मैं पहचान लूंगी
मैं पहचान लूंगी
( प्रस्तुत कहानी की पृष्ठभूमि अंग्रेजी शासनकाल की है।कहानी पूरी तरह काल्पनिक है )
।
मड़ई के अंदर से कराहने की आवाज सुन सोमई अंदर भागा उसकी माता पिछले कई महीनों से बीमार थी।
चारो तरफ भयानक अकाल फैला था जमीन निःसार होकर पैर की बिवाइयों सी फट गई थी
सीवान में एक हरा तिनका तक न था चारे की कमी के चलते लोगों ने अपने जानवर खूंटे से खोल दिये थे हड्डियों का ढाँचा बने डांगर इधर उधर डोल रहे थे यत्र तत्र उनके मृत देह की हड्डियाँ पड़ी मिलती
पूरा इलाका ही मानो श्मशान बन गया था।
खुश थे तो केवल गीदड़ कुत्ते चील कौवे सियार और गिद्ध जिनके लिये आहार की कोई कमी नहीं थी।और खुश थे इन्ही की श्रेणी के मनुष्य जिनकी प्यास पानी न मिले तो खून से भी बुझ जाती थी
।
भागता हुआ सोमई अपनी मड़ई की चौखट पर पहुँचा और उसकी माँ की कराहने की आवाज यकायक बंद हो गई।
आँखे खुली थीं।
शक्ल तेलिया मशान की खोपड़ी सी लग रही थी।
आज भूख से जूझते वो मर गई
उसे मरा पाकर एक बार तो सोमई जोर से चीखा लेकिन फिर हँसने लगा उसकी हँसी तीव्र होती अट्टहास में बदल गई।
अचानक वो चुप हो कर एकटक अपनी मरी माँ का चेहरा देखने लगा और रोते रोते बोला अच्छा हुआ तू मर गई
बावलों की तरह उसने पूरी मड़ई छान मारी अपनी माँ के लकड़ी के संदूक से जो वो अपने साथ दहेज में लायी थी और जो संदूक उसे विशेष प्रिय था।
सोमई को पाँच चांदी के सिक्के एक जोड़ा चांदी की भारी पाजेब और कुछ चाँदी के गहने मिले
दो साल से प्रलय की तरह छाये इस भयानक अकाल ने एक हजार मील की परिधि में सारी पृथ्वी को श्मशान बना दिया था लोग जो भाग सकते थे भाग गये लेकिन उस गाँव से सोमई न भाग सका क्योंकि उसकी माँ बीमार थी और चल नहीं सकती थी
आज उसकी माँ ने उसे आजाद कर दिया और चल बसी चूल्हे में आग पड़ी थी जिसमें रखी लकड़ी धीरे धीरे सुलग रही थी आग को जिन्दा रखना पड़ता था शायद कुछ मिल जाय जो पेट की आग बुझा सके।
सोमई ने गठरी बाँधी कंधे से लटकाई आँसू भरी आँखों से माँ की लाश को देखा चूल्हे के पास गया
सुलगती लकड़ी उठाई और मड़ई के बाहर आया
एक बार अपनी मड़ई की परिक्रमा की और सुलगती लकड़ी को छप्पर पर फेंक बिना पीछे देखे एक दिशा को चल दिया
उसके कुछ दूर जाते ही मड़ई ने चिता का रूप धर लिया और धू धू कर जल उठी तब उसने पीछे मुड़ कर देखा भूमि पर सिर रखा और भागते हुए दूर।
बहुत दूर चला गया।
सोमई की खोपड़ी चकरा रही थी गाल धंसे थे और चेहरे की हड्डियाँ उभर आयी थीं शरीर में कंकाल के अतिरिक्त कुछ था ही नहीं , पता नहीं कैसे वो जिंदा था जाने प्राण उस कंकाल में कहाँ प्रतिष्ठित थे !
राह चलते उसे एक बेर का पेंड़ दिखा शायद वो पेंड़ भी उसी की प्रकृति का था जो इस भयानक अकाल में भी जिन्दा था आश्चर्य उस पर फल लगे थे।
मीठे मीठे पीले पीले बड़े बड़े रसीले बेर !
वह कांटेदार वृक्ष अपनी जिजीविषा के बल पर जिन्दा था शायद वो सोमई के लिये ही वहाँ खड़ा था दूर दूर तक न कोई जानवर था न मनुष्य !!
सोमई नें पेट भर कर रसीले बेर खाये और तोड़ कर गठरी बाँधी कुछ देर सूर्य की तपिश से बचने की खातिर पेड़ के नीचे बैठा नीचे गिरे काँटे चुभ तो रहे थे लेकिन भूख की चुभन से कम ।
तीन दिन तीन रात बाद उसे हरियाली के दर्शन हुए आँखे जुड़ा गईं बेरों नें उसकी भूख तो मिटाई थी लेकिन प्यास कैसे मिटे ?
हरियाली देख वो बचीखुची ताकत संजो कर भागा तो लेकिन दूर न जा सका और गिर पड़ा चेतना शून्य होने के पूर्व उसने आकाश में एक गिद्ध मँडराते देखा।
उस समय सूर्यदेव अस्ताचलगामी हो रहे थे।
ब्रह्ममुहूर्त का समय अभी सूर्योदय होने में डेढ़ घड़ी शेष थी गाँव के लगभग हर घर से गेहूँ पीसने की घर्र घर्र सुनाई दे रही थी स्त्रियों के मुख से लोकगायन तितिरा के स्वर वातावरण में गूँज रहे थे कहीं कहीं से धान कूटने की धाय धप्प भी सुनाई दे रही थी पक्षी भी जाग गए थे
गौरैया तोते बुलबुल और बया के झुंड पेड़ों पर बैठ कर और कुछ आसमान में नृत्य करते।उन स्त्रियों के मधुर समूह गायन से प्रतिस्पर्धा कर रहे थे।
जेठे की छोटी लड़की को उसकी अम्माँ ने सिर्फ इस बात के लिए धुन दिया कि वो अभी तक बकरियाँ लेकर सीवान की तरफ क्यों न गई ?
मार खा कर अपनी माँ को मर्दाना गालियाँ बकती वो छोकरी बकरियाँ खोल दक्खिनी सीवान (मैदान ) की ओर चली
की अभी वो कुछ ही दूर गई थी कि उसे लगा कि गाँव के डँडमेंड (सीमा ) पर कोई लेटा है वो आगे बढ़ी और पूरब से सूर्य की लालिमा प्रकट होने लगी
उसने देखा कोई मनुष्य जमीन पर औंधे मुँह लेटा है और एक एक कर कई गिद्ध मंडराते हुए उसके आसपास बैठ रहे हैं।
गिद्ध केवल मरे का मांस खाते हैं जिंदा का नहीं
वे एक एक कर उतरते और गोल घेरे में बैठ जाते
उस लेटे के पास कोई न फटकता उन्हें इंतजार था उस लेटे की श्वास बंद होने का
बकरियाँ छोड़ वो छोकरी गाँव की ओर भागी कुछ ही देर में अचेत सोमई के चारो तरफ ग्रामीणों की भीड़ लग गई
गिद्धों ने मनुष्यों को देखा और अब दाल नहीं गलेगी सोचते हुए उड़ गए।
मुखिया के दुआरे पर सोमई एक खटिया पर लेटा था ग्रामीण उसे होश में लाने के देहाती नुस्खे आजमा रहे थे उनकी मेहनत रंग लायी और सोमई की बेहोशी टूटी
मात्र दोनों समय भोजन की मजूरी पर सोमई।
मुखिया के घर नौकर हुआ मुखिया धर्मभीरू थे ,
शरणागत की रक्षा करना उनका कर्तव्य था सो वे अक्सर उसके भोजन में दूध दही और घी भी शामिल
करवा देते वे ध्यान रखते कि सोमई को पूरी मजूरी मिले।
धीरे धीरे समय बीतता रहा अब सोमई एक हृष्टपुष्ट जवान था जो सारा दिन मेहनत से मुखिया और उनके परिवार की सेवा करता उनके खेतों में काम करता।
सोमई अब मुखिया के परिवार का एक सदस्य ही था शाम को पंडित जी बच्चों को पढ़ाने बैठते सुन सुन कर और देख देख कर उसे भी ककहरा याद हो गया था वो भी अक्षर जोड़ जोड़ कर पढ़ना सीख गया था।
जब वो उस गाँव में पहुँचा तब वो पंद्रह साल का था अब वो पचीस का था इन दस सालों में जो बच्चे पैदा हुए उनके लिये घर के सदस्यों और सोमई में कोई फर्क न था
मुखिया धर्मभीरू थे ही सोमई के होश में आने पर उन्होंने सबसे पहले उसके गाँव का पता किया
उसकी बिरादरी का पता किया पूरी तरह संतुष्ट होकर कि सोमई उनके चौके में भोजन कर सकता है उन्होंने उसे अपना सेवक बनाया और आज सोमई का इतिहास न जानने वाले उसे मुखिया का परिजन ही समझते हैं।
शाम का समय था
गाँव का चौकीदार वरदी पहने लाल साफा बांधे
मुखिया की बारादरी में पहुँचा उस समय दरवाजे पर चौकीदार पहुँच जाय यही बड़ी बात थी मुखिया सशंकित हो गए।
चौकीदार नें मुखिया को सरकारी आदेश सुनाया
अंग्रेज साहब बहादुर जिला कलेक्टर " वारेन वुडवर्क " कल सुबह गाँव आयेंगे दिन भर रुक कर शाम को चले जायेंगे
कलेक्टर के स्वागत की तैयारी होने लगी सुबह दस बजे कलेक्टर वारेन वुडवर्क अपने लावलश्कर के साथ पहुँचा उसके साथ जिले के अन्य आला अधिकारी भी थे।
कलेक्टर तो शाम को वापस चला गया लेकिन मुखिया सहित पूरे गाँव को ही नहीं आसपास के इक्कीस गावों को भी परेशान कर गया
सरकार ने इन इक्कीस गावों की जमीन पर केवल नील और पोश्ता ( अफीम ) की खेती का आदेश दिया था।जिसके पास जो भी जमीन है वह उस पर मालिकाना हक रखते हुए केवल नील और अफीम की ही खेती कर सकता था।
सरकार उपज के बदले अनाज और पैसा देगी ये आश्वासन कलेक्टर दे कर गए थे।
इस बीच मुखिया की पत्नी जिसे सब मलकिन कहते थे।की जिद पर मुखिया ने सोमई का ब्याह रचाया नई नवेली दुल्हन पा कर सोमई निहाल हो गया।
दो साल बीतते बीतते उस इलाके में दो घटनाये मंथर गति से एक साथ घटीं।
पहली
अफीम की प्रचुर उपलब्धता से नशेड़ियों की संख्या बढ़ने लगी और अंग्रेज सरकार के चाटुकारों की आमदनी भी।पहली बार समाज को सरकारी भ्र्ष्टाचार के दर्शन हुए पहली बार गावों की केन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था पर सरकारी हमला हुआ था
जिसका प्रभाव।जनमानस के मूलभूत विचार
सत्यता और ईमानदारी पर पर पड़ा और समाज में ईर्ष्या द्वेष और मक्कारी पैदा होने लगी
जो अनाज और धन सरकार दे देती उसी से काम चलाना पड़ता
दूसरी।
घटना पहली से भी अधिक गंभीर थी नील की खेती ने धरती को बंजर बनाना शुरू कर दिया था।
उसी वर्ष गाँव में तामून ( प्लेग ) फैला और गाँव की अधिकांश आबादी जिसमें मुखिया और उसका परिवार भी शामिल थे।काल के गाल में समा गए
लेकिन सोमई को तो दुनिया में अभी और भी बहुत
कुछ देखना बाकी था वो बच गया क्योंकि वो अपनी पत्नी के साथ साले के विवाह में शामिल होने ससुराल गया था।
सोमई लौट कर आया और एक बार फिर खुद को अकेला पाया यद्यपि मुखिया के परिवार में वो तनहा जीवित व्यक्ति था मुखिया की जमीन जायदाद का अब वो ही स्वामी था लेकिन इन दो सालों में लक्ष्मी रूठ गईं थीं और दरिद्रता पूरे इलाके में टांग तोड़ कर बैठी थी।
अंग्रेजी शासन का पूरे दक्षिण एशिया में विस्तार हो चुका था और गन्ने की खेती के लिये मारीशस की सरजमीं को हिंदुस्तानी मजदूरों की नितांत आवश्यकता थी।
एक दिन।
गिरमिटिया मजदूर के रूप में सोमई जबरिया मारीशस रवाना हुआ एक बार फिर सोमई दर ब दर हो गया उसकी प्राणप्रिया पत्नी मायके में ही रह गई ।
चंदा की तबियत आज ज्यादा खराब थी माँ ने झिनकामाई को बुलावा भेजा था चंदा को दर्द शुरू हो चुका था जो उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा था
झिनकामाई नब्बे वर्षीय वृद्धा थीं अछूत जाति की थीं लेकिन सारा समाज उन्हें माई ( माता ) बोलता था काली माता की पुजारन थीं और उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी वे प्रसव विशेषज्ञ थीं
माई आयीं प्रसूति गृह में प्रवेश किया और दरवाजा बंद हो गया
कुछ ही देर बाद।
कहाँ कहाँ कहाँ की मधुर ध्वनि से पूरा घर गुंजित हो गया यह सद्यः नवजात का रुदन था
सोमई उर्फ़ सोमनाथ की पत्नी चंदा को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी ।
सोमई बैल की तरह गन्ने के खेतों में काम करता रहा और वक्त बदलता रहा।।
पचीस साल बाद
सेठ सोमनाथ आज सत्तावन साल के हो गए थे
वे तकरीबन दस चीनी मिलों के मालिक थे आज उनका जन्मदिन था जो पता नहीं सही था या गलत लेकिन कागजों में तो आज की ही तारीख दर्ज़ थी
बड़ी बड़ी राजनैतिक हस्तियाँ और उद्योगपति उनके जन्मदिन समारोह में आये थे
उस समारोह में सेठ जी के पुराने साथी भी थे जो कभी उनके साथ गन्ने के खेतों में मजदूर हुआ करते थे आज अगर वे सेठ सोमनाथ की बर्थ डे पार्टी में शरीक हुए तो जरूर उन्ही की कटेगरी में रहे होंगे
अपने मित्रों को अपने बीच पाकर सेठ सोमनाथ बच्चों की तरह खुश हो रहे थे सबकी बातें सुन रहे थे
इसी बीच किसी ने भारत की चर्चा छेड़ दी और बताया कि वो अपना जन्मस्थान देखने गया था
वहाँ उसे बड़ी खुशी मिली।
पार्टी समाप्त हुई डिनर के बाद दो पैग रम चढ़ा कर अपने बेडरूम में सेठ जी बेचैनी से टहल रहे थे वे गहरी सोच में निमग्न थे
कुछ देर बाद अपनी राइटिंग टेबल पर बैठ कर वे कुछ लिखने लगे।।
धूलभरी पगडंडी पर साईकिल चलाता पोस्टमैन
मुखिया के घर पहुँचा और जोर से चिल्लाया।
गाय को चारा डाल रहे चंदन के कानों में पोस्टमैन की आवाज पड़ी
वो आया तो पोस्टमैन ने उसे एक लिफाफा दिखा कर कहा तुम्हारी माँ के नाम है उन्हें बुलाओ ।
सिर पर पल्लू सही करती सजी धजी चंदा आयी और पोस्टमैन ने उसे रजिस्ट्री पकड़ाई जो इंश्योर्ड थी जिस पर लाख की कई मोहरें लगी थीं।
देख तो चंदन क्या है इसमें ? कहीं तेरे बाबूजी की चिट्ठी विट्ठी तो नहीं ?
क्या अम्माँ तू भी कितने बरस हो गए तू रोज इसी तरह सजीधजी राह तकती रहती है ?
तू इसे खोल मैं पढ़ सकती हूँ दो दर्जे पंडित जी से पढ़े थे आज काम आयेंगे चंदा बोली ।
लिफाफा खोला गया
उस में सौ सौ के दस नोट थे
इतना रूपया ! पूरा एक हजार !!।चंदन की आँखे चौंधिया गईं उसने इतना पैसा कभी नहीं देखा था
इसी रूपये के नीचे एक गुलाबी चिट्ठी थी एक एक शब्द जोड़ कर चंदा ने पढ़ना शुरू किया।
मेरी प्राणप्रिया चंदो
ये शब्द पढ़ते ही चंदा की आँखों से अश्रुधारा बह चली अपने आप को संभाल कर उसने आगे पढ़ना शुरू किया
ईश्वर से प्रार्थना है ये चिट्ठी तुझे मिल जाय
इतने बरस बाद आज तुझे याद कर रहा हूँ
माफी माँगता हूँ मारीशस में हूँअबकी होली
तेरे साथ खेलूँगा और फिर कभी अकेले नहीं छोडूंगा
पांच मार्च को हवाई अड्डे पहुँचना पैसा भेज रहा हूँ तब तक मुझे खबर हो जायेगी कि चिट्ठी तुझे मिल गई
आज तक केवल तुम्हारा
सोमई
पाँच मार्च सुबह दस बजे
हवाई अड्डे की रेलिंग पकड़े चंदन ने अपनी माँ से पूछा अम्माँ ! मैं बाबूजी को पहचानूंगा कैसे ?
माँ बोली। मैं पहचान लूंगी।