मुक्ति
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माँ को गुजरे पाँच दिन ही हुए थे... अभी मेहमानों से घर भरा था। चुकी पिताजी का देहांत बहुत पहले हो चूका था, इसलिए श्राद्धकर्म का भार हम तीनों भाईयों के ऊपर आ गया। दालान पर हम तीनों भाई, घर आये वरिष्ठ मेहमानों के साथ मिलकर ‘एकादशा- द्वादशा’ का लिस्ट बनाने में व्यस्त थे|
इसी बीच आंगन से जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज आई। दलान से उठ कर , धोती संभालते हुए मैं आंगन पहुँचा।
भाभी और भाभो (छोटे भाई की पत्नी) के बीच भीषण ‘वाक्-युध्ध’ चल रहा था। “हद्द हो गई ! तुमलोग इतना भी नहीं समझते... ... मेहमान क्या सोचेंगे ! सीधे दालान तक आवाज पहुँच रही है। " एकाएक मुझे सामने खड़ा देख, भाभी और भाभो सकपकाई , पर उनदोनों का तेवर अभी भी गर्म -तावे की तरह लाल था।
“आप गेस्ट की खातिर मरते रहिए ... न कभी बड़ा जैसा सम्मान मिला, न ही छोटे जैसा प्यार ! मांझिल की यही गति होती है! गेस्ट तो सब के हैं न..? कि आप ही ठेका ले रखे हैं? अभी माँ-जी का श्राद्धकर्म ख़त्म भी नहीं हुआ..आंगन में बाँट-बखर शुरू हो गया !” पत्नी मेरी ओर आँखें तरेरती हुई आग का गोला बरसाने लगी। “
भगवान् के लिए शांत हो जाओ।” उनदोनों के आगे मैं हाथ जोड़ विनती करने लगा।
“ सुनिए, भोज- भात में खर्च करने के लिए मेरे पास फ़ालतू पैसे नहीं है। कल बेटा-बेटी के स्कूल का फ़ीस जमा करना है। हाँ, ई.. बात तो गार्जियन को पहले ही सोचना चाहिए था न...? वाह!भोज के समय कोहरे की खेती! ” भाभो घूँघट आगे सरकाते हुए गरज कर बोली। “
मैं बड़ी हूँ....इसका क्या मतलब? सारी जिम्मेदारी मेरी ही है ? मेरे पति रिटायर कर चुके हैं।बड़े हैं, इसलिए इनको केवल श्राद्धकर्म से मतलब हैं। भोज-भात और सर-कुटुंब से मुझे कोई लेना-देना नहीं..|” भाभी कड़क आवाज़ में बड़े होने का रोब जताते हुए बोली।
अनवरत बहस की आवाज सुन, बड़े और छोटे भाय भी दालान से उठकर आंगन आये। दोनों भाई मेरे पास खड़े होकर चुपचाप , तूतू..मैंमैं....सुन ही रहे थे..कि, तभी बड़े काका की करूण आवाज़ , “ हे भगवान! आंगन में किस बात का शोर मचा है! यह कैसा श्राद्ध है ?! जहाँ शरीर से निकली आत्मा को घर के आपसी कलह के कारण मुक्ति न मिले.. !!
बड़े काका समीप आकर हम तीनों को गले से लगाते हुए बोले, " ओह! हमारे रहते तुमलोग क्यों परेशान हो रहे हो।सबसे बड़ा मैं हूँ , मेरा कर्तव्य सबसे अधिक है। बोलो कितने पैसे चाहिए ?" सुनते ही तीनों भतीजे की नजरें झुक गईं।
इस पल का साक्षी बन दरवाजे पर खड़ा विशाल बरगद का पेड़ मुस्कुरा उठा। उसके पत्तों में हलचल मच गई।