satish bhardwaj

Romance Tragedy Inspirational

3  

satish bhardwaj

Romance Tragedy Inspirational

फौज़ी की पत्नी

फौज़ी की पत्नी

5 mins
190


वो फौजी के साथ ब्याह कर ससुराल आई थी। कुछ ही दिन की छुट्टी मिली थी फौजी को। फौजी जानता था कि छुट्टी ख़त्म होने के बाद कई महीने विरह की आग में जलना पड़ेगा उसे भी और उसकी पत्नी को भी। लेकिन विरह की घड़ी कुछ ज्यादा ही जल्दी आ गयी। छुट्टियां रद्द कर दी गयीं थी, कारगिल में जंग शुरू हो चुकी थी। 10 दिन पहले ही आने का बुलावा आ गया।

फौजी की पत्नी के चेहरे पर मायूसी साफ़ दिख रही थी। उसके नैनों की चंचलता खो गयी थी। भरे सागर जैसी गहरी आँखों से पानी बस बाँध तोड़कर बहने को तैयार था।

फौजी ने अपनी पत्नी को आलिंगनबद्ध किया और बोला “फौजी से ब्याह किया है तूने तो मन को मजबूत तो करना ही पड़ेगा। बस तेरा पति ही नहीं हूँ अपनी प्लाटून का सिपाही और भारत माँ का बेटा भी हूँ मैं। आँसू मत बहाना क्योंकि जब फौजियों कि बीवियों की आँखों से आँसू बहते हैं तो वो देश के देश उजाड़ जाते हैं”

उसकी पत्नी ने अपने मनोभावों को नियंत्रित करते हुए कहा “जानती हूँ ज्यादा हक तो माँ और प्लाटून का ही है आप पर, ये दुराहत तो सहना ही पड़ेगा”

फौजी ने बाहों का कसाव मजबूत करते हुए कहा “कैसी बात कर रही है? सबकी माँगों के सिंदूर सलामत रहें, भैया दुज़ पर किसी बहन के आँखों में आँसू ना हो और होई पर हर माँ ख़ुशी से व्रत रखे बस इसलिए ही तो फौजी सीमा पर खड़ा होता है”

फौजी की पत्नी के चेहेरे पर एक मुस्कान फ़ैल गयी और वो बोली “जानती हूँ और इसका अभिमान भी है फौजी, आगे भी मान रखूंगी”

फौजी ने अपनी आँखो में याचना के भाव लाते हुए कहा “कल जब मैं जाऊँ तो तू मुझे दुल्हन की तरह सजकर विदा करना। वैसे भी अभी तो तू नयी नवेली दुल्हन ही है”

उसकी पत्नी की मुस्कराहट में प्रेम से भरी स्वीकृति थी।


फौजी को विदा करने के लिए उसकी पत्नी ने सोलह श्रृंगार किये। आज वो उस दिन से भी ज्यादा सुन्दर लग रही थी जब वो दुल्हन बनकर फेरों की वेदी पर आई थी।

फौजी ने चुटकी ली “मुझे नहीं पता था तू बनाव श्रृंगार में इतनी माहिर है। आज तुझे देखकर लग रहा है कि तुझ से सुंदर कुछ नहीं।”

फौजी कि पत्नी ने भी चुटकी ली “कहीं फौजी का मन तो नहीं डोल रहा। अपनी प्लाटून से दगा करने की तो नहीं सोच रहा।”

फौजी : ना री ऐसा तो यो मन है ही ना, प्लाटून से दगा तो ना हो पाएगी।

फौजी की पत्नी ने कहा “एक बार जीतकर आ जाओ, अपने फौजी का स्वागत आज से भी ज्यादा सुन्दर श्रृंगार करके करेगी तेरी पत्नी। ऐसा श्रृंगार जैसा किसी ने कभी ना किया होगा”

फौजी ने आश्चर्य से कहा “इससे भी ज्यादा सुंदर हो सकता है कुछ?”

फौजी कि पत्नी ने कहा “जीत कर वापस आना और खुद देख लेना”

फौजी ने प्रेम से परिपूर्ण मुस्कान से उत्तर दिया लेकिन कुछ नहीं बोला और मुड़कर चल दिया।

फौजी की पत्नी ने अभिमान के साथ कहा “जीत कर ही आना फौजी”

फौजी रुका और बिना उसकी तरफ देखे कहा “हाँ जीतकर ही आऊंगा, बस ये नहीं कह सकता कि मैं तुझे आगे बढ़कर गले से लगाऊंगा या तू मुझे आगे बढ़कर गले लगाएगी”

इतना कहकर फौजी चल दिया।

फौजी की पत्नी ने उत्तर दिया “जीत कर आया तो तेरी कसम सारी लोक लाज भूलकर तुझे गले से लगा लेगी तेरी पत्नी”

फौजी ने चलते चलते ही हाथ हिलाकर अभिवादन किया।


युद्ध चरम पर था। पता नहीं कितने घरों के चिराग अपनी आहुती दे रहे थे इस यज्ञ में। उस फौजी ने भी अपना धर्म निभाया, जो भी शत्रु उसके सामने आया वो धराशायी हो गया। जितने घाव फौजी के शरीर पर बनते थे उसका रूप उतना ही विकराल हो जाता था। काल प्रतीक्षा कर रहा उसकी पूर्णाहुति की इस राष्ट्र यज्ञ में लेकिन शायद उसके विकराल स्वरुप को देखकर काल भी ठिठक गया। और जब तक उस फौजी ने मोर्चा ना जीत लिया काल भी उसके निकट नहीं आया। फौजी अपने प्राणों का उत्सर्ग कर चुका था उसका चेहरा तेजमय था।


फौजी का मृत शरीर उसके घर लाया गया। ऐसा कोई नहीं था जिसके नेत्रों से अश्रु धरा ना बह रही हो। पूरे गाँव को गर्व था फौजी की वीरता पर। पीढ़ियों तक उसकी वीरता के किस्से गाँव का मान बढ़ायेंगे।

फौजी की पत्नी आई और कपड़ा हटाकर फौजी का चेहरा देखा। चेहरे पर कुछ लगा था, उसने उसे हटाया और दोनों हाथों से बलैयां लेते हुए बोली “कितनी सजती है वर्दी मेरे फौजी पर, किसी की नज़र ना लगे”

फिर उसने फौजी के शरीर को अपने अंक में ले लिया।

तभी एक हवा का झोंका आया और उसके कानों में फौजी की आवाज़ सुनाई दी “एक वादा तो निभा दिया पर दूसरा नहीं निभाया तूने, बोल रही थी कि ऐसा श्रृंगार करेगी जैसा किसी ने ना किया होगा। लेकिन तूने तो ना लाली लगाई ना सिंदूर”

फौजी की पत्नी ने तुनक कर उत्तर दिया “जा नहीं करती श्रृंगार फौजी, दुराहत कर गया ना मेरे साथ। बस माँ से ही प्यार था तुझे”

फिर उसने फौजी के चेहरे को अपने हाथों में लेकर कहा “तेरी वीरता के मान का ऐसा श्रृंगार चढ़ा है फौजी कि अब किसी श्रृंगार की जरुरत ही नहीं। तूने अपना खून बहाया तो मैंने अपना सिंदूर वार दिया भारत माँ के चरणों में। तुझसे एक रत्ती भी कम नहीं है भारत माँ से मेरा प्यार फौजी”

फौजी की पत्नी के चेहरे पर स्वाभिमान का तेज बिखर रहा था। एक भी आँसू नहीं था उसकी आँखों में। वो सौंदर्य की अप्रतिम प्रतिमा लग रही थी। रति और कामदेव भी ऐसा श्रृंगार नहीं कर सकते जैसा श्रृंगार उस फौजी के प्रति उसके प्रेम के अभिमान ने किया था।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance