वह डरावना सपना
वह डरावना सपना
सपने बंद आंखों से नहीं , बल्कि खुली आंखों से देखे जाने चाहिए। मगर जिंदगी में सपने जरूरी क्यों है, इसे जानने की कोशिश हमेशा करनी चाहिए।
सुहानी का एक अजीब सा सपना था, ऐसा सपना जिसे वो बंद आंखों से देखती थी। सुहानी को अपने सपने में हमेशा एक सुनसान सड़क और घना जंगल दिखता था जहां वह अकेली खड़ी है और अचानक उसे एक अंजान चेहरा दिखाई देता है और उसके बाद की परिस्थिति उसे नहीं पता चलती।
वो चेहरा उसे कभी साफ नजर नहीं आता था, जब भी वह उस चेहरे को देखना चाहती तो वह चेहरा गायब हो जाता।
एक बार मां पिता और भाइयों के साथ सुहानी गांव की ओर जाती है। गांव के रास्ते पर से वे लोग गाड़ी पर सवार होकर चले थे। गांव आता है, वह इलाका आदिवासियों का है और बड़ा ही निर्जन स्थान है।
सुहानी और उसका परिवार पिकनिक मनाने के लिए गांव के रास्ते से जंगल की ओर गए। वो जंगल उसे जाना पहचाना सा लगता है। उस जंगल में सबने मिलकर काफी मज़ा किया और फिर सब घर लौट आए।
रात हो चुकी थी, सुहानी सोने चली गई। रात को फिर वो ही दर्दनाक सपना उसे दिखाई देने लगा। सुबह हुई, सुहानी नहाकर तैयार होने अपने कमरे में आई।
तभी उसने देखा कि, उसकी एक सोने की बाली नहीं मिल रही। सुहानी ने बहुत ढूंढा मगर फिर भी उसे वह बाली न मिली। सुहानी ये सब बातें अपनी मां को भी नहीं बताना चाहती थी।
सुहानी ने उसी जंगल में फिर से जाने का निर्णय किया। वह दोपहर को बिना बताए घर से निकल पड़ी थी और धीरे - धीरे उस जंगल के भीतर घुस गई।
जंगल में वो बहुत भीतर चली गई थी, और शाम होने लगी थी, उसे घर लौटने का रास्ता नहीं मिल रहा था। सुहानी डर के मारे रोने लगी। वैसे ही बहुत देर तक रो रही थी, अचानक एक आदमी ने उसका हाथ पकड़ लिया, और वो और जोर से रो पड़ी। उस मुंह ढके हुए चेहरे ने उसका मुंह हाथ से बंद कर दिया।
सुहानी सन्न रह गई, उस आदमी ने आदिवासी भाषा में पूछा कि तुम इस माओवादी इलाके में क्या कर रही हो? सुहानी कुछ बोल न पाई और सिर्फ रोती रही।
सुहानी ने जैसे तैसे अपनी बातें उस आदमी के सामने रखी और घर लौटने के लिए मदद मांगी।
उस आदमी ने सुहानी को उस घने जंगल से बाहर निकाला और उसे उसके घर तक छोड़ आया।
सुहानी ने उसे घर के अंदर आने का आग्रह किया परंतु वह नहीं आया। सुहानी ने उसके भीतर न आने का कारण पूछा।
वह आदमी बोला " मैं माओवादी हूं।"
सुहानी का वह डरावना सपना आज इस तरह सच हुआ।