ढकोसला
ढकोसला
आज कल शारदीय नवरात्रि का समय है। शक्ति की उपासना का यह पर्व पूरे देश में उत्साह से मनाया जाता है। आम आदमी तो महंगाई से परेशान है कि उसकी जितनी आमदनी है उससे अधिक उसका खर्च है लेकिन लगता नहीं कि शक्ति उपासना के इस पर्व पर महंगाई का कोई असर है !!
एक ही मोहल्ले में तीन तीन पंडाल...!
हर पंडाल पर हजारों का नहीं बल्कि लाखों का खर्च..!!
बिजली की इतनी कमी फिर भी लाइटिंग पर ही आधे से अधिक खर्च और यही नहीं चारों दिशाओं में गूँजते हाई फ्रीकवेंशी स्पीकर जिसमें घाल मेल होते भजन समझ में क्या आएंगे... कान में उंगली डालने पर मजबूर करते हैं!!
कैसी पूजा है ये जगत माता की ? समझ में नहीं आता।
अब कल विसर्जन होगा और हजारों लाखों खर्च कर नौ दिन तक पूजित ये मूर्तियाँ नदियों तालाबों में विसर्जित हो जायेंगी। पता नहीं नौ दस दिनों तक उपवास रख कर पूजा पाठ करने वाले साधकों को कोई आध्यात्मिक उपलब्धि हासिल होगी या नहीं लेकिन ये पक्का पता है कि नदियों का प्रदूषण बढ़ जायेगा...!
जगह जगह जाम में फंस कर कई मरीज अस्पताल नहीं पहुंच पायेंगे..!!
जाने कितने लोग मूर्तियों के साथ खुद ही नदी में विसर्जित हो जायेंगे...!!!
समझ में नहीं आता कि लोग उपासना का मर्म समझने के बजाय दिखावे पर इतना ध्यान क्यों देते हैं?
बड़ा कड़वा सवाल है ये। शायद बहुत सारे लोगों को मेरी बात नागवार गुजरे लेकिन जो है और जो हो रहा है वो सामने है... जो एक ढकोसले से अधिक कुछ भी नहीं है!