satish bhardwaj

Tragedy

4.5  

satish bhardwaj

Tragedy

स्टिगमेटा

स्टिगमेटा

35 mins
412


“अरमाघ”, “उत्तरी आयरलैंड” का एक शहर, जो “काउंटी-टाउन” है। “काउंटी” एक प्रशासनिक भोगोलिक क्षेत्र होता है, जैसे “जनपद”। “काउंटी-टाउन” अर्थात जनपद मुख्यालय। इस शहर में ही एक खूबसूरत चर्च है जो आर्क बिशप के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है। कभी विश्व के बड़े भूभाग पर शाशन करने वाले “ब्रिटेन” का एक खूबसूरत लेकिन कम गहमागहमी वाला शहर। वैसे तो ब्रिटेन अमीरों का देश है परन्तु गरीबी यहाँ भी है। लेकिन यहाँ के गरीब भी गौरे होते हैं।

“एस्लिया”, “बिशप पैड्रेग” के सामने एक छोटे लकड़ी के और खूबसूरत नक्कासिदार स्टूल पर बैठी हुई है। उसकी आँखों से आंसू बह रहे हैं, बिशप पैड्रेग उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर उसे दिलासा दे रहें हैं। ये एक छोटा सा कमरा है, जिसमें खिड़कियाँ ज्यादा हैं। जिस कारण बाहर की मनोरम हवा आबाध भीतर आ रही है। पैड्रेग एक बड़ी सी कुर्सी पर बैठा है जो लकड़ी की पुरानी और महंगी नक्कासिदार कुर्सी है। एस्लिया ने एक सफ़ेद टॉप और नीली लॉन्ग स्कर्ट पहनी हुई है और एक सफ़ेद स्कार्फ उसके सर पर है। एस्लिया एक 32 वर्षीय खूबसूरत महिला है। पैड्रेग एक 65 वर्षीय सामान्य कद काठी परन्तु प्रभावी चेहरे वाला व्यक्ति है।  

एस्लिया थोड़ा शांत हुई तो पैड्रेग बोला “एस्लिया यदि आज तुम ब्रोडी को किसी तरह तैयार भी कर लेती हो कि वो तुम्हारे साथ तुम्हारे बच्चे जोशुआ को भी अपनाए...शायद ऐसा तुम कर भी पाओ। लेकिन कल क्या होगा? ये नहीं कहा जा सकता.... सवाल ये नहीं है कि ब्रोडी उसे अपनाएगा या नहीं बल्कि सवाल ये है कि क्या कल जोशुआ उसे अपना पायेगा? ....एक पिता के रूप में। जबकि वो जानता है कि वो उसका पिता नहीं है।”

एस्लिया ने स्वयं को नियंत्रित करते हुए कहा “अभी जोशुआ ज्यादा बड़ा नहीं है। मैं उसे खुद से दूर कैसे कर दूँ?”

बिशप पैड्रेग ने एस्लिया की कमर पर हाथ फेरते हुए अपनी सहानुभूति का प्रदर्शन किया और बोला “मेरी बच्ची, जीसस को भी सूली पर चढ़ना पड़ा था..लोगों की ख़ुशी के लिए। उसने लोगों के पाप की सजा खुद स्वीकार की थी ताकि लोग खुश रहें। कितने दयालु थे मेरे जीसस”

एस्लिया ध्यान से पैड्रिग की तरफ देख रही थी। पैड्रिग अपनी कुर्सी से उठा और खिड़की के किनारे रखी मेज से एक गिलास में पानी भर कर एस्लिया की तरफ बढ़ाया। एस्लिया ने पानी पिया और पैड्रेग का धन्यवाद किया। पैड्रेग ने एक मुस्कान से अभिवादन किया और फिर बोलना शुरू किया “कभी कभी ईश्वर जिनसे प्यार करता है उन्हें खुद चुनता है। ये देखने को कि वो उसके कड़े फैसलों को कैसे स्वीकार करते हैं?”

एस्लिया कुछ कहना चाहती थी लेकिन उसने शब्दों को अपने होंठों पर ही रोक दिया। और उसके होंठ हल्का सा कंपकंपा कर रह गए।

पैड्रेग ने पुन: कुर्सी पर बैठते हुए कहा “एस्लिया तुम्हारी जिन्दगी ब्रोडी के साथ खूबसूरत रहने वाली है। लेकिन जोशुआ की जिन्दगी यहाँ अनिश्चितताओं से भरी रहेगी। हाँ, यदि तुम उसे मेरे कहने पर मिसनरी स्कूल में भेज देती हो, तो वो वहाँ ईश्वर की शरण में रहेगा और खुद को पहचानेगा”

एस्लिया ने थोड़ा हिचकते हुए कहा “लेकिन फादर क्या वो भी बाद में पादरी ही बनेगा?”

पैड्रेग ने मुस्कुराते हुए कहा “वो एक अच्छा ईसाई बनेगा, बाकी जीवन में वो क्या करता है? ये उसका व्यक्तिगत निर्णय होगा।”

पैड्रेग, अब एस्लिया के मन में छिपे संशय को समझ गया था, तो अब उसके लिए सरल था एस्लिया को सहमत करना। उसने अपनी आवाज़ को धीमा और भारी करते हुए कहा “एस्लिया... मेरी बेटी, मैं उसे वहाँ पादरी बनाने के लिए नहीं भेज रहा। ऐसे कई स्कूल हैं, जो चर्च की देखरेख में चलते हैं। वहाँ उसे अच्छी पढ़ाई मिलेगी और भविष्य में आने वाले किसी भी रिश्तों के उलझाव से बचा रहेगा”

एस्लिया अब थोड़ा सहज महसूस कर रही थी।

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एस्लिया ने आज से 10 वर्ष पहले “जुडी” को अपना जीवन साथी चुना था। दोनों का जीवन बहुत अच्छा चल रहा था। दोनों ही नौकरी करते थे। दोनों पर उनके ईश्वर की कृपा हुई और उनको एक बहुत ही खूबसूरत बेटा हुआ। बच्चे के नैन नक्श बहुत ही सुन्दर थे। उसकी त्वचा का रंग कुछ ऐसा था जैसे दूध में गुलाब की पत्तियां डाल देने पर एक बहुत ही सुंदर वर्ण प्राप्त होता है। उसकी आँखें नीली थी, उसकी आँखें ऐसी खूबसूरत छटा बिखेरती थी जैसे कि एटलान्टिक सागर के नीले पानी पर दोपहर की धूप एक खूबसूरत रंग उस सागर के जल को प्रदान करती है।

जुडी अपने कार्यालय जाने से पहले कुछ समय अपने नवजात बेटे के साथ बिताता था। अपने बेटे के कोमल गालों को अपनी उँगली से सहलाते हुए जुडी बोला “एस्लिया मैं जब भी इसकी आँखों में देखता हूँ तो मुझे असीम शान्ति मिलती है”

“जोशुआ” एस्लिया ने चहकते हुए कहा..

जुडी ने एस्लिया की आँखों में देखते हुए अपनी प्रश्नवाचक दृष्टि से एस्लिया से उत्सुकता व्यक्त की।

एस्लिया ने प्यार से अपने बेटे के कोमल हाथों में अपनी उँगली देते हुए कहा “जोशुआ...मोक्ष प्रदान करने वाला”

जुडी को अब समझ आ गया था कि उसके बेटे का नाम “जोशुआ” है। उसे भी ये नाम बहुत अच्छा लगा। जुडी ने एस्लिया के खूबसूरत होंठों पर एक प्रेम भरा चुम्बन देकर उसके प्रति अपने प्रेम को प्रकट किया और जोशुआ के माथे को भी चूमा।

एस्लिया ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी क्योंकि उसे अपने बेटे का ख्याल रखना था। एस्लिया के माता-पिता की मृत्यु उसके विवाह से पहले ही हो गयी थी। जुडी की भी माँ नहीं थी लेकिन वृद्ध पिता थे। जो “अरमाघ काउंटी” के निकट ही “मिल्फोर्ड” में अकेले रहते थे।

सभी ने उन्हें और उनके बेटे को खूब आशीर्वाद दिया। जुडी और एस्लिया को लग रहा था कि जैसे उन्हें ईश्वर ने सब कुछ दे दिया।

लेकिन नहीं... जीवन सुख और दुःख का भवँर हैं। जो आपको निश्चिन्त होकर भी नहीं बैठने देता और हताश भी नहीं होने देता।

जुडी की एक सडक हादसे में मौत हो गयी। अभी जोशुआ पाँच वर्ष का ही था, एस्लिया के लिए इतने छोटे बच्चे के साथ नौकरी करना भी मुश्किल था। लेकिन अब उसके ऊपर अपने और अपने बच्चे के खर्चे का दबाव भी था। कुछ समय तक तो एस्लिया की जिन्दगी कट गयी क्योंकि जुडी के पिता उसकी सहायता कर रहे थे। लेकिन जुडी की मौत को एक वर्ष भी नहीं हुआ था कि जुडी के पिता की भी मृत्यु हो गयी। जुडी के पिता के पास ऐसा कुछ नहीं था जो वो मौत के बाद अपने पोते जोशुआ के लिए छोड़ गया हो। जो थोड़ी बहुत बचत थी वो पिछले एक वर्ष में खर्च हो चुकी थी।

जोशुआ छ: वर्ष का हो गया था, तो एस्लिया ने पुन: नौकरी करना शुरू कर दिया था। 

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नौकरी करते समय उसकी मुलाकात ब्रोडी से हुई। समय के साथ दोनों अन्तरंग हो चुके थे और अब वो शादी करने का निर्णय कर रहे हैं। लेकिन जोशुआ को लेकर एस्लिया परेशान है। क्योंकि वो ब्रोडी से दूर रहता है। शायद ब्रोडी ने भी कभी उसके निकट आने का प्रयास नहीं किया। ब्रोडी की ये ही बात है जो एस्लिया को पसंद नहीं है। लेकिन पाँच वर्ष अकेले बिताने के बाद जो परेशानियाँ उसने सही थी, अब वो उनसे मुक्ति चाहती है। वो एक जीवनसाथी के साथ रहना चाहती है। इसलिए वो ब्रोडी को छोड़ पाने का निर्णय भी नहीं कर पा रही है।

बिशप पैड्रिग ने एस्लिया से पहले भी कहा था कि वो जोशुआ को चर्च के स्कूल में भेज दे। लेकिन एस्लिया, जोशुआ को स्वयं से दूर नहीं करना चाहती थी। पर अब उसने निर्णय कर लिया था। अरमाघ काउंटी में ड्रग्स का शिकार बहुत से युवा हो रहे थे। पैड्रेग की बातों से उसे लगा कि जोशुआ का भविष्य उसके साथ नहीं बल्कि चर्च के स्कुल में ज्यादा उज्जवल रहेगा। और इस तरह उसे भी ब्रोडी के साथ रहने में कोई समस्या नहीं होगी। एस्लिया ने निर्णय किया कि वो जोशुआ को भेजने के बाद ब्रोडी से शादी करेगी और छ: महीने बाद जब जोशुआ उससे मिलने आएगा तो उसे बताएगी। बिशप पैड्रेग जोशुआ को “ऑस्ट्रेलिया” के “टारडून” में स्थित एक चर्च के स्कूल में भेजने वाला था। ये बहुत दूर था लेकिन जोशुआ चर्च के स्कूल में जा रहा था तो एस्लिया को कोई ख़ास भय या शंशय नहीं था।

जोशुआ एक कम बोलने वाला और माँ के निर्णय को मानने वाला बच्चा था। अपने जीवन के लगभग छ: वर्ष उसने पिता के बिना व्यतीत किये थे। इस समयांतराल में एस्लिया भी दिन भर नौकरी पर रहती थी तो वो स्कूल से आने के बाद भी अकेला ही रहता था।

जोशुआ को उसकी इस जीवन शैली ने एकाकी बना दिया था। एस्लिया ने जोशुआ को बाताया कि वो उसे विदेश में एक बड़े स्कुल में पढने के लिए भेजने वाली है । जोशुआ अपने दोस्तों को बात करते हुए सुनता था, सभी बाहर विदेशों में छुट्टियाँ मनाने जाते थे। जोशुआ आज तक कहीं बाहर नहीं जा पाया था। उसके लिए तो ये एक बड़ी घटना थी, उसने सहर्ष सहमती जाता दी। जोशुआ ने कभी भी एस्लिया की कोई बात नहीं टाली थी।

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एस्लिया, जोशुआ को तैयार करके बिशप पैड्रिग के पास चर्च में ले गयी। बिशप भीतर कुछ मेहमानों के साथ व्यस्त है। और भी बच्चे आये हुए हैं। कुछ संपन्न लोग भी अपने बच्चों को चर्च के स्कूल में भेज रहे थे। हालाँकि इन लोगों ने बड़ी दान राशि भी दी थी इसके लिए। लेकिन एस्लिया से कोई पैसा नहीं लिया गया था और ना ही लिया जाना था। बिशप पैड्रेग और अन्य पादरी ये निर्णय लेते थे कि किसे मुफ्त में ही रखना है और किससे पैसे लेने हैं। इससे अलग भी बड़ी धनराशि इन चर्चों के माध्यम से इकट्ठा की जाती है। जो एशियन देशो और अफ्रीकन देशो में इसाई मतान्तरण में खर्च की जा रही है।

जोशुआ ने सफ़ेद रंग की जिन्स और लाल रंग की शर्ट पहनी है और एक सफ़ेद जैकेट। वो बहुत सुन्दर लग रहा है। एस्लिया की आँखों से आंसू बार-बार बाहर आ जाते थे, लेकिन वो उन्हें छुपाने का प्रयास कर रही थी। वो बार बार जोशुआ को चूम रही थी।

बिशप पैड्रेग आया और सबसे पहले जोशुआ के ही पास जाकर उसके सर को सहलाते हुए एस्लिया से कहा “सारी तैयारी हो गयीं?”

एस्लिया ने दो बैग की तरफ इशारा करते हुए कहा “जी कपड़े भी रख दिए हैं और खाने के लिए कुछ स्नेक्स भी हैं”

पैड्रेग ने बैग देखे और मुस्कुराते हुए बोला “तुम्हारे प्यार की ही तरह तुमने इन बैगों को भी बहुत भारी भर दिया है”

एस्लिया ने अपने मन के तूफ़ान को संभाला और अपनी भीगी आँखों और चेहरे की मुस्कराहट से उत्तर दिया।

पैड्रेग एस्लिया की हालत को समझ गया था। उसने एस्लिया के सर पर हाथ रखते हुए कहा “एस्लिया वहाँ जोशुआ को कोई परेशानी नहीं होगी। चाहे तुम सारा सामान वापस ले जाओ। इसको ना ही तो खाने और ना ही कपड़ों की किसी तरह की कोई समस्या आने वाली है। टारडून में हमारा बड़ा स्कूल है और वहाँ सुविधाएं भी बहुत अच्छी हैं।”

फिर पैड्रेग ने जोशुआ की आँखों में देखते कहा “बेटे अब आप एक नयी और बहुत ही सुन्दर दुनिया को देखने वाले हो”

जोशुआ की खूबसूरत गहरी नीली आँखों में उसकी उत्सुकता साफ़ झलक रही थी।

पैड्रेग ने एक पादरी को इशारा किया तो वो जोशुआ को अपने साथ अन्दर ले गया। फिर पैड्रेग ने एस्लिया से कहा “आज शाम को ही जोशुआ रवाना हो जायेगा। और तुम बिलकुल परेशान मत होना।”

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जोशुआ ने पैड्रेग को ये कहते सुना था कि शाम को रवाना होना है लेकिन ऐसा हुआ नही। चिकित्सक ने सभी बच्चो का चिकित्सकीय परिक्षण किया इस काम में ही शाम ढल चुकी थी। फिर सभी बच्चों को खाना दिया गया। खाना बहुत ही अच्छा बना था।

बाद में एक पादरी ने सभी बच्चों से कहा “चलिए अब आप सभी सो जाइये। सुबह जल्दी ही हम यहाँ से रवाना हो लेंगे।”

फिर उस पादरी ने बाकी अन्य कर्मचारियों और ननो से बच्चों को उनके बिस्तरों तक पहुंचाने का आग्रह किया। तभी बिशप पैड्रेग ने आकर जोशुआ को पुकारा और अपने साथ ले गया।

बिशप पैड्रेग, जोशुआ के सर को हाथ से सहलाता हुआ अपने साथ लेकर चल दिया। पैड्रेग का एक हाथ जोशुआ के कंधे पर था और दूसरा हाथ उसके सर पर। लेकिन अब उसके कंधे वाला हाथ जोशुआ की कमीज के भीतर उसकी छाती पर था और दूसरा हाथ जोशुआ की कोमल गर्दन पर। पैड्रेग का स्पर्श आज काफी सख्त है, जो जोशुआ को अजीब लग रहा है। जोशुआ चर्च आता रहता था और पैड्रेग से उसकी भेंट होती रहती थी। लेकिन आज ये वो पैड्रेग नहीं है। पैड्रेग जोशुआ को अपने कमरे में ले आया। ये एक बेहद ही सुन्दरता के साथ सजा हुआ कमरा है। कमरे में रखा हुआ सामान, कुर्सियां और बिस्तर बहुत ही महंगे और विलासिता पूर्ण हैं। ये किसी महल के राज प्रसाद जैसा प्रतीत हो रहा है। जोशुआ थोड़ी देर के लिए कमरे की खूबसूरती और उसकी दीवारों पर लगी महंगी पेंटिंगो में ही खो गया। तभी पैड्रेग ने अपनी दोनों उँगलियों से जोशुआ की छाती पर एक चिकोटी काटी। जोशुआ को हल्का सा दर्द हुआ और उसका ध्यान भंग हो गया। जोशुआ 10 वर्ष से भी कम आयु का बच्चा है। वो इन सब हरकतों का अर्थ नहीं समझ पा रहा है लेकिन उसे ये अच्छा नहीं लग रहा।

जोशुआ अपने कोमल हाथों से अपने सीने को सहलाता है। तभी पैड्रेग ने फ्रिज खोला और उसमें से महंगी चॉकलेट का एक डब्बा निकाल कर जोशुआ की तरफ बढ़ाया। जोशुआ ने हिचकिचाते हुए एक चॉकलेट उठाई। पैड्रेग ने जोशुआ के पजामे की जेब में और पाँच-छ: चॉकलेट भर दी और बोला “जोशुआ ये तुम्हारे लिए ही हैं, जितना चाहे ले लो”

पैड्रेग ने जोशुआ की जेब से हाथ बाहर निकलते समय अपना हाथ जोशुआ के नितम्बो पर घुमाया। जोशुआ ने ध्यान नहीं दिया और वो चॉकलेट खाता रहा।

जोशुआ सोफे पर बैठा चॉकलेट खा रहा था और कमरे की खूबसूरती को निहार रहा था। तभी उसका ध्यान गया तो उसने देखा पैड्रेग अपने सारे कपड़े उतारकर बस नेकर में ही खड़ा है। जोशुआ को ये अजीब लगा और वो उठकर चलने लगा।

पैड्रेग ने एक सख्त आवाज़ में कहा “मैंने तुम्हें जाने को नहीं बोला है जोशुआ”

जोशुआ रुक गया।

पैड्रेग ने एक टेबलेट जोशुआ को खाने को दी।

जोशुआ प्रश्नवाचक दृष्टि से पैड्रेग को देखने लगा तो पैड्रेग बोला “तुम्हें यात्रा में किसी भी प्रकार का कोई संक्रमण ना हो ये उसके लिए है, ले लो”

जोशुआ ने वो टेबलेट खा ली।

ये एक तरह की दर्द निवारक थी। जिसके कारण जोशुआ को दर्द की अनुभूति कम जायेगी।

पैड्रेग ने जोशुआ को अपनी गोद में बैठा लिया और बोला “तुम बहुत प्यारे हो जोशुआ, तुम्हारी ये नीली आँखें बहुत खूबसूरत हैं”

फिर पैड्रेग ने जोशुआ को अजीब तरह से चूमना शुरू कर दिया और जोशुआ को गोद से उतारकर वो पूर्ण नग्न हो गया। जोशुआ ने अपनी आँखों पर हाथ रख लिया।

पैड्रेग ने जोशुआ की आँखों से हाथ हटाते हुए कहा “जोशुआ क्या तुमने एडम और ईव की कहानी नहीं सुनी, वो नंगे ही रहते थे। अपनी शारीरिक और मानसिक इच्छाओं को पूर्ण करते थे, बिना किसी स्वार्थ के। फिर शैतान ने उन्हें ज्ञान का फल खिलाकर ज्ञान का अभिशाप दे दिया”

जोशुआ ने आँखें खोल ली और पैड्रेग के चेहरे की तरफ देखने लगा।

पैड्रेग ने फिर कहा “तुम अभिशप्त नहीं हो और ना मैं हूँ। हम दोनों ईश के सच्चे बेटे हैं। देखो ईश को दुःख होता है जब इन मानवों को अभिशप्त देखता है। इसलिए वो हमें सन्देश देता है, ताकि हम दुनिया को सही रास्ता दिखा सकें।”

जोशुआ को ये सुनकर उत्सुकता जागी और उसने कहा “क्या ईश सभी पादरियों को सन्देश देता है या बस आपको?”

पैड्रेग को उसकी बात का मर्म नहीं समझ आया क्योंकि वो अपनी वासना के नशे में अब धुत हो चूका था। उसने जोशुआ से कहा “सभी पादरियों को ईश बताता है कि उन्हें क्या करना चाहिए, पापी लोगों को उनके अभिशाप से मुक्त करने को। इसलिए सभी को पादरियों की बात माननी चाहिए”

फिर पैड्रेग ने जोशुआ के कपड़े उतार दिए। जोशुआ को पैड्रेग की आँखों में तैरती वासना नहीं दिख रही थी। उसका बाल सुलभ मन तो सोच भी नहीं सकता था कि पैड्रेग कुछ गलत करेगा।

पैड्रेग ने जोशुआ के साथ अपनी वासना की आग बुझानी शुरू कर दी थी। जोशुआ का कोमल शरीर जिसपर एस्लिया कभी खरोंच भी नहीं आने देती थी, वो शरीर एक हैवान के लिए भोग का साधन मात्र बन गया था। जोशुआ को तीव्र दर्द हो रहा था। उसकी आँखों की नसों में खून का प्रवाह इतना तेज हो गया था कि वो लाल हो गयीं थी। उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। पैड्रेग ने अपने हाथों से उसका मुंह भींच रखा था जिस कारण उसके हलक से आवाज़ नहीं निकल रही थी। वो कोमल शरीर भला कितना दर्द सहता। जोशुआ बेहोश हो गया। लेकिन पैड्रेग उसके बेहोश शरीर के साथ ही अपनी वासना की आग बुझाता रहा।

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सुबह जोशुआ को पैड्रेग ने जगाया। जोशुआ उठा लेकिन उसे दर्द महसूस हुआ। जोशुआ ने पैड्रेग से कहा “मुझे माँ के पास जाना है, मुझे नहीं जाना बड़े स्कूल में”

पैड्रेग ने अपनी जलती हुई आँखों से जोशुआ को देखा और बोला “क्या तुम चाहते हो कि ईश का कोप तुम्हारी माँ के उपर टूटे? चुप रहो तुम। मैं जो भी करूँगा वो ही सही है”

जोशुआ ने रोते हुए कहा “मुझे बहुत दर्द हो रहा है, आपने क्या किया रात मेरे साथ?”

पैड्रेग ने कहा “क्या तुमने स्टिगमेटा के बारे में नहीं जानते? जोशुआ मैंने भी एक दिन इसपर उपदेश दिया था। ईश चुनता है हम लोगों को दर्द सहने के लिए। क्या तुम ईश् के लिए दर्द नहीं सह सकते?”

जोशुआ चुप हो गया। उसके कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन वो अपनी माँ से और अपने अध्यापकों से ये ही सुनता आया था कि पादरी मानव समाज के कल्याण के लिए कार्य करते हैं और चर्च के भीतर कुछ भी गलत नहीं होता। क्योंकि वहाँ बुरी आत्माएं जा ही नहीं सकती।

पैड्रेग उसे चिकित्सक के पास ले गया। जोशुआ को चलने में भी दिक्कत हो रही थी। एक नर्स ने जोशुआ को बिस्तर पर लिटा दिया।

चिकित्सक ने जोशुआ के निजी अंगों की जाँच शुरू की, जोशुआ के शरीर पर भी पैड्रेग की वहशत के निशान थे और जोशुआ का गुदाद्वार बुरी तरह से जख्मी था।

चिकित्सक के मुहं से निकला “ब्लडी हेबेफाइल्स”

चिकत्सक पैड्रेग के पास आया

पैड्रेग ने चिकित्सक से गुस्से में कहा “कैसी दवा दी थी तुमने वो, बिलकुल असर नहीं हुआ। ये बेहोश हो गया था”

चिकित्सक : ये तो अभी छोटा भी बहुत है

पैड्रेग ने जलती हुई आँखों से चिकित्सक को देखा और कहा “कुछ देर बाद ही इन्हें जाना है यहाँ से, देखो इसे”

चिकित्सक जो अब सहम गया था, बोला “ठीक है फादर परेशान मत होइए, थोड़े जख्म हैं। दर्द निवारक दे दूंगा तो ये ठीक हो जायेगा”

पैड्रेग तब तक वापस मुड़ कर चल दिया था।

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जोशुआ जब चिकित्सा कक्ष से बाहर आया तो उसे अपने मल द्वार में हल्की दुखन महसूस हो रही थी। लेकिन यहाँ कोई नहीं था जिससे वो कुछ कहा पाता। दर्द निवारक के असर से वो दर्द तो दूर हो गया लेकिन एक भारीपन और थकान उसे महसूस दे रही थी। और एक मानसिक बोझ उस मासूम बच्चे के दिमाग पर प्रभावी हो चूका था।

सभी बच्चों नहलाने के बाद चर्च से मिले कपड़े पहना दिए गए। सभी ने सफ़ेद पेंट और सफ़ेद ही कमीज पहनी हुई थी। कुल 12 बच्चे थे और ये सभी बच्चे जोशुआ जैसी ही उम्र के थे। जोशुआ बहुत ही सुन्दर लग रहा था। लेकिन उसकी नीली आंखें नींद से बोझिल हो रही थी। सभी बच्चो को एक बस में बैठा दिया गया। बस आरामदायक थी, जोशुआ को बैठते ही नींद आ गयी। अभी जोशुआ गहरी नींद में गया भी नहीं था कि एक 45 वर्ष के अधेड़ पादरी ने आकर उसके गालो को छुवा। जोशुआ अभी भी रात के अपने उस दर्दनाक अनुभव में ही था तो वो एकदम से डरकर उठ गया। उसने देखा कि उसके सामने एक अन्य पादरी है जो मुहँ खोलकर मुस्कुरा रहा है। उसके पीले जर्द दांत और उसके गोर चेहेरे पर जगह जगह गहरे रंग के दाग हैं, जोशुआ को उसका चेहरा कुछ ख़ास पसंद नहीं आया। उसने जोशुआ के बराबर वाले बच्चे को अलग सीट पर बैठने के लिए कहा और खुद जोशुआ के बराबर में बैठ गया।

उसने जोशुआ के गालों पर हाथ फेरते हुए कहा “कैसे हो मेरे बच्चे?” 

जोशुआ डर से सिमट कर बैठ गया। उसने प्यार से जोशुआ के सर पर हाथ फिराया और बोला “मैं पादरी ग्रेमंड हूँ, अब यहाँ से आगे तक मैं ही तुम्हारे साथ रहने वाला हूँ। कोई भी समस्या हो तो मुझे बताना।”

जोशुआ सहमा सा उसकी बाते सुन रहा था। फिर ग्रेमंड ने जोशुआ के गालों को कोमलता से अपने हाथों में लिया और बोला “तुम बहुत प्यारे हो, तुम्हारी ये नीली आँखें बहुत सुंदर हैं”

और फिर उसने जोशुआ का सर अपनी गोद में रख लिया और बोला “सो जाओ”

जोशुआ डरा हुआ था लेकिन नींद ने कब उसे अपने आगोश में ले लिया उसे पता ही नहीं चला। जोशुआ सो गया।

अब जोशुआ को एक लम्बी यात्रा करनी थी। जो थल मार्ग और जल मार्ग दोनों से होनी थी।

जोशुआ का ये सफ़र बहुत अच्छा बीत रहा था। पादरी ग्रेमेंड के साथ भी वो सहज हो गया था। अपने साथ के अन्य बच्चों से भी उसकी मित्रता हो गयी थी।

ये लोग अरमाघ से ब्रिटेन के डोवर बंदरगाह तक गए। यहाँ से वो लोग फ़्रांस की एक छोटी जलयात्रा पर जाने वाले थे। यहाँ से भी कुछ बच्चे उनके साथ जुड़े। फिर वो फ्रांस गए, फ़्रांस से कुछ दिन थल मार्ग की यात्रा करने के बाद ये मेडिटेरियन सागर से होते हुए मिश्र के पोर्ट सईद पर पहुँचे। फ़्रांस में भी अलग अलग जगहों से बच्चे उनके समूह में जुड़ते चले गए थे। और इस तरह से वो अब 40 बच्चों का एक बड़ा समूह हो गया था। पोर्ट सईद से पुन: थल मार्ग से आगे की यात्रा थी, जहाँ से वो पोर्ट स्वेज तक आये। यहाँ से अब एक लम्बी समुद्री यात्रा थी।

जैसे ही किसी जगह पर नए बच्चो का समूह इनके साथ जुड़ता था तो जोशुआ के साथ अन्य बच्चों को बहुत ख़ुशी होती थी। यात्रा के जोश और नयी जगहों को देखकर तथा नए दोस्तों के मिलने से जोशुआ के मस्तिष्क से उस दिन की घटना धुंधली हो गयी थी। 

लेकिन मिश्र के बाद कोई बच्चा इनके समूह में शामिल नहीं हुआ था।

ये लोग पोर्ट स्वेज़ पर अपने जहाज के तैयार होने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

जोशुआ ने उत्सुकतावश पादरी ग्रेमेंड से पूछा “यहाँ से कोई भी बच्चा हमारे साथ नहीं आया, यहाँ के लोग अपने बच्चो को नहीं पढ़ाते क्या?”

पादरी ग्रेमेंड ने जोशुआ की तरफ देखते हुए कहा “ये देश मुस्लिमों के हैं, ये लोग ईश्वर के मार्ग से भटक गए हैं।”

जोशुआ ने कहा “तो क्या इन्हें सही रास्ते पर नहीं लाया जाएगा....”

ग्रेमेंड ने कहा “बेटा ये लोग अपने पापों से बुरी तरह से जकड़े हैं, यदि हम इन्हें सही मार्ग बताने की कोशिश भी करते हैं तो ये नहीं सुनते। मारकाट करने और खून बहाने पर उतारू हो जाते हैं। ये लोगों को उनके धर्म से भटकाते रहते हैं”

जोशुआ ये सुनकर थोड़ा डर गया था। कुछ देर एक संक्षिप्त मौन रखने के बाद जोशुआ ने पूछा “तो क्या इनके लिए ईश कुछ भी नहीं करेगा?”

पादरी ग्रेमेंड ने बेहद ही शालीनता से उत्तर दिया “ईश तो सबकी चिंता करता है, लेकिन कुछ लोग शैतान की परछाई के दायरे में ईश की भेजी रौशनी को देख ही नहीं पाते। सब तुम जैसे भाग्यशाली नहीं होते बेटा।”

जोशुआ ने फिर पूछा “उस शैतान को ख़त्म क्यों नहीं कर देते”

पादरी ग्रेमेंड ने एक हलकी सी मुस्कान के साथ उत्तर दिया “हमारे योद्धा समय समय पर धर्म युद्ध करके इन शैतानो को और उसके भेजे दूतों को ख़त्म करते रहते हैं”

जोशुआ ने ये बात सुनी और अपने मन में ही उन योद्धाओं की एक छवि उकेरनी शुरू कर दी। कहीं उसके मन में एक आवाज़ उठी कि उसे भी योद्धा बनना है।

जोशुआ ने बालसुलभ मासूमियत से कहा “क्या मैं भी योद्धा बन सकता हूँ?”

पादरी ग्रेमंड ने अपनी दोनों हथेलियों में जोशुआ के चेहेरे को भर लिया। जोशुआ की नीली आँखें उम्मीदों की लहरों से भरी गयीं थी। वो बहुत ही सुन्दर लग रहीं थीं।

पादरी ग्रेमेंड ने जोशुआ के माथे को चूमा और कहा “बिलकुल मेरे बेटे, तुम एक श्रेष्ट योद्धा बन सकते हो, लेकिन उसके लिए ईश कि परीक्षाओं को पार करना होगा। ईश्वर के द्वारा चुने गए दर्दों को सहकर मजबूत बनना होगा।”

तभी चलने की तैयारी शुरू हो गयी। जहाज में उनके लिए अत्यंत आरामदायक इंतजाम थे।

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जहाज अपनी यात्रा पर चल दिया था। लगभग 40 बच्चे और दो पादरी चार पास्टर और तीन ननो के साथ ये समूह अपनी यात्रा पर निकल चूका है।

रात के समय ग्रेमंड ने जोशुआ को अपने केबिन में बुलाया और जोशुआ से बोला “बेटा तुम्हें योद्धा बनना है ना?”

जोशुआ ने आशा भरी दृष्टि ग्रेमेंड पर डाली और सहमती व्यक्त की।

ग्रेमेंड ने जोशुआ को अपने गोद में बैठाते हुए कहा “तो तुम्हें दर्द को सहना सीखना होगा, इश्वर के बेटे जीसस ने भी दर्द सहा था”

और ग्रेमेंड ने जोशुआ के कपड़े उतारने शुरू कर दिए। जोशुआ के साथ पुन: वो ही सब हुआ जो पादरी पैड्रिग ने उसके साथ किया था। जोशुआ को एक बार फिर गंभीर शारीरिक कष्ट से गुज़ारना पड़ा था। ग्रेमेंड ने उसे अपनी वासना का शिकार बनाया था।

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जोशुआ अगले दिन सुबह बहुत ही अनमना सा है। वो समझ नहीं पा रहा है कि उसके साथ क्या हो रहा है? वो अपनी माँ एस्लिया से पूछ सकता था लेकिन वो अब संभव नहीं था। जोशुआ का मन इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है, जो कुछ भी उसके साथ किया जा रहा है..... वो भी ईश्वर के नाम पर, जीसस के नाम पर। उसे शुरू में लगता था कि ये सब बस उसे ही सहना पड़ रहा है लेकिन दो दिन गुजरने पर समझ आया कि उसके समूह का हर बच्चा जबसे चर्च की शरण में आया है तो उसके साथ ये सब हो चूका है। कुछ बच्चों को जोशुआ की ही तरह ये दर्द असहनीय पीड़ा दे रहा था तो कुछ बच्चे अपने बचपने के कारण इसे भुला भी पा रहे थे। अपनी यात्रा के दौरान जोशुआ को लगभग हर रोज़ ये पीड़ा सहनी पड़ी। दोनों पादरियों ने उसके साथ दुराचार किया। उसने देखा कि लगभग सभी पादरी और पास्टर ये कर रहे थे और समूह का हर बच्चा ये सह रहा था। सिर्फ बच्चे ही क्यों उसने ननो के साथ भी ऐसा ही कुछ होते देखा था। वो अभी नहीं समझ पा रहा था कि ये सब क्या है लेकिन जो भी था वो उसके लिए पीड़ादायी था।

11 दिन की यात्रा के बाद उनका जहाज भारत के कोच्ची बंदरगाह पर पहुंचा। यहाँ से लगभग 20 लोगो का समूह उनके साथ जुड़ा था। जिनमे लड़कियां भी थी। ये युवा थे कोई 14 से 17 वर्ष के मध्य। इनमें चार लड़कियां भी थी जो नन बनने के लिए जा रहीं थीं। वो 20 से 22 वर्ष की जवान लड़कियां थी। इन बच्चों में और पहले से आ रहे बच्चों में बहुत फर्क था। एशियन मूल के होने कारण इन सभी का रंग सांवला है। ये सभी बच्चे भारत के वनवासी या कथित दलित वर्ग से आते थे। भारत में इसाई मिसनरी की गतिविधियाँ बहुत ही प्रबल हैं और बड़े स्तर पर धर्मान्तरण का कार्य चल रहा है। ये बच्चे भी चुनकर भेजे गए थे, यहाँ के मिसनरियों के द्वारा। 

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भारत से सवार हुए सभी बच्चे और नन सांवले रंग के थे। उनकी अंग्रेजी का प्रशिक्षण चर्च के द्वारा पहले ही हो चूका था। बल्कि उनकी अंग्रजी किसी यूरोपियन देश के व्यक्ति से भी ज्यादा शुद्ध है। जोशुआ ने महसूस किया कि इन बच्चो को अलग रखा जाता था और पादरियों की दृष्टि में ये बच्चे कमतर थे। जो नन थी वो भी सांवली थी और यूरोप से साथ आ रही गौरी ननो की अपेक्षा उनको भी कम सम्मान मिलता था।

जोशुआ एक जिज्ञाशु बच्चा था। बाकी यूरोपियन लड़के जहाँ इन एशियन बच्चों से कम ही बात करते थे तो जोशुआ इनसे काफी घुल मिल गया था। वो इनसे प्रश्न पूछता था, इनके देश के बारे में और इनके समाज के बारें में।

जोशुआ ने एक भारतीय युवती से वार्तालाप शुरू करने के मंतव्य से मुस्कुराते हुए उसका अभिवादन किया और उसका नाम पूछा। दोनों को इंग्लिश का इतना अभ्यास है कि वो आपस में वार्तालाप कर सकें।

भारतीय युवती ने मुकुराते हुए उत्तर दिया “वनिथा”

वनिथा एक 18 से 19 वर्ष की साँवली और बहुत ही सुंदर युवती है। वनिथा के साथ एक भारतीय लड़का और भी खड़ा है जो 14 से 15 वर्ष का है। वो लड़के की जोशुआ को लेकर उत्सुकता उसके चहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थी। वैसे भी इन एशियन बच्चों के लिए ये गोर बच्चे आकर्षण का कारक रहते थे। क्योंकि वो देख रहे थे कि इनके साथ उनसे बेहतर व्यवहार किया जा रहा है। और इस तरह उनके अपने काले रंग को लेकर उनके भीतर एक हीन भावना ने जन्म ले लिया था।

वनिथा गर्मजोशी से मुस्कुराकर जोशुआ का स्वागत करती है। जोशुआ उसके गले में पड़ी एक मनके की रंग बिरंगी माला को अपने हाथ से स्पर्श करता है। और बोलता है “बहुत सुन्दर है ये माला”

वनिता जोशुआ के सर पर प्यार से हाथ फिराती है और एक झटके में वो माला उतार कर जोशुआ के गले में पहना देती है और बोलती है “तुम रख लो इसे”

फिर वनिथा जोशुआ का अपने साथ खड़े लड़के से परिचय करवाती है “ये है दिना महार”

जोशुआ, दिना से हाथ मिलाता है। जोशुआ उस माला को पाकर बहुत खुश है। अपनी माँ से बिछड़ने के बाद आज पहली बार उसे वनिथा के स्पर्श में वो ही अनुभव हुआ जो उसे अपनी माँ के स्पर्श में अनुभव होता था।

वो तीनो आपस में बहुत देर बात करते रहे।

पादरियों का और पास्टरों का दुराचार सब सह रहे थे। लेकिन भारतीय बच्चो और ननो से पादरी और पास्टर एक दुरी बनाकर रखते थे। पादरी अपने कपडे धुलवाने या अपनी गंदगी साफ़ कारवाने का कम अब इन भारतीय ननो और बच्चो से ही करवाते थे। परन्तु जब वो अपनी वासना की आग बुझा रहे होते थे तो तब वो इनसे कोई दुरी नहीं रखते थे।

कोच्ची से “पर्थ बंदरगाह ऑस्ट्रेलिया” तक की जल मार्ग से 13 दिन लम्बी यात्रा के दौरान जोशुआ बस ये समझ पाया था कि इश्वर बस दर्द दे रहा है और वो भी इन पादरियों के द्वारा।

इस समूह को पर्थ से टारडून तक जाना था, जो 600 किलोमीटर से भी लम्बी ज़मीनी यात्रा थी।

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पर्थ में उतरने के पश्चात दो दिन तक इनको पर्थ में ही रखा गया। ऐसा अनुकूलन के उद्देश्य से किया गया और इस समयांतराल में इनकी कुछ जरुरी स्वस्थ्य जाँच भी हुईं। फिर ये एक लम्बी ज़मीनी यात्रा करके टारडून पहुँच गए। ये एक बहुत ही छोटा सा क़स्बा है, जो मुलेवा और वैगन हिल रेलवे लाइन पर स्थित है। ये क़स्बा इस रेलवे लाइन के विस्तार के समय ही बसाया गया था। ये क़स्बा पश्चिम ऑस्ट्रेलिया में था। ये एक मरुस्थलीय क्षेत्र है, जहाँ वर्षा कम ही होती है। इसलिए यहाँ खेती बहुत कम होती है। चारों तरफ वनस्पति के नाम पर ऊँची झाड़ियाँ या बंजर भूमि ही है। वैसे ये कोई बहुत सुन्दर दृश्य नहीं है लेकिन फिर भी सभी बच्चो को ये सब देखना अच्छा लग रहा है। क्योंकि उनके लिए ये एक नयी दुनिया है।

“टारडून” एक बेहद ही छोटा सा क़स्बा है। जो रेलवे लाइन के किनारे बसा है और मात्र कुछ सो आबादी। इस कस्बे से कुछ किलोमीटर चलने पर “कोंग्रेगेसन क्रिश्चियन ब्रदर्स” का एक स्कूल है। इस स्कूल में टारडून की कुल संख्या से ज्यादा ही बच्चे और कर्मचारी हैं। “कोंग्रेगेसन क्रिश्चियन ब्रदर्स” संस्था की स्थापना एक कैथोलिक पादरी “एंडमंड रिच” ने की थी। विश्व भर में इस संस्था के द्वारा संचालित बहुत से स्कुल हैं। इस संस्था का मूल उद्देश्य विश्व के विभिन्न देशो में लोगो को मतान्तरित करके ईसाई बनाना है। विभिन्न देशो से मतान्तरित लोगो के बच्चो को इन स्कुलो में लाकर मुफ्त पढ़ाई करवाई जाती है। गरीब लोगो के लिए ये प्रलोभन बहुत बड़ा होता है कि उनका बच्चा विदेश के बढ़िया स्कुल में पढ़ेगा। हालाँकि इन स्कुलो से एक भी इंजिनियर या डॉक्टर नहीं निकला। सभी विद्यार्थी इसाईयत की पढ़ाई पढ़ते हैं। बल्कि उन्हें इसाइयत भी नहीं बस मतान्तरित करवाना सिखाया जाता है। ये बच्चे इन स्कुलो से निकल कर विश्व के विभिन्न हिस्सों में जाकर अन्य गैर इसाइयों के मतान्तरण का काम करते हैं। इन स्कुलो में यूरोपियन ईसाईयों के बच्चे भी आतें हैं पढ़ने के लिए। वेटिकन और इसाई समुदाय से बहुत बड़ी धन राशि इसको और इस जैसी अन्य संस्थाओं को मिलती है। मतान्तरण इसाइयत में एक बड़ा व्यवसाय बन गया है।

स्कूल एक भव्य इमारत में बना हुआ है। मटमैले पत्थर से बनी, पुरातन यूरोपियन शैली की रचना है ये इमारत। चारों तरफ काफी घनी और सुंदर बागवानी भी है। इस मरुस्थल में इस इमारत में एक सुन्दर नखलिस्तान बनाया गया है। इमारत के भीतर ही सभी के रहने और पढ़ने की सुविधा है। कुछ ख़ास पादरियों और पास्टरों के अलावा अन्य कसी को भी इमारत से बाहर जाने की अनुमति नहीं है।

इन समूह के साथ आये पादरी और पास्टर इन बच्चों और ननो को छोड़ कर वापस चले जायेंगे।

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स्कूल का व्यस्थापक बिशप “बिली रिच” है। “बिली” एक लम्बा और तगड़े शरीर का गौरा चिट्टा व्यक्ति हैं। उसके गौरे वर्ण के कारण उसके चहरे पर लाल चकत्ते दिखाई देतें हैं। बिली के बाल एकदम सफ़ेद हैं जो उसकी उम्र का एहसास करवाते हैं। लेकिन सेहत को देखें तो 65 वर्षीय बिली अभी भी ४० से ऊपर का नहीं लगता है। उसने एक महंगे कपड़े का बना कैसेक पहना हुआ है। उसके हाथ में सोने का चमकदार क्रोस है। और गले में भी एक सोने की मोटी चेन में लटका महंगे रत्नों से जड़ा क्रोस पहना हुआ है।

वो खुद सभी बच्चो और ननो को देख रहा है। एशियन ननो में उसकी ख़ास दिलचस्पी दिखाई दे रही है। वो भारत से आई इन जवान युवतियों को बहुत गहराई से निहार रहा है। उसने एक नन के चहरे को हाथ से सहलाया और फिर वो अपने हाथ को उसकी गर्दन से होता हुआ उसकी कमर तक लेकर गया। और उस नन के नितम्बो पर एक हलकी थपकी मारते हुए आगे बढ़ा।

तभी पादरी ग्रेमेंड ने जोशुआ को आगे करते हुए सम्मान के साथ कहा “बिशप बिली...ये जोशुआ है”

ग्रेमेंड ने जोशुआ को इस तरह से आगे किया था जैसे कि वो कोई उपहार हो।

बिली की दृष्टि जोशुआ पर पड़ी तो वो कुछ क्षणों के लिए उसे ही निहारता रहा। उसकी नीली और बेहद खूबसूरत आँखे उसको सम्मोहित कर रही हैं। वहाँ उपस्थित अन्य पादरी भी जोशुआ को ही निहार रहे हैं । परन्तु जोशुआ की मासूमियत भरी आँखों को देखकर इनमें से किसी के भी चेहेरे पर पितृत्व के भाव जागृत होते नहीं दिखाई दे रहे। बल्कि उनकी आँखों से उनकी वासना साफ़ झलक रही है।

विद्यालय समस्त सुविधाओं और भव्यता से परिपूर्ण है। एशियन बच्चो और यूरोपियन बच्चो को अलग- अलग रहने की व्यवस्था है। एशियन बच्चो और ननो को भी सुविधायुक्त कमरे और बिस्तर मिले हैं लेकिन वो यूरोपियन या कहें गौरे बच्चो के बिस्तरों से कमतर ही हैं। पहला दिन औपचारिकताओ में ही गुज़र गया। सभी बच्चों को उनके कक्ष पहले दिन ही मिल गए थे। भोजन की व्यवस्था भी बेहद सुन्दर है।

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अगले दिन सुबह बच्चो के प्रशिक्षण सम्बन्धी गतिविधिया प्रारंभ हो गयीं। एशियन बच्चो को प्रशिक्षण से अलग साफ़ सफाई का काम भी दिया गया था। 

दिना शोचालय साफ़ करके निकल रहा था तो जोशुआ उसके पास भागकर आया। जोशुआ गर्मजोशी से दिना से मिला। ये देखकर अन्य गौरे बच्चो को चिढ़ सी हुई। दोनों ने एकदूसरे का मुस्कान के साथ अभिवादन किया।

जोशुआ ने दिना से कहा “शाम में मिलते हैं, मुझे बहुत सी बातें करनी हैं तुमसे। तभी अन्दर से एक भारतीय युवती आई। वो वनिथा थी। दिना ने वनिथा को याद दिलवाने के मंतव्य से भारतीय भाषा में कहा “आई देखो जोशुआ”

तभी एक गौरे पादरी ने दिना की कमर पर एक जोरदार मुक्का मार दिया। दिना समझ गया था ये मुक्का उसकी कमर पर अंग्रेजी ना बोलने के कारण लगा है। जोशुआ को ये बुरा लगा तो उसने तुरंत प्रतिकार किया “ये क्या कर रहें हैं आप? क्यों मारा?”

 उस पादरी ने जोशुआ के प्रश्न का उत्तर दिना को देखते हुए दिया “ये गुलामी की भाषा है, बाहर निकलो इससे”

जोशुआ ने तुरंत कहा “सब यहाँ अपनी भाषा में ही बात करते हैं”

पादरी को जोशुआ की ये बगावत बिलकुल अच्छी नहीं लगी। उसने एक अन्य पादरी से जोशुआ को बिली के पास ले जाने को कहा। जोशुआ उस पादरी के साथ चल दिया। तब उस पादरी ने उस भारतीय नन को अपने कमरे में बुलाया। वो दोनों एकसाथ कमरे में चले गए।

उस पादरी ने वनिथा से अपने हाथ साफ़ करवाने में मदद मांगी। क्योंकि उसने दिना की कमर पर मुक्का मरते समय उसको छुवा था इसलिए वो हाथ धो रहा है। वनिथा उसके हाथ धुलवा रही है। वनिथा श्याम वर्ण की सुंदर युवती है।

उस पादरी के भाव एकदम से बदलने लगे। उसने वनिथा से कहा “वनिथा वो शोचालय साफ़ करके आया था इसलिए हाथ साफ़ करने पड़ेंगे”।

वनिथा बाहर जाने लगी तो उसने वनिथा को रोक लिया। उसने अपना एक हाथ वनिथा के नितम्बो पर टिका दिया और उसके निकट जाने का प्रयास करने लगा। वनिथा ने कहा “मैं भी शोचालय साफ़ करके आई हूँ, गन्दी हूँ अभी”

पादरी ने दार्शनिकता के साथ कहा “ये दुनिया ही गन्दी है। हम लोग पता नहीं कैसे-कैसे पाप कर्म में लगें हैं, जो बहुत गंदे हैं। तुम तो पवित्र हो वनिथा”

पादरी की पकड़ मजबूत थी। वनिथा ने स्वयं को बचाने का प्रयास किया लेकिन वो ज्यादा प्रतिरोध भी नहीं कर सकती थी। क्योंकि वो ये सब यात्रा के दौरान कई बार सह चुकी थी। अब तो वो बस ये प्रतीक्षा करती थी कि रोज़ कौन सा पादरी उससे अपनी वासना की आग बुझाएगा। वो ही नहीं हर बच्चे का ये ही हाल था। लेकिन जोशुआ और वनिथा जैसो के लिए उनकी सुन्दरता उनका अभिशाप बन चुकी थी। क्योंकि इनके साथ ये कुकर्म दिन में एक से ज्यादा पादरियों के द्वारा भी किया जाता था।

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जोशुआ को पादरी बिली के पास ले जाकर उसका अपराध बताया गया। बिली ने उस पादरी को भेज दिया और अपने कक्ष के दरवाजे को बंद कर लिया। जब भी जोशुआ किसी कमरे में इस तरह अकेले किसी पादरी के साथ होता था तो वो डर जाता था, क्योंकि हमेशा उसे वो ही पाशविकता सहनी पड़ती थी।

जोशुआ को बिली के रूप में शैतान दिखाई दे रहा है। जोशुआ रो पड़ा और बोला “फादर फिर ऐसा नहीं होगा माफ़ कर दीजिये। मुझे जाने दीजिये”

बिली ने जोशुआ को पकड़ते हुए कहा “नहीं तुम जानते हो तुम ईश्वर का उपहार हो मेरे लिए। तुम्हें सजा नहीं दूंगा बल्कि तुम्हें तो खूब सारा प्यार दूंगा”

जोशुआ ने लगभग चीखते हुए कहा “पहले ही वहाँ बहुत से घाव हैं, बहुत दर्द हो रहा है”

बिली ने जोशुआ की आँखों में आँखें डालते हुए कहा “ये दर्द हमारे पापों का प्रतिफल है। दर्द नहीं है इश ने तुम्हें चुना है जीसस के उस दर्द का अनुभव करवाने को। ये स्टिगमेटा है।”

बिली की वासना के झंझावत में जोशुआ की चीखे दब गयी थी। 

बिली के भीतर की आग शांत हुई तो उसने कहा “जोशुआ तुम वाकई में बहुत सुन्दर हो, मैं लगातार 100 बार भी तुम्हारे साथ कर सकता हूँ”

और कुछ देर बाद बिली पुन: उस ही पाशविकता में लिप्त हो गया।

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जोशुआ की तबीयत बिगड़ गयी थी क्योंकि बिली ने उस रात कई बार उसे अपना शिकार बनाया था। आधी रात के बाद एक पादरी से बिली ने जोशुआ को डॉक्टर के पास ले जाने को कहा। लेकिन वो पादरी भी पहले जोशुआ को अपने कक्ष में लेकर गया, बाद में डॉक्टर के पास।

जोशुआ दर्द से टूट चूका था। वनिथा ही आई थी उसके शरीर को साफ़ करने के लिए। वनिथा ने जब उसके क्षत विक्षत अंग देखें तो उसकी आँखों से आंसू बह निकले।

उसने जोशुआ के माथे को चूमा। बहुत दिनों बाद जोशुआ को मातृत्व का अनुभव हुआ था। वनिथा के चुम्बन में उसे अपनी माँ एस्लिया के होंठों की गर्माहट का अनुभव हुआ।

जोशुआ ने वनिथा से दर्द भरी आवाज़ में कहा “ईश्वर होता है क्या?”

वनिथा ने जोशुआ के माथे पर हाथ फिराते हुए कहा “होता है ना, होता है। हम सब को दर्द से मुक्ति मिलेगी...जरुर मिलेगी”

फिर उसने जोशुआ को चादर उढ़ा डी और जोशुआ को सोने के लिए कहा।

रात हो गयी है। वनिथा सोने जा रही है। उसने भी पूरे दिन वहशत को सहा था। वनिथा अपने कमरे की तरफ गयी ही थी कि एक पादरी जो कुछ दिन के लिए ही यहाँ आया था उसने उसे बुला लिया। वनिथा समझ गयी थी कि अभी पूरी रात और उसे दर्द सहना होगा।

उस पादरी के कमरे में एक और पादरी था। दोनों ने ही उसे अपना शिकार बनाया। दोनों बार बार कह रहे थे कि तुम भारतीय मसाला हो, एकदम खुशबूदार। वनिथा को घिन्न आ रही थी उनकी हरकतों से और अपनी सुन्दरता से भी।

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एस्लिया अपनी शादी से बहुत खुश थी लेकिन उसको जोशुआ से विरह का असहनीय वेदना भी सहनी पड़ रही थी। वो पैड्रेग के पास रोज़ ही जाती थी जोशुआ के बारे में जानकारी लेने। यात्रा के दौरान तो उसका जोशुआ से कोई संपर्क नहीं हो पाया था। लेकिन पैड्रेग के बताये विवरण के अनुसार अब जोशुआ को टारडून गए 20 दिन हो चुके थे। लेकिन एस्लिया का जोशुआ से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था। एस्लिया ने पैड्रेग से वहाँ का दूरभाष नंबर माँगा तो पैड्रेग ने ये कह दिया कि अभी वहाँ इमारत में कुछ काम चल रहा था तो फोन की सुविधा नहीं है। लेकिन जल्द ही फोन की सुविधा हो जाएगी और वो खुद उसकी बात जोशुआ से करवा देगा। एस्लिया रोज जोशुआ की याद में आंसू बहा रही थी। लेकिन फिर भी उसे ये विश्वास तसल्ली दे देता था की चर्च के स्कुल में जाकर जोशुआ की जिन्दगी बन जाएगी। वो पूर्णतया बेखबर थी कि उसका मासूम बच्चा भगवान के घर में ही शैतानो से घिरा है और रोज़ मर रहा है।

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रोज़ जोशुआ को कोई न कोई अपना शिकार बना रहा था। अब वो मानसिक रूप से पूरी तरह टूट चूका था। हालाँकि वहाँ हर बच्चे और नन के साथ ऐसा ही हो रहा था। लेकिन वनिथा या जोशुआ जैसे बच्चे जिन्हें प्रकृति ने अप्रतिम सौंदर्य दिया था वो इनकी वासना के बार बार शिकार होते थे। इनकी सुन्दरता इनके लिए अभिशाप बन गयी थी।

जोशुआ की पीड़ा लगातार बढ़ती ही जा रही थी। वो अब दिन और रात दोनों समय किसी ना किसी का शिकार होता था। एक पादरी से उसने रोते हुए जब छोड़ देने की याचना की तो वो पादरी बेशर्मी से बोला “जोशुआ तुम पर बस बिली का ही अधिकार नहीं है। तुमसे हम सबको प्यार है। तुम्हारी ये नीली आँखें हमें तुमसे दूर नहीं रख पाती हैं। तुम जानते हो? हममें शर्त लगी है, तुम्हारे साथ 100 बार करने की”

जोशुआ रोने लगा, उसे असहनीय शारीरिक दर्द हो रहा है, लेकिन अब उसकी मानसिक पीड़ा कहीं ज्यादा बढ़ चुकी थी। उसे अपनी सुन्दरता और नीली आँखों से घृणा हो रही थी। उसे जीसस के नाम से घृणा हो रही थी। वो दर्द से कराहते हुए रो रहा है और वो पादरी अपनी वासना में अँधा उसके साथ पाशविकता कर रहा है। वो पादरी नशें में बोले जा रहा है “मेरी गलती नहीं है जोशुआ ये तुम्हारी इन नीली आँखों की गलती है। हम चाह कर भी तुझसे दूर नहीं रह सकते”

जोशुआ को रोज़ ये दर्द सहना पड़ रहा था। उसे इस दर्द की आदत नहीं हुई थी लेकिन अब वो डॉक्टर के पास नहीं जाता था। वो पादरी उसे कमरे में अकेला छोड़ कर बाहर चला गया। जोशुआ जानता था कि शायद कुछ देर बाद ही कोई और भी आ जायेगा। उसे अपने आप से घिन्न आ रही थी। वो बच्चा जो माँ की गोद की गर्माहट में आराम महसूस करता था उसे ये पाशविकता सहनी पड़ रही थी।

जोशुआ ने सामने लगे दर्पण में खुद को देखा और फिर अपनी आंसुओं से भीगी नीली आँखों को देखा। वो उन आँखों को अपने छोटे और कोमल हाथों से पीटने लगा। जोशुआ को अपनी हर उस बात से घृणा हो रही थी, जिन्हें कभी लोग उसके लिए ईश्वर का आशीर्वाद बोलते थे।

जोशुआ लगातार रोये जा रहा था। उसने एक कागज़ लिया और पैन से उसपर रोते हुए लिखने लगा। और उसने वो ही पैन अपनी आँखों में घुसा दिया। तीव्र वेदना से वो छटपटा कर पीछे को गिर गया। लेकिन ये दर्द उस दर्द के सामने कुछ नहीं था जो वो सह रहा था। उसने वो पैन अपनी दूसरी आँख में भी घुसा लिया। वो पुन: उठा, उसकी एक मुट्ठी में वो कागज़ था जिसपर उसने कुछ लिखा था। उसकी दोनों आँखों से अब रक्त की धार फुट रही है। इस तरह उसने अपने अभिशाप, अपनी नीली आँखों को ख़त्म कर दिया है, वो नीली आँखें जिन्हें उसकी माँ भगवान का आशीर्वाद बोलती थी। जोशुआ दर्द से तड़प रहा है, उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। वो दर्द से तड़पते हुए आगे बढ़ता है तो वो कमरे की खिड़की तक पहुँच जाता है। ये खिड़की एक बड़ी खिड़की है जो फर्श से एक फुट उंचाई से शुरू होकर 10 फुट उंचाई तक गयी है। खिड़की खुली हुई है और ये कमरा तीसरी मंजिल पर है। जोशुआ चलते चलते खिड़की तक पहुंचा और एक जोर की ठोकर खाकर उस खिड़की से नीचे आकर गिर गया।

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जोशुआ का कोमल बदन पूरी तरह से क्षत-विक्षत नीचे बाग़बानी के गमलों के ऊपर पड़ा हुआ है। उसका रक्त रंजित मस्तक और मुख बता रहा है कि वो अपने दर्द से मुक्ति पाकर शांति के मार्ग पर आगे बढ़ चूका है। वनिथा ने जो रंगीन मनको की माला उसे दी थी वो टूट कर बिखर गयी थी और उसके मनके उसपर कुछ ऐसे बिखरे हुए हैं जैसे कि उसके ऊपर ईश्वर ने मोतियों और रत्नों की श्रद्धांजलि अर्पित की हो। उसके हाथ से छुटकर वो कागज़ का टुकड़ा उसके बराबर में ही गिर गया। हवा का झोंका आया और उस कागज़ के सलवट को इस तरह से खोल गया जैसे कि जोशुआ की माँ एस्लिया नवजात जोशुआ की बंद मुट्ठियों को खोलती थी।

जोशुआ ने उसमें कुछ शब्द लिखे थे अपनी माँ और ईश्वर के के लिये

“प्यारी माँ ...जब मैं आपकी गोद में नहीं होता हूँ तो मुझे कोई खिलौना या मिठाई अच्छी नहीं लगती। आप जब मेरे मुंह को चूमती हो तो वो मेरे लिए सबसे खूबसूरत एहसास होता है। मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया था जो आपने मुझसे अपनी गोद छीन ली। मुझे यहाँ आकर एहसास हुआ कि आपकी गोद से सुंदर कोई जगह नहीं हो सकती, ईश्वर यदि कहीं हैं तो उसका लोक भी आपकी गोद से सुन्दर नहीं हो सकता। माँ जिस चर्च को आप ईश्वर का घर बोलती हो उसके भीतर बस शैतान बैठे हैं, और वो हम सब को बस पीड़ा देते हैं, वो भी ईश्वर के नाम पर ही।

ईश्वर अगर तुम हो तो मुझे मेरी माँ की गोद में पहुंचा दो.....फिर एकबार...”  


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