कशमकश
कशमकश
ये सब क्या है, देव तुमने कहा था सब लोग आ रहे हैं। यहाँ तो और कोई नहीं है।
-निधि आप आती अगर मैं अकेले बुलाता?
देव के प्रश्न से पहले ही निधि तो सोच में पड़ गयी।
-आज निधि जी से सिर्फ निधि? क्यूँ देव?
- मैं जानता हूँ आप मुझे पसंद करती हैं, बस सबके सामने कह नहीं सकती।
-बस करो देव, मैं शादी शुदा हूँ, तुम जानते हो न। और तुम्हें क्यूँ लगा मैं तुम्हें पसंद करती हूँ। तुम अच्छे लड़के हो, अच्छा लिखते हो उस पर ध्यान दो।
- मैं आपको खुश देखना चाहता हूँ, करना चाहता हूँ, आपके साथ रहना चाहता हूँ।
- अच्छा किया तुमने यहाँ मंदिर में बुलाया मुझे, तो क्या अब शादी का इरादा है? कहकर निधि एक फीकी हँसी हँस दी।
- देव जोकि निधि से आभासी दुनिया से तीन और असल दुनिया में एक साल से परिचित था। निधि के इस वाक्य से सकपका गया।
-ध्यान से देखो देव इस मंदिर के आसपास की हवा भी कितनी सकारात्मक है, मेरे जीवन में कुछ उथल पुथल है भी तो उसका हल तुम नहीं मानसिक शांति है। मुझे आस्था है विश्वास है ईश्वर में एक दिन सब ठीक हो जाएगा।
- और नहीं हुआ तो आप मुझे याद करेंगी।
-निधि ने मंदिर की ओर मुंह कर प्रार्थना की ईश्वर इसका जवाब तुम्हें देना है। अगर ईश्वर का आदेश हुआ तो जरूर। कहकर निधि चल दी।
- आस्था में बहुत शक्ति होती है, मैं प्रार्थना करूंगा आप जल्दी ही सभी परेशानियों से मुक्त हो जाओ। जो आप पर हाथ उठाये आप उसका विरोध कर सको निधि जी।