अश्रुओं के मेघ अंतिम बूँद तक बरसें
अश्रुओं के मेघ अंतिम बूँद तक बरसें
मुझे होश आया तो मुझे पता नहीं मैं कहां था। मेरे शरीर में थोड़ा दर्द हो रहा था। मैं उठ के बैठ गया। अभी तक जो मेरी आंखों के सामने का दृश्य धुँधला था। मैं हाथ से अपने चकराते सिर को संभालते हुए खड़ा हो गया। अब मेरी आंख के सामने का मंजर मुझे नजर आने लगा, लेकिन यह क्या? यह कैसी जगह है? मैं कहां हूं? ऐसी जगह तो मैंने पृथ्वी पर कभी नहीं देखी थी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। चारों तरफ जहां जहां मेरी नजर गई, केवल जमीन ही जमीन। उस जमीन का रंग तो पृथ्वी जैसा ही था, लेकिन वनस्पति, हरियाली या जीवो का नामोनिशान नहीं था। गर्मी भी बहुत थी, और आसमान पृथ्वी की तरह ही नीला था। मैंने हाफ कपड़े पहने थे।थोड़ी देर सोचने के बाद मैंने पूर्व दिशा में चलने का निर्णय किया।
थोड़ी देर चलने के बाद मुझे प्यास लगने लगी। लगभग 250 मीटर चलने के बाद मुझे कुछ खंडहर दिखाई पड़े। वहां पर भी कोई जीव नहीं था। मैं प्यास के कारण तो चल भी नहीं पाता पर मैं भागकर उन खंडहरों के पास पहुंचा तो मैंने देखा कि वह खंडहर तो थे मगर उनके बीच मैं मुझे एक साइनबोर्ड दिखा जिस पर लिखा था:-" फ्री फूड फॉर ट्रैवलर्स" और ऊपर बड़े अक्षरों में लिखा था रेस्टोरेंट।
मैंने आसपास देखा तो एक बिल्डिंग दिखी। मैं जल्दी से वहां गया और उस बिल्डिंग को गौर से देखा तो मुझे कुछ अचरज हुआ। मैने उस रेस्टोरेंट के बाहर लगे पंखे से पसीना सुखाया और फिर गेट के पास गया। वहां गेट के बगल लिखा था-"
रिकॉर्ड और फिंगरप्रिंट हेयर।" मैंने उस सेंसर में उंगली लगा दी और फिर लिख कर आया फिंगरप्रिंट रिकॉर्डेड। ऑटोमेटिक गेट खुल गया और मैं अंदर लिफ्ट में आया, फिर उसने मुझे ऊपर होटल रूम में पहुंचाया। मैं वहां के बेड कंटेनर में बैठा और बगल के टच स्क्रीन से आर्डर प्लेस किया और उसने आखिर में फिंगरप्रिंट मांगा। मैंने फिंगरप्रिंट दिया और 1 सेकेंड से भी कम समय में खाना मेरे सामने था।
मैंने सबसे पहले पानी पिया क्योंकि मुझे बहुत तेज प्यास लगी थी मगर उसका स्वाद बहुत अजीब था। ठीक उसी तरह खाना खाने पर ऐसा लगा कि जैसे रबर खा रहा हूं। फिर मैं रिसेप्शन हॉल में गया तो सब जगह कुछ अजीब से लोग थे। मेरी समझ में इन्हें ह्यूमन साइबोर्ग कहते हैं और यह वह लोग होते हैं लोग होते तो इंसान हैं, लेकिन यह तकनीक की मदद से अपने शरीर के कुछ अंगों को जैसे हाथों, पैरों, और आधे चेहरे को रोबोटिक बना लेते हैं। वह हॉल में बहुत थे और इनमें से कोई भी पूरा नॉर्मल इंसान नहीं था।
मैं कुछ सोच समझने के लिए और इनके बारे में अकेले में कुछ चिंतन करने के लिए मुड़कर अपने होटल के रूम में जा ही रहा था और जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो सारे साइबोर्ग्स मेरी तरफ आश्चर्य से देख रहे थे। इससे पहले कि मैं कुछ सोच समझ पाता, मुझे ऐसा लगा कि मेरे सिर पर किसी ने बहुत तेज प्रहार किया है और मैं बेहोश हो गया।
आंख खुलते ही मैंने अपने आप को एक ऑपरेशन थिएटर जैसे बेड पर पाया और मेरे सामने दो साइबोर्ग्स थे। इससे पहले कि मैं उनसे कुछ पूछता उन्होंने मुझे क्लोरोफॉर्म सुँघा दी। आंख खुलते ही मैंने अपने आपको होटल रूम में पाया। मैं बैठा तो मैंने अपने हाथ पैर को देखा। पर यह क्या? मैं भी एक साइबोर्ग बन चुका था। मेरा आधा चेहरा, हाथ और पैर साइबाॅर्गियन हो गए थे, अब मेरे मानवीय अंगों को पोषण की और साइबाॅर्गियन अंगों को फ्यूल की जरूरत थी। इन अलग अंगों से वह तो नहीं सकता था मगर मानव से तेज तो दौड़ ही सकता था। थकान तो मुझे अब भी होती थी और भूख प्यास तो अब भी लगती थी।
ऐसे उस अनजान जगह पर मेरा एक दिन बीता। जब रात हुई तो सोने से पहले मैं यही सोच रहा था कि मैं कौन सी जगह आ गया? जहां पर इस तरह के अजीब से आधे रोबोट और आधे इंसान होते हैं मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। किसी तरह करवटें बदलते- बदलते मैं सो गया।
जब यह बातें पूरी हुई तो मैंने दोपहर का खाना खाया और दोपहर का खाना थोड़ा सा अच्छे स्वाद का था और पानी भी ठीक था उसके बाद रात में भी वही हुआ। उसके बाद रात में सोने से पहले मैं सोच रहा था कि मैं ही अकेला इंसान था या और भी कोई इंसान है इस ग्रह पर जो कि पूरा इंसान हो न कि ह्यूमन साइबाॅर्ग। उसके बाद मैं सोचने लग गया कि मेरे लिए कल का दिन कैसा बीतेगा और क्या कल ही होटल से बाहर निकलकर पेट्रोलिंग करने की मेरी बारी है। यह सब सोचते सोचते आखिर मैं सो गया।
उसके बाद अगले दिन मेरी कंप्लेंट का जवाब आया कि अब वह खाने में मसाला सही से डालेंगे उसके बाद जब मैंने खाना खाया तो खाना सही था फिर उसके बाद मुझे नीचे बुलाया गया मैंने सोचा कि कहीं मेरा ही दिन तो नहीं इस अनजान जगह में भटकने का है-- हालांकि मेरे पास साइबोर्ग सूट तो था लेकिन वह इतना भी शक्तिशाली नहीं था कि मुझे 2 किलोमीटर जाना और 2 किलोमीटर आना इतना पावरफुल वह फ्यूल नहीं था।
पर ऐसा नहीं हुआ आज मेरे साइबोर्ग सूट में लगना था जीपीएस। उसी जीपीएस के कारण मैं उस ग्रह पर किसी भी व्यक्ति के लोकेशन को जान सकता था और कहीं भी जाने के रास्ते को खोज सकता था।
सुबह-सुबह साइबाॅर्ग सूट अपग्रेड होने के बाद मुझे याद आया कि मैं ग्रह पर नया हूं और मैं नहाया भी नहीं हूं इसीलिए मैं उस दिन नहाने गया। मेरा साईबाॅर्ग सूट वाटरप्रूफ था।
नहाने के बाद मैं खाना खाने गया। फिर उसके बाद खाना खाते समय मैं सोच रहा था कि वह मशीन किस तरह से कंट्रोल होती होगी और वह स्वचालित खाना बनाने वाली मशीन काम कैसे करती होगी? उसकी कार्यप्रणाली के साथ-साथ मेरे मन में और भी कई सारे सवाल थे कि मैं यहां कैसे पहुंच गया,इस ग्रह की जमीन ऐसे कैसे बन गई और यहां के लोग इस तरह से साइबोर्ग क्यों हैं? इन्हीं सारे सवालों के जवाब सोचते- सोचते हुए मैंने पूरा दिन बिताया और रात को भी इन्हीं सवालों के जवाब सोच रहा था। और रात में तो यह भी सवाल मेरे दिमाग में आया कि मानवीय अंगों को किस तरह से साइबोर्गियन अंगों में परिवर्तित किया जाता होगा--? क्या उन अंगों को काटा जाता होगा? क्या उन अंगों में कुछ और तरीका लगाया जाता है? या फिर यह सारा काम साइबाॅर्ग्स के बजाय रोबोट जैसा कुछ करते हैं?
इतने सारे सवालों के साथ जो कि मेरे दिमाग पर बहुत बोझ बनाए हुए थे बड़ी मुश्किल से मैं सो गया। सपने भी मुझे कुछ अजीब से आए। कुछ इस तरह से कि मैं कुछ वर्णन नहीं कर सकता लेकिन वह सपने इतने भयावह थे कि उन्होंने मुझे बहुत हद तक डरा दिया। आखिर यह तीसरा दिन भी, क्योंकि बहुत डरा देने वाला था, बीत जाने पर मुझे बहुत सुकून मिला।
सुबह हो गई तो मेरी कंप्लेंट का जवाब आया अब वह खाने में सही से मसाला डालेंगे। आज मेरा साइबोर्ग सूट जीपीएस माड्यूल के कारण एक और फीचर से युक्त हो गया। वह फी़चर यह था कि मैं अब अपने साइबोर्ग सूट से ही खाना भी आर्डर कर सकता था और उसी से अपने आसपास की छोटी-छोटी मशीनें जो मैं कंट्रोल कर सकता था उसे इंटरेक्ट कर पाना भी मेरी एक विशेषता हो गई थी। आज मैंने खाना ऑर्डर किया मगर खाना खाकर जब मैं गया मेन हॉल में तो मुझे पता चला कि आज होटल के बाहर जाने की कुछ और लोगों के साथ मेरी भी बारी थी। हम लोग होटल के बाहर निकल आए और लगभग 1 मिनट तक विचार-विमर्श करने के बाद हमने अलग-अलग दिशाओं में जाने का फैसला किया।
मैं 2 किलोमीटर तक जाने का सोच रहा था लेकिन मुझे पता नहीं था कि मेरे साथ आगे क्या होने वाला है। मैं सोचा कि अब मैं नॉर्मल स्पीड में जाऊं लेकिन जैसे ही मैंने चलना शुरू किया मैं 2 किलोमीटर प्रति मिनट की रफ्तार से जाने लग गया 2 किलोमीटर खत्म होने के बाद मैंने वापस जाने के पहले अपने फ्यूल को चेक किया लेकिन अब मेरा फ्यूल केवल एक पर्सेंट बचा रह गया था। थोड़ा और दौड़ने के बाद मैं चल ना सका यहां तक कि खड़ा भी ना रह सका और जमीन पर गिर गया। यही सोचते हुए कि इस साइबोर्ग रूप का फायदा क्या हुआ---
क्योंकि मेरे हाथ और पैर तो साइबाॅर्गियन ही थे इसीलिए मैं हल्का सा खिसकते हुए उल्टा होकर लेट गया जिससे मैं आगे देख सकूं वहाँ पानी का कोई नामोनिशान था ना सामने कोई जीव भी नहीं था कुछ भी ऐसा नहीं जिसमें मैं थोड़ी देर भी जीवित रह सकूँ। आखिर में ज्यादा तेजी के साथ दौड़ने के कारण मेरा फ्यूल तो खत्म ही हो गया था और मुझे भूख भी लग रही थी। आखिर में मैं बेहोश हो गया।
आंख खुलने के बाद मैंने अपने आप को एक बेड पर पड़ा पाया जो कि मेरे होटल के साइबोर्ग केयर सेंटर का था। वहां पर मुझे और समय तक वर्किंग कंडीशन में रखने के लिए बैटरी अडॉप्टेशन मतलब अब मैं बैटरी पर भी चल सकूंगा लेकिन उस बैटरी की कैपेसिटी फ्यूल से कम थी फिर भी वह मुझे अच्छे से कुछ समय तक दौड़ा तो सकती थी।
जब मैं गिर गया था मेरा हाथ का सेंसरी मॉड्यूल टाइम हो गया था जिसमें दिमाग के आदेश मानने के लिए बहुत सेंसर लगे होते हैं, उसे ठीक करने के लिए उन्होंने पुराने सेंसरी मॉड्यूल को जो कि टूट चुका था उसे रिप्लेस किया और नया सेंसरी मॉड्यूल जो कि और ज्यादा उपयोगी थी क्योंकि वह मेरे आस-पास के मूवमेंट को भी सेंसर कर सकता था। आगे का यह बचा हुआ दिन भी थोड़ा बहुत रिपेयरिंग में बीता और मेरे सूट को पूरी तरह से ढका गया ताकि मैं जब भी आगे कभी गिरुँ तो मेरा कोई भी मॉड्यूल डैमेज ना हो। इसमें दो-तीन घंटे का समय लगा उसके बाद रात का खाना खाकर मैं बेड पर आया तो मुझे एक साइबाॅर्ग रूम में आता हुआ दिखा जिसने मुझसे कहा कि अब मुझे अगले दिन आराम करना चाहिए। इस तरह से अगला दिन आराम में बीत गया।
छठे दिन मुझे बुलाया गया और मुझ में फिर से अपग्रेड किया गया। लेकिन अबकी बार का यह अपग्रेड बहुत बड़ा था। यह अपडेट था वाईसीकेए बीटा मॉड्यूल का। वाईसीकेका फुल फॉर्म है यू कैन नो एनीथिंग। इस मॉड्यूल से मैं किसी भी वस्तु को देखने और उसके बारे में सोचने भर से ही उसके बारे में जान जा रहा था। उसके बारे में मुझे सब कुछ पता चल जा रहा था। और किसी भी वस्तु, प्राणी अथवा किसी मशीन की कार्यप्रणाली के बारे में मुझे सब कुछ पता चल जा रहा था। लेकिन क्योंकि यह मॉड्यूल अभी डेवलपिंग या फिर बीटा स्टेज में था, तो इसीलिए अभी वह मुझे कुछ ही वस्तुओं के बारे में बता सकता था और कुछ ऐसी वस्तुएं जो उस ग्रह के बाहर हैं, उनके बारे में मुझे पता नहीं चल सकता था। यह दिन बाकी सामान्य रूप से बीत गया। सातवें दिन मेरे जीपीएस माड्यूल की एक और अपडेट आई जिसे मैंने करा लिया। आठवें दिन एक और अपग्रेड हुई जो की थी फ्लाइंग मॉड्यूल जिससे मैं अब हवा में उड़ सकता था लेकिन यह फ्लाइंग मॉड्यूल मेरे नॉर्मल दौड़ने वाले मॉड्यूल से ज्यादा पावर कंजम्पशन लेता था।
आगे का आठवाँ दिन उसी तरह से बीता जिस तरह से मैंने बाकी सारे दिन सामान्य रूप से खाना खाकर बिताए और रोजाना के काम किए। अब आता है नौवां दिन इस दिन मैंने हमें हमेशा की तरह रोजाना के काम करके नहीं बिताए बल्कि यह दिन फिर से एक बार मेरे होटल से बाहर जाकर पेट्रोलिंग करने का दिन था। इस दिन हम होटल से बाहर निकले। उसके बाद मैंने 2 किलोमीटर फ्यूल पर जाने का निश्चय किया वह भी उड़ कर। फ्यूल और बैटरी, पावर कंज़म्पशन। में अलग अलग थे। मैं उड़कर गया भी लेकिन 2 किलोमीटर के बाद मेरा फ्यूल खत्म हो गया मैंने 500 मीटर और बैटरी पावर पर जाने का निश्चय किय।
यह सोच कर कि कहीं कुछ और जगह मिल जाए इस सुनसान ग्रह पर यह सोचकर मैं 500 मीटर तक बैटरी पावर पर गया। लेकिन फिर जब मैंने अपनी बैटरी की चार्ज परसेंटेज चेक की तो मुझे पता चला कि मेरी बैटरी अब इतनी नहीं बची है कि वह मुझे बाकी थोड़ा और आगे का रास्ता उड़ाकर पार करवा सके। इसीलिए मैंने वाईसीकेए मॉड्यूल में लगे जू़मिंग फंक्शन का यूज किया।इससे मुझे पता चला कि सामने एक एनसीसी यानी कि नेटवर्क कंट्रोल सेंटर है।
मैं वहां पर चला गया जमीन में उतर कर और दौड़ कर। वहां पर बाहर एक फ्यूल एंड बैटरी सेंटर था जहां पर लेटने के बाद ही मेरा फ्यूल और बैटरी दोनों जवाब दे गए। मैंने फ्यूल भरवाया और बैटरी को चार्ज करवाया इसमें लगभग 10 मिनट लगे। उसके बाद मैं चला गया उस एनसीसी के अंदर वहां पर मैंने देखा कि अंदर सारा काम ब्लूप्रिंट और 3D होलोग्राम से होता है। ब्लू प्रिंट ब्लू कलर के ऐसे प्रिंट होते हैं जिनसे हम टचस्क्रीन की तरीके इंटरेक्ट भी कर सकते हैं मतलब उस में दिखाए गए डाटा को मूव भी कर सकते हैं
और 3D होलोग्राम कुछ 3D हवा में ड्रॉ किए गए होलोग्राम होते हैं जिनके साथ भी हम लोग इंटरेक्ट कर सकते हैं, मगर यह थ्री डाइमेंशन होते हैं मतलब इसमें चौड़ाई, लंबाई और मोटाई तीनो होते हैं और यह हवा में बने होते हैं। हवा में उड़ने वाली ऐसी चीज के बारे में मुझको मेरे वाइसीकेए माॅड्यूल से पता चला। उसके बाद मैंने और अंदर जाने का फैसला किया। तब मेरे वाइसीकेए मॉड्यूल ने बताया कि इस जमाने में वर्ल्ड वाइड नेटवर्क के रूप में इंटरनेट नहीं बल्कि मेटावर्स चलता है।
मेटावर्स क्या होता है? यह भी मेरे वाइसीकेए मॉड्यूल ने बताया। मेटावर्स सारे वर्चुअल यानी कि केवल सोचे जा सकने वाले संसारों का, इंटरनेट को लेकर, एक समूह होता है जिसमें ट्रांसफर ऑफ फ़ाइल्स की स्पीड बहुत ही ज्यादा होती है। जैसा कि आपको पता होगा, 1GB में 1000 MB होते हैं। 1TB में 1000 GB होते हैं, उसी के साथ साथ 1 EB में 1000 TB होते हैं और 1PB में 1000 EB होते हैं। तो इस तरह से मैक्सिमम 1PB होती है मेटावर्स की स्पीड।इतनी तेज स्पीड से डाटा ट्रांसफर होता है। उसके बाद मुझे वहां पर बैठे हुए एक पूर्ण मानव दिखे जोकि वृद्ध थे। उन्होंने मुझे देखा और मुझे अपनी तरफ बुलाया।
अभी तक मुझे किसी से कुछ इस ग्रह के बारे में पूछने का मौका नहीं मिला था ना ही मेरे वाइसीकेए मॉड्यूल को पता था। तो मैंने उनसे पूछा इंग्लिश में कि "व्हिच इज दिस प्लेनेट एंड इज़ एनी डेट सिस्टम उसड हियर ?" तो उन्होंने हिंदी में जवाब दिया "यह ग्रह पृथ्वी है और आज की तारीख है 26 जून 2041" यह सब कुछ सुनने के बाद मेरा मुँह खुला का खुला रह गया--।
फिर मैंने हिंदी में पूछा कि "इस ग्रह की ऐसी दशा कैसे हुई? उन्होंने कहा कि "2021 के समय में कोरोना यहां पर आया तो उसमें आधे से ज्यादा लोग समाप्त हो गए और उसके बाद कोरोना को हमने वैक्सीन से हराया आगे कोई और वायरस ना आए इसके लिए तमाम शोध और साइंस में प्रगति करते चले गए लोगों को आराम तलब जिंदगी की आदत पड़ गई और ज्यादातर चीजें इंसान मशीन से करने लगा बीमारियां दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी इंसान बैठकर काम करने की वजह से बहुत सी बीमारियों का शिकार हो गया जनसंख्या बढ़ती चली गई।
लोग रहने की जगह बनाने के लिए जंगलों को काटते चले गए। पशु -पक्षी जंगलों के कटने के कारण मरते चले गए और ज्यादा जनसंख्या होने के कारण खाने की भी कमी होने लगी। तो हम लोगों ने सिन्थेटिक खाना बना लिया और सिंथेटिक पानी भी बना लिया। हम लोग ज्यादा समय तक जी सकें और काम कर सके इसलिए हम साइबोर्ग बन गए।
फिर हम लोगों ने ऐसी जगह बना ली जहां पर हम सुरक्षित रह सकें। पृथ्वी का तापमान भी बहुत ज्यादा होने लग गया। हम लोगों ने चाहे जितनी ही तरक्की कर ली हो, जीपीएस माड्यूल बनाया, साइबोर्गियन हो गए हों, या फिर जो भी किया हो लेकिन हम अपनी पृथ्वी माता को कुछ नहीं लौटा पाए जबकि उन्होंने हमें जीवित रहने के सारे साधन दिए।"
यह बातें सुनने के बाद मेरी आंखों से आंसू निकल आए लेकिन अचानक से ऐसा महसूस हुआ कि मेरे पीछे किसी ने सिर पर प्रहार किया हो और मैं बेहोश हो गया। फिर मुझे होश आया तो मैं अपने 2021 वाले घर के बेड के पास पड़ा था, वह भी रात के समय। तब मुझे समझ में आ गया कि मैं अभी तक जो भी कुछ देख रहा था उस वक्त वह सपना था और मैं भविष्य का इतना भयावह रूप देखने के बाद करवटें लेते-लेते बेड से नींचे गिर गया।
चाहे सपना जैसा भी हो, जैसी भी दिक्कतें आई हों, इसने हमें एक बात तो जरूर सिखा दी कि मानवीय हस्तक्षेप के कारण पर्यावरण में असंतुलन की स्थिति जब-जब उत्पन्न होती है तो उसके बड़े दुष्परिणाम सामने आते हैं।
जैसा कि सबने देखा एक अदृश्य वायरस ने संपूर्ण विश्व की काया पलट कर दी है।आज मानवता कैद में है और प्रकृति मुस्कुरा रही है। एक साल से ज्यादा होने को आए जीवन थम सा गया है, चारों तरफ सन्नाटा और मातम।
यह क्यों हुआ?:-आज मनुष्य भौतिकता की अंधाधुंध दौड़ में संवेदनहीन होकर अपनी जड़ों से कट रहे हैं। चारों ओर प्रदूषण फैला रहे हैं और खुश हो रहे हैं कि हम बहुत प्रगति कर रहे हैं। जंगल काट रहे हैं, पक्षियों को उनके घरों से बेघर कर रहे हैं, लकड़ियों की तस्करी कर पृथ्वी को रुला कर सृष्टि को विनाश की ओर धकेल रहे हैं।
ऑक्सीजन देने वाले पेड़ों को काट कर उस पर सड़कें बना रहे हैं, इमारतें और, फैक्ट्रियां बन रही हैं विकास के धुएँ से आकाश काला हो रहा। सभ्यता आगे बढ़ रही है और संस्कृति कराह रही है। इस वजह से हम आज सभी अपने घरों में बंद हैं।।
मानव प्रगति में इतना लिप्त है कि उसे ना धरा की पुकार सुनाई दे रही है ना ही प्रकृति का विलाप। ब्रह्मांड में जीवन मात्र पृथ्वी पर ही संभव है लेकिन इंसान दूसरे ग्रह पर जीवन खोजने की मृगतृष्णा कर बैठा है। आज मानव लगभग आधी प्राकृतिक संपदा नष्ट कर चुका है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि:-
नहीं चाहिए हमें डेवलपमेंट,जीवन है सर्वदा प्रधान।धरती बांटी, सागर बांटा,अब मत बांटो इंसान।।
आगे निकलने की होड़ में प्रकृति का दोहन चरम सीमा पर पहुंचा दिया है। उसी का परिणाम है कोरोना और लॉकडाउन।ई-कचरे से निकलने वाले रसायनों से भी बहुत सी बीमारियां फैलती हैं और पर्यावरण प्रदूषित होता है।
आज कोरोना कितने ही लोगों की असमय मृत्यु का कारण बना। इससे पहले कितनी ही बीमारियां आ चुकी हैं और उनसे कितने ही लोगों की जान जा चुकी है। कोरोना एक चमगादड़ से फैलता है और बाकी सारे जानवर प्रकृति का ही एक हिस्सा हैं। किसी ने सच ही कहा है कि:-
हाथ लंबे हैं प्रकृति प्रतिशोध ले लेगी,इतना दोहन मत करो विज्ञान के कर से।हो ना हो, ईश्वर ना करें, ऐसा दिन भी कभी आए,अश्रुओं के मेघ अंतिम बूंद तक बरसे।।