घरबंदी
घरबंदी
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एक था छोटा सा शहर और उसका एक बड़ा सा राजा।
एक बार दुनिया में बड़ी हिचकी मार बिमारी फैली, जो देखो हिचकी मार-मार के हलकान। जिसके सामने हिचकी मारे वो भी हलकान। लोग हिचकी मार-मार मरने लगे। उस बड़े से राजा के और भी बड़े मंत्रीगण परेशान क्योंकि उनके बच्चे दुनिया के बड़े देशो में थे। अब इतने बड़े लोगो के बच्चे उस छोटे से शहर में क्या करते भला?
वो सब राजा से बोले “राजा जी आप सबको वापस लाओ, ये ही धर्म है और आप तो अवतारी हैं।”
सबको भर भर कर वापस लाया गया। राजा जी आत्ममुग्ध थे कि वो प्रजा के रक्षक हैं। बड़ी भयंकर पार्टियाँ की गयी इस ख़ुशी में।
लेकिन ये क्या? ये बिमारी तो शहर में भी फ़ैल गयी।
राजा परेशान...क्या करें? तब एक बड़का वाला संत आया और बोला घरबंदी कर दो। सब घरों में रहेंगे तो बिमारी नहीं फैलेगी। राजा जी ने घोषणा कर दी कि चलो घरबंदी कर दो। फिर वो संत दुबारा राजा के पास आये और बोले लोग नहीं मान रहे तो विकट वाली घरबंदी कर दो। सबको हर जरुरत का सामान उनके घरो तक ही पहुंचाया जायेगा।
मंत्रियों ने कहा कि राजा जी आप भी घर बंद हो जाओ जनता को प्रेरणा मिलेगी और हम हैं ना आपकी चरण पादुकाओं को लेकर आपका काम करने के लिए। राजा जी समर्पित थे प्रजा के लिए तो हो लये घरबंद।
फिर मंत्रियों से वो आकर मिले... जो गणमान्य थे, जो जनता की आवाज थे, जो व्यापारियों की आवाज़ थे, और जो राजभक्त थे और वो ये सब इसलिए थे क्योंकि वो कुछ सबसे बड़े व्यापारी थे।
उन राजभक्तों ने मंत्री जी से कहा कि मंत्री जी आपने बहुत बलिदान किये इस मुर्ख जनता के लिए अब हम आपका वो ऋण उतारना चाहते हैं। बड़े बड़े थाल सजाकर अशर्फियों के मंत्रियो को दिए गए।
व्यापारियों ने कहा कि आप ही मंत्री और अब तो आप ही राज़ा तो तय कीजिये कि शहर वासी किससे खरीदें? कब खरीदें? क्या खरीदें? और आप समझाइये इस मुर्ख जनता को कि क्या उसके लिए जरुरी है और क्या गैर जरुरी।
बस उन कुछ राजभक्त लोगो को मंत्री जी ने आज्ञा दी कि आप ही शहर वासियों को सब कुछ बेचोगे और कोई नहीं। मंत्री जी ने सख्त ताकीद की कि ज्यादा कीमत नहीं वसूलोगे कोई डिलीवरी चार्ज नहीं लोगे। उन राजभक्त वापारियों ने सहमती में सर हिलाया।
जिस शहर को हज़ारो छोटे-बड़े व्यापारी माल बेचते थे अब कुछेक बड़े व्यापारी ही सबको मेहनत करके माल पहुंचा रहे थे। पहले उन्हें ग्राहक तलाशने पड़ते थे अब ग्राहक उन्हें तलाश रहे थे। पहले वो सैंकड़ो को बेचते थे अब हज़ारो ग्राहकों को बेच रहे थे।
वो बड़के वाले संत फिर आये और मंत्री से बोले चलो अब खोल दो घरबंदी।
मंत्री जी बोले हमारी बात जनता से हो गयी है जनता नहीं चाहती कि अभी घरबंदी खुले।
संत बोले जनता से कब बात हुई?
तो मंत्री जी ने जनता और व्यापारियों की आवाज़ उन गिने चुने राजभक्त व्यापारीयों की तरफ इशारा किया और कहा कि ये हैं ना जनता की आवाज़, इन्होने कहा है कि घरबंदी लागू रहेगी।
संत ने क्रोधित होकर कहा “ये तो हक मार रहें हैं बाकी छोटे व्यापारियों का, ये लुट रहें हैं जनता को।”
तो मंत्री जी ने उस साधू को जेल में बंद करवा दिया क्योंकि वो घरबंदी का कानून तोडकर मंत्री के पास आया था। और वो मंत्री और उन धनपतियों को गलत ठहरा रहा था।
वो संत कहता रहा कि रजा से मिलवाओ लेकिन राजा तो खुद घरबंद था।
मंत्रीयों ने राजा से कहा कि आप जनता को सन्देश दीजिये। लेकिन बिमारी आपको न पकड़ ले तो सबसे ऊँची मीनार पर खड़े होकर सन्देश दीजिये। राजा ने सबसे ऊँची मीनार पर खड़े होकर जनता को सन्देश दिया। वो मीनार इतनी ऊँची थी कि राजा की आवाज़ तो जनता तक पहुँच रही थी लेकिन जनता की चीत्कार राजा तक नहीं पहुँच रही थी। जनता भूख और लुट से त्रस्त होकर चीख रही थी कूद कूद कर उस ऊँची मीनार तक पहुंचना चाहती थी ताकि राजा तक अपनी आवाज़ पहुंचा सके।
राजा ने मंत्री से पूछा कि ये जनता इतना उछल कूद क्यों कर रही है?
मंत्रीयों ने कहा कि ये खुश है अपने राजा के निर्णयों से, ये कृतज्ञ है आपको राजा के रूप में पाकर।
राजा फिर घरबंद हो गया।
छोटे व्यापारियों को व्यापार की इजाजत नहीं थी। किसी के पास कोई कमाई का साधन नहीं बचा था। सारी जनता का पैसा उन राजभक्त व्यापारी और उन मंत्रियों की तिजोरियों में भर चूका था। तो जब तक जोड़ा हुआ खाया गया... खाया फिर सब जनता मरने लगी।
मंत्रियों ने बची हुई चंद जनता के बारे में घोषणा की “कोई भी भूखा नहीं रहेगा, सबको मुफ्त खाना मिलेगा।”
अब वहाँ सारी जनता मुफ्तखोर हो गयी थी। जबतक उन्हें मुफ्त मिलता खाते जब मिलना बंद हो जाता तो मर जाते।
उनकी मौत भी अब मुफ़ीद थी क्योंकि राजभक्त व्यापारियों और मंत्रियों ने उनके शवों का व्यापार शुरू कर दिया था।