Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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satish bhardwaj

Comedy

4.0  

satish bhardwaj

Comedy

एक्स्ट्रा इनकम

एक्स्ट्रा इनकम

3 mins
274


एक युवा का चयन अवर अभियंता (जे. इ.) के पद पर सिंचाई विभाग में हुआ। कुछ दिन बाद उनको पत्र आया कि नहर के किनारे वृक्षारोपण करवाइए। उन्होंने संबंधित विभाग से पेड़ लिए और वृक्षारोपण करवा दिया। फिर...

फिर क्या? भूल गए।


2 हफ्ते बाद एक और विभागीय पत्र आया कि "मुख्य अभियंता" विभागीय सर्वेक्षण हेतु आएंगे और वृक्षारोपण अभियान भी देखेंगे।

अवर अभियंता जी की यादें ताज़ा हुईं। तो भागे-भागे गए अपने पौधों को देखने।

उनमें बहुत से सूख गए थे, तो कुछ को जानवर निगल गए, कुछ निश्चिंत होकर खड़े थे।

अवर अभियंता जी परेशान।

तो जितने सूखे और जानवरों की भूख का शिकार हुए पौधे थे उनसे कुछ फालतू और पौधे लगवा दिए, वो भी अपने पैसों से। अब नई-नई नौकरी थी तो और क्या करते?


दो दिन बाद "मुख्य अभियंता" को आना था, लेकिन नहीं आये। जे. इ. ने एक अन्य सहकर्मी से पूछा तो उसने टालने वाले अंदाज़ में कहा "आज नहीं तो कल आ जाएंगे, आप क्यों इतने परेशान हो रहें हैं? वैसे भी ये अधिकारी आकर कुछ भला तो करेंगे नहीं, सिवाय चाकरी करवाने के"


दो-चार दिन अवर अभियंता जी ने पेड़ो की रोज़ जाकर जांच की। फिर उन्हें विभाग की तरफ से कुछ काम मिल गया तो...

तो क्या? फिर भूल गए उन पौधों को..


महीने भर बाद उन्हें याद आया कि मुख्य अभियंता को आना था। तो अबकी बार उन्होंने एक पुराने घिस चुके बड़े बाबू से पूछा "बाबू जी वो चीफ इंजीनियर आने वाले थे...क्या हुआ आये नहीं?"

पुराने घिस्सू बाबू जी ने बेफ़िक्र अंदाज़ में कहा "जे. इ. साहब अभी नए हो, धीरे-धीरे समझ जाओगे"


जे. इ. साहब ने बाबू जी को देखा, क्योंकि उनके समझ मे बाबू जी की बात भी नहीं आई थी।

बाबू जी समझ गए कि जे. इ. साहब अभी भी कन्फ्यूज हैं, तो बोले "जे. इ. साहब.... अधिकारियों के ऐसे लेटर आते रहते हैं। उनके पीछे वहाँ ही इतनी लचेड़ लगी रहती है कि उससे ही फुर्सत नहीं मिलती। कोई नहीं आता"


फिर बड़े बाबू ने प्रश्न वाचक दृष्टि डालते हुए पूछा "क्या बात कुछ काम था क्या?"

जे इ साहब ने वृक्षारोपण की बात बताई। और ये भी बताया कि उन्होंने अपने पैसे से खराब हो चुके पेड़ लगवाए थे।


बड़े बाबू खूब हंसे और बोले "क्या जे. इ. साहब एक मौका मिला था कमाने का, उसमें भी जेब से लुटा बैठे। कौन देखने आता है? आएंगे भी तो नहर की टूटी पटरी पर धूल फाँकने कौन जाएगा? अबकी ऐसा काम आए तो बता देना। पेड़ उठाकर नर्सरी में बिकवा दूंगा। कोई नहीं आता देखने"

जे. इ. साहब अभी भी हल्के से कंफ्यूज थे तो बोले "क्या बात कर रहे हो बाबू जी? मरवाओगे क्या?"

बड़े बाबू जी बोले "जे. इ. साहब तनखा और 3% कमीशन से घर थोड़े ही चलता है। वैसे भी अब तो प्रोजेक्ट भी कम ही मिल रहे है सिंचाई विभाग को। अपासि फ्री कर दी, अब तो कोई काश्तकार पूछता भी नहीं...पहले तो कुछ रासन-पानी भिजवा भी देते थे, जरा-बहुत कमाई भी हो ही जाती थी। तो जे. इ. साहब एक्स्ट्रा इनकम का जुगाड़ तो करना पड़ता है।"


फिर बड़े बाबू जी ने कुछ फाइलों को व्यवस्थित करने के बाद दुबारा कहा "जे. इ. साहब कोई आएगा भी तो गाड़ी से ही झांकेगा, बाहर निकल कर भी देखा तो खूब पेड़ हैं वहाँ, बता देंगे कि ये वाले बुवाएँ हैं। कुछ पता नहीं होता इन्हें, बेर को शीशम बता दोगे तो भी चलेगा"


जे. इ. साहब ने बड़े बाबू जी पर गहरी दृष्टि डालते हुए कहा "वो उस बम्बे की सफाई का काम आया है। देख लो कोई अपना आदमी हो तो... ठेकेदार। पूरे बम्बे की सफाई का आदेश है, लेकिन आधे से ज्यादा तो पहले से ही साफ है"

बाबू जी ने बेफिक्री से कहा "ठीक कहा जे. इ. साहब, वैसे भी ज्यादा सफाई करवा देंगे तो फिर हम क्या करेंगे? अब इतनी महंगाई में घर भी तो चलाना है"


जे. इ. साहब का कन्फ्यूजन दूर हो गया था।


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