रूप
रूप
1971 का भारत पाक युद्ध समाप्त हो चुका था, भारत ने पाकिस्तान को एक बड़ी हार दी थी। पाकिस्तान के 90000 ज्यादा सैनिक भारत में युद्ध बंदी थे, विश्व का नक्सा भी बदल गया था, अब भारत का एक और पड़ोसी था “बांग्लादेश”।
बांग्लादेश के सीमावर्ती क्षेत्र में “हल्दिबारी” के निकट एक सैन्य पोस्ट पर बहुत गहमा गहमी थी। कुछ सिपाहियों को घर जाने को छुट्टी मिल गयी थी। युद्ध जीत कर घर जाते समय जो जोश और ख़ुशी एक योद्धा के मन में होती है उसे शब्दों में कोई भी नहीं उतार सकता। कुछ ऐसा ही माहौल था, इस शैन्य शिविर का। शिविर में तम्बुओ की एक पूरी बस्ती थी, इन तम्बुओ में ही समस्त सैन्य गतिविधि होती थी। सामरिक रूप से ये शिविर अत्यंत महत्वपूर्ण था। ठण्ड की खुमारी भी अपने यौवन पर थी, इन सिपाहियों में ही एक सिपाही था बसंत सिंह। साथी उसे बसंता ही कहते थे, अपने नाम और स्वभाव की स्वछंदतातथा विनोदप्रियता से श्रृंगार रस को बिखेरता बसंत एक अत्यंत वीर योद्धा भी था।
एक साथी ने आकर बसंत से कहा “लो भाई जी आपका घर जाने का फरमान आ गया”
बसंत सुनकर जैसे कल्पनाओं में खो गया और आँख बंद करके लोहे के पलंग पर लेट गया। एक अन्य साथी ने चुटकी ली “भाई बसंता वापस आजा, वापस”
दूसरा साथी बोला “भाभी की याद कुछ घनी आरी, चोकस रहना पड़ेगा आज तो, छोरे में जवानी के ठट खड़े होरे”
सब हँस पड़े। बसंत अपने साथियों में काफी लोकप्रिय भी था, जिनको छुट्टी मिल गयी थी और जिन्हें नहीं मिली थी सभी अपने घर की यादों में खोये थे।
बसंत ने अन्य सैनिकों के साथ वापसी की तैयारी शुरू कर दी थी तभी एक कारिन्दा आया और बसंत को मेजर का संदेशा दिया।
सेना ट्रेनिंग पूरी करने के बाद पहली छुट्टी पर गए बसंत का विवाह हो गया था रूपवंती से। अपने नाम के अनुरूप ही रूपवंती किसी कला में डूबे कलाकार की अप्रतिम सौन्दर्य से ओतप्रोत कला की प्रतिमूर्ति थी। बसंत और रूपवंती की जोड़ी को देखकर एहसास होता था कि एसी जोड़ी तो स्वयं विष्णु भगवान ने ही सृजित की होगी, बसंत रूपवंती को प्यार से रूप कहता था। शादी के बाद छुट्टी कुछ दिन शेष रहते ही उसको सेना से बुलावा आ गया था। भारत पाकिस्तान की जंग शुरू हो गयी थी, बसंत के माता पिता बचपन में गुज़र गए थे। उसके ताऊ ने उसे पालकर बड़ा किया था, ताऊ ताई को तो वो फिर भी प्यारा था लेकिन उनकी मौत के बाद बाकी भाइयों को उससे कोई ख़ास लगाव नहीं था। जिसकी एक बड़ी वजह ये थी कि बसंत अपने पिता की ज़मीन का इकलौता वारिस था तो उतनी ही ज़मीन में ताऊ के तीन बेटे थे, शोरण सिंह, जबर सिंह और सुजान सिंह। बसंत ने अपने तीनों भाइयों को सगे भाई जैसा प्यार दिया था तो उनके लिए बसंत एक फ़ांस की तरह ही था। उन तीनों का चालचलन भी ख़राब था तो बसंत सिंह अत्यंत मधुर स्वभाव का और स्वच्छ छवि का था, बसंत की इतनी खूबसूरत लड़की से शादी होने से ये फ़ांस अब उन तीनों को कुरेद रही थी। बसंत मोर्चे पर गया तो रूप के माँ बाप ने उसे वापस मायके ले जाने का प्रस्ताव भी रखा लेकिन रूप ने इनकार कर दिया।
जब बसंत घर से निकला तो रूप ने उसे अपनी बाहों में भरकर कहा था “बसन्ते जीत कर आना” फिर उसके शब्द कुछ भारी हो गए और बोली “देख बसन्ते पीठ मत दिखाना दुश्मन को, तेरी रूप तेरे सर कटे धड़ पर अपना सारा प्यार लूटा देगी.... लेकिन अगर तूने दुश्मन को पीठ दिखाकर मेरे प्यार को बदनाम किया तो तू कभी रूप को नहीं देख पायेगा”
बसंत सिंह रूप की इस बात को सुनकर गर्व से भर गया था, उसकी ह्रदय गति बढ़ गयी थी और उसका रक्त शिराओं को फाड़ कर बाहर निकलने को तैयार था। बसन्त ने रूप पर अपनी बाहों की जकड़ को और ज्यादा मजबूत करते हुए रूप के नर्म होठों को अपने होठों से स्पर्श किया और बोला “रूप तेरा बसन्ता दुश्मन का काल बनकर जा रहा है, जीतकर ही आएगा”
रूप ने अपनी कोमल उंगलियों को बहुत ही प्यार से बसंत के बालों में घुमाया और कहा “जल्दी निपटा कर आ उनको, तेरी रूप यहीं तेरा इंतज़ार करती मिलेगी”
भारत-पाक सीमा पर बसा बंगाल का एक छोटा सा गाँव था “सिखाली” जो अब सुनसान पड़ा था। युद्ध के कारण सभी ग्राम वासी गाँव खाली कर गए थे, गाँव में ही भारत सीमा की तरफ एक प्राचीन मंदिर था। इस मंदिर में ही एक साधू रहते थे, जिन्हें सभी धोला बाबा कहते थे, साधू के सर के बाल और दाढ़ी मूंछ एकदम सफ़ेद रेशम की तरह थी। कहा जाता था की जब वो यहाँ वर्षो पहले आये थे तब भी उनके बाल यूँ ही सफ़ेद थे, साधू की आयु को लेकर बहुत सी किवदंतियाँ आसपास में विख्यात थी, जैसे इनकी उम्र सैंकड़ो वर्ष है या फिर ये कोई बहुत सिद्ध संत हैं। साधू के साथ इस मंदिर की भी बहुत मान्यता थी आस पास के क्षेत्र में| जब सभी ग्राम वासी गाँव छोड़कर चले गए थे तब भी धोला बाबा ने मंदिर को छोड़कर जाने से मना कर दिया और बोल दिया “जहाँ मेरे भोलेनाथ वहाँ उनका भक्त, यदि मैं चला गया तो बाबा भोले नाथ का अभिषेक कौन करेगा”
धोला बाबा शिव भक्त थे और भाषा भी उत्तर भारतीय थी, जिससे वहाँ सभी ये कहते थे कि बाबा हिमालय की चोटियों से गाँव का उद्धार करने आये थे।धोला बाबा का दिन पूजा पाठ से भी ज्यादा गाँव के बच्चों को संस्कार देने में बीतता था, उनके आने के बाद से गाँव के बच्चों में उत्तम संस्कार विकसित हुए थे। जिस कारण गाँव वाले उन्हें अपने उद्धारक के रूप में देखते थे।
शाम होने को थी धोला बाबा पूजा के लिए जा ही रहे थे कि कुछ लोगो को उन्होंने सीमा की दिशा से गाँव की दिशा में जाते देखा, धोला बाबा मंदिर के बाहरी प्रांगन में आये और कड़क आवाज़ में बोले “कौन है?”
आवाज सुनते ही वो लोग मंदिर की तरफ आये.. धोला बाबा उनके चेहेर देखे, वो रोबदार चेहेरे और बलिष्ठ शरीर वाले थे। वो पाँच लोग थे और सेना की वर्दी में थे, उनमें से तीन धोला बाबा के पास आये और दो धोला बाबा को अपनी बन्दूक के निशाने पर लेकर दूर ही खड़े हो गए।
धोला बाबा ने उन दोनों लोगो को भी देखा फिर प्रश्न किया “कौन हो भाई?”
उनमें से एक जो शायद उनका नायक भी था बोला “फ़ौजी हैं बाबा”
धोला बाबा ने हँसकर पूछा “भारत के या पाकिस्तान के”
उस फ़ौजी ने बिना हिचके उत्तर दिया “पाकिस्तान का फ़ौजी यहाँ क्या करेगा बाबा? हम हिन्दुस्तानी फ़ौजी हैं और गस्त पर हैं, रात को कहीं रुकने का ठिकाना देख रहे थे तो आपके मंदिर की रौशनी दिखाई दी इधर आ गए।”
धोला बाबा ने उनको भीतर आने का संकेत किया और कहा “ये बाबा भोलेनाथ का स्थान है बेटा, पूरी श्रृष्टि के अधिष्ठाता के लिए न कोई पाकिस्तानी ना कोई भारतीय”
फिर बाबा ने बरामदे में पड़े एक लकड़ी के तख़्त पर उन तीनों को बैठने का इशारा किया और बोले “उन दोनों को भी भीतर ही बुला लो”
नायक फ़ौजी ने कहा “बाबा दो लोगो को पहरे पर ही रहना होता है......नियम है फौज का”
बाबा ने मुस्कराहट से प्रति उत्तर दिया और भीतर चले गए।
मंदिर एक बड़े परिसर में था, गर्भ गृह के चारों तरफ एक बड़ा बरामदा था और पूर्वी छोर पर एक कक्ष बना हुआ था। जो धोला बाबा का शयन कक्ष था,
धोला बाबा ने बरामदे के ही एक किनारे पर रखे घड़े से पानी लेकर तीनों फौजियों को दिया और एक फ़ौजी से बोले “जाओ बाहर उन दोनों को भी दे आओ”
नायक फ़ौजी एकदम से बोल उठा “बाबा प्यास तो नहीं लगी है बस थक गए हैं तो आराम करेंगे”
फिर कुछ रुककर वो बोला बाबा आप आराम करो हमारी फ़िक्र ना करो
फिर वो तीनों उठकर बाहर चले गए और धोला बाबा वहीँ बरामदे में एक चटाई बिछाकर लेट गए।
वो तीनों फ़ौजी मंदिर से बहार आये और कुछ देर गाँव और आसपास का जायजा लिया, फिर उनमें से एक फ़ौजी नायक से बोला “ गनी साहब अकेला बूढ़ा है क्या करें इसका”
गनी ने कहा “नहीं कुछ नहीं करना है, वैसे भी हमें अभी कोई भी एसी हरकत नहीं करनी है जिससे हमारी मौजूदगी का एहसास भारत के फ़ौजी अमले को हो”
तुरंत उस सिपाही ने कहा “बस यहाँ से निकल जाएँ गनी साहब फिर तो हमारा बासिन्दा हमें हाईवे तक पहुंचा देगा”
गनी ने उससे प्रश्न किया “कहाँ मिलेगा वो?”
उस सिपाही ने जवाब दिया “मैनागुरी में जनाब”
गनी कुछ देर सोचता रहा और बोला “ये रास्ता तो काफी लंबा रहेगा”
सिपाही बोला “जनाब सिलिगुड़ी में भारतीय फौजों का जमावड़ा है, ये रास्ता तो बेहद लम्बा है लेकिन बेशक मंज़िल तक जाने का भी ये ही सिर्फ एक महफूज़ रास्ता है”
गनी ने सहमती में सर हिलाया
तभी वो सिपाही बोला इस काफ़िर क्या करना है (वो धोला बाबा के बारे में कह रहा था)
गनी “कुछ नहीं, हम नहीं चाहते कि हिन्दुस्तानी फौज को कोई भी अंदेशा हो”
कुछ देर रुककर गनी बोला “मुझे बस एक तगड़ी चोट देनी है हिन्दुस्तान को, शायद हम फिर से इस जंग में हावी हों और हमारी सरकार के टूट चुके हौसले भी बुलंद हो जाएँ”
सिपाही ने कहा “क्या जनाब आपको अब भी लगता है कि जंग का रुख पलटेगा, जनाब अभी तो हम गिनती भी नहीं कर पा रहे कि हमारे कितने फ़ौजी मरे और कितनों को हिन्दुस्तान ने क़ैद कर लिया? पर ख़बरें ये हैं कि हिन्दुस्तान की सड़को पर पत्थर कूट रहें हैं हमारे फ़ौजी”
गनी ने आँखें बंद कर ली, उसके चेहरे पर अवसाद की लकीरें गहरीं हो गयी थी, वो बोला “कितने अरजुमंद सुरमा पैदा हुए मोमिनो में। हमारे बादशाहों ने इस धरती को अपनी शमशिरो से भेद कर रख दिया था, जिस धरती पर हमारी बादशाही थी आज वहां हमारे सूरमा बेड़ियों में जकड़ें हैं।
सिपाही ध्यान से सुन रहा था..
गनी ने फिर कहना जारी रखा “जब हमें पकिस्तान मिला तो लगा था की हमारी मंज़िल को पाने को एक मुकाम मिल गया, बाखुदा जल्द ही दिल्ली के तख़्त पर भी इस्लामिया हुक़ूमत होगी”
सिपाही ने बात काटते हुए कहा “लेकिन हुजूर हम तो अपने बचे हुए वजूद को ही खो बैठे, इन बंगाली मछुआरों के सामने हार का ज़ख्म इस्लामी तारीख की सबसे बुरी हार है”
गनी का मुहँ जैसे कड़वा हो गया और वो बोला “क्या वजह है कि ये बुतों को रहनुमा मानने वाली राम राम करने वाली कौम हमें बार बार हार के नस्तर चुभा देती है?”
सिपाही ने कहा “हुजूर जब इस्लाम की बादशाहत थी तब भी ये हिन्दू अगर जंगे मैदान में कूदे तो बहुत भारी पड़े उन अरबी लड़ाकों पर”
गनी ने आश्चर्यचकित होते हुए पुछा “अरबी लड़ाके! अपने मोमिन भाइयो को यूँ क्यों बोलते हो तुम जैसे वो गैर हों?
सिपाही ने कहा “हुजूर गुस्ताखी मुआफ, मेरा नाम अशरफ अली राजपूत है और आपका नाम अब्दुल गनी बट। क्या पहचान है हमारी? ये ही ना कि कुछ पीढ़ियों पहले मेरे दादे-परदादे हिन्दू राजपूत थे और आपके दादे-परदादे हिन्दू ब्राह्मण। हुजूर पूरा पाकिस्तान भरा पड़ा है हुसैनियों और राजपूतो से”
गनी को ये दर्शन ध्यान देने लायक नहीं लगा, उसने बात काटते हुए कहा “कैसी अजीब बातें कर रहे हो? हमरे दादे-परदादों ने एक बेजा सोच को छोडकर एक सही और ताज़ा सोच को अपनाया और दीन की राह को पकड़ा। हम मुसलमान है....बस ये ही इकलौता वजूद है हमारा और ये ही सच है”
सिपाही ने गनी से नज़रे बचाते हुए कहा “हुजूर कैसे और क्यों कोई हिन्दू से मुसल्मा बना ये तो तारीखों में हमेशा दर्ज रहेगा.....और हुजूर आपने भी उस दर्द को सहा होगा ही जब मैंने सहा है तो, कोई भी खुद को मुग़ल बताकर कैसे हमारी बेइज्जती कर जाता है, हम तो खुद को मुसलमान मानते हैं लेकिन उनकी निगाहों में हम क्या हैं हुजूर ?”
गनी के मस्तिष्क में एक साथ कई परिदृश्य घूम गए, उसके पिता बँटवारे के समय पाकिस्तान नहीं गए थे क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि कश्मीर भी एक मुस्लिम मुल्क बनेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और 1948 के भारत पाक युद्ध के दौरान ही वो पकिस्तान चले गए, अक्सर देखा कि तुर्क, मुग़ल या अन्य अरबी कौम इन्हें अपने सामने बेहद ही निकृष्ट मुसलमान समझते थे और तो और पठान जो इनसे कोई 100 वर्ष पहले ही मुसलमान बने थे वो भी इन्हें बेहद गिरा हुआ मानते थे अपने सामने। गनि के दिमाग में एकदम से किसी ऊँचे मुसलमान की कही बात कौंध गयी “हम बुत शिकन हैं, हम जंगजू हैं और हमने जंगे जीती थी, बाकी तुम सब तो महज हमारी जीत का इनाम हो बस, एहसान मानो कि तुम्हारे बुजुर्गो को हमरे बुजुर्गो ने मौका दे दिया कफिरियत की आग से निकलकर दीन के रास्ते पर आने का”
एकदम से गनी का मुहँ कड़वा हो गया, सिपाही जो अब तक चुप था उसने पूछा “क्या हुआ जनाब”
गनी ने एकदम से गुस्से में कहा “सुनो ऐ लड़ाके तुम अपना रास्ता तय करो, तुम मेरे साथ गजवा ऐ हिन्द की जंग में शहीद होना चाहते हो या फिर भारत की सड़को पर पत्थर कुटना चाहते हो?”
सिपाही ने एक हलकी सी मुस्कुराहट अपने होठों पर बिखेरते हुए कहा “जनाब मैं एक लड़ाका हूँ और वो ही करूँगा जो एक लड़ाका करता है, बाकी क्या गलत है और क्या सही ये समझ तो अब जैसे ख़त्म ही गयी है। अपने ही लोगो को जुल्म की इन्तहा करते देखा है मैंने बंगालियों पर, होने को तो वो भी मुसलमान ही थे जनाब”
गनी ने बात बिच में ही काटते हुए कहा “ये जंग है अशरफ और यहाँ लाशों की गिनती नहीं की जाती बल्कि दुश्मन की रूह तक में खौफ भर देने के लिए जो जरुरी हो वो करना पड़ता है”
सिपाही ने एकदम से कहा “हुजूर क्या हम खौफ भर पाए? पाकिस्तान नाम के सपने की तामिल होते ही तारीख में पाकिस्तान की पहली शिकस्त दर्ज हो गयी वो भी एक काफिरों के मुल्क के सामने। जिन काफ़िरो के दिल में पिछले सैंकड़ों सालों से हमारे साइन लडाको ने खौफ भरने को जुल्म की हर इन्तहा पार की, वो ही हिन्दू जंगे मैदान में और भी ज्यादा मजबूत इरादों से उतरें और जनाब बुरा मत मानियेगा ये जो दिनियत का नया सपना बुना था ना “पाकिस्तान” इसने तो हमेशा इन काफिरों के सामने घुटने ही टेके। देखिये ना अबकी बार हमने हथियार टेके तो किनके सामने? जिन्हें हम मछुवारा कहते थे”
गनी ने तुरंत बात काटते हुए कहा “तुम्हारे इरादे क्या हैं सिपाही"
सिपाही ने झटके से कहा “वो ही जो एक सिपाही के होते हैं जनाब, गाजी बनने तक नहीं तो शहीद होने तक ये सिपाही मैदाने जंग नहीं छोड़ेगा।
गनी : अँधेरा होते ही हमें आगे चलना है..
इसके साथ दोनों का वार्तालाप समाप्त हो गया था।
बसंत का गाँव
बसंत का मकान चूने से चिना हुआ एक मजबूत और सुन्दर घर था, बड़े-बड़े कमरे थे एक पंक्ति में और उनके आगे एक बड़ा बरामदा, सामने बड़ा आँगन था। फिर एक दीवार थी जो बहार के हिस्से को भीतर के हिस्से से विभाजित करती थी, बाहर पशुओं के रखने की व्यवस्था थी और एक बड़ी बैठक थी,
एक कोने का कमरा रूप का था। बसंत के पिता और ताऊ एक साथ ही रहते थे तो उनके बाद भी ये परंपरा चली आ रही थी, बसंत के ताऊ के बेटों में से सबसे बड़े शोरण सिंह का ही विवाह हुआ था, बाकी दोनों कुवांरे थे। बसंत के तीनों तहेरे भाइयों को बसंत के ब्याह से ढाह हो रहा था, इसपर बसंत का ब्याह भी अत्यन्त रुपवान स्त्री से हो गया था, वो सोचते थे कि बसंत फ़ौजी बन गया है अब गाँव में कम ही आएगा और ब्याह भी नहीं होगा। जिससे इसकी सारी ज़मीन उनकी ही हो जाएगी, लेकिन उन्होंने देखा कि अब तो इसका ब्याह भी हो गया और कल को बच्चे भी होंगे।
बसंत के ताऊ के बाकी दोनों पुत्रों पर ज़मीन भी कम थी, ऊपर से चालचलन भी ठीक नहीं था.. तो कोई भी अपनी बेटी को गड्ढे में धक्का क्यों देगा भला? दोनों छोटें भाइयों जबर सिंह और सुजान सिंह की कुदृष्टी अब रूप पर पड़ गयी थी। प्रारंभ में तो रूप का ध्यान नहीं गया लेकिन अब रूप भी समझ गयी थी, अब वो ये भी जान गयी थी कि ये तीनों भाई बसंत से घृणा करते हैं। एकबार को उसके मन में ख्याल आया कि मायके चली जाए लेकिन फिर उसको याद आया कि उसने बसंत को वचन दिया है इस देहली पर उसका स्वागत करने का, रूप अब सजग रहने लगी थी, वो अपने साथ एक कटार रखती थी छुपा कर।
जबर सिंह और सुजान सिंह भी बसंत से बड़े थे, शोरण सिंह तो अपनी पत्नी के कारण कुछ नियंत्रण में भी था लेकिन सुजान और जबर को कोई रोकने वाला नहीं था. तीनों रात में एक साथ शराब पीते थे, रूप तीनों से घूँघट करती थी। घूँघट करने की एक बड़ी वजह इन तीनों की कु दृष्टी भी थी, जबर सिंह तो रूप से कुछ ज्यादा ही खुलने का प्रयास करने लगा था। मज़ाक के लहजे में कह देता था “रूप मुझे तो अपना देवर ही समझ”
रूप कोई जवाब नहीं देती थी, एक बार जबर सिंह रात में रूप का हाथ पकड़ने का प्रयास किया तो रूप ने हंगामा कर दिया, गाँव समाज के डर से शोरण सिंह और उसकी पत्नी ने मामला घर में दबा लिया।
लेकिन जब तीनों साथ होते थे तो तीनों ही रूप को लेकर अपनी भद्दी कल्पनाओं को एक दूसरे से साझा करते थे।
सैन्य शिविर में बसंत को मेजर साहब ने बुलाया था, बसंत मेजर साहब के पास गया उनके तम्बू में मेजर अकेला ही था।
मेजर कुर्सी पर बैठकर कुछ काम कर रहा था, बसंत ने तम्बू के अन्दर जाते ही सेल्यूट किया.. मेजर ने दृष्टी उठाकर बसंत को देखा और सामने वाली कुर्सी पर बैठने का इशारा किया, बसंत कुर्सी पर बैठ गया और प्रश्नवाचक दृष्टी से मेजर को देखते हुए प्रतीक्षा करने लगा।
मेजर : छुट्टी मंज़ूर हो गयी जवान?
बसंत : जी साहब..
मेजर : तुमने जंग में बहुत ही बड़ी वीरता का प्रदर्शन किया है बसंत, तुम पर बटालियन को और देश को नाज है, एक खुशखबरी देना चाहूँगा तुम्हें..
बसंत प्रसन्नता मिश्रित प्रश्नवाचक दृष्टी से मेजर को देखने लगा.
मेजर : बटालियन ने तुम्हारी वीरता को देखते हुए तुम्हारे लिए मैडल की सिफारिश की है।
बसंत एकदम से खुश हो गया और बोला “साहब हम लड़ाई जीत गए ये सबसे बड़ा मैडल है सभी सिपाहियों के लिए, सारे फौजी भाई खुश हैं।
मेजर ने होठों पर एक विस्तृत मुस्कराहट से उत्तर दिया, मेजर गंभीरता से बोला “बसंत तुम्हारी छुट्टी में अभी एक दिन बाकी है”
बसंत ने सहमती में सर हिलाया “जी साहब”
मेजर : बसंत जासूसों से जानकारी मिली है कि पाकिस्तानी फौज का मेजर गनी जो ग़ायब था वो अपने कुछ साथियों के साथ इस एरिया में ही है, वो किसी बड़ी वारदात को अंजाम देना चाहता है.
बसंत : साहब अब तो सीजफायर हो गया है ना? फिर पाकिस्तानी फ़ौजी ऐसे कैसे घूम रहे हैं।
मेजर : पाकिस्तान जिस सभ्यता को लेकर बढ़ रहा है, एसी संधियाँ तो उन्होंने कभी नहीं मानी, हमेशा धोखा ही तो किया है।
फिर मेजर ने एक क्षण भर की चुप्पी के बाद पुन: बोलना शुरू किया “पाकिस्तानी अफसरों से बात हुई है, वो कह रहें हैं की गनी ने रिपोर्ट नहीं किया है उन्हें.. जासूसों का कहना है कि उसके पास बहुत सा गोला बारूद है वो कुछ बड़ा करना चाहता है.
बसंत ने आँखे फैलाकर पुछा “वो करना क्या चाहता है?”
मेजर : ये तो अभी नहीं पता.
मेजर अपनी कुर्सी से उठा और बसंत के कंधो पर हाथ रखते हुए बोला “मैंने अभी तुम्हारी छुट्टी को मंज़ूर नहीं किया है।”
बसंत को आश्चर्य हुआ और प्रश्नवाचक दृष्टी से उसने मेजर की तरफ देखा...
मेजर : घबराओ मत तुम छुट्टी जा रहे हो, आज रात को तुम्हें पेट्रोलिंग पर जाना है, ओर भी टीम निकलेंगी, लेकिन तुम्हें मैं सिखाली में भेजना चाहता हूँ, वहाँ की तरफ से घुसपैठ की पूरी उम्मीद है.. अगर गनी भारत में घुसा तो वहीँ से घुसेगा, एसी मुझे उम्मीद है.. तुम्हारे अलावा और किसी पर मैं भरोसा नहीं कर सकता। क्या करोगे? ..आज और ड्यूटी?”
बसंत ने मुकुराते हुए कहा “साहब जब तक बटालियन को मेरी जरुरत है... तब तक मैं हाज़िर रहूँगा”
मेजर के चहरे पर संतुष्टि के भाव थे, उसने झटके से सीधे खड़े होकर कहा “ठीक है ये है ऑर्डर, हथियार खाने से हथियार लो और पेट्रोलिंग टीम के साथ अभी निकल लो.. बस ध्यान रखना अगर वो घुस चुका है तो आगे ना निकलने पाए, कोई भी अंदेशा हो तो तुरंत रीन्फोर्स्मेंट काल देना.. अगर वो भीतर घुसा तो पता नहीं क्या करेगा?”
बसंत का गाँव
रूप काम निपटा कर सोने को अपने कमरे में चली गयी, काफी देर तक वो बसंत के फोटो को निहारती रही, ये उसका नित्य कर्म बन गया था, एक घंटा गुज़र जाने के बाद रूप को लघुशंका के लिए बाहर जाना पड़ा। कमरे से निकलकर बरामदा और आँगन पार करके बाहर की दीवार के साथ ही था लघुशंका स्थल, वो बस छोटी दीवारों से घिरा बिना छत का एक छोटा सा हिस्सा था पर्देदारी के लिए. रूप लघुशंका के लिए बैठी ही थी कि बाहरी दीवार कूदकर जबर सिंह उसके पास कूद गया और उसे जकड़ लिया. उसने रूप के मुहँ को हाथ से कसकर दबा लिया ताकि वो शोर ना मचा सके, रूप एक दम से चौंक गयी, जबर सिंह की पकड़ इतनी मजबूत थी कि रूप बस छटपटा कर रह गयी, उसकी सलवार भी खुली हुई थी।
जबर सिंह ने रूप के कान में कहा “रूप बसंत नहीं है मैं समझ सकता हूँ, तू भी तड़पती होगी, देख घर का मामला है घर में ही निपटा ले, हम भी कोई गैर नहीं है...... जैसा बसंत वैसा मैं, रूप किसी को कुछ पता नहीं चलेगा” फिर उसने बेहद वहशीपन से उसके कान पर अपनी जीभ घूमा दी।
रूप की आँखें फटी हुई थी और सुर्ख़ लाल होकर उबल रही थी, वो बस हिलकर खुद को छुड़ाने का प्रयास कर रही थी.
फिर जबर सिंह रूप की गर्दन को चाटने लगा, रूप को घिन्न आ रही थी, रूप कटारी अपने साथ लेकर नहीं आई थी, उसे अपनी बेबसी पर रोना आ रहा था, उसकी आँखों से पानी बह चला था, रूप की छूटने की कोशिश में वो गुसलखाने के फर्श पर पूरी नीचे लेट गयी थी और उसके ऊपर जबर सिंह सवार था.. जबर सिंह ने अपने हाथ की पकड़ उसके मुहँ से बिलकुल भी ढीली नहीं की थी. इतने में ही सुजान सिंह भी दिवार फांदकर आ गया.. जबर सिंह ने हँसकर सुजान सिंह से धीरे से कहा “बहुत फड़क रही है यार, पता नहीं इतना नखरा क्यों है भाभी में”
सुजान सिंह ने भद्दी मुस्कराहट के साथ कहा “एक बार हो जायेगा फिर कुछ दिक्कत नहीं होगी, अभी घबरा रही है”
ये दोनों ही दारु के नशे में धुत्त थे।
दोनों पर वासना का भूत सवार था, सुजान सिंह रूप के सलवार को उतारने लगा तो रूप ने एक ज़ोरदार लात सुजान सिंह के मुहँ पर मारी, सुजान सिंह के होंठ से खून निकले लगा.. जबर सिंह ने उसके धड़ को जकड़ा हुआ था, सुजान सिंह ने गुस्से में रूप की पीठ में दो तीन ज़ोरदार घुसे के प्रहार किये फिर खड़े होकर रूप की जांघों पर लात से प्रहार किये, रूप दर्द से कराह उठी. प्रहार इतनी क्रूरता से किये थे कि रूप को बेहोशी छाने लगी थी..
जबर सिंह ने सुजान से कहा “सुजान इसका मुहँ बाँध दे कसकर, मेरा एक हाथ इसमें ही घिरा है, सुजान ने जबर के हाथ को थोड़ा सा हटाया और पहले उसके मुहँ में एक छोटा कपडा ठूंस दिया फिर उसके मुहँ को उसकी ओढनी से बाँध दिया, अब सुजान सिंह ने रूप के दोनों हाथ पकड़ लिए और उसे सीधा करके उसकी छाती पर बैठ गया, रूप अब बिलकुल बेसुध हो गयी थी।
जबर सिंह ने उसकी सलवार को उतार दी और उसकी जांघों को चाटने लगा, सुजान सिंह ने अपने एक हाथ को रूप की जांघों के बीच में घुसाने की कोशिश की, सुजान की इस कोशिश में रूप का एक हाथ आज़ाद हो गया था.. रूप की चेतना लौटी और उसने गुसलखाने में कोने में पड़ा एक पत्थर उठा कर सुजान सिंह के सर पर प्रहार किया, सुजान सिंह के सर से लेकर उसकी पीठ तक वो खून से भीग गया, फिर एक ज़ोरदार लात का प्रहार उसके जबर सिंह के मुहँ पर किया, जबर सिंह का सर दीवार में लगा और उसके सर से भी खून बहने लगा, उसकी नाक पर प्रहार हुआ था तो उसकी नाक से भी खून की धार बह रही थी, रूप भागकर गुसलखाने से बाहर आई और अपने मुँह से कपड़ा नीचे खींच कर अलग किया और मुंह का कपड़ा भी बाहर निकाल दिया।
रूप सिंहिनी की भाँती चिल्लाई “क्या बे भेडीयों... मुझे हिरनी समझा है क्या? जो नोंच खाओगे, शेरनी हूँ शेरनी”
रूप ने बाहर पड़ी थपकी उठाकर अपनी तरफ बढ़ रहे जबर सिंह के सर पर एक और प्रहार किया, वो निचे गिर गया..
रूप ने इतनी तेज गर्जना की थी कि शोरण सिंह और उसकी पत्नी भी आवाज़ सुनकर बाहर आ गए.
शोरण सिंह की पत्नी रूप को देखा वो बिना सलवार के खड़ी थी, वो गुस्से में बोली “रूप क्या बावली हो गयी है? बिना ओढनी बिना सलवार चिल्ला रही है”
रूप ने हाथ का इशारा जबर सिंह और सुजन सिंह की तरफ करके कहा “दीदी इनसे पूछो, जिनके सामने मैं गर्दन तक घूँघट करके आती थी, इन्हें मेरी सलवार उतरी हुई अच्छी लगती है”
शोरण सिंह और उसकी पत्नी ने खून में लथपथ जबर सिंह और सुजान सिंह को देखा, वो दोनों पूरा मामला समझ गए थे.
रूप फिर चिल्लाई “दीदी ये मेरे जेठ हैं, जेठ का नाता पिता से भी बड़ा है, इनके ऊपर छोड़कर गया था मेरा बसंत मुझे और ये यहाँ मेरी सलवार उतार कर मुझमें अपना हिस्सा बाँट रहे थे”
शोरण सिंह ने नीचे पड़ी ओढनी रूप की तरफ बढ़ाते हुए कहा “बेटी चुप हो जा भीतर चलकर कपड़े पहन ले”
रूप गुस्से में पागल हो चुकी थी, जिसकी मर्यादा हमेशा उसकी ओढ़नी के रूप में उसे ढके रही थी आज उस ओढ़नी को उसके जेठों ने ही उतार फेंका था..
रूप ने शोरण सिंह को धक्का दिया और बोली “ ना जेठ जी ना, क्या क्या ढकोगे इस ओढनी से? ये देखो आपके भाइयों ने तो मेरी सलवार भी उतार रखी है” मेरी जांघों को चाट रहे थे ये दोनों, इन दोनों को मेरी मांग में भरा इनके भाई का सिंदूर ना दिखा, इन्हें तो मेरी जांघों के बीच में देखना था.. पूरा गाँव देखेगा रूप को अब ऐसे ही, पूछूंगी एक एक पंच से, उस समाज से जो मुझे ब्याहने बाराती बनकर गए थे....पूछूंगी कि क्या ये ही आशीर्वाद दिया था उन्होंने मुझे? ”
शोरण सिंह की पत्नी एक नारी ही थी.. उसकी आँखें भी गुस्से से लाल हो गयीं, उसे याद आ गयी अतीत की कुछ घटनाएं कि कैसे इन दोनों ने उसको भी यूँ ही अपनी वासना का शिकार समझा था, उसकी आँखों में क्रोध था.
उसने आगे बढ़कर रूप को अपने गले से लगा लिया, एक अपनापन था इस आलिंगन में जिसने रूप को शांत कर दिया, वो रूप को अपने कमरे में ले गयी..
कुछ देर बाद वो बाहर आई और शोरण सिंह से बोली कल रूप को उसके मायके छोड़ आओ।
सिखाली गाँव
धोला बाबा को इन पाँचो की गतिविधि संदिग्ध लगी, उन्होंने ध्यान दिया की उन्होंने ना ही मंदिर के भीतर जाने की जहमत उठायी और ना ही पानी पिया. लेकिन इससे भी ज्यादा जो बात संदेहास्पद थी वो ये कि वो भारत के भीतर की तरफ को लक्ष्य करके मोर्चेबंदी किये हुए थे, धोला बाबा को बहुत ही चिंता हो रही थी, धोला बाब ने पूजा समाप्त करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना की “हे प्रभु सब मंगल करो”
धोला बाबा को पता था की दिन में और रात को भी भारत की फौज का गस्ती दल यहाँ आता था. लेकिन इनकी वर्दी उनसे अलग थी, उन्होंने देखा था की इन पाँचो ने अपनी कमर से बड़े बड़े पिट्ठ बांधे हुए हैं और अब ये मोर्चे बंदी भी भारत के सैन्य शिविरों की तरफ करे बैठे थे. धोला बाबा परेशान थे कि आखिर कैसे पुलिस को या भारतीय सेना को सूचित करें। यदि वो यहाँ से जातें हैं तो ये सैनिक उन्हें मारकर आगे भाग जायेंगे और पता नहीं क्या अनिष्ट कर दें, एक बार सेना या पुलिस को सूचना हो जाए तो फिर वो पता कर लेंगे कि ये भारतीय सेना के जवान हैं या कोई शत्रु...
धोला बाबा परेशान थे, वो गर्भ गृह में गए और शिवलिंग को नमन किया, भगवान शिव से सब कुशल करने की प्रार्थना की, फिर उनके मस्तिष्क में कुछ विचार आये।
पास से ही धारला नदी बहती थी जो आगे जाकर जलढाका और फिर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती थी, बरसात में ये नदी विकराल रूप धर लेती थी, जब भी संभावना होती थी बाढ़ की तो एक सूचना स्थानीय प्रशासन को दी जाती थी, तो स्थानीय स्तर पर सूचना प्रसारित करने के लिए कुछ ऊँची जगहों पर एक ख़ास चिन्ह का झंडा लगा दिया जाता था, जिसे देखकर लोगो को अनुमान हो जाता था कि बाढ़ आने की सम्भावना है।
धोला बाबा के भीतर एक नयी स्फूर्ति दौड़ गयी, क्योंकि उनके पास इस तरह का एक झंडा था, हालाँकि ये क्षेत्र बाढ़ प्रभावित नहीं था, परन्तु उनके पास एक झंडा था.. धोला बाबा ने उस झंडे को निकाला और लेकर मंदिर की छत पर पहुँच गए, वो छत पर पहुंचे ही थे कि एक सिपाही भी उनके पीछे छत पर आ गया, धोला बाबा समझ गए कि ये उनपर सजग दृष्टी बनाये हुए हैं.
सिपाही : क्या हुआ क्या कर रहे हो?
धोलाबाबा : कुछ नहीं बेटा ये पताका लगानी है
सिपाही : अब रात में....
सिपाही एकदम सपाट और भावविहीन अंदाज़ में बात कर रहा था
धोलाबाबा : बेटा आज सोमवार है और आज के दिन रात्रि अनुष्ठान होता था, अब गाँव में कोई नहीं है, नहीं तो बड़ी पूजा होती थी, बड़ी पूजा ना सही ये ध्वज तो लगा ही दूँ.
फिर धोलाबाबा ने प्राचीर की तरफ देखा और पलट कर सिपाही से अनुगृह किया “बेटा मुझसे तो ऊपर चढ़ा नहीं जायेगा तुम कर दो इतना काम तो भला हो”
सिपाही सोचने लगा फिर बोला “लाओ दो”
छत से शिखर तक पहुचने के लिए लोहे के सरियों को प्राचीर में चिनवाकर एक सीढ़ियों जैसी रचना बनाइ हुई थी, सिपाही ज्यों ही उस ऊपर पर चढ़ने वाला था.. धोला बाबा ने उसे रोक दिया और पुन: आग्रह किया “बेटा मंदिर के शिखर पर जाओगे तो जूते उतार दो”
सिपाही के चहरे के भाव बता रहे थे कि उसे ये बात कुछ ज्यादा पसंद नहीं आई लेकिन फिर भी उसने जूते उतार दिए
सिपाही ने शिखर पर लगे भगवा ध्वज को उतार कर उस झंडे को लगा दिया, सिपाही को ज्यादा संदेह नहीं हुआ क्योंकि संकेत झंडा होने के कारण इनका रंग केसरिया था, और उस पर गहरे नीले संकेत चिन्ह बना था।
सिपाही नीचे चला गया
धोला बाबा विचार करने लगे “सुयोग से आज चांदनी रात थी लेकिन फिर भी यदि रात घिरने से पहले पेट्रोल टीम आ जाये तो अच्छा होगा”
फिर धोला बाबा ने मन ही मन बुदबुदाया “बाबा कृपा करना”
बसंत ने हथियार लिए और पेट्रोलिंग पर चल दिया था, उसके साथ एक वायरलेस ओपरेटर और दो सिपाही और थे, साथ में एक स्थानीय बंगाली भाषा का जानकार भी था, उसे स्थानीय क्षेत्र की भी अच्छी जानकारी थी.
वो सभी सिखाली गाँव पहुँच गए थे, सूरज अस्ताचलगामी हो चला था,एक सिपाही ने बसंत से कहा “मंदिर में चलते हैं साहब, पुजारी से भी कुछ जानकारी मिल जाएगी”
बसंत ने मंदिर को देखते हुए कहा “हाँ चलते हैं फिर गाँव में गस्त करके आगे निकलेंगे”
लेकिन तुरंत ही स्थानीय बंगाली के पैर ठिठक गए और वो झटके से बोला “साहब ये झंडा?”
सभी ने प्रश्नवाचक दृष्टी से बंगाली को देखा
बसंत ने कहा “ये झंडा तो बाढ़ के खतरे का संकेत है, हमें जानकारी दी गयी थी इन झंडों की”
बंगाली ने तुरंत सहमती में गर्दन हिलाई
और सिपाहियों ने भी देखा तुरंत सबने एक आड़ ले ली
बसंत साथी सिपाहियों से बोला “यहाँ तो बाढ़ की कोई संभावना नही फिर यहाँ ये झंडा क्यों?
राजवीर (साथी सिपाही) “साहब क्या कह सकते हैं भूल में लग गया या फिर कुछ बताने के लिए?”
बंगाली ने कहा “साहब यहाँ जल नहीं आता, यहाँ ये संकेत क्यों फहराएंगे”
बसंत “गाँव तो खाली है, बस पुजारी रहता है एक यहाँ”
बंगाली ने सहमती में गर्दन हिलाई
बसंत ने वायरलेस ओपरेटर को कहा “रिन्फोर्स्मेंट काल भेज”
एक साथी सिपाही बोला “भूल भी हो सकती है साहब, पहले मुआयना कर लेते हैं”
बसंत ने वायरलेस ओपरेटर और बंगाली को कहा “तुम दोनों यहाँ छिपकर रहो, हम आगे जाकर देखते हैं, कोई भी गड़बड़ दिखे तो मेरे संकेत के बिना भी रिन्फोर्स्मेंट काल भेज देना”
फिर बसंत ने एक साथी सिपाही से एक टूटी दीवार की तरफ इशारा करके कहा “मनवीर तू वहां पोजीसन ले, कोई भी दिक्कत लगे तो हमें कवर देने को तैयार रहियो, और अगर कोई भागे तो उसे रोकियो”
मनवीर ने कहा “जी साहब”
बसंत ने मनवीर के कंधे पर हाथ रखकर दबाया और कहा “हो जायेगा ना”
मनवीर ने कहा “जी साहब”
बसंत ने कहा “चल मोर्चा ले”
मनवीर ने घिसटकर आगे चलते हुए पोजीसन ली, इसके बाद बसंत अपने साथ राजवीर को लेकर आगे बढ़ने लगा, कुछ आगे जाकर दूरबीन से मुवायना किया लेकिन कुछ दिखा नही.
बसंत ने आगे चलकर एक टूटे झोपड़े के पीछे छिपकर बैठ गया, वहाँ एक गड्ढा भी बना हुआ था, बसंत ने राजवीर से कहा “दिखाई तो कुछ नहीं दे रहा.....मैं मंदिर में जाकर देखता हूँ. वो पुजारी है क्या? राजवीर तू यहीं मोर्चा बाँध और निगाह बनाये रख”
राजवीर ने पोजीसन ले ली
बसंत बहुत ही धीरे धीरे छुप कर आगे बढ़ रहा था, लेकिन मंदिर के आसपास खुला मैदान जैसा था जिसमें छुपे रहना असंभव ही था, एक
धमाके की आवाज़ आई फिर कुछ और गोलियां बसंत को निशाना बनाते हुए चली, इधर राजवीर ने भी एक दुश्मन की स्थिति देखते हुए उस तरफ निशाना साधकर गोलियां चलानी शुरू कर दी, मनवीर को पता चल गया था कि मुठभेड़ शुरू हो गयी है, लेकिन उसे बसंत ने किसी भागते हुए को भागने से रोकने की हिदायत दी थी बस.. तो वो चुपचाप छुपे हुए था.
वायरलेस ओपरेटर ने तुरंत सन्देश भेजने की कोशिश शुरू कर दी लेकिन तब रेडियो सिग्नल भेजकर सन्देश प्रसारित किये जाते थे जो कभी कभी संभव भी नहीं हो पाते थे, वो बराबर प्रयास कर रहा था..
इधर गोलियां बराबर चल रहीं थी, तभी मनवीर ने देखा की दो लोग भागने की फिराक में हैं, उसने उनकी तरफ निशाना साधकर गोलियां चलायीं, उनमें से एक को गोली लगी और वो वापस भाग लिए और छुप गए..
बसंत गोलियां चलाते हुए मंदिर में घुस गया था, उसने दुश्मन के एक मोर्चे को शांत कर दिया था.
लेकिन तभी बसंत ने देखा की एक बड़ा धमाका मनवीर के मोर्चे पर हुआ, बसंत इस धमाके से हिल गया उसके मुहँ से निकला “ये तो मोर्टार सेलिंग कर रहें हैं”
बसंत समझ गया था मनवीर तो नहीं बचा होगा, उसने देखा मंदिर में से एक बुजुर्ग ने उसकी तरफ इशारा किया है, वो भागकर भीतर घुस गया, धोला बाबा ने उसे बाताया कि पाँच लोग हैं..अब बसंत को ये तो पता चल गया था कि पाँच लोग हैं, लेकिन बाहर से गोलियों की आवाज़ एकदम से रुक गयी थी।
बसंत ने बाहर देखा तो राजवीर का मोर्चा भी तबाह हो गया था, अब बसंत अकेला रह गया था... उसे एक दुश्मन का तो अंदाज़ा था जिसे उसने मारा था. लेकिन बाकी कोई अंदाज़ा नहीं था, धोला बाबा ने उसे थोड़ी बहुत जानकार दी थी दुश्मनों के मोर्चे बंदी की, बसंत मंदिर की छत पर आ गया.. गोलियां चलनी बंद हो गयीं थी, बसंत को ये भी डर था कि ये भाग भी सकते हैं क्योंकि आगे मोर्चा संभाले बैठा मनवीर भी बलिदान हो चुका था, तभी बसंत ने देखा की जहाँ वायरलेस ओपरेटर था वहाँ गोलियां चलने लगी हैं. बसंत ने देखा वायरलेस ओपरेटर भागने की कोशिश कर रहे दो दुश्मनों से जूझ रहा है, बसंत ने देखा कि उन दो लोगो के अलावा एक अलग मोर्चे से भी दुश्मन फायरिंग कर रहा है. बसंत तुरंत उस मोर्चे को निशाना बनाया और गोलियां चलानी शुरू कर दी. बसंत उस मोर्चे पर भी गोलियां चला रहा था और जगह बदलकर उन भागने की कोशिश कर रहे दो लोगो पर भी गोलियां चला रहा था, वो बस दुश्मन को ये एहसास कराना चाहता था कि मंदिर पर एक से ज्यादा लोग उनके खिलाफ हैं. भागने की कोशिश कर रहे दो लोगो की तरफ से गोलियां चलनी बंद हो गयीं थी.. लेकिन तभी एक और बड़ा धमाका मंदिर की छत पर हुआ, मंदिर के प्राचीर में बड़ा छेद हो गया, बसंत जगह बदल बदल कर गोलियां चला रहा था तो वो बच गया, बसंत ने देखा ये एक अलग ही मोर्चे से हमला हुआ है, बसंत ने उस मोर्चे को निशाना बनाकर गोलियां चलायीं.. कुछ देर बाद दुश्मन का वो मोर्चा भी शांत हो गया।
भाग रहे दो लोगो में से एक की लाश तो बसंत को दिख रही थी लेकिन एक का पता नहीं था, बसंत ने ओपरेटर को संकेत देने को एक फायरिंग की उसने भी जवाबी फायरिंग की.. बसंत कुछ बेफिक्र हुआ कि वो जिन्दा है, बसंत का ध्यान नीचे गया, धोला बाबा मलबे में दबे हुए हैं।
बसंत के घर में शोरण सिंह, सुजान सिंह और जबर सिंह को बाहर वाले कमरे में ले गया, शराब से उनके घावों को साफ़ करके हल्दी लगा कपड़ा उनसे लपेट दिया.
तीनो खाट पर बैठ गए, एक खाट पर सुजान और जबर बैठे थे तो सामने वाली खाट पर शोरण सिंह बैठ गया. शोरण सिंह ने कहा “दो दिन बाद बसंत आ रहा है”
इतना सुनते ही बाकी दोनों के चेहेरे फीके पड़ गए, जबर सिंह बोला “तुम्हे कैसे पता?”
शोरण सिंह: थाने में ट्रंककाल आया था, बहुत बहादुरी से लड़ा है वो...कोई बड़ा मेडल भी मिलेगा, थानेदार खुद आया था बताने.. बोल रहा था कि जब आ जाएँ तो खबर कर देना....कलेक्टर साहब भी मिलेंगे उनसे, सम्मान करेंगे उनका
जबर सिंह और सुजान सिंह की आँखें फटी हुई थी और उनके हाथ काँप रहे थे
शोरण सिंह : अब तो उसे सात खून माफ़ होंगे
जबर सिंह एकदम से रो पड़ा और शोरण सिंह के पैरो में पड़ गया “भैया बचा लो कुछ भी करके, शराब ज्यादा ही पी ली थी, ग़लती हो गयी”
शोरण सिंह के दिमाग में कुछ और ही चला रहा था, उसने कपड़े की छोटी सी पोटली ली और उसमें से चोलाई के दाने बराबर अफ़ीम निकल कर जबान पर रख ली, बाकी दोनों भाइयों ने भी ये ही किया.
शोरण सिंह अपने में ही खोया हुआ बोला “रूप बसंत को बताएगी ज़रुर और फिर बसंत तुम्हें छोड़ेगा नहीं”
फिर शोरण सिंह ने एक लम्बी साँस ली, दोनों भाइयो ने उसके घुटनों पर हाथ रख लिया
शोरण सिंह अपने दोनों हाथ दोनों के एक एक कंधे पर रखे और बोला “ज़मीन भी ना देगा”
सुजान सिंह बोल पड़ा “ज़मीन तो वो वैसे भी नहीं देता....अपनी औलाद पैदा कर लेगा रूप से”
सुजान सिंह ने अपने हाथ उनके कंधो से हटा लिए और बोला “बस एक ही रास्ता है ज़मीन भी मिल जायेगी और ये मुसीबत भी टल जायेगी”
फिर कुछ देर मौन रहने के बाद बोला “पर यहाँ तो तुम्हारी भाभी कुछ करने ना देगी और कहीं कर देंगे तो फिर कुछ बोलेगी भी नहीं”
जबर सिंह ने झल्लाते हुए कहा “करना क्या है भाई?”
शोरण सिंह ने आंखे उठाकर दोनों को देखा और एक हलकी सी मुस्कराहट के साथ बोला “तुम दोनों का ध्यान तो बस उसकी छाती और जांघों में रहा पर मेरी निगाह उस ज़मीन पर है जो बसंत के पास है”
जबर सिंह झेंप गया, सुजान सिंह बोला “तो कहाँ करना है और कब”
शोरण सिंह ने सुजान की तरफ देखा और बोला “तू समझ गया”
एक क्षणिक मौन के बाद शोरण सिंह ने कहा “कल रूप को उसके मायके छोड़ने जाऊँगा मैं, बंजारों की बावड़ी पर इसका काम तमाम कर देंगे”
सुजान सिंह एकदम से बोला “उस बियाबान में तो छलावों का डेरा है”
शोरण सिंह :इसलिए ही तो वहाँ करने को कह रहा हूँ, वहाँ कोई देखने भी नहीं जायेगा और लाश बावड़ी में फेंक देंगे..
जबर सिंह और सुजान सिंह को योजना समझ आ गयी, उन्हें बस अपनी जान बचानी थी लेकिन शोरण सिंह की दृष्टी जमीन पर थी
जबर सिंह ने कहा “बसंत को क्या बताएँगे?”
शोरण सिंह : बोल देंगे भाग गयी कहीं, वो इसे तलाशने में पागल हो जायेगा, जान भी बच जाएगी और ज़मीन भी मिल जाएगी
सुजान सिंह का चेहरा खिल गया और बोला “वो तो वैसे भी दीवाना है”
जबर सिंह बोल पड़ा “औरत ही एसी है...कोई भी दीवाना हो जाये”
शोरण सिंह ने सुर्ख आँखों से जबर सिंह को देखा तो वो झेंप गया, शोरण सिंह कमरे से बाहर आया और अपनी आँखें बंद की तो उसके जेहन में बिना सलवार के खड़ी रूप की तस्वीर उतर गयी, वो अपने मन में ही बुदबुदाया “औरत तो वाकई में कयामत है”
फिर शोरण सिंह ने रूप से जाकर कहा “रूप तुझे कल तेरे मायके छोड़ आऊंगा, जब बसंत आ जायेगा तब तू आ जाना”
रूप कुछ बोलने को हुई लेकिन उससे पहले ही शोरण सिंह ने कहा “इन दोनों को इनके किये की सजा मिलेगी, लेकिन अभी तुझे तेरे मायके भेजना जरुरी है, वो दोनों दारु के नशे में धुत्त पड़े हैं पता नहीं कल उन्हें याद भी रहे या नहीं उनकी हरकत”
फिर कुछ सोचते हुए बोला “ये दोनो शैतान हैं बहु, एक बार बसंत आ जाये तो फिर इनको भी देख लूँगा, इस गाँव के पास भी ना रहने दूँगा इन्हें”
रूप का गुस्सा अब कुछ शांत हुआ था, तो अब उसे उस घटना की याद करके एक सिहरन सी महसूस हुई थी, अब उसे भी ये सुझाव सही लगा और वो सहमत हो गयी।
धोला बाबा गर्भ गृह में ही बैठे थे की तेज धमाका हुआ, धोला बाबा ने शिव लिंग का आलिंगन कर लिया और शिव लिंग को मलबे से बचाने का प्रयास किया, सारा मलबा धोला बाबा के ऊपर ही गिर गया, धोला बाबा को गंभीर चोट आ गयी थी, लेकिन तुरंत धोला बाबा के अवचेतन मन में कुछ विलक्षण विचार प्रवाह उत्त्पन्न हुआ..
धोला बाबा को लगा वो एक विवाह समारोह में हैं, उन्होंने देखा दूल्हा वो ही सिपाही है जो मंदिर की छत पर दुश्मनों से लड़ रहा है, उन्हें रूप दिखी बड़े से घूँघट में.. फिर एकदम से वो बसंत के घर में पहुँच गए, उन्होंने देखा बसंत के भाइयों को बसंत को और रूप को भी, फिर वो समय में थोड़ा और आगे गए और देखा कि कैसे रूप ने बसंत को रणभूमि के लिए विदा किया. उन्होंने सुने रूप के वचन “देख बसन्ते पीठ मत दिखाना दुश्मन को, तेरी रूप तेरे सर कटे धड़ पर अपना सारा प्यार लुटा देगी.... लेकिन अगर तूने दुश्मन को पीठ दिखाकर मेरे प्यार को बदनाम किया तो तू कभी रूप को नहीं देख पायेगा”
धोला बाबा को लगा जैसे उनके जीवन का समस्त तप आज सार्थक हो गया इस वीरांगना के दर्शन करके, बाबा के मुख से निकला “आज तो मैंने समस्त ईश्वरीय लीलाओं के दर्शन जैसे कुछ क्षणों की घटना में ही कर लिए, हे बाबा भोलेनाथ क्या इससे ज्यादा सुन्दर कुछ हो सकता है? मेरे भोले क्या इस देवी के प्यार से ज्यादा पवित्र कुछ हो सकता है?”
एकदम से धोला बाबा अन्धकार में खोने लगे और फिर उन्होंने देखा बसंत के तीनों भाइयों की कुटिल भावनाओं को और उस रात उनके द्वारा रूप के शील हरण के कुत्सित प्रयास को भी, अब धोला बाबा एक अग्नि ज्वार में थे, चारों तरफ अग्नि की प्रचंड जवालायें दाहक रहीं थीं, फिर उन्होंने देखा रूप के प्रतिकार को.
अब पुन: अन्धकार था, इतना काला अन्धकार जितना काले रंग की कल्पना भी कभो धोला बाबा ने ना की हो, चारों तरफ चीत्कार थी भयावह चीत्कार जो उस काले अन्धकार को चिर कर बाबा की आत्मा तक को भेद दें रही थीं.. फिर धोला बाबा ने देखा उन तीनों भाइयों को वो कुटिल योजना बनाते हुए.
पुन: अन्धकार छा गया, चारों तरफ प्रेत और पिशाच दिख रहे थे, खून के प्यासे भयानक जीव मनुष्य के जीवित शरीरों को नोच रहे थे, ये दृश्य धूमिल हुआ तो धोला बाबा भविष्य में पहुँच गए थे. उन्होंने देखा कि कैसे वो तीनों पिशाच भाई मिलकर रूप को नोचने का प्रयास कर रहें हैं, उन्होंने रूप को नोच डाला, अपनी वासना से उसके शरीर को अपवित्र किया. फिर तीनों ने मिलकर उसके शरीर के टुकड़े किये और उन्हें बावड़ी में फेंक दिया.
धोला बाबा रो रहे हैं बिलख रहे हैं पर वो बस देख पा रहें हैं, कुछ कर नहीं पा रहे.. एक बार पुन: अंधेरा छा जाता है और उन्हें रूप के विरह में पागल हो चुका बसंत दिखता है, वो देखते हैं कि कैसे एक वीर योद्धा को लोग प्रताड़ित कर रहें हैं. बच्चे उसको हास्य का पात्र बना रहें हैं, लोग कह रहें हैं कि किस कुलटा के लिए पागल हो रहा है? वो तो भाग गई अपने यार के साथ, बसंत जोर से चिल्लाता है “रूप...कहाँ है?”
लोग कहते हैं “ये तो पागल हो गया वो भी कैसी औरत के लिए?”
बसंत फिर चिल्लाता है “भागो यहाँ से, मेरी रूप ऐसी नहीं है” बसंत लोगो के ऊपर कंकर फेंकता है, मिट्टी उछालता है
लोग बसंत को पत्थरों से और डंडो से मार रहें हैं
धोला बाबा तन्द्रा अवस्था में ही विचलित हो उठते हैं, एक योद्धा की दुर्गति देखकर, एक पतिव्रता स्त्री का अपमान देखकर..
बसंत ने मंदिर की छत से देखा कि दूर से रौशनी दिख रही है, वो एकदम से खुश हो गया और बोला “रिन्फोर्स्मेंट आ गया”
फिर उसने संकेत देने के लिए एक रौशनी का फायर किया, वैसे अब किसी भी तरफ से दुश्मन की फायर नहीं हो रही थी, उसे पता था दो को तो उसने ही मारा है, या तो सब मर चुके हैं या जो बचे वो भाग निकले.. लेकिन अब वो पकड़े जायेंगे, बसंत भागकर नीचे आया उसने धोला बाबा के ऊपर से मलबा हटाया और धोला बाबा के चेहेरे को साफ़ किया, फिर अपनी पानी की बोतल से पानी उनके होठों से लगाया.
धोला बाबा को होश आया, उन्होंने शिवलिंग की तरफ देखते हुए कहा “बाबा”
बसंत ने दिलासा देते हुए कहा “आप बाबा के पास ही हैं, फ़ोर्स आ गयी है, अब कोई चिंता की बात नहीं”
लेकिन धोला बाबा ने शायद ध्यान ही नहीं दिया, वो एकदम अधीरता से बोल पड़े “बाबा ये क्या लीला है? मुझे ये क्या दिखाया? क्या ये घटित होने वाला है या घट चुका है?.....बाबा मेरा मार्गदर्शन करो बाबा”
बसंत ने धोलाबाबा के सर को सहलाया और बोला “बाबा क्या हुआ सब ठीक है बाबा भारत की फौज आ गयी है.....अब घबराने की जरुरत नहीं”
तभी बसंत ने ध्यान दिया कि बाबा को काफी गहरी चोट लगी है, बसंत ने तुरंत अपने बैग से कपड़ा निकाल कर धोला बाबा के ज़ख्मों पर बाँध दिया और अपनी चादर धोलाबाबा के शरीर से लपेट दी, बसंत ने धोलाबाबा को दर्द निवारक देने लगा तो धोला बाबा ने उसका हाथ रोक दिया और बोले “तेरी पत्नी रूप के पास कौन है? तू अपने घर कब तक पहुँचेगा?”
बसंत धोलाबाबा के ज़ख्म देखकर घबरा गया था, उसने ध्यान ही नहीं दिया कि कैसे धोला बाबा को उसकी पत्नी का नाम पता है.. वो भी अपनी ही रो में बोल पड़ा “घर सब ठीक है बाबा, लेकिन पहले मेरी जरुरत यहाँ है, आप ये दवाई लो, आराम मिलेगा”
लेकिन धोला बाबा को तो जैसे कोई धुन सवार थी.. वो पुन: उस प्रश्न को ही दोहराने लगे “तू घर कब पहुँचेगा बस ये बता?”
बसंत को जवाब देना ही पड़ा “सुबह का लदान था लेकिन नहीं पता अब एक दो दिन और ना खिंच जाए”
धोला बाबा ने पुन: वो ही प्रश्न किया “घर कब पहुँचेगा?”
बसंत : दो दिन लगेंगे घर तक पहुँचने में अगर सब ठीक रहा तो
धोला बाबा एकदम से और ज्यादा अधीर हो उठे उनकी आँखों में पानी बह चला वो जैसे अपने आप से ही बोलते हुए कहने लगे “तब तक तो देर हो जाएगी, बाबा भूतेश्वर कृपा करो” फिर उन्होंने बसंत के सर पर हाथ फिराते हुए कहा “ये यहाँ हैं वहाँ आप रक्षा करो.. मुझे अभी मुक्ति नहीं शक्ति चाहिए” फिर धोला बाबा ने बसंत की आँखों में आँखें डालकर कहा तू बंजारों के बाग़ में जरुर जाना”
इतना कहते ही धोला बाबा का शरीर शिथिल पड़ गया।
शोरण सिंह ने सुबह जल्दी ही बैलगाड़ी हाँक दी, बस वो और रूप ही थे गाड़ी में, सुबह धुंध भरी थी.. काफी समय चलने के बाद वो दोनों एक बियाबान के पास पहुंचे, शोरण सिंह ने गाड़ी रोक दी और नीचे उतर गया.
रूप घूँघट करती थी अपने जेठों से, उस रात गुस्से में जो भी हुआ था वो बस तब ही हुआ था अन्यथा रूप अपने जेठों से बोलती भी नहीं थी, इसलिए उसने नहीं पूछा कि गाड़ी क्यों रोक दी? शोरण सिंह उस बियाबान को देखते हुए भीतर को चलने लगा, रूप शोरण सिंह को देख रही थी..
ये एक बियाबान जंगल था, जिसमें ऊँचे ऊँचे पेड़ और निचे घनी झाड़ियाँ थी, इस इलाके में चारों तरफ बियाबान ही था.. इस बियाबान के मध्य में एक पुराना और बड़ा कुआँ था. लोगो में किंवदंतीयां थी कि कुछ बंजारों ने छलावों को खुश करने को एक रात में ये बावड़ी बनायीं थी, लोग मानते थे कि इस बाग़ में छलावो का वास है.. इसके आसपास भी कोई नहीं आता था, ये तीनों भाई इसलिए रूप को यहाँ लेकर आये थे कि यदि रूप को ये यहाँ मारकर फेंक जायेंगे तो यहाँ कोई नहीं देख पायेगा, डर उन्हें भी लगा था यहाँ आने में लेकिन वासना और लालच ने उनके डर को दबा दिया था.
तभी रूप को पीछे से अपने ऊपर एक बहुत ही मजबूत जकड़ महसूस दी, जबर सिंह और सुजान सिंह ने रूप को कसकर जकड़ लिया था, रूप ने छूटने की कोशिश भी की लेकिन कुछ नहीं कर पायी.. वो दोनों उसे उठाकर उस बियाबान के भीतर लेकर गए, शोरण सिंह खड़ा हुआ था.. रूप देखकर आश्चर्य चकित रह गयी कि ये भी इन दोनों जैसा ही निकला, जबर सिंह और सुजान सिंह ने रूप के मुहँ, हाथ पैर को कस कर बाँध दिया.
सुजान सिंह ने कहा “अब बोल क्या करेगी तू? और अब देख मैं क्या करता हूँ तेरे साथ?”
सुजान सिंह ने अपना हाथ रूप की छाती पर पहुचने की कोशिश तो शोरण सिंह ने एक कड़क लताड़ उसे लगाई और बोला “दोनों पीछे हट जाओ”
वो दोनों पीछे हट गए.
शोरण सिंह ने रूप को देखते हुए कहा “जो बसंत हमारा बचा हुआ खाकर बड़ा हुआ उसे तेरे जैसी सुंदर लुगाई मिल गयी और मेरे दोनों भाई कुंवारे रह गए, ग़लती इन दोनों की ना है गलत ये हुआ कि तू कुछ ज्यादा ही सुन्दर है और ये दोनों बिचारे भूखे, तुझे बिचा लेनी चाहिए थी.. बात घर की घर में ही रह जाती, बसंत जब आ जाया करता तो तू उसकी देखभाल कर लेती बाकी टाइम ये दोनों तेरी देखभाल कर लिया करते, पर तू मानी ना अब हमारी मज़बूरी है, बसंत के आने पर तू उसे सारी बात बता देती और वो मेरे भाइयों को मार डालता”
शोरण सिंह झुकते हुए नीचे पड़ी रूप की आँखों में देखते कहा “मेरी मज़बूरी है बहु, तेरी नासमझी तुझे मरवा रही है”
जबर सिंह ने शोअरण सिंह से कहा “भाई मारनी तो है ही एक बार अरमान पूरे हो जाते तो”
शोरण सिंह :इसके रूप जाल से निकलो और मार दो तुरंत इसे, नही तो इसकी खूबसूरती हम सबको मरवा देगी
जबर सिंह और सुजान सिंह को निराशा हुई
शोरण सिंह ने कहा चलो “गला दबा दो इसका”
जबर सिंह ने रूप का गला दबा दिया, जबर सिंह गले पर अपनी पकड़ को मज़बूती से भींच रहा था और रूप के प्राणों की लड़ी टूटती जा रही थी.. रूप को एक दम से याद आया जब उसने बसंत को गले लगाकर कहा था कि “तेरी रूप इस देहेल पर ही तेरा इंतज़ार करेगी” रूप बेहोश हो चुकी थी.
तभी एक भयानक हलचल और खड़खड़ाहट उस बियाबान में हुई, एक ज़ोरदार गुर्राहट उन्हें सुनाई दी. उन तीनों के चेहरे पर इस सर्दी में भी पसीने की बूँदें छलक गयीं, तभी उन्होंने देखा की एक छाया उनकी तरफ बढ़ रही है। वो छाया ज़मीन से चार फिट ऊपर जैसे हवा पर तैर रही थी, वो एकदम से उनके निकट आने लगी.. उन तीनों ने उस छाया को ठीक से देखा, वो एक सफ़ेद कपड़ों में सफ़ेद बाल और सफ़ेद दाढ़ी में लम्बी काया का पुरुष था, उसके चारों तरफ एक रौशनी सी फैली थी.. लेकिन उसकी आँखें एकदम सुर्ख लाल थी जैसे कि कोई मशाल जल रही हो..
उस छाया ने तेज गुर्राहट भरी आवाज़ में कहा “भाग जाओ .... मरोगे तुम सब .... भाग जाओ”
उन तीनों को कुछ नहीं सुझा और वो बेसुध होकर वहाँ से भागे, उन्होंने देखा कि उनके बैल भी गाड़ी को लेकर गाँव की तरफ भाग चले हैं, वो तीनों भागते रहे बहुत दूर तक, आगे जाकर उनके बैल भी रुक गए और वो तीनों भी...
उन तीनों की छाती धोकनी की तरह चल रही थी,
जबर सिंह ने हाँफते हुए कहा “भूत था....बहुत बड़ा पिशाच था भाई”
तीनों काफी देर तक अपनी श्वास को नियंत्रित करते रहे, फिर सुजान सिंह बोला “वो मर गयी थी क्या?
शोरण सिंह बोला “तुझे लगता है वो बच गयी होगी, भूखे रहते हैं बंजारों की बावड़ी के छलावे तो, बच भी गयी होगी तो वो तो उसकी हड्डियाँ भी ना छोड़ेंगे”
जबर सिंह बोला “अच्छा हुआ अब तो किसी को वैसे भी ना मिलेगी वो, बस अब भाभी को संभल लो कि वो बसंत से वैसे ही कहे जैसे हमने सोचा है, वैसे वो मर गयी थी”
तीनों ने गाड़ी पर बैठकर गाड़ी को हांक दिया, उनके चेहेरो पर डर अब भी झलक रहा था।
इतने में ही मंदिर के दरवाज़े पर हलचल हुई, बसंत ने अपनी बन्दूक संभाल ली तुरंत, लेकिन ये भारतीय सेना का मेजर था.
दो अन्य सिपाही भी थे साथ में, बसंत को राहत महसूस हुई, उसने तुरंत उठकर मेजर को सेल्यूट मारते हुए कहा “साहब इन बाबा के कारण ही हमें पता चल पाया कि यहाँ कुछ गड़बड़ है, नहीं तो हम आसानी से दुश्मन का निशाना बन जाते.. बहुत बड़ा एमुनेसन है दुश्मन के पास”
मेजर ने बसंत के कंधे पर हाथ रखकर कहा “पता चला मुझे, सर्च अभियान चल रहा है अब कोई नहीं बच पायेगा”
बसंत ने बाबा की तरफ इशारा करते हुए कहा “इन्हें डॉक्टर की जरुरत है साहब और उन दोनों को भी”
मेजर : हमारे साथ मेडिकल टीम भी आई है
मेजर ने एक सिपाही को इशारा किया वो बाहर की तरफ भाग कर गया, मेजर धोला बाबा को देखने लगा और बोला “शायद अब ये नहीं रहे बसंत”
बसंत को सुनकर धक्का लगा, उसने तुरंत दूसरा प्रश्न दाग दिया “बाहर मेरे दोनों सिपाहियों पर बम सेलिंग हुई थी साहब
मेजर ने एक निराश प्रतिक्रिया दी और बोला “वायरलेस ओपरेटर और गाइड सही सलामत है, लेकिन उन दोनों के तो शरीर के भी चीथड़े उड गए”
बसंत नीचे बैठ गया और बोला “ये इतना असला लेकर करने क्या आये थे साहब? जंग तो बंद हो गयी थी, पाकिस्तान ने हथियार रख दिए थे”
मेजर : पहले ही जानकारी मिल गयी थी बसंत हमें, एक आदमी पकड़ा गया था नेशनल हाईवे के नक्शों के साथ, उसने बताया था कि कुछ पाकिस्तानी सैनिक पुलों को तोड़कर पुरे नार्थ ईस्ट को भारत से काट देना चाहते थे...
इतने में मेडिकल टीम आ गयी वो बसंत की तरफ बढ़े तो बसंत ने कहा “मैं एकदम ठीक हूँ, पहले इन्हें देखिये” ये बात बसंत ने धोलाबाबा की तरफ इशारा करते हुए कही”
मेडिकल टीम आगे बढ़कर जांच करने लगी तो मेजर ने अवरुद्ध हो चुकी बात को पूरा किया “पाकिस्तानी सेना का अफसर गनी और उसके कुछ साथी अपने साथ बड़ी मात्रा में विस्फोटक लेकर नेसनल हाईवे की तरफ ही बढ़ रहे थे, पाकिस्तानी सेना को हमने बताया तो उन्होंने साफ़ कह दिया कि उनके तो बहुत सारे सैनिक लापता हैं वो क्या बता सकते हैं”
फिर मेजर ने विराम देकर कहा “पकिस्तान सीधे लड़ना नहीं जानता है, उसे बस ये ही तरीके आते हैं, उनकी संस्कृति ही ये है”
फिर मेजर ने मेडिकल टीम के आदमी से पूछा “क्या हालत है?”
उसने निराशा जताते हुए जवाब दिया “ये पहले ही मर चुके थे सर”
मेजर ने एक निराश प्रतिक्रिया व्यक्त की, तभी बाहर से एक और जवान आया और बोला “साहब पाँच दुश्मनों की लाश मिल चुकी है, एमुनेसन का बड़ा जखीरा था साहब इनके पास”
तुरंत बसन्त ने कहा “धोलाबाबा ने भी पाँच ही बताये थे.. लेकिन हो सकता है और भी हों”
मेजर ने बसंत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा “चिंता मत करो अब कोई नहीं बच पायेगा, तुम्हारी बहादुरी के किस्सों में एक किस्सा और जुड़ गया बसंत तुमने एक बड़ी वारदात को होने से रोक लिया”
मेडिकल टीम अब बसंत की जांच में जुट गयी थी..
मेडिकल के दो लोग धोलाबाबा के शरीर को स्टेचर पर लेकर बाहर की तरफ चाफ चल दिए, उनके पीछे ही बसंत और मेजर भी बाहर की तरफ चल दिए, मेजर ने चलते चलते ही कहा “बसंत तुम्हे कल जाना था ना?”
बसंत : जी साहब लेकिन अगर मेरी यहाँ जरुरत है तो मै रुक भी जाऊँगा.
फिर बसंत ने बाबा को स्टेचर पर देखते हुए कहा “मैंने इन्हें अपनी चादर उढ़ाई थी वो क्यों उतार दी?
मेजर ने या अन्य किसी ने बसंत की इस चादर वाली बात पर कोई ध्यान नहीं दिया, मेजर ने बसंत के पहले प्रश्न का जवाब दिया..
मेजर : नहीं इसकी कोई जरुरत नहीं, कुछ फॉर्मेलिटी हैं उन्हें मैं अभी पूरा करवा दूँगा, कल एक वायुसेना की कार्गो फ्लाईट तेजपुर से दिल्ली जाएगी, तुम उसमें ही निकल लेना, इससे तुम्हारा सफ़र कुछ घंटो में ही कट जायेगा..
इस तनाव भरे माहौल में भी बसंत के चेहरे पर एक ताजगी आ गयी थी।
शोरण सिंह, जबर सिंह और शोदान सिंह तीनों अपने घर पहुंचे, जबर सिंह और सुजान सिंह बाहर की बैठक में ही बैठे रहे, शोरण सिंह भीतर गया, उसकी पत्नी कमरे में ही थी.
शोरण सिंह को देखकर उसकी पत्नी को आश्चर्य हुआ और वो बोली “क्या इतनी जल्दी छोड़ भी आये आप”
शोरण सिंह ने उसे आपने पास बिठाया और बोला “जहाँ छोड़ना था वहाँ छोड़ आया”
शोरण सिंह की पत्नी को संदेह हुआ, उसने संदेह मिश्रित प्रश्न पूछा “जबर और सुजान भी तुम्हारे साथ ही आयें हैं, क्या किया आपने रूप का?”
शोरण सिंह ने अपनी पत्नी के माथे पर अपनी हथेली रखी और और कहा “चुपचाप सुन पहले, परसों तक बसंत आ लेगा, रूप उसे ज़रुर बताती ये बात, तुझे क्या लगता है वो क्या करता?”
शोरण सिंह की पत्नी शोरण सिंह के चेहरे को देख रही थी, शोरण सिंह ने कहा “जंग जीतकर आ रहा है वो, सरकार माथे पर बिठाएगी उसे, रूप जब उसे बताती तो वो मार डालता हम सबकू.. सात खून माफ़ हैं अब तो उसे”
शोरण सिंह की पत्नी की आँखों में पानी आ गया, उसने अपने पति के हर कर्म को आज तक चुपचाप देखा ही था कभी कोई विरोध नहीं किया था. आज भी वो चुप थी लेकिन उसकी आँखों के पानी ने शोरण सिंह को परेशान कर दिया, वो उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोला “तेरी औलाद को भी ना छोड़ता वो, नो महीने पेट में रखे तूने, देख लेती तू मरते हुए या तू देख लेती मुझे मरते हुए.. देख अगर वो मेरे भाइयों को मरता तो मैं भी बचाता अपने भाइयों को.. याद रख वो बिलकुल ना छोड़ता हमें”
शोरण सिंह की पत्नी के सामने अतीत की यादें तैरने लगी, कैसे बसंत उसके बच्चों पर प्यार लुटाता था.. उसने हमेशा दुराहात किया था बसंत के साथ, जब उसके बच्चों और देवरों के खाने से कुछ बचता तब ही बसंत का नंबर आता था, लेकिन फिर भी कभी भी बसंत के माथे पर सिकन नहीं देखा. न ही बसंत के उसके बच्चों के प्रति प्यार में कोई कमी आई और ना ही उसके प्रति सम्मान में, जाते वक़्त बसंत ने रूप से कहा था “मेरी भाभी ने मुझे बेटे की तरह पाला है ख़याल रखियो इनका”
शोरण सिंह की पत्नी का मन किया कि दहाड़े मारकर रोये लेकिन सारा भावनाओं का ज्वार उसने अपने मन में ही दबा लिया.
फिर शोरण सिंह ने अपनी पत्नी के माथे को चूमा और बोला “देख अब तेरे बालको की जिन्दगी बन जायेगी, वो तो चला जायेगा यहाँ से सारी ज़मीन इनकी, अपने बालको का सोच बस”
शोरण सिंह की पत्नी हमेशा अपने बच्चों के बारे में सोचकर ही चुप रही थी, आज भी वो चुप रह गयी थी.
शोरण सिंह ने फिर कहा “अब एक काम कर सारे मोहल्ले में पूछ ताछ कर रूप की, बता सबसे कि सुबह ही हाजत लगी थी तो जंगल गयी थी वो, अब तक ना आई, तुझे पूरे गाँव को और बसंत को ये ही बताना पड़ेगा कि वो सुबह निकली और फिर आई ही नहीं”
शोरण सिंह की पत्नी मौन होकर अपने पैर के अंगूठे से कच्चे फर्श की मिट्टी को खुरच रही थी.
शोरण सिंह ने जोर डालकर कहा “जा अब पूछ गाँव वालो से, इस बात को अब तू ही जमाएगी”
शोरण सिंह की पत्नी उठी और अपनी आँखें पोछते हुए बाहर की तरफ चल दी, उसकी तरफ से शोरण सिंह निश्चिन्त था, क्योंकि वो जनता था कि वो उसके कहे के विरुद्ध नहीं जाएगी..
बसंत एक लम्बी यात्रा के लिए अपने घर की तरफ प्रस्थान कर चुका था, उसके दिमाग में रूप की यादें, उसके गाँव की यादें घूम रहीं थी.. उसे लगता था कि बस एक क्षण भी बिना गवाएं तुरंत पहुँच जाए रूप के पास..
बसंत की खूबसूरत यादों को कभी कभी युद्ध की यादों के झंझावत आकार जैसे उजाड़ जाते थे, वो पहुँच जाता था युद्ध के मैदान में, पाकिस्तानी सैनिकों की क्रूरता का शिकार हुई बांग्लादेशी महिलाएँ, अनाथ बच्चे और लोगो के शरीरो को नोचते कुत्ते और गिद्ध.. बहुत कुछ देखा था उसने इस युद्ध काल में, उसके कुछ नए दोस्त भी बने थे और कुछ ही दिनों के बाद उसने उन दोस्तों को इस दुनिया से विदा होते भी देखा था.
वो एक झटके से इन यादों से बाहर आता था और वापस रूप की और अपने गाँव की यादों में खो जाता था, तेजपुर से जहाज में वो बैठ चूका था, ये मालवाहक जहाज था, बैठने की कोई ख़ास व्यवस्था तो नहीं थी, लेकिन यात्रा भी ज्यादा लम्बी नहीं रही, वो दिल्ली पहुँच गया और वहां से अपने गाँव की तरफ चल दिया।
अब उसे लग रहा था कि वो अपने घर के निकट ही है, हवा की खुशबू जानी पहचानी थी, वैसे भी 1971 तक हवा में विकास का जहर नहीं घुला था. तब दिल्ली की हवाओं में भी प्रकृति की सुगंध थी, वो अपने ही देश के कुछ दूर दराज़ के हिस्सों में घूमा था... उन जगहों पर भी गया जो कभी भारत का ही अंग थे, लेकिन जब वो पहुंचा तो तब तक वहां बारूद की गंध ज्यादा थी.. लोगो के शवों की दुर्गंध थी, चीत्कार थी. उसने अपनी आँखों से देखा था राहत शिविरों में बंगाल की विस्थापित महिलाओं को जिन्हें ये भी फ़िक्र नहीं थी कि उनके शरीर का कपड़ा अब उसके तन को नहीं ढक पा रहा है. बस चिंता थी तो ये कि कैसे उसके बच्चों के लिए भोजन उसे मिल जाए, भारत में बंगाल के लोगो को सबसे ज्यादा प्रबुद्ध और बुद्धिशील माना जाता था.. बसंत के गाँव के एक बुजुर्ग कहा करते थे की बंगाल क्रांतिकारियों, कवियों और वैज्ञानिको की धरती है, उनका ये हश्र बसंत से देखा नहीं जाता था. बसंत इन सब यादों में खोये अपने गाँव पहुँच गया..
गाँव में उसे लोगो के अभिवादन में गर्मजोशी नहीं दिखी लेकिन उसने इसपर ज्यादा ध्यान भी नहीं दिया, वो तो बस भागकर अपने घर पहुँच गया, घर में जब वो भीतर गया तो उसकी भाभी से ही उसका सामना हुआ. बसंत ने तुरंत उसके पैर छूए, भाभी ने भी आशीर्वाद दिया.. बसंत की भाभी के नेत्र सजल हो गए,बसंत भाभी को दिलासा देते हुए कहा “आ गया हूँ भाभी अब....देख एकदम ठीक हूँ. भैया जी कहा हैं” फिर थोड़ा रुककर झेंपते हुए बसंत ने कहा “रूप कहाँ हैं”
बसंत की भाभी कुछ कहती इससे पहले ही शोरण सिंह कमरे से बाहर आ गया और जोश के साथ बोला “अरे बसंत भाई तू आ गया”
बसंत ने शोरण सिंह के भी पैर छुवे बोला “भैया दोनों भाई कहाँ हैं?”
शोरण सिंह : यहीं बाहर गए होंगे
फिर बसंत ने भाभी से कहा “रूप कहाँ है”
शोरण सिंह: पहले कुछ खा ले बताता हूँ
बसंत को अब कुछ अनहोनी का संदेह हुआ, उसके चेहरे पर सख्ती आ गयी, वो बोला “भैया अभी बताओ रूप कहाँ है? उसने कहा था कि वो यहीं मिलेगी”
शोरण सिंह कुछ नहीं बोला और अपनी दृष्टी चुराने लगा, बसंत की झल्लाहट बढ़ गयी और उसने शोरण सिंह के दोनों कंधो को हाथी से पकड़ कर झिंझोड़ते हुए कहा “भैया बात क्या है ये बताओ, अब तो अंजल पानी तब ही मुंह में जाएगा”
शोरण सिंह ने नज़रे नीची किये कहा “भाई वो कहते हैं ना की सुन्दर लुगाई नाश की जड़ हो, बस तेरी रूप की खूबसूरती भी ले बैठी”
बसंत बात पूरी होने से पहले ही बोला “क्या हुआ?”
शोरण सिंह ने अपनी पत्नी की तरफ देखा क्योंकि वो चाहता था की उसकी पत्नी ही ये बात बसंत से बताये
शोरण सिंह की पत्नी ने कहा “देवर जी वो चली गयी परसों सुबह ही कहीं, किसके साथ मुझे नहीं पता लेकिन कोई था ज़रुर, मुझे भी शक था, परसों सुबह अँधेरे में ही कहीं निकल गयी”
बसंत की आँखों के सामने अंधेरा छा गया, उसने बहुत बर्बादी और विनाश देखा था पिछले कुछ समय में, अपने कई साथियों को अपनी आँखों के सामने दम तोड़ते देखा था, लेकिन उसकी रूप बेवफा होगी ये कभी नहीं सोचा था.
बसंत पागल हो गया उसने अपनी भाभी को झिंझोड़कर कहा “तू सच बोल रही है भाभी”
उसकी भाभी रोते हुए बोली “हाँ”
और इसके साथ ही बसंत भाभी हिडकियां देकर रोने लगी, वो रोते रोते जमीं पर लेट गयी थी, उसकी भावनाओं का ज्वार उसके आँसुओं के रूप में निकल रहा था, लेकिन फिर भी वो सच नही बोल सकती थी, क्योंकि उसे अपने पति और बच्चों की जान जो प्यारी थी...
बसंत जैसा आया था सामान वहीँ छोड़कर वैसे ही भाग लिया, बसंत भागकर गाँव के बाहर आ गया, भागते भागते काफी दूर आ गया था वो.. थक गया बैठकर वो रोने लगा, काफी देर तक रोता रहा, बहुत देर रोने के बाद उसको कुछ होश आया तो उसको ध्यान आया धोला बाबा ने उससे कहा था “तू रूप के पास कब गाँव जायेगा?”
उसे एकदम से झटका लगा “क्या धोला बाबा ने रूप ही कहा था? उन्हें कैसे पता रूप का नाम”
फिर वो खुद से ही मानसिक द्वन्द में उलझ गया “क्या कहा था? हाँ रूप ही तो कहा था, तब मेरा ध्यान नहीं गया, लेकिन रूप ही कहा था, फिर एकदम से उसको ध्यान आया “हाँ, धोला बाबा ने बंजारों के नगीचे का नाम लिया था”
ये ख़याल मन में आते ही बसंत एकदम से बिजली की तरह दौड़ लिया बंजारों के बाग़ की तरफ...
रूप मरी नहीं थी बेहोश हुई थी, लेकिन ये बेहोशी टूटने में बहुत लंबा समय लगा, शाम ढलने लगी थी, रूप के पास एक बूढ़ा बैठा था उसने रूप को एक चादर ओढ़ा दी थी, ये वो ही था जिससे डरकर वो तीनों भागे थे.. रूप को होश आया, पहले तो रूप भय के कारण बिना आँखें खोले यूँ ही पड़ी रही. उसे याद आया वो क्रूरता जो उसके साथ हुई थी, वो अभी ये ही नहीं समझ पा रही थी कि वो जिन्दा है या मर गयी, उसने आँखें खोली तो उसने देखा एक बुजुर्ग को, जिसका शरीर पतला था उसने सफ़ेद धोती से अपने शरीर को ऊपर से ढाका हुआ था और नीचे भी धोती ही बाँधी हुई थी. उस वृद्ध के केश लम्बे और एक दम सफ़ेद थे उसकी दाढ़ी भी लम्बी और सफ़ेद थी, उसके दाढ़ी के और सर के बाल कुछ यूँ चमक लिए हुए थे जैसे कि सफ़ेद रेशम हो.. वृद्ध का रंग गेहुवा था परन्तु एक आभा थी वृद्ध के चहरे पर, चेहरे पर झुर्रियां पड़ी हुई थी लेकिन आँखें बड़ी और चमकदार थी, तीखे नाक और होठ थे, वृद्ध का चेहरा सोम्य था लेकिन एक आभा और रोब उस वृद्ध के व्यक्तित्व से झलक रहा था..
रूप की दृष्टी वृद्ध पर पड़ी तो रूप को लगा ये कोई देवदूत है, रूप को सहसा ही ख्याल आया “तू मर गयी, तेरा बसंत अकेला रह गया वहाँ. पता नहीं क्या बताएँगे उसे वो मेरे बारे में? ये तो बिलकुल नहीं बताएँगे कि उन्होंने मुझे मार दिया, मुझे कुलटा साबित कर देंगे और बसंत आगे की सारी जिन्दगी मुझसे घृणा करेगा”
रूप ने एकदम से आँखें बंद कर ली, उसकी आँखों से आँसू बहकर उसके गालों तक चले आये
उस वृद्ध ने रूप के सर पर हाथ फेरा, रूप ने आँखें खोलकर वृद्ध की तरफ देखा और बोली “आप देवदूत हैं क्या? ये स्वर्ग है या नर्क?”
वृद्ध के चेहरे पर एक मुस्कान छा गयी, तुम धरती पर ही हो, जीवित
रूप को आश्चर्य हुआ “उन शैतानों ने मुझे छोड़ दिया? आप झूठ बोल रहें हैं”
वृद्ध ने आँखों में विश्वास भर कर कहा “वो तुम्हें मार पाते इससे पहले मैं आ गया, उन्हें लगा कि मैं कोई प्रेत या पिशाच हूँ, वो डरकर भाग गए.. लेकिन तुम्हारा श्वास काफी देर बंद रहा जिस कारण तुम काफी समय बेहोश रही”
रूप को तसल्ली हुई, उसने वृद्धसे पूछा “आप कौन हैं?”
वृद्ध ने उत्तर दिया “मैं तो एक जोगी हूँ, दुनिया भर में घूमता फिरता हूँ, आज इधर से गुज़र रहा था तो ये हादसा देखा, कुछ नहीं सुझा बस चिल्ला दिया, सोचा जो होगा देखा जायेगा.. लेकिन वो एकदम से घबरा गए और भाग गए, वो शोर मचाते भागे “प्रेत.... प्रेत.... पिशाच.... तेरे पत्नीव्रत धर्म ने मुझे इतनी शक्ति दी कि वो तीनों शैतान मेरी एक आवाज़ से भाग खड़े हुए”
रूप ने चारों तरफ देखा तो उसे याद आया, ये तो बंजारों का बाग़ है, रूप ने वृद्ध को उत्तर दिया “ये बंजारों का बाग़ है, यहाँ प्रेतों का वास है.. इसलिए कोई नहीं आता यहाँ”
अब रूप के चेहरे पर घबराहट साफ़ दिखाई दे रही थी
वृद्ध रूप के मनोभावों को पढ़ गए और बोले “तुमने देखे हैं भूत प्रेत?”
रूप ने इनकार में गर्दन हिलाई
वृद्ध ने कहा “इस दुनिया में सबसे दुर्दांत शैतान खुद मानव है बेटी.. बाकी ये प्रेत, पिशाच तो मानव के डर से पैदा कल्पनाएँ हैं बस”
रूप ने इस दुनिया के शैतानों की शैतानियत देखी थी इसलिए उसे वृद्ध की ये बात एकदम सही लगी
अब रूप को तसल्ली हुई थी.
उसके साथ यहाँ बस वो वृद्ध ही था, जिसने उसके जीवन की रक्षा की थी, उसने वृद्ध से प्रश्न किया “मैं क्या करूँ बाबा? कहाँ जाऊ?”
वृद्ध ने रूप के सर पर हाथ फेरकर कहा “कहीं मत जा यहीं इंतज़ार कर अपने बसंत का, वो यहीं पर आएगा”
रूप को 24 घंटे से ज्यादा बीत गए थे इस बाग़ में, उसकी हालत ऐसी थी कि उसे ना तो डर की अनुभूति हो रही थी ना ही भूख और ना ही प्यास, वो तो बस उस बाबा के आश्वासन से आश्वस्त होकर बैठी थी, बाबा ने कहा था यहीं आएगा तेरा बसंत।
तभी रूप को आवाज़ सुनाई दी जैसे कोई ज़ोर से उसे पुकार रहा हो “रूप”
उसे पहले तो लगा उसका वहम है, जबसे वो यहाँ थी उसे कई बार ये वहम हुआ था, लेकिन वो ही आवाज़ उसे फिर सुनाई दी “रूप”
अब ये आवाज़ उसके निकट आ गयी थी और फिर वो ही आवाज़ उसे आई “रूप”
रूप का चेहरा एकदम से खिल गया “अरे ये तो बसंत है”
वो भी जोर से चिल्लाई “बसंत”
दोनों एक दूसरे के पास आ गए, एक दूसरे को दोनों ने बाहों में भर लिया.. ये बंधन बहुत ही मजबूत था, बसंत ने रोते हुए कहा “सब बोल रहे थे कि तू चरित्रहीन है, भाग गयी पर मेरा मन कहा रहा था मेरी रूप एसी नहीं हो सकती”
रूप ने उसको पूरा हाल कह सुनाया और बताया उन बाबा के बारे में, जब रूप ने बाबा का हुलिया बताया तो बसंत के मुंह से सहसा निकला “धोला बाबा”
फिर जब उसने वो चादर देखी जो बाबा ने रूप को दी थी तो वो आश्चर्यचकित रह गया ये वो ही चादर थी जो उसने मंदिर में मरते हुए धोला बाबा के शरीर से लपेटी थी।
रूप को भी याद आया कि धोलाबाबा ने कहा था “यहीं आएगा तेरा बसंत”
रूप के मुहँ से निकला “कौन थे वो कोई दिव्य पुरुष या साक्षात् देव?”
बसंत ने कहा “एक सन्यासी”
दोनों ने पुन: एक दूसरे को आलिंगनबद्ध कर लिया, उन दोनों के समीप अब कोई द्वेष, क्रोध, काम,घृणा का भाव नहीं था, था तो बस प्रेम, पवित्र और असीमित प्रेम.....