यार और विनी की देखभाल से मैं फिर छाया,हवा देने लगा हूँ। पक्षी फिर घोंसला बनाने लगे हैं।जिन्हें देखकर निहाल बहुत खुश होता है।आप सब भी देखना आसपास कोई पेड़ हो मेरे जैसा तो उसकी मदद करना।