मंगला की दास्तान
मंगला की दास्तान
बाढ़ की तबाही की खबरें हमने या तो टीवी पर देखी है या फिर अखबारों में पढी है। बाढ़ की तबाही का अंदाजा हम सिर्फ एक उफ्फ भर से लगा लेते हैं। उफ्फ इतनी तबाही हुई। बस वही घिसा-पिटा सा लाइन। हमलोग ये समझने में भी असमर्थ है कि किस प्रकार लाखों जिंदगियां बर्बाद हो जाती हैं। हम जिस लाइन भर से अंदाजा लगा लेते हैं, दरअसल , उतनी ही देर में और हजारों जिंदगियों की लाइफ लाइन , वर्तमान दुनिया से बिल्कुल कट कर रह जाती हैं।
बाढ़, आंधी-तूफान, वज्रपात ये इस प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं है, जो कि न केवल मनुष्य बल्कि जानवरों की जिंदगियां भी बर्बाद कर देती हैं।
मनुष्यों को तो सरकारें बचाती हैं, सहारा देतीं है। बाढ़, आंधी-तूफान आदि आपदाओं से प्रभावित लोगों को आश्रय प्रदान करतीं हैं। कभी - कभी इन कैंपस या राहत शिविरों में भी प्रर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं होती। लोग किसी प्रकार गुजर - बसर करते हैं। पुनः स्थिति सामान्य होने पर, राहत शिविरों के लोग अपने घरों की ओर लौट जाते हैं। वे ही घर जो बाढ़ के बाद बिल्कुल नष्ट हो चुके होते हैं। फसलें जो बुरी तरह प्रभावित हुई होती हैं और सड़ चुकी होती हैं।
इंसानों के बारे में हमारी जानकारी व्यापक है, परन्तु संपुर्ण नहीं हैं।
हमारी जानकारी के दरवाजे उन बेजुबानों के लिए बिल्कुल ही बंद हो जाते हैं। उन जंगली जानवरों , जिनके लिए अभयारण्य बनाया जाता है, लाखों रूपयों के विज्ञापन किये जाते हैं , परंतु इनके जीवन के लिए किसी प्रकार के राहत शिविर नहीं होते।
काश ! इन बेजुबानों के भी ज़बान होते तो वे भी अपनी कहानी बता पाते।
ये कहानी है मंगला की, मंगला पांच वर्षीय हाथी हैं जो कि गर्भवती हैं। हाथियों को अमूमन साथी कहा जाता है। हाथियां साधारणतया झुंड में चलती है। वे झुंड अपने परिवार वालों का बहुत ध्यान रखते हैं। इंसानों के परिवार से बेजुबानों के परिवार में अधिक प्रेम होता है।
मंगला काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में अपने परिवार के साथ रहती हैं। उस रात अचानक ब्रह्मपुत्र नदी में पानी भर गया और जंगल में पानी भरने लगा। मंगला के ससुर जो झुंड का नेतृत्व करते हैं, वे सभी हाथियों को बुलाकर आदेश देते हैं।
"आप सभी अपने - अपने परिवार वालों का ध्यान रखें, हमें किसी अच्छे और ऊंचे स्थान की ओर गमन करना होगा। मेरी आयु बढ़ रही है अतः मेरा बड़ा पुत्र मंगल , हमारे झुंड का नेतृत्व करेगा। मैं अब जल्दी - जल्दी नहीं चल सकता मैं पीछे चलूंगा।"
सभी हाथियों ने हामी भर दी।
कुछ देर तक सभी आगे बढ़ते रहे, लेकिन पानी भी बढ़ता ही जा रहा था।
सभी हाथी एक साथ आगे बढ़ते रहे।
कुछ दूर चलते-चलते झुंड के छोटे हाथी डूबने लगे।
सभी बड़े हाथियों में भगदड़ मचने लगी।
मंगल के पिता अब थक चुके थे, वे अपने पुत्र से बोले "अब मैं थक चुका हूं, मैं अब चल नहीं पाऊंगा ।"
मंगल अपनी पत्नी और बाकी हाथियों के साथ चलने लगे।
पानी का प्रभाव और अधिक बढ़ने लगा, बारिश भी बहुत अधिक बढ़ रही थी। हाथियों का झुंड भटकने लगा। हाथी तितर-बितर होने लगे।
हाथियों के बच्चे रूदन कर रहे थे और उनकी माताएं बिलख रही थी।
नर हाथी तितर-बितर होने लगे। रात के अंधेरे में कोई कहीं तो कोई कहीं चला गया।
मंगल और उसकी पत्नी एक साथ चल रहे थे।
मंगला ने अपने पति मंगल से कहा, " मुझे पेट में दर्द हो रहा है, मैं अब चल नहीं पाउंगी।"
मंगल बोला," प्रिये ! तुम्हे चलना होगा, धीरज धरो, अपने बच्चे के लिए चलों।"
मंगला बोली " कुछ देर रुक जाते हैं, ये जगह थोड़ी ऊंची है, यहां पानी भरने में समय लगेगा।"
मंगल बोला " ठीक है, तुम आराम करो। मैं पीछे छुट चुके हाथियों को बुलाकर यहां लाता हूं।"
मंगला बोली " मत जाइए!"
मंगल बोला " मैं नेता हूं। मैं अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हो सकता। तुम अपना और हमारे बच्चे का ध्यान रखना!"
मंगल चला गया। मंगला कुछ देर तक बैठी रही और उसकी आंख लग गई। वो सो गई।
मंगला की आंखें जब खुली, तब सुबह हो चुकी थी। आंखों के सामने सिर्फ पानी ही पानी था और कुछ नहीं दिख रहा था। मंगल अब तक नहीं लौटे थे, मंगला विलाप करने लगी।
कुछ देर तक विलाप करने के बाद वो चुप बैठी रही।
जब भुख से पेट दर्द करने लगा तो मंगला उठ खड़ी हुई और गांव की ओर जाने लगी।
बहुत देर तक चलने के बाद एक गांव में पहूंची और वहां कुछ लोगों ने हाथी को देख कर , डंडा उठाकर उसे मारने चले आए।
मंगला दौड़ने लगी , मगर दो डंडे उसके शरीर पर पड़ गए।
किसी तरह मंगला की जान बची।
मंगला को कुछ देर बाद कुछ बच्चों का झुंड दिखाई दिया। वो उन बच्चों के पास गई। वे बच्चे शरारती थे।
उन बच्चों ने मंगला को अनारस में पटाखे भर कर खिला दिया।
अनारस खाने के कुछ देर बाद ही मंगला के पेट में मरोड़ होने लगा। उसे उल्टियां हुई और पेट जलने लगा।
मंगला दौड़कर जंगल की ओर भागी और जल्दी से पानी में उतर गई।
मंगला के शरीर से खून निकलने लगा, उसका बच्चा मर चुका था। उस दर्दनाक पीड़ा से उसकी भी मृत्यु हो गई।
हर साल लाखों मंगला, मंगल और कई जानवर मर जाते हैं, या तो प्राकृतिक आपदाओं से या फिर इंसानी अत्याचार या लोभ का शिकार होकर।
फिर भी हम तो सभ्य समाज के बासिंदे होने का सीना ठोककर दावा करते ही हैं।