बिरजू काका
बिरजू काका
बहुत कसक है न सबको राजू बिरजू काका के साथ क्यूँ घूमता है। जबकि उसे बाहर जाना भी मना है जबसे उसके सगे चाचा ने उसे जान से मारने का एलान कर रखा है। सब सुन लो कान खोलकर राज श्री एक अच्छे खानदान की विधवा बहू जिसकी कोयल सी आवाज़ पर सारा गांव मोहित था आज शेरनी सी दहाड़ रही थी।
सब जानते हैं दोनों भाइयों देव और किशन की रार में सुहाग लुटा तो मेरा। भाई मरा तो मेरा। अब एक बच्चा है सब उसके पीछे पड़ गए हैं। बिरजू काका इस हवेली के सबसे पुराने खादिम हैं। मुझे उनपर पूरा भरोसा है, ईश्वर जितना। जिस इंसान ने देव बाबू को बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी क्या वो उनकी आखिरी निशानी को नहीं बचायेंगे। सभी रिश्तेदार राज श्री की बात सुन रहे थे, तभी बुआ बोली सुना है अपना राजू बिटुआ देव की औलाद ही नहीं है, वो बिरजू का पोता है जो देव ने गोद लिया था।
देखो बुआ कोई सबूत हो तो ऐसी बात निकालो मुँह से वरना राज श्री ने दाँत भिंचते हुये कहा। रोज के इस तमाशे से तंग राजश्री के मन में बहुत कुछ चल रहा था।
रात घिरते ही बहू बिरजू काका के कमरे की तरफ गई। काका सो गए क्या?
- नहीं बहू कुछ काम था तो बुला लेती।
- काका आप राजू को लेकर मेरे पीहर चले जाओ जब तक मैं न कहूँ लौटना मत। राजू आपसे काफी घुल मिल गया है। आपको परेशान नहीं करेगा।
- नहीं बहू हम नहीं जा पइये, तुम्हें हियाँ इकली छोड़ के। का मुँह दिखइबे हम ठाकुर साब को।
- नहीं काका आपको आपके ठाकुर साब की सौं।
राजू की जान बचाने का यही एक रास्ता है।
- अच्छा जैसन तुम कही।
- बिरजू काका राजू को लेकर दूसरे गांव चले गए। वहाँ उनके खाने पीने का इंतजाम राज श्री के घरवालों ने घर दिया। राजू पढ़ने जाने लगा, और काका के साथ उसकी कसरत भी बढ़िया चल रही थी।
पाँच साल बाद राजू को राजश्री ने बुलवा भेजा। बिरजू काका जिस बच्चे को कंधे पर उठाये फिरते थे आज वो उनसे कंधा मिलाकर वापस लौटा।
- किन शब्दों से धन्यवाद कहूँ आपका काका।
- अरे रहिने देओ बहू। किशन बाबू ..कहकर काका ने लम्बी सांस ली।
- किशन बाबू ने पुलिस को सरेंडर कर दिया वरना माफिया के लोग उन्हें मार देते।
-अब मेरे लाल को उसका हक़ मिलकर रहेगा। कहते हुए राज श्री की आँखों और होंठों पर आत्मविश्वास की रेखा थी।