Arun Tripathi

Romance

4  

Arun Tripathi

Romance

पापा मम्मी को ऐतराज नहीं

पापा मम्मी को ऐतराज नहीं

14 mins
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बड़ी देर तक मैं उसका रास्ता देखता रहा ...लेकिन वो नहीं आयी ! फोन किया ...उसने उठाया और बोली ...आ रही हूँ . लेकिन वो नहीं आयी . कुछ देर बाद फिर फोन किया ...उसने नहीं उठाया . पता नहीं वो क्यों नहीं आयी ? नहीं आना था तो मना कर देती ...ये क्यों कहा कि आती हूँ ? मेरा मन आशंकित

होने लगा ...वो क्यों नहीं आयी ?

इस तरह मेरे मन में तरह तरह की आशंकायें सिर उठाती रहीं और मैं अपने आप को तसल्ली देता रहा . रात के बारह बज गए और मैं अभी भी फाउंटेन पार्क की बेंच पर बैठा था . वो नहीं आयी तो मैं भारी मन से अपने रूम पर लौट आया . मैं रात भर करवट बदलता रहा ...वो मेरे मन से निकल नही रही थी और मैं सो नहीं पा रहा था .

सुबह पाँच बजे मेरी आँख खुली ....मेरा मोबाइल बज रहा था ...मैंने नींद में ही फोन उठाया और जो कुछ मैंने सुना ...उसके बाद मैंने मुँह भी नहीं धोया और भागते हुए सिटी हॉस्पिटल पहुँचा . वहाँ जा कर मैंने उसे देखा ....वो बुरी तरह घायल और बेहोश थी . वार्ड में गहमा गहमी का माहौल था ...लोग इधर उधर भाग रहे थे और मैं बदहवास खड़ा था .

मैंने फोन हाँथ में लिया और वो नम्बर देखा ...जहाँ से सुबह सुबह कॉल आयी थी ....वो एक अजनबी नम्बर था . मैंने उस नम्बर पर रिटर्न बैक किया और फोन उठा ....मैंने कहा ...हैलो ! मैं राजीव आपने

सुबह पाँच बजे फोन किया था और बताया था कि ......इसके आगे मैं कुछ पूछ नहीं सका क्योंकि मेरी बात सुन कर फोन सुन रही उस लड़की नें कहा ....." खड़े तो हो हॉस्पिटल में ..लगता है सीधे हॉस्पिटल ही भाग आये ...मुँह भी न धोया !"

मैं इधर उधर देखने लगा ...मेरी बायीं तरफ एक लड़की कान से फोन लगाये मुझे ही देख रही थी .उसे मैं पहचानता नहीं था ...फिर भी मैं उसके सामने पहुँचा .

वो कुछ देर तक मुझे देखती रही ....उसके देखने के अंदाज से मैं सकपकाया . वो बोली ....चलो चल कर चाय पीते हैं ...रोजी को ऑपरेशन के लिए ले गए हैं

मैंने बाहर आकर हाँथ मुँह धोया और चाय पी .

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मैं एक प्राइवेट ऑफिस में एकाउन्टेंट था ...माँ बाप बचपन में ही गुजर गए ...भइया नें पाला पोसा .जब मैं दसवीं में पहुँचा तो भइया ....भाभी को शादी करके घर लाये .जिस दिन भाभी घर आयीं , उसी दिन से मैं ....जाने क्यों उनकी आँखों में खटकने लगा और वे मुझे प्रताड़ित और अपमानित करने के बहाने खोजने लगीं . मैं अपने भइया को बहुत मानता था और उन्ही के कारण सब कुछ बर्दाश्त करता रहा ....किसी तरह दो साल बीते . इंटर पास कर मैं उन दिनों अपनी आगे की पढाई को लेकर चिंतित था . मैं देख रहा था ....भाभी की बातों में आकर भइया की निगाह भी मेरे प्रति बदलने लगी थी .....ऐसा मुझे महसूस होता था .और उस दिन भाभी नें भइया के सामने मेरे ऊपर बहुत गन्दा आक्षेप किया ....जिसके विषय में मैंने कभी सोचा भी नहीं था . मेरा दिल टूट गया और भइया जब तक कोई प्रतिक्रिया देते ....मैंने घर छोड़ दिया और यहाँ शहर में आ गया .

छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया ....दुकानों पर काम किया और जाने क्या क्या करके मैंने टैली पूरा किया और एक प्राइवेट ऑफिस में एकाउंटेंट हो गया .मेरा जीवन स्तर सुधरने लगा .मैंने विश्वविद्यालय से अपनी पढाई जारी रखी .....

उसी दौरान मेरे कॉलेज कैम्पस में ही स्थापित एक पैरामेडिकल कॉलेज में रोजी आयी और मेरी उससे मुलाकात हुई ....मुझे पहली नजर का प्यार हो गया और मैं दिन रात उसी के बारे में सोचता रहता .रोजी एक क्रिश्चियन परिवार से थी....उसके पिता एन आर आई थे . उन्होंने रोजी की मम्मी से शादी की और अमेरिका चले गए . इधर रोजी पैदा हुई .इसके बाद धीरे धीरे ....रोजी के पापा नें रोजी कीमम्मी से दूरी बनानी शुरू की और फोन वोन सब बंद हो गया रोजी के पिता के इस तरह धोखा देने से रोजी की मम्मी को ऐसा शॉक लगा ....कि उन्होंने रोजी का मुँह भी न देखा और जहर खा कर जान दे दी . रोजी उस समय मात्र तीन साल की थी ..उसका पालन पोषण उसके नाना नानी नें किया . बस मैं इतना ही जानता था रोजी को . दो साल से हमारा आफेयर था इस साल उसका कोर्स पूरा हो रहा था ....वो अपने नाना नानी के बहुत क़रीब थी और उन्ही की चर्चा किया करती थी .

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बारह बज रहे थे . रोजी का ऑपरेशन हो चुका था .पता लगा था कि सुबह सुबह जाने क्या करने वो छत पर गई थी और तीन मंजिल ऊपर से नीचे आ गिरी .गनीमत थी कि बच गई ...वर्ना मरने में कोई कसर बाकी भी नहीं थी .12 बजे से 6 बजे तक मैं वहीं रहा और मेरे साथ वो लड़की भी वहीं रही जिसने मुझे फोन किया था . मैं वहाँ से चलने की सोच रहा था कि रोजी को होश आने लगा . होश में आने पर रोजी नें मुझे देखा और मुस्कुराई ....तभी उसके नाना और नानी भी आ गए सात बजे मैं वापस लौटने लगा तो रोजी की रूममेट जो सुबह से अभी तक अस्पताल में थी ...वो भी मेरे साथ चलने को तैयार हुई ...मैंने उसे उसके हॉस्टल के बाहर छोड़ा और अपने कमरे में पहुंचा .

एक सप्ताह तक अस्पताल में रहने के बाद रोजी अपने नाना नानी के साथ अपने शहर चली गई . मुझे जब भी रोजी की याद आती ...मैं उसे फोन करता . फोन हमेशा उसके नाना या नानी ही उठाते मैं अपना परिचय देता और रोजी से बात करने की इच्छा जाहिर करता लेकिन हर बार वे कोई न कोई बात कह कर ...बात टाल जाते और मैं रोजी से बात ही नहीं कर पाता .इसी बीच एक दिन रोजी की रूममेट का फोन आया उसने मुझसे मिलने को कहा और हमारी मुलाकात कालेज कैंटीन में हुई . उसने मेरे साथ कॉफी पी और मेरे लाख मना करने के बावजूद भी बिल उसी नें दिया . उस दिन उसने मुझसे पूछा ....." "राजीव !तुम रोजी को कब से जानते हो ?"

मैंने कहा ...."सिर्फ दो साल से ।""

"अच्छा तो तुम ये बताओ" .....अभी वो सिर्फ इतना ही बोली थी कि मैंने उसकी बात काट कर कहा ......"पहले तुम अपना नाम बताओ" .

"नीलम" ....उसने कहा .

"ठीक है ...अब पूछो क्या पूछना चाहती हो ?" ...मैं बोला .

वो बोली ...."मैं कुछ पूछना नहीं ...बताना चाहती हूँ"

"ठीक है ...बताओ ...".मैंने कहा .

"तुम ये बताओ कि तुम उसे कितना जानते हो ?"

"पहले पूछा ....कब से जानते हो ? अब पूछ रही है ."

"कितना जानते हो ? आखिर ये कहना क्या चाहती है ?" मैंने बेख्याली में पूछा ....तुम ये सब क्यों पूछ रही हो ?

वो बोली ....बात शुरू करने के लिए फाउंडेशन बना रही थी ...लेकिन अभी मुझे एक काम याद आ गया .मैं फिर मिलूंगी ....और वो चली गई . मै उंगलियों से मेज ठकठकाता सोचता रह गया .

शाम को पाँच बजे नीलम का फ़ोन आया ...."हॉस्टल के बाहर खड़ी हूँ ...आकर ले चलो ."

मैंने कहा .." तुम वहां से हिलो और हॉस्टल से 200मीटर दूर नेपियर क्रॉसिंग के बस स्टॉप पर पहुँचो मैं दस मिनट में पहुँचा ."

उसे बाइक पर बिठाया और बोला ..." कहाँ चलूँ ?"

जहाँ तुम्हारी मर्जी ....वो बोली .

क्या मतलब ? ...मैं बोला ...तुम बताओ ...तुम मिलना चाहती थी ... !

अपने रूम पर ले चलो ....वो बोली .

ठीक है ....

और मैं उसे लेकर अपने रूम पर पहुँचा .मैंने उसे चाय पिलाई और उसके पास बैठ गया .शाम के सात बज गए ...उसने एक भी मतलब की बात नहीं की ...सिर्फ अल्ल गल्ल बातें ही करती रही . आठ बज गए तब बोली ...मेरे हॉस्टल छोड़ो .

मैंने हैरानी से उसे देखा और कहा कि तुम कुछ बताना चाहती थी ...सुबह ! शाम को भी तुमने फोन किया और अब कह रही हो ...हॉस्टल छोड़ो !

वो बोली ..." मुझे तुम हॉस्टल छोड़ो ...अगली बार पूरी बात बताऊंगी ."

इस तरह नीलम आज दो बार मिली ...लेकिन काम की कोई बात ही नहीं की दूसरे दिन शाम को मैं अपने कमरे पर पहुँचा . कपड़े उतार कर सिर्फ अंडरवियर पहने ...मैं किचेन में गया और चाय बनाने लगा . तभी दरवाजा खुला और नीलम मेरे कमरे में आयी .....उसने मुझे देखा और सीधे किचेन में चली आयी ...मैं वी - शेप अंडरवियर पहने खड़ा था ...उसने मुझ पर भरपूर नज़र डाली और मैं लड़कियों की तरह शर्माता हुआ ...किचेन से बाहर आ गया . जल्दी से पायजामा ...टी शर्ट पहनी और वहीं कुर्सी पर बैठ गया .

दो कप चाय लेकर वो मेरे पास आयी और बोली ...." कुछ नमकीन वमकीन नहीं रखते ?"

मैं उठा और किचेन से एक प्लेट में नमकीन रख कर ले आया . वो चाय पीती रही और मुझे कनखियों से देखती रही .

मैं सोच रहा था ...कल ये बिना कुछ बताये चली गई आज तो बतायेगी ही .

लेकिन चाय पीकर वो बोली ...."मुझे भूख लगी है ..खाना खिलाओ ".

मैं बोला ..."खाना तो बनाना पड़ेगा ".

"तो बनाओ" ...वो बोली .

मैं उसका कुछ देर मुँह देखता रहा ....वो शोखी से मुस्कुराई .

"मैं चुपचाप किचेन में गया और कुछ देर खटपट करता रहा और बोला ....क्या खाओगी ?"

वो उठ कर किचेन में आयी और बोली ....हूँss....

" मैं क्या खाऊँ" ...उसने फ्रिज खोला और किचेन में इधर उधर झांक कर बोली ...."भई किचन तुम्हारा है जो मर्जी खिला दो" .

" अच्छा पूड़ी शब्जी खाओगी ? "मैंने पूछा .

"ठीक है ...बनाओ .....अच्छा तुम शब्जी काटो ..."

"आटा कहाँ है ?"...वो बोली .

जब तक मैं शब्जी काटता ...उसने आटा गूंथ लिया पतीला चढ़ा दिया . तेल डाल दिया और शब्जी छौंक दी . 15 मिनट में शब्जी और 20 मिनट में पूड़ी तैयार हो गई .उसने फ्रिज से दही निकाला और हम दोनों नें पूड़ी सब्जी दही और सलाद खाया . उसने उस दिन भी कोई बात नहीं की ...    मैंने पूछा भी नहीं रात के साढ़े नौ बज गए .

मैंने कहा ...".चलो तुम्हे हॉस्टल छोड़ दूँ" .

वो बोली ...."नहीं ..चली जाउंगी" .

"कैसे चली जाओगी ? "

वो बोली मैं अपनी रामप्यारी को साथ लायी हूँ . मैं कुछ कहता ...इसके पहले ही वो कमरे से बाहर निकल गई . मैंने देखा उसने अपनी स्कूटी स्टार्ट की और चली गई .

मैं खाना खा ही चुका था . बेड पर लेट गया और मुझे रोजी की याद आई . उसे देखे मुझे तीन महीने बीत गए थे . मैंने फोन मिलाया ....उधर से आवाज आयी "इस नंबर की सभी सेवायें अस्थाई रूप से बंद कर दी गई हैं" .

मैंने एक लम्बी साँस ली और लेट गया . मुझे पता ही नहीं था कि वो कहाँ की रहने वाली है मेरा तो पहली नजर का प्यार थी वो ....मुझे कभी ख्याल ही नहीं आया कि उसका शहर कहाँ है ?उसका धर्म कौन सा है ? या वो मुझसे कभी शादी करेगी या नहीं करेगी ? .....मैं तो उसे पहली नजर में बस प्यार ही करने लगा था . मुझे लगता है वो मुझे अगर घास न भी डालती तो भी मैं उसे जिंदगी भर प्यार करता रहता .

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मैं एम ए ( इकोनॉमिक्स ) के आखिरी सेमिस्टर में था मैं सुबह 10 बजे कॉलेज जाता . 10 से 2 बजे तक लेक्चर सुनता ...फिर 2 बजे कजारिया टाइल्स के

ऑफिस पहुँचता और 2 बजे से छह बजे तक वहाँ एकाउंट्स देखता ....मुझे पचीस हजार रुपए महीने मिल जाते .मैं अकेला आदमी था और मेरे घर से मेरा सम्बन्ध खराब हो ही गया था . भाभी को मैं हरगिज बर्दास्त नहीं कर सकता था .जो भी होता है ...अच्छा ही होता है ...यही सोच कर मैं अपने बीते संघर्ष को जब याद करता तो सोचता .....अगर कभी कोई किताब लिखने का अवसर मिला तो मैं अपनी आत्मकथा जरूर लिखूंगा . मैं अपनी उपलब्धियों से स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता था .

पचीस हजार में ...मेरे जैसे छडे आदमी का गुजारा बड़े आराम से हो जाता था . मेरे अकेलेपन के साथी ....किताबें , टी वी , सोशल मीडिया और कॉलेज ही थे .....इधर दो साल से मेरी जिंदगी में रोजी आ गई और मेरी वीरान इश्क की बगिया में ....बहार आ गई ।

रोजी से मैं रोज फाउंटेन पार्क में मिलता . रोजी नें एक दिन ठिठुरती रात में दस बजे उसी फाउंटेन पार्क की अपनी लव स्पाट पर मेरा कौमार्य भंग कर दिया था . वो रोज शाम सात से दस तक ...मेरे साथ ...उसी पार्क की उसी जगह पर होती ...जिसके आगे नेशनल पार्क अभयारण्य शुरू होता था .....प्रकृति नें हमारा वो लव स्पॉट हमारे लिए ही बनाया था .

जहाँ हमारा लव स्पॉट था ...वह कोई बौद्धकालीन इमारत का भग्नावशेष था ..जिसे पुरातत्व विभाग नें परित्यक्त कर दिया था ....बहुत खूबसूरत थी वो जगह . मुझे आश्चर्य होता कि इतनी खूबसूरत जगह पर कोई क्यों नहीं आता ?

एक दिन रात के नौ बजे ....ठंडी हवा चल रही थी और गर्मी का मौसम था . हम एक खूबसूरत नक्कासीदार बेड जैसी सतह पर ...अपनी चद्दर बिछाये ...एक दूसरे की बाहों में खोये थे ....वो मेरी नग्न पीठ पर अपनी हथेली फेर रही थी

तभी मैं बोला ...." रोजी ! यहाँ से आगे टाइगर रिजर्व है . किसी दिन कोई शेर आ जाये तो ?

वो बोली ...." मेरे तुम्हारे बीच ..शेर तो क्या भगवान भी नहीं आ सकता ."

इस तरह मेरी जिंदगी बीत रही थी . रोजी अक्सर कहती ..." देखो राजीव...मेरा कोर्स पूरा हो जायेगा तो मैं एक बहुत बड़ी पैथालॉजी लैब खोलूंगी .जिसका एनुअल टर्न ओवर लाखों में होगा और उसका एकाउंट्स डिपार्टमेंट तुम संभालोगे . तब हम बच्चे पैदा करेंगे . "

मैं कहता ...."शादी कब करोगी ? ""

तो कहती ...."शादी तो मैंने तुमसे कर ही ली है ...इतनी कमाई शुरू हो जाय कि साथ रह सकें" .

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रोजी को याद करते करते मैं सोया ....उसी की याद में उठा उसी के बारे में सोचते दिन बीता और शाम हो गई . मैं एक पैर से मोजा उतार कर अपने पंजे सहलाने लगा और तभी मुझे रोजी की जोरदार याद आई ....इसी पंजे को अपने सीने के बीचोबीच रख कर सहलाती और चूमती थी ...मेरी रोजी .

मेरे अंदर से एक हूक सी उठी ...मेरे मुँह से निकला ...रोजी कहाँ चली गई मेरी जान ?...मेरी आँखों से टप टप आँसू गिरने लगे और मैं बच्चों की तरह सिसकने लगा . मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी और अंदर का बांध टूट गया .मुझे लगा... मैं एक प्रबल वेग में बह रहा हूँ और मैं फूट फूट

कर रोने लगा .और दरवाजा खुला ....नीलम नें कमरे में प्रवेश किया और मुझे रोता देख घबरा गई . वो मुझे जितना चुप कराती ..मैं

उतना ही रोता . उसने दरवाजा बंद किया . एक गिलास पानी लायी ...मुझे पिलाया और बैठ गई ......

बैठ गई तो बैठ ही गई ...उठी ही नहीं ...रात के ग्यारह बज गए . मैंने कहा ....चाय पिलाओ .

वो किचेन में गई चाय बनाई ...मुझे ला कर दी .

मैं जब चाय पी चुका तो उसने मेरा और अपना कप उठाया और धो कर रख आयी .

वापस आयी और बोली ...." तुम तो भई रो लिये ...तुम्हारी भूख प्यास तो मर ही गई होगी . लेकिन मुझे भूख लगी है

मैं खाना खा कर ही जाऊंगी ...." .उसने बड़ा स्वादिष्ट भोजन बनाया ...बड़े प्यार से मुझे खिलाया और खुद भी खाया ....

तब तक रात के एक बज गए और उसने वहीं मेरे ही बेड पर सोने का ऐलान किया .डबल बेड के एक सिरे पर वो लेटी थी और दूसरे सिरे पर मैं .

मुझे अनायास याद आया ...." रोजी खुद को मेरी बीवी बोलती थी लेकिन इस तरह कभी मेरे घर में ...मेरे बेड पर नहीं सोई और ये नीलम......?"

मैंने करवट बदली और मेरी नजर नीलम से मिली तो वो शरमा गई ...फिर बोली ....राजीव ! ...मेरी रूममेट रोजीतुम्हारी लवर है ...मुझे तुम्हारे और रोजी के बारे में सब पता है . आज तुम उसी की याद में रो रहे थे . जब इतना प्यार करते हो उससे ...तो पता लगाओ कि वो कहाँ है ?

मैंने कहा ....मुझे पता ही नहीं कि वो कहाँ की है . उसके नाना नानी फोन पर बात ही नहीं करवाते ...अब तो फोन से आवाज आती है ...नंबर मौजूद नहीं है वो कुछ नहीं बोली और हमारे बीच सन्नाटा छा गया .सुबह वो उठी और मुझे चाय नाश्ता करा कर चली गई .

मेरा इम्तहान शुरू होने वाला था...... मतलब मेरा आखिरी सेमिस्टर का एग्जाम शुरू होने वाला था और उधर नीलम के भी अंतिम सेमिस्टर का एग्जाम आ गया . अब वो सप्ताह में एक या दो बार ही आती लेकिन जब आती तो रात भर रुकती . अब उसकी ड्रेस का एक पेयर ...मेरी ही वार्डरोब में रहता .

मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरी आधी वार्डरोब उसके कपड़ो से भर गई .अब हमारे रिजल्ट्स आने वाले थे .

एक दिन नीलम और मैं खाना खा कर सोने की तैयारी कर रहे थे . नीलम एक कुशल गृहणी की तरह बर्तन वर्तन माँज मूँज कर आई और मेरी बगल

में लेट गई और उस दिन वो सब कुछ हुआ जो एक आम पति पत्नी के जीवन में लगभग रोज ही होता है

अगले दिन संडे था . वो देर तक बिना कपड़ो के ही मेरे साथ बिस्तर पर पड़ी रही ....फिर तो वो मेरी पत्नी ही बन गई . अब वो मेरे ही घर में रहने लगी .

इधर मेरा रिजल्ट आया और उधर रिलायंस मनी में मुझे जॉब मिल गई ...मुझे पचास हजार महीना मिलने लगा .....उसका रिजल्ट आया और कुछ ही समय में वो भी एक बड़े हॉस्पिटल में ओ .टी . टेक्नीशियन हो गई .

मुझे एक बड़ा फ्लैट लेना पड़ा क्योंकि नीलम कहती है ...अब उसे बड़ा घर चाहिये . वो कहती है कि उसे जल्दी से जल्दी एक बच्चा चाहिये . एक दिन हम अभिसार के बाद एक दूसरे की बाहों में थे ......

मैंने पूछा ...."नीलम हम शादी कब करेंगे ?"

वो बोली ...."तुम्हारी पत्नी तो मैं हूँ ही . रही शादी की बात तो मैं हो हल्ला नहीं चाहती . कोर्ट में कर लो .मेरी मम्मी हमारे बारे में जानती है ....उन्हें सब पता है ....मम्मी पापा को कोई ऐतराज नहीं.और उस दिन उसने बताया कि रोजी तो उसी दिन मर गई जिस दिन पहली बार वो पहली बार मुझसे

मिली थी ....मैं टूट न जाऊँ इस कारण उसने ये बात मुझे नहीं बताई !



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