Arun Tripathi

Abstract Others

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Arun Tripathi

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ये विविध भारती है

ये विविध भारती है

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सुबह सुबह पक्षियों के कलरव से मेरी नींद खुली ...

उनींदी आँखों से स्वचालित ढंग से मैंने रेडियो ऑन कर दिया ...कर्णप्रिय गीत की मधुर धुन कमरे में गूंजने लगी ........

जब चली ठंडी हवा , जब उठी काली घटा ...

मुझको ऐ जाने वफा , तुम याद आये .......

विविध भारती की विज्ञापन प्रसारण सेवा का ये कानपुर केन्द्र है ....सुबह के आठ बजने वाले हैं।

अब आप समाचार सुनिये .....

और समाचार की चिर परिचित प्रतीक ध्वनि कानों में गूँजने लगी ....ये आकाशवाणी है अब आप देवकी नंदन पांडे से समाचार सुनिये ...

जब सुबह मेरी आँख खुलती ...रेडियो चालू हो जाता

रामचरित मानस ...भूले बिसरे गीत और समाचार मैं चारपाई पर लेटे लेटे सुनता और समाचार सुनने के बाद नित्यक्रियाओं से निवृत्त होता ...तब तक रेडियो पर नई फिल्मों के गाने चलते रहते ... स्न्नानादि करके चाय नाश्ता करके टिफिन लेकर ..साइकिल चलाता मैं ...पन्द्रह मिनट में अपनी दुकान पर पहुँचता ....अरुण मेडिकल स्टोर ......

दुकान खोल कर ...मैं गल्ले के पास पहुँचता और राम नयन मिश्र जी दुकान में प्रवेश करते। मिश्र जी....कट्टर सनातनधर्मी ब्राह्मण थे। सफेद कुरता धोती या पायजामा ...उनका लिबास था मलयागिरि

चन्दन की सफेद बड़ी बिंदी और उसमें श्री रोली की लाल छोटी बिंदी ...उनकी पहचान थी।

मिश्र जी की उम्र लगभग पचास साल थी और वे बीस साल से मेरी दुकान में ...मेरे सहायक और पार्टनर थे। बाहर की सारी डीलिंग वे ही करते थे।

वे दुकान में आये और पूजा की तैयारी करने लगे। मैंने झाडू उठाई और साफ सफाई में व्यस्त हो गया।

तभी पहला ग्राहक आया ...मैं झाडू रख उसकी ओर बढ़ा ...तो मिश्र जी जिन्हे मैं बंधु कहा करता था ...

उन्होंने मुझे रोका और स्वयं ग्राहक के पास पहुँचे ...

चार टेबलेट एनासिन दी और पचास पैसे उससे लेकर बड़ी श्रद्धा से मस्तक से लगाया और गल्ले में रख कर पुनः पूजा पाठ की ओर उन्मुख हुए .

साफ सफाई के बाद मैं हाथ पैर धोकर ...गल्ले पर आ कर बैठा हमारी दुकान में चरण पादुकायें बाहर ही उतारने का अलिखित विधान था और सभी बिना कहे इसका पालन करते थे।

गर्मी के दिन थे...पंखा चल रहा था और मेरे पैर ठंडे फर्श को छू कर बड़े सुख का अनुभव कर रहे थे।

हमारी दुकान सुबह साढ़े नौ बजे खुल जाती थी। उस समय दस बजने में पाँच मिनट बाकी थे। मिश्र जी आसन जमाये सस्वर श्रीसूक्त का पाठ कर रहे थे ।मैंने अनुमान लगाया अब पाँच मिनट बाद बंधु उठेंगे, सो मैंने एक मिट्टी के सकोरे में कंडे के टुकड़े रख कर घी कपूर की बत्ती जलाई और सकोरे को दुकान के बाहर रख दिया। हमारे पड़ोसी दुकानदार सरदार वस्त्रालय के सरदार जी ...पानी का पाइप लेकर दुकान के बाहर फुहारा मार रहे थे। ..ताकि दोपहर में धूल न उड़े। उन्होंने मुझे सकोरा रखते देखा और पानी बंद कर ..दुकान के अंदर चले गए ...

दस मिनट बाद भगवान को धूप दिखा कर ...बंधु मेरे सामने बैठे तो वातावरण धूप की मनमोहक सुगंध से आपूरित हो उठा। मैंने बड़ी श्रद्धा से उनका......... चरणस्पर्श किया और उन्होंने मुझे सुन्दर आशीर्वाद दिया ...ये मेरा नित्य नियम था।

मैं स्वयं तो कभी पूजा पाठ करता नहीं था ...मंदिर जाने के नाम पर ..रविवार के दिन मैं अपने पड़ोस में गंगा के किनारे ...भैरो जी के मंदिर चला जाता था .

प्रसाद बेचने वाले लाला का लड़का किसी समय मेरा सहपाठी हुआ करता था। मन किया तो उसी की गद्दी पर उसके बगल में बैठ कर घंटो बातें कर लिया करता था ...उस समय टी वी का जमाना नहीं था . मोबाइल फोन की तो कल्पना भी नहीं थी।

लोगों के पास मिलने जुलने का काफी समय होता था ...बात करने का मूड नहीं बना तो मंदिर मेंजाकर 

कपूर जलाते ...घंटा बजाते ...बुर्ज पर बैठ कर गंगा जी का बहाव देखते और ठंडी हवा का आनंद लेते।

हाँ तो मैं कह रहा था ...बंधु के पूजा से उठने के बाद चाहे दुकान पर ग्राहक ही खड़ा हो ...उसे छोड़ मैं पहले उनका चरण स्पर्श करता था ...

मिश्र जी भी मुझे बंधु ही कहते थे।

वे मेरे पास बैठे और हँसते हुए बोले ...और बंधु कहो क्या हाल है ?

सब आपका आशीर्वाद है ..बंधु ! ...मैं बोला..

ठीक है ..बही खोलो ...

इधर मैं हिसाब किताब में उलझा और वे ग्राहकों में।

कुछ देर हिसाब किताब पर चर्चा करके ...उन्होंने साइकिल उठाई और मेडिकल मार्केट चले गए ...

मेरी दुकान पर बहुत भीड़ कभी नहीं होती थी लेकिन ग्राहक आते जाते रहते थे। हाँ शाम को छह बजे से आठ बजे तक कुछ व्यस्तता जरूर बढ़ जाती थी।

बारह बज गए और मैंने रेडियो ऑन कर दिया.... आवाज आयी ....

ताल मिले नदी के जल में ...नदी मिले सागर में !

सागर मिले कौन से जल में ...कोई जाने न ...!!

मैं मंत्रमुग्ध हो कर गीत सुनता रहा ....और रेडियो से आवाज आयी ...ये विविध भारती की विज्ञापन प्रसारण सेवा का कानपुर केंद्र है ...अब सुनिये प्रायोजित कार्यक्रम ...मेट्रो के मनोरंजक मुक़दमे .

तभी दुकान पर ग्राहक आ गया और मेरा ध्यान उसकी तरफ केंद्रित हुआ।

दिन के दो बजने वाले थे। ..धूप बहुत तेज थी। दुकान में चलते पंखे की हवा लू के थपेड़े सी जान पड़ती ....

उसी समय पसीने से भीगे मिश्र जी आये ...बाहर नल पर हाथ मुँह धोकर ...गमछे से पोंछते वे दुकान में दाखिल हुए और बोले ...बंधु आज बहुत गरमी है

हाँ बंधु ...पछुआ चलने लगी है ...मैं बोला...

रेडियो पर समाचार प्रसारित हो रहा था ...ये आकाश

वाणी है अब आप .......

श्री रामनयन मिश्र जी से मेरा परिचय बीस साल पुराना था ..उस समय वे तीस साल के थे और वेदना निग्रह रस बेचते थे। बचपन में ही वे विवाहित हो गए थे। उनकी पत्नी अपनी सात साल की लड़की के साथ गाँव में रहती थीं।

मेरी उम्र उस समय तेईस साल रही होगी और मैं बीए पास कर चुका था, मेरे पिता पावर हाउस में........ सुपरवाइजर थे और रिटायर हो कर गाँव चले गए थे। उन्होंने मुझे एकमुश्त बीस हजार रूपए दिये और कहा ....अब तुझे जो करना हो कर, ये शहर का तीन कमरे का मकान और बीस हजार तेरे ...गाँव में तेरा कोई हिस्सा नहीं होगा... मैंने भी खुशी खुशी.... ऑफर कुबूल किया ...बीस हजार खासी रकम होती थी।

उन दिनों मैं कभी कभी अपने पिता के मित्र श्री सुरेश चंद्र पांडे जी के मेस में भोजन कर लिया करता था जो एस डी कॉलेज के हॉस्टल का विशाल मेस संचालित करते थे। बड़ा स्वादिष्ट भोजन होता था मैं छक कर खाता और इसके लिये पांडे जी ने मुझसे कभी पैसे नहीं लिये

एक दिन भोजनालय में मेरी मुलाकात मिश्र जी से हो गई....वे भी मेरी बगल में बैठे भोजन कर रहे थे।

उस समय मेस में जमीन पर या सीमेंट के चबूतरे पर बैठ कर भोजन करने की उत्तम व्यवस्था होती थी।

उस दिन मेरा उनसे परिचय हुआ धीरे धीरे कई मुलाकातों के बाद हमारा परिचय कब प्रगाढ़ मित्रता में परिवर्तित हो गया ...पता ही नहीं चला

एक दिन मेरे सामने श्री रामनयन मिश्र जी को भयानक उल्टी हुई ... मैं दौड़ कर दवा की दुकान से दवा लाया ...उन्हें एक साथ दो टेबलेट खिलायी... कुछ देर बाद वे सामान्य हुए ....

मैंने ध्यान से देखा ...उनके चेहरे पर मुझे सूजन अनुभव हुई ...आँखों में पीलापन झलकता लगा और मैं उन्हें अपने साथ ...अपने घर ले आया

रॉकेट का ताला खोल कर मैं घर में घुसा, उन्हें बिस्तर पर लिटाया ...शाम सात बजे मैं उन्हें लेकर अपने घर से दो किलोमीटर दूर ...साइकिल पर बैठा कर डाक्टर मोती सरकार के क्लीनिक पर पहुँचा , जो एक बंगाली डाक्टर थे और बचपन से मेरी दवा करते आ रहे थे। वे मुझे अच्छी तरह जानते पहचानते थे। उन्होंने मिश्र जी की हालत देखी ..एक सुई लगाई ...दवा दी और बोले ..." पीलिया हो गया है ...

इनको मूली और गन्ने का रस खिलाओ पिलाओ ....

हल्दी , मिर्च , तेल मसाला और खटाई से परहेज़ रखना

मैं बंधु को लेकर घर आया ...उनकी सेवा सुश्रूषा शुरू की, सुबह पाँच बजे उन्हें उठा कर मैं घर से एक किलोमीटर दूर सिठाइन की चाय की दुकान पर ले गयावो दुकान के बाहर गोबर से लीप रही थीं मैंने उन्हें कड़वे तेल की शीशी दी वे कांसे की थाली लायीं और उसमें तेल डाल कर हरी दूब से गोल गोल घुमाती कुछ बुदबुदाती रहीं ...बीच बीच में मिश्र जी के सिर के चारो तरफ घुमाने लगींकुछ देर में .... उनका कार्यक्रम संपन्न हुआ, बंधु हमेशा दातून करते थे। ..उन्होंने वहीं नीम के पेड़ से दातुन तोड़ी और मुँह में दबाये पैदल ही घर आये

सुबह दस बजे मैं उन्हें फिर साइकिल पर बैठा कर

मोतीझील गेट के सामने ...एक सरदार जी के घर पहुँचा जो केवल पीलिया की आयुर्वेदिक दवा देते थे वो भी निश्चित दिन पर ...वहाँ बड़ी संख्या में मरीज़ थे। चूरनों की कई शीशियों के साथ हम घर वापस आये .धीरे धीरे एक महीने में मिश्र जी पूरी तरह स्वस्थ हुए वे किराये के कमरे में रहते थे और उसे छोड़ना नहीं चाहते थे। फिर भी मेरी जिद पर वे दो महीने मेरे साथ रहे और इस बीच हम भविष्य का ताना बाना बुनते रहे ....

वो एक सेल्समैन थे और मैं बेरोजगार, पिता जी जो पैसा दे गए थे। वो धीरे धीरे कम होता जा रहा था

एक दिन गंगा स्नान कर हम दोनों गंगा की रेती पर बैठे बैठे भविष्य की चिंता कर रहे थे। तभी मिश्र जी बोले ....हरि इच्छा नारायण की....बंधु ! मेहनत हमारी पूँजी तुम्हारी....

क्या मतलब ? ....मैं बोला

वे बोले ...देखो बंधु ...तुमको नौकरी या धंधे की तलाश है और पूँजी तुम्हारे पास है... मैं ठहरा दवाई बेचने वाला सेल्समैन... शहर के हर छोटे बड़े दवा कारोबारी ...थोक फुटकर लगभग सभी से परिचित हूँ, उठो आज ही शुरू करते हैं ......

और हम दोनों तीस किलोमीटर दूर साइकिल चला कर पनकी हनुमान मंदिर पहुँचे और बजरंगबली के दरबार में अर्जी लगाई

पंद्रह दिन बाद ...तिलकनगर चौराहे पर हमें एक दुकान किराये पर मिली किराया दो सौ रुपया महीना ...दो हजार की पगड़ी उस समय दो सौ रुपए तो किसी किसी की महीने भर की तनख्वाह होती थी। मैंने तुरन्त हामी भरी और एक सप्ताह बाद ऐन दीपावली के दिन हमारी दुकान का श्री गणेश हुआ .

मिश्र जी नें दीपावली के पहले पड़ने वाली शारदीय नवरात्रि का व्रत रखा और मुझे भी रखवाया . वे पूरे नौ दिन श्री दुर्गा शप्तशती का सम्पुटित पाठ करते रहे ...उनकी एकमात्र इच्छा थी कि हम दोनों पर लक्ष्मी मेहरबान हों और कोई रास्ता मिले .....और दीपावली के दिन उनकी इच्छा पूर्ण हुईदीवाली को दोपहर बारह बजे हमारी दुकान का उद्घाटन हुआ और रात नौ बजे तक हमारी बिक्री पंद्रह सौ रूपए थी.. ..जो हमारी सोच से ज्यादा थी। पहले ही दिन हमारी दुकान का किराया निकल आया था, उस दिन मैं तो घर आ गया लेकिन मिश्र जी रात भर दुकान में पूजा करते रहे


आज बीस साल हो गए....हमारी एक ही दिनचर्या थी

इन बीस सालों में मैंने जमीन खरीदी, बंधु ने थोड़ी जमीन खरीदी ...छोटा मकान बनाया और अपनी बेटी का विवाह किया

मेरा भी विवाह हुआ लेकिन न मैं परिवार को साथ रखता था ...न वे, मेरी पत्नी सुघड़ गृहिणी थीं .....

कभी किसी से ऊँची आवाज में बोलती नहीं थीं ....मेरा सात साल का एक पुत्र भी था

एक दिन मेरे सामने वाले पड़ोसी की साली आयी...

उसका चाल चलन ठीक नहीं था, उसने मुझ पर डोरे डालने शुरू किये और मैंने ये बात बंधु को बता दी !

बंधु ठहरे पक्के हनुमान भक्त ...वे मुझे जबरन अपने साथ मेरे गाँव ले गए और मेरी पत्नी और बच्चे के साथ ...हम दोनों की वापसी हुई

इस तरह एक बार जो लाजवंती हमारे साथ शहर आयी तो फिर यहीं की हो कर रह गई एक बार पिताजी के देहावसान पर वो गाँव गई थी लेकिन एक महीने रुक कर वापस आयी ...तब से नहीं गई

ऐसा नहीं था कि मेरा भाइयों से कोई सम्बन्ध खराब था ...मेरे मझले भइया तो अक्सर साल में एक दो बार आते ...दो तीन दिन रुकते और चले जाते . ऐसी कोई आवश्यकता या परिस्थिति ही नहीं आयी कि गाँव जाना हो फिर मैं एक दुकानदार था ...वो भी दवा की दुकान .. ....और पिता जी के अनुसार मेरा गाँव में कुछ था भी नहीं ....

इस तरह खुशियों भरे दिन बीत रहे थे। धीरे धीरे हमारी पत्नी ग्रामीण से शहरी होती जा रही थीं... कभी घर से पाँव बाहर न निकालने वाली हमारी लाजवंती अब बाजार जाने लगी थीं, धीरे धीरे उसने पूरी गृहस्थी की खरीद फरोख्त का जिम्मा बखूबी उठा लिया और मेरा काम था ....खाना , सोना , दुकान जाना और रेडियो सुनना

इन दिनों मुझे एक नया शौक चढ़ा था ...नया तो नहीं कह सकते ..पहले भी ये शौक मुझे था ......लेकिन सांसारिक झंझावातों की धूल जम जाने से आँखों से ओझल हो गया था .अब चूंकि मैं किंचित निश्चिंत हो गया था तो वही पुराना शौक फिर उभर आया मैं इंटर ..बी ए के दौरान कहानी ...कवितायें लिखता था जो कभी कभी दैनिक पत्रों में छप भी जाती थीं...

अब मैं संजीदगी के साथ लिखने पढ़ने लगा था ...समय मिलने पर बलभद्र प्रसाद महानगर पालिका लाइब्रेरी भी जाता और खासा समय बिताता


रात के दस बज रहे थे। मैं भोजन करके अपनी टेबल पर बैठा ...अपनी तीन दिन से अधूरी पड़ी कहानी पूरी कर रहा था ...मेरा रेडियो मद्धिम आवाज में बज रहा था ....

ये विविध भारती है ...प्रस्तुत है कार्यक्रम छाया गीत

और कुछ देर बाद मधुर कर्णप्रिय संगीत गूँजा ...

आवाज देकर ..हमें न बुलाना ...

मोहब्बत में इतना ..न हमको सताना ...

तभी दरवाजा भड़का और किसी नें मुझे आवाज दी

और एक झकझोर देने वाला समाचार सुनाया .....

आपके बगल वाली दुकान में भयानक आग लग गई है ....

मैं आंधी तूफान की तरह दुकान पर पहुँचा ....मेरी दुकान की पूर्वी दीवाल से सटा सरदार वस्त्रालय धू धू कर जल रहा था, अफरातफरी मची थी। तभी सूचना पा कर मिश्र जी भी पहुँच गए ...... उन्होंने सड़क पर पड़े पाँच कंकड़ उठाये और होठों में कुछ बुदबुदाते हुए एक एक कर हमारी और सरदार की दुकान के बीच में फेंकने लगे, पता नहीं ये उनके टोटके का चमत्कार था या हमारा भाग्य ...सरदारजी का वस्त्रालय तो जलकर स्वाहा हो गया मगर हमारी दुकान में आंच भी न लगी

सरदारजी सड़क पर निर्लिप्त भाव से खड़े अपनी जलती दुकान देखते रहे ...न उन्होंने चीख पुकार मचाई ...न किसी को सहायता के लिये बुलाया न ही कोई सामान बचाने की कोशिश की ....केवल खड़े खड़े जपुजी का पाठ करते रहे

मैं सुबह चार बजे घर पहुंचा....अपनी चिंतित और अधीर श्रीमती जी को बताया ..सब सुरक्षित है ....उनकी जान में जान आयी .

सुबह हो ही गई थी। मैं स्नानादि कर अपनी बैठक में आया.. रेडियो बजने लगा था ...आकाशवाणी का प्रतीक वायलिन वादन बज रहा था और आवाज आयी ...वन्दे मातरम ...

सुबह के छह बज रहे थे। अख़बार आ गया था ...

मैं अख़बार पढ़ने लगा और पत्नी चाय लेकर आयीं, रेडियो पर भजनों का लोकप्रिय कार्यक्रम वंदना प्रसारित हो रहा था और श्री हरिओमशरण का मधुर भजन बजने लगा ....

दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया ...

राम एक देवता ...पुजारी सारी दुनिया ....


निश्चित समय पर मैं अपनी दुकान पर पहुँचा ..... दोपहर में कुछ अधिकारी जैसे दिखने वाले महानुभाव एम्बेसडर कार में सवार होकर आये और

सरदार वस्त्रालय का मुआयना करने लगे ....

तीन महीने में सरदार वस्त्रालय अपनी नई साज सज्जा और वस्त्रों के साथ मुस्कुरा रहा थापता लगा सरदार जी नें अपनी दुकान का बीमा करवाया था. अब मेरी समझ में आया कि उस दिन जलती दुकान के सामने शांति से जपुजी का पाठ करने वाले सरदार जी की शांति और धीरज का क्या रहस्य था ?

कुछ दिनों बाद एक रहस्यमय खबर फैली कि सरदार जी पर हजारों का कर्जा हो गया था और दुकान घाटे में जा रही थी। ..इसलिए उन्होंने बाकायदा योजना बना कर खुद ही अपनी दुकान में आग लगा ली ....

कीमती सामान उन्होंने पहले ही निकाल लिया था

इस घटना से हमें एक प्रेरणा मिली और हमनें अपने मेडिकल स्टोर का बीमा करवा लिया ....फूँकने के लिये नहीं ..निश्चिंत होने के लिये .

हमारी दुकान अच्छी चल रही थी। मेरी साहित्य साधना निर्विघ्न चल रही थी। पहला कहानी संग्रह

तुम जो मिल गए हो....प्रकाशित हो चुका था .

धर्मयुग , साप्ताहिक हिन्दुस्तान और कादम्बिनी में मेरी रचनायें प्रकाशित हो रही थीं


अब बंधु की उमर सत्तर साल हो चुकी थी। वे गठिया के मरीज हो गए थे और दुकान पर आ नहीं पाते थे।

कभी मन करता तो कांखते कराहते चले आते..... लेकिन कुछ भी करके मैं उनसे प्रतिदिन जरूर मिलता

अब शहर में हमारे तीन मेडिकल स्टोर थे। आधा दर्जन कर्मचारी थे। मेरे पास फिएट कार थी।

एक दिन श्री रामनयन मिश्र जी स्वर्गवासी हो गए

उनकी पत्नी पहले ही दुनिया से जा चुकी थींपुत्री का विवाह वे कर चुके थे। ...वो अपनी ससुराल में सुखी थी।

अपने बंधु का अंतिम संस्कार मैंने स्वयं किया और पूरे विधि विधान से उनका क्रियाकर्म किया हालांकि बंधु अपना पूरा जीवन जी कर गए थे लेकिन मुझे अपने पिता जी की मृत्यु पर उतना दुःख नहीं हुआ था ....जितना बंधु के जाने पर हुआ

मैं मौन था ...कहानी पूरी कर रहा था और रेडियो पर भजन बज रहा था ....

आये हैं सो जायेंगे ...साधू संत फ़कीर ...

कुछ सिंहासन चढ़ी चले ...कुछ बंधे जंजीर ...




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