Arun Tripathi

Thriller

3.8  

Arun Tripathi

Thriller

क्योंकि वहाँ कोई औरत नहीं थी .

क्योंकि वहाँ कोई औरत नहीं थी .

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अँधेरी रात थी और तीन दिन से लगातार हलकी - हलकी बारिश हो रही थी . रह रह कर बिजली कड़कती और उसकी रोशनी में ही कुछ दिख जाता तो दिख जाता अन्यथा चारो तरफ गहन अंधकार में हाँथ को हाँथ नहीं सूझ रहा था . आवाज के नाम पर रिमझिम बारिश का स्वर , बिजली की कड़क और झींगुरों की आवाज के अतरिक्त कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी .इस मौसम में सूनी सड़क पर वो तेजी से भागता जा रहा था .उसे पता ही नहीं था कि वो किस दिशा मे भागा जा रहा है ?अभी कुछ देर पहले ही वो ओमर विला के सर्वेंट क्वार्टर मे सोया पड़ा था कि अचानक उसके कमरे का दरवाजा खड़का उसकी नींद खुल गई ....थोड़ी देर बाद फिर वही आवाज आई ....वो उठा और दरवाजा खोला ....सामने विला की 19 साल की नौकरानी खड़ी थी ...वो कुछ नशे में थी और उसकी जुबान लड़खड़ा रही थी ....उसने ...उससे न जाने क्या कहा ...कि वो उसके साथ विला के अंदर भागा और विला के मालिक की बेटी के कमरे में घुसा . दो कदम कमरे के अंदर रखते ही दरवाजा बंद हो गया .

उस समय विला के मालिक और मालकिन कहीं बाहर गए थे ....विला सन्नाटे में डूबा था और उसके साथ वो हुआ जो उसने सपने में भी नहीं सोचा था ....दो लड़कियों नें बड़ी निर्लज्जता से उसकी इज्जत लूट ली..........वो उनके चंगुल से छूट कर जिधर उसका मुँह था ....उसी दिशा में भागता चला गया .

सुबह के पांच बज रहे थे ...बारिश से भीगा वो थर थर कांप रहा था . अब वो कहाँ जाये ? गांव से भाग कर वो शहर आया था ....भाइयों नें बंटवारा कर लिया माँ बाप पहले ही परलोक सिधार गए . बीस साल की उम्र में पढाई भी अधूरी रह गई . गांव में भी उस दिन कुछ ऐसी ही घटना घटी थी .उसकीनवविवाहिता भाभी नें उसके साथ जबरदस्ती की और भाई नें रंगे हाँथ पकड़ लिया .....भाभी टेसुए बहाने लगी और सारा आरोप देवर पर मढ़ दिया . भाई गुस्से से बावला हो गया ....वो मारने दौड़ा तो वो इसी तरह भागा था .इन दोनों ही घटनाओं में उसे कोई सुख नहीं मिला ....हाँ ....स्त्री जाति के प्रति उसका मन नफरत से भर गया .

अब इस परिस्थिति में वो कहाँ जाये ....उसे समझ में नहीं आ रहा था .गांव वापस जा नहीं सकता और यहाँ शहर में अच्छा भला ठिकाना छिन गया था .

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सुबह के दस बज रहे थे . बारिश बंद हो चुकी थी और मौसम सुहाना हो गया था और वो रेलवे स्टेशन पर खड़ा था . जेब में पैसे थे नहीं और भूख से बुरा हाल था .स्टेशन पर पुलिस की चहलपहल कुछ ज्यादा ही थी ....और फिर एक रौबदार चेहरे वाला पुलिसकर्मी उसके सामने खड़ा हो कर उसे ध्यान से देखने लगा . उसकी आँखों का भाव पढ़कर वो आतंकित हो गया .


दोपहर के बारह बजे वो लॉकअप में बंद था और उसे पता चला कि ओमर विला में हत्या हो गई थी . वो ....विला से गायब था .....इसलिए शक की सुई उसकी तरफ थी .आज सुबह विला के मालिक मिस्टर राउत अपनी पत्नी के साथ विला पहुँचे और अपनी बेटी को मरा पाया ....कोई सामान गायब नहीं था ....गायब तो केवल दो लोग थे ........एक वो था दूसरी वो 19 साल की घरेलू नौकरानी . मिस्टर राउत की बेटी के पेट पर चाकू के कई वार हुए थे और वो बेड पर रक्तरंजित लाश के रूप में पड़ी थी .स्वाभाविक रूप से पुलिस नें इन दोनों लापता नौकरों को ही शक के घेरे में लिया और मिस्टर राउत के सम्बन्धो के कारण प्रशासन एलर्ट मोड में आ गया और शहर से बाहर निकलने के सभी रास्ते सील हो गए . वो पकड़ा गया .पुलिस अपनी सफलता पर स्वयं अपनी पीठ थपथपा रही थीजब वो पकड़ा गया था तब उसके पेट में चूहे कूद रहे थे और इस समय उसकी भूख प्यास मर गई थी . उसका दिमाग सांय सांय कर रहा था और सोचने समझने की क्षमता कुंद हो गई थी और वो स्थिर आँखों से एक दिशा में एकटक देख रहा था

मिस्टर राउत नें अपनी पत्नी के साथ थाने में प्रवेश किया .लॉकअप में उस पर एक नजर डाली और एक पेपर पर साइन कर वापस चले गए ....उन्हें पोस्टमॉर्टम के लिए इंतजार करती अपनी बेटी की लाश के पास जाना था .उसे हथकड़ी लगा कर कोर्ट में पेश किया गया .....और पुलिस को एक सप्ताह की रिमांड मिल गई .....वो वापसलॉकअप में था ....तभी एक नए रंगरूट दरोगा नें लॉकअप में प्रवेश किया और उसे लेकर रिमांड रूम में चला गया . 

रिमांड रूम जहाँ पुलिस अपराधी से हर तरीका आजमा कर पूछताछ करती है ....देखने में ही डरावना लग रहा था .

पूछताछ की जिम्मेदारी उसी रंगरूट दरोगा पर थी जिसकी उम्र महज 27 - 28 साल रही होगी . नया नया दरोगा था और घाघ अपराधियों से उसका पाला पड़ा नहीं था .अभी कुछ देर पहले ही वो घटना स्थल का मुआयना करके आया था . उसके एक हाँथ मे एक फाइल थी ....उम्र तो उसकी केवल 27 - 28 साल थी ...लेकिन वो मनोविज्ञान से स्नातक था और यह उसका प्रिय विषय था .मेज के एक सिरे पर वो सिर झुकाए बैठा था और दूसरी तरफ वो दरोगा ...जिसकी नेम प्लेट पर लिखा था ....रवि

प्रताप सिंह ....एक पेन से मेज खटखटाते हुए ...उसे ध्यान से देख रहा था .

कुछ देर बाद इंस्पेक्टर आर.पी. सिंह नें उससे पूछा ....."कुछ खायेगा ?"

उसने न में सिर हिलाया . कुछ देर तक चुप्पी छायी रही और फिर उस दरोगा नें उसके लिए चाय नाश्ता मंगवाया . इंस्पेक्टर नें पानी का गिलास उसे पकड़ाया और वो गटागट पानी पी गया . दो गिलास पानी पी कर चाय नाश्ता कर उसने सिर उठाया .इंस्पेक्टर नें उससे बड़े नर्म लहजे में पूछताछ शुरू की

"....हाँ तो बलराम यही नाम है तुम्हारा ?"

बलराम नें सहमति से सिर हिलाया .

इंस्पेक्टर नें कहा ...." मैं तुमसे कुछ नहीं पूछूँगा ....तुम्ही अपनी कहानी सुनाओ ...मुझे कोई जल्दी नहीं है .और बेचारे बलराम नें पूरी दास्तान विस्तार से कह सुनाई ... इन्स्पेक्टर मुस्कुराया और बोला ...." तो तुम्हारे साथ दो खूबसूरत लड़कियों नें बलात्कार किया ......और तुम भाग खड़े हुए ."

.."...हाँ साहब ...मैं भगवान की कसम खा कर कहता हूँ ...मैंने जो कुछ कहा है ....सच कहा है . पता नहीं इन औरतों की मेरे साथ क्या दुश्मनी है ? गांव से भी एक औरत के कारण ही मैं भागा ....उस समय भी मुझे ही दोषी माना गया और आज तो मुझे कातिल ही समझा जा रहा है ."....यह कह कर बलराम

रोने लगा .

कुछ देर तक इन्स्पेक्टर उसे देखता रहा .....फिर उसे एक गिलास पानी पिलाया और बैठ कर कुछ सोचता रहा ......रात के बारह बज रहे थे बलराम लॉकअप में निढाल पड़ा था और इंस्पेक्टर सिंह सामने टेबल पर बैठा कोई फाइल पलट रहा था .सुबह के दस बज रहे थे ....और अपने लावलश्कर के साथ

इंस्पेक्टर सिंह ......ओमर विला पहुँचा . उसके साथ डॉग स्क्वायड और फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट्स की टीम थी ....कुत्ते को बलराम का कपड़ा सुंघाया गया ...लेकिन वह इधर उधर घूमता रहा ...लगता था जैसे वो भ्रमित हो गया हो .इधर घटना स्थल पर फोरेंसिक एक्सपर्ट्स की टीम अपने काम में जुटी थी . तीन घंटे बाद टीम कमरे के बाहर थी और कुत्ता अंदर .....कुत्ते नें बिस्तर सूंघा और कमरे का एक चक्कर लगाया और कमरे से बाहर भागा ...और गायब नौकरानी के कमरे में पहुँचा . वहाँ से निकल कर वह विला के पिछवाड़े भागा और पीछे लॉन में पहुँचा और ताजा बनी क्यारी को अपने पैरों से खुरचता हुआ ....भौंकने लगा . .....और जब क्यारी की खुदाई हुई तो वहाँ से उस नौकरानीकी लाश मिली ....जो पूरी तरह नग्न थी . लाश पुलिस नें अपने कब्जे में ली .....अब केस उलझता जा रहा था . दो दिन में ओमर विला से दो लाशें मिलीं थीं ....दोनों की हत्या हुई थी .ओमर विला से निकलते समय ....इंस्पेक्टर सिंह की नजर गेट के सामने ....सड़क के दूसरी ओर स्थित ज्वैलरी शॉप के बाहर लगे सी सी टी वी कैमरे पर पड़ी ......और पता चला कि रात साढ़े ग्यारह बजे ....बलराम तेजी से भागता हुआ विला के गेट से बाहर निकला और साढ़े बारह बजे रात को एक आदमी रेन कोट पहने हुए गेट के अंदर गया ....फिर तीन बजे वही आदमी बाहर निकला लेकिन वो रेनकोट नहीं पहनें था .इंस्पेक्टर सिंह नें बलराम को साफ पहचाना और उस रेनकोट वाले अजनबी की भी शक्ल देखी ....रोड की लाइट में उनके चेहरे दीख तो रहे थे लेकिन रिमझिम बारिश के कारण स्पष्ट नहीं थे .इस अजनबी की केस में इंट्री नें इंस्पेक्टर को वापस विला में जाने के लिए मजबूर किया . तीन घंटे की लगातार छानबीन से लॉन की झाड़ियों से वो रेनकोट मिल गया और अब बारी कुत्ते की थी ....उसनें रेनकोट सूंघा और पहले भाग कर नौकरानी के कमरे में पहुँचा ...फिर वहाँ से मिस्टर राउत की मृत बेटी के कमरे में पहुँचा वहाँ से वापस नौकरानी के कमरे

में आया और फिर धीरे धीरे सूंघता हुआ विला के पिछवाड़े उस जगह पहुँचा जहाँ नौकरानी की लाश जमीन में दबी मिली थी .....फिर दर्जन भर पुलिसवालों की टीम विला की खाक छान रही थी और इस छानबीन में आला ए कत्ल चाकूभी बरामद हो गया .48 घंटे के बाद फोरेंसिक रिपोर्ट इंस्पेक्टर की मेज पर थी चाकू पर उँगलियों के निशान बलराम के नहीं थे . चाकू पर मिले खून का नमूना ....राउत की बेटी के खून से मैच कर गया .....स्पष्ट था ...हत्या बलराम नें नहीं की .

केस तो कुछ सुलझता जा रहा था लेकिन हत्यारा अभी भी पहुँच के बाहर ही था . मृतका के बेड पर और दरवाजे पर तो बलराम की उँगलियों के निशान थे लेकिन नौकरानी के गले पर और उसके कमरे में तो किसी और की उँगलियों के निशान थे . नौकरानी के कमरे में कहीं भी बलराम की उंगलियों के निशान नहीं मिले .

अब बलराम के ऊपर से शक की सुई घूमती हुई एक अजनबी की ओर इशारा कर रही थी . सात दिन बीत गए ....अपराधी का कोई पता न चला और पुलिस नें बलराम को कोर्ट में पेशकिया .पुलिस की जाँच से स्पष्ट था कि बलराम निर्दोष था . न्यायाधीश सारे सुबूतों की बिना पर बलराम को छोड़ना चाहता था लेकिन बलराम नें कोर्ट से गुहार की कि जब तक हत्यारा न पकड़ा जाय ...उसे रिहा न करें . अब जिस आदमी पर कोई आरोप ही सिद्ध न हो उसे जेल या पुलिस कस्टडी में कैसे भेजा जाय .अंततः बलराम बरी हो गया और इंस्पेक्टर सिंह नें उसे थाने में ही खाली पड़े एक क्वार्टर में कुछ समय तक रहने की अनुमति दे दी .

इस बीच दो बार और घटना स्थल का मुआयना हुआ और पुलिस को दरवाजे के पीछे से खून में डूबे पंजे की पूरी छापमिल गई . .....पता नहीं कैसे पिछली बार की छानबीन में यह छाप छिपी कैसे रह गई . पुलिस रिकार्ड में कहीं भी इन निशानों से मिलते जुलते निशान नहीं मिले . जितने सुबूत मिलने थे मिल गए और घटनास्थल की सील हटा ली गई .

अब पुलिस के पास हत्यारे तक पहुँचने के दो क्लू थे . सी सी फुटेज के अलावा ....पूरे पंजे की छाप और आला ए कत्ल वो चाकू . इस डबल मर्डर केस के 15 दिन बीत गए थे .इसी बीच मिस्टर राउत के बड़े भाई थाने पहुंचे ...वे एक शौकिया ज्योतिषी थे ....और उस खून में डूबे पंजे के निशान की बाबत ....इंस्पेक्टर सिंह से कुछ कहना चाहते थे .....उन्होंने कहा ....." जो पंजे का निशान दरवाजे केपीछे पाया गया उसकी हस्तरेखायें बताती हैं कि जिस

आदमी के पंजे का ये निशान है ..... वो आदमी 25 सालकी उम्र में अपनी छोटी बहन का मर्डर करेगा" .

कानून ज्योतिष पर विश्वास नहीं करता और न ही इसे सुबूत की संज्ञा ही दी जाती है ....फिर भी इंस्पेक्टर को एक रास्ता दिख ही गया .पुलिस नें चौबीस घंटे के अंदर नौकरानी के भाई को गिरफ्तार कर लिया और फिर पुलिसिया पूछताछ में उसने जो कुछ बताया ...उसे सुन कर हर कोई हैरान हो गया .

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19 साल की वो खूबसूरत नौकरानी जिसका नाम पिंकी था ....शराब पीने की शौकीन थी और निम्फोमैनियाक थी ....उसका नाजायज सम्बन्ध अपने ही भाई से था . उस दिन उससे ही मिलने वो हत्यारा संजय जो एक गारमेंट्स शॉप में सेल्स मैन था ....रात साढ़े बारह बजे विला में गया .......लेकिन बहन को उसके कमरे में न पाया . कुछ ही देर में उसे अनुमान हो गया कि घर में कोई नहीं है ....और उसने विला के दूसरे कमरे से आती आवाजों का पीछा किया उस कमरे में पिंकी और राउत की बेटी जाने किस बात पर खिलखिला रहीं थीं और ....शराब पी रहीं थीं . आहट सुन कर पिंकी बाहर आयी और संजय को देख कर किलकारी मारने लगी और उसे घसीट कर बेड रूम में ले गई . शराब के नशे में उन दोनों लड़कियों नें वह किया .....जो उन्होंने बलराम के साथ

किया था .

दो बजे रात को संजय नें मिस्टर राउत की बेटी से पैसे मांगे और कुछ ऐसा बोला कि वो गुस्से से आगबबूला हो गई . बात बढ़ती गई ......शराब तो वैसे भी बुद्धि भ्रष्ट कर देती है और उन दोनों की बचीखुची शराब पीकर ...वह भी मदमस्त हो रहा था ....और उसने वहीं प्लेट में रखे सलाद काटने वाले छह इंच लम्बे तीखे चाकू से ....राउत की बेटी पर कई वार किये और वहाँ से भागा लेकिन पिंकी चिल्लाने लगी ....और अनजाने में न चाहते हुए भी संजय नें उसका गला दबा दिया

उसकी लाश को तो उसने लॉन में दफना दिया लेकिन खून में डूबी मिस्टर राउत की बेटी की लाश देख उसे डर लगने लगा .....जिसकी आँखें मरने के बाद भी खुली थीं .वह तीन बजे वहाँ से भागा ....स्टेशन पहुँचा और अपने गाँव वैरागढ़ पहुँच गया . पता नहीं कैसे पुलिस वैरागढ़ पहुँच गई और वो गिरफ्तार हो गया .

बेचारा बलराम निर्दोष ही फंस रहा था . लेकिन वो खुश था एक तो उस पर कोई आरोप नहीं था और वो थाने में ही इंस्पेक्टर सिंह की कृपा से खाना बनाने का काम करने लगा वहाँ इस बात से वो सबसे ज्यादा खुश था कि वहाँ कोई औरत नहीं थी !


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