satish bhardwaj

Horror Romance Tragedy

4.5  

satish bhardwaj

Horror Romance Tragedy

बंधन

बंधन

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राजन चार्टर्ड एकाउंटेंट था। उज्ज्वल भविष्य था उसका, एक गरीब परिवार में पैदा हुआ था। लेकिन उसके पिता ने भले बड़ी संपत्ति ना जोड़ी हो परन्तु अपने बेटे और बेटी को शिक्षित करने की तरफ विशेष ध्यान दिया। एक ही कमरा था उसमें ही एक किनारे पर रसोई थी। कमरे के बाहर आगे खाली पड़ी जगह में शौचालय और स्नानघर बना हुआ था। ये खाली प्लाट और इसमें बना एक कमरा राजन के पिता की पुस्तैनी सम्पत्ति थी। इस एक कमरे के अलावा और कुछ निर्माण करने लायक आय कभी राजन के पिता की नहीं हुई थी। लेकिन इतनी दुरूह परिस्थति में भी राजन ने CA की परीक्षाएं पास की, जो सभी के लिए प्रेरणादायक उदाहरण था। राजन ने अपनी किताबों के अलावा अन्य किसी बात पर कभी ध्यान ही नहीं दिया था, जिसका असर ये था कि राजन हद से ज्यादा सज्जन था।

लेकिन आज उस खाली प्लाट पर एक सुंदर घर था। इसके लिए राजन की अपनी कमाई तो नहीं लेकिन राजन का CA होना ज़रुर जिम्मेदार था। राजन के नौकरी लगने के बाद ही राजन के पिता सुरेश ने भी अपनी मुनीमगीरी की नौकरी छोड़ दी थी। वैसे भी एक लकड़ी की टाल पर मुनीमगिरी करके कोई ख़ास तनख्वाह तो मिलती नहीं थी।

राजन सुहाग सेज पर प्रतीक्षा कर रही सुमेधा के निकट आया। सुमेधा भी CA थी। दोनों एक साथ एक ही कम्पनी में जॉब करते थे। बढ़िया तनख्वाह थी दोनों की ही।

उन दोनों का मिलन दोनों को एक स्वप्न के सामान लग रहा था। हालाँकि दोनों पहले से ही प्रेम सम्बन्ध में थे तो दोनों के मध्य की दूरियाँ और मर्यादाएं तो पहले ही समाप्त हो चुकी थी। लेकिन फिर भी दोनों के लिए ये रात ख़ास थी क्योंकि आज दोनों ने एक दूसरे का वरण सामाजिक परम्पराओं के अनुसार किया था। उनका कमरा भी उनके स्वप्नों के समान ही अत्यंत सुन्दरता से सजा हुआ था। फूलों से पूरा कमरा और सुहाग सेज सजी थी। कमरे में मद्धिम प्रकाश फैला था।

दोनों एक दूसरे से बस आँखों से ही बात कर रहे थे। और आँखों से ही राजन ने सुमेधा के समक्ष अपना प्रणय निवेदन किया, आज फिर। दोनों अब जब एक दूसरे को पा चुके थे तो एक दूसरे में समा जाना चाहते थे। राजन जैसे ही सुमेधा के निकट गया तो सुमेधा के शरीर की गंध ने राजन के नथुनों को उद्दीपित कर दिया। लेकिन जिस गंध से राजन को मदहोश हो जाना चाहिए था। उस गंध से राजन एकदम से घबरा सा गया। उसे ये गंध जानी पहचानी लगी। हाँ कभी ये गंध उसके इस कक्ष और उसके जीवन का हिस्सा थी। जब भी रात्रि में या सुबह नहाने के बाद राशि उसके पास आती थी या कमरे में भी आती थी तो ये ही गंध उसके दिमाग में भर जाती थी।

राशि राजन की पहली पत्नी.....

राजन ने पहले कभी भी ये गंध सुमेधा के शरीर में महसूस नहीं की थी। राजन को सुमेधा की शारीरिक बनावट भी एकदम से राशि जैसी ही लगने लगी। उसे लग रहा था जैसे उसने सुमेधा को नहीं बल्कि राशि को ही आलिंगनबद्ध किया हुआ है। राजन जड़वत सुमेधा के पीछे उसे आलिंगनबद्ध किये खड़ा रह गया और उसके मुंह से अनायास ही निकला “रा रा रा ...राशि”।

“राशि” इस नाम को सुनते ही सुमेधा पर तुषारापात हो गया।

सुमेधा जो अब तक प्रेम और वासना से लाल हो रही थी अब ये लाली उसके क्रोध के परिणाम में बदल गयी। वो झटके से राजन की तरफ घूमते हुए पीछे हटी और गुस्से में लेकिन फुसफुसाते हुए बोली “आर यु गोन मैड....आज भी उस अनपढ़ जाहिल का नाम याद आ रहा है तुम्हें”

राजन के चेहरे पर पसीना था इस सितम्बर की रात में भी। वो सकपकाते हुए बोलता हुआ सुमेधा की तरफ बढ़ा “सो सो सो..सॉरी सुमेधा बट मुझे तुम्हारे शरीर से ये खुशबू.....पहले कभी ऐसी खुशबु नहीं आई तुम्हारे शरीर से”

सुमेधा का मुड़ कुछ ज्यादा ही ख़राब हो गया था। वो एकदम तिलमिलाते हुए बोली “अपनी बकवास बंद करो तुम, तुम्हें मुझमे से उस गवाँर की खुशबु आ रही है या फिर तुम्हें आज भी वो ही याद आती है?”

सुमेधा क्रोध के साथ प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी तरफ देख रही थी।

राजन ने स्थिति को सँभालते हुए कहा “डोंट टेक इट अदरवाइज, प्लीज माई डियर सुम्मु, कौन सा परफ्यूम लगाया है आज तुमने?”

सुमेधा ने झल्लाते हुए कहा “जैसन वु, तुम्हारी उस गवाँर राशि ने कभी इसका नाम भी नहीं सुना होगा, मुझे तो डाउट है कि उसे बॉडी को परफ्यूम करना आता भी होगा। आज हमारी सुहागरात है और तुम उस मरी हुई औरत के ख्यालो में खोये हो।”

सुमेधा के लिए ये बेहद ही निराशाजनक था कि उसकी सुहागरात को ही उसका पति अपनी पहली पत्नी के नाम से उसे पुकारे। राजन ने भी इस परफ्यूम का नाम पहली बार ही सुना था। लेकिन वो अब भी ये ही सोच रहा था कि ये खुशबु उसने राशि के शरीर में एक बार नहीं हर बार महसूस की थी। और फिर उसका वो एहसास... कि उसकी बाहों में सुमेधा नहीं बल्कि राशि है। उसे ये ही लग रहा था कि वो गलत नहीं हो सकता। राशि और सुमेधा की देह यष्टि में बहुत अंतर था। सुमेधा पतली दुबली थी जबकि राशि का शरीर स्वस्थ था। उसका मस्तिष्क चकरा रहा था। राशि की मौत को एक वर्ष बीत गया था और सुमेधा के साथ राजन के सम्बन्ध ढाई वर्ष से थे लगभग 2 वर्ष से तो वो दोनों हर मर्यादा को लांघ चुके थे। लेकिन उसे पहले कभी भी ये महसूस नहीं हुआ।

सुमेधा सो चुकी थी या सोने का बहाना कर रही थी। राजन की मन:स्थिति अब बदल चुकी थी। कुछ देर पहले तक वो सुमेधा के अंक में उतर जाने को तैयार था परन्तु अब नहीं। वो भी बेड के एक कोने में लेट गया।


राजन 4 वर्ष पहले कि यादों में खो गया। राजन के CA का एग्जाम क्वालीफाई करते ही उसकी नौकरी घर के निकट ही एक बड़े कारखाने में लग गयी थी। वो अपनी जिन्दगी से बहुत ज्यादा खुश था। वो शाम को ऑफ़िस से घर अपनी नयी मोटर साइकिल पर वापस आया था। घर जिसमें बस एक कमरा था वो भी बहुत पुराना निर्माण था।

घर के बाहर ही एक बुल्लेरो गाड़ी खड़ी थी। जो किसी पड़ोसी की तो नहीं थी। राजन अपनी बाइक आंगन में खड़ी करके कमरे में प्रविष्ट हुआ तो देखा दो लोग उसके पिता की ही आयु के बैठे हैं। राजन को देखते ही उसके पिता सुरेश बोल पड़े “लो आ गया”

राजन ने सभी को नमस्कार किया। उन दोनों ने राजन से उसी नौकरी के सम्बन्ध में कुछ बातें की। राजन को ये अभी भी नहीं पता चला पाया था कि ये हैं कौन?

फिर वो दोनों लोग उठकर चलते हुए राजन के पिता सुरेश से बोले “तो देखिएगा जी विचार करके, हम तो उम्मीद लेकर ही आयें हैं”

फिर सुरेश उन दोनों को बाहर तक विदा करने गया।

राजन ने अपनी माँ मंजू से पूछा “कौन थे मम्मी ये?”

मंजू ने गौरवान्वित भाव के साथ कहा “जहाँ गुड़ होगा वहाँ मक्खी तो आयेंगी ही”

राजन के कुछ समझ नहीं आया और हाथ के पंजे को चक्राकार घुमाकर पुन: अपनी उत्कंठा का प्रदर्शन किया।

मंजू ने कहा “तुझे देखने वाले थे बावले”

राजन ने सुनकर अपने कपड़े बदलने शुरू कर दिए।

सुरेश भीतर आया तो मंजू ने प्रश्न किया “ये गाड़ी इनकी ही थी?”

सुरेश : हाँ इनकी ही होगी, बढ़िया पैसे वाले लोग हैं। मेन मार्किट में ही कई दुकानें हैं, खेती बाड़ी भी अच्छी है और अपना आढत और ब्याज का भी तगड़ा काम है। लाखों महीने का तो किराया ही आता है।

मंजू : कितने बच्चे हैं?

सुरेश : इकलौती लड़की है। बस एक भाई है। दो चाचाओं में से एक के दो लड़के दूसरे के एक्लाद्का और एक लड़की है। अभी तो लड़की के दादा दादी भी जिन्दा हैं। सब एकसाथ ही रहते हैं। देखा है एक बार इनका घर, राकेश कि रिश्तेदारी है इनसे। उसके साथ ही गया था। 1000 गज से भी ज्यादा में बना हुआ है मकान।

मंजू : क्या राकेश ने ही बताया था इन्हें राजन के बारे में?

सुरेश ने सहमती में सर हिला कर जवाब दिया।

सुरेश एक तेज तर्रार व्यक्ति था। पूरे परिवार पर एक कड़ा नियंत्रण था सुरेश का। जबकि राजन एक सीधा युवक था पूरी तरह से पिता के नियंत्रण में रहने वाला। राजन की जिन्दगी का छोटे से छोटा निर्णय भी सुरेश ही लेता था।

मंजू ने निराशा के साथ कहा “लड़की को तो ब्याह दिया क्योंकि दूसरे के घर जाना था। पर बहु तो इस घर में ही आएगी, इस एक कोट्ठे में कैसे कर ले इसका ब्याह?”

सुरेश ने अपनी चिरपरिचित शैली में कहा “तू चुप रह मैं सब कर लूँगा”

मंजू चुप हो गयी।

राजन को वैसे भी इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ना था क्योंकि क्या करना है ये सब निर्णय सुरेश को ही लेने थे और इस बात से आज तक राजन को कोई असुविधा भी नहीं हुई थी। बल्कि वो तो आदि था इस व्यवस्था का, वो अपने पिता के बिना एक छोटा सा निर्णय लेने में भी सक्षम नहीं था। उसे सब किताबी कीड़ा कहते थे।

अपनी अतीत की यादों में खोये पता नहीं कब राजन को नींद आ गयी और सुमेधा भी सो चुकी थी।


 सुबह राजन की आँख एक हलकी सी गुनगुनाहट से खुली। जब उसके कानों में मधुर स्वर लहरी गूंजी “सजना है मुझे.. सजना के लिए ...हाँ हाँ ...हाँ हाँ ..हाँ हाँ.. ह्म ह्म ह्म ह्म ह्म ह्म”

राजन के सामने राशि साक्षात् खड़ी थी अपने उस चिरपरिचित अंदाज़ में ही। गीले खुले बालों में बालों की नोक तक आ गयी पानी की बूँदें मोतियों की तरह लग रही थी। ये गाना राशि अक्सर गुनगुनाया करती थी।

राजन एकदम से हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ। उसके चेहरे पर पसीना था और घबराहट में उसकी आँखें फटकर गोल हो गयीं थी। सुमेधा ने उसका कन्धा जोर से झटकते हुए कहा “क्या हुआ राजन? राजन..राजन तुम ठीक तो हो?”

सुमेधा ने अपने नर्म हाथों में उसका चेहरा ले लिया और उसे अपनी छाती से लगाने की कोशिश की लेकिन राजन ने झटक कर उसे अपने से अलग कर दिया और सीधा प्रश्न किया “कौन सा गाना गा रहीं थी तुम?”

सुमेधा के कुछ समझ नहीं आया और वो राजन के निकट जाती हुई बोली “ये हो क्या रहा है तुम्हें?”

राजन ने अब थोड़ा गुस्से में पूछा “यार बस ये बताओ तुम कोई गाना गुनगुना रहीं थी क्या?”

सुमेधा ने घबराते हुए कहा “हाँ यार अब इसमें क्या प्रोब्लम है?”

राजन : कौन सा गाना गा रहीं थी ?

सुमेधा ने थोड़ा सा अपने दिमाग पर जोर डालते हुए जवाब दिया “सजना है मुझे सजना के लिए”

फिर राशि ने राजन से पूछा “क्या हुआ तुम कुछ नार्मल नहीं लग रहे”

राजन बिना कुछ जवाब दिए कमरे से बाहर चला गया।

सुबह से दोपहर होते होते राजन कुछ सामान्य हो चला था। लेकिन वो सुमेधा के ज्यादा निकट नहीं आया था। वैसे भी आने जाने वालो का तांता लगा था। शाम को ही सुमेधा के परिवार वाले उसे लेने आ गए। एक दिन सुमेधा अपने घर रहने वाली थी फिर वापस आकर दोनों सिंगापूर जाने वाले थे, हनीमून के लिए।


राजन अकेला अपने कमरे में था। वो सुबह और रात की घटनाओं के बारे में ही सोच रहा था। सुमेधा को राजन ने पहले भी गुनगुनाते हुए सुना था। राशि और सुमेधा की आवाज़ में बड़ा फर्क था और शैली में भी। जहाँ सुमेधा एक बड़े शहर से थी और उच्च शिक्षित थी तो उसकी भाषा शैली बहुत ही नियंत्रित थी, राशि की भाषा शैली देशज थी क्योंकि उसका जीवन एक छोटे से कस्बे में बीता था और वो पढ़ी हुई भी बस इंटर तक ही थी। राशि एक सामान्य से ज्यादा स्वस्थ देहयष्टि, गौरवर्ण और एक मोहक चेहरे की स्वामिनी थी। देहाती परिवेश में पली होने के कारण उसके स्वभाव में हिचकिचाहट थी, वो ज्यादा खुलकर वार्तालाप नहीं कर पाती थी और जहाँ तक फैशन और कपडे पहनने की समझ है तो परम्परागत और सीमित ही थी। जिस कारण वो 16 श्रृंगार तो कर सकती थी परन्तु स्वयं को एक आधुनिक नारी के रूप में ढाल पाने की समझ उसमें नहीं थी।

दोनो की आवाजें भी एकदम भिन्न थी लेकिन फिर भी सुबह जो आवाज़ राजन ने सुनी थी वो एकदम राशि की ही आवाज़ थी। राशि की मौत के बाद एक वर्ष तक राजन को कभी ये एहसास नहीं हुआ कि राशि कभी उसकी जिन्दगी में थी भी। बल्कि शादी के बाद जैसे ही उसके जीवन में सुमेधा आई तभी से राजन के लिए राशि महत्वहीन हो गयी थी। राशि के जीवित रहते भी कभी राजन को उसकी उपस्थिति अपनी जिन्दगी में महसूस नहीं होती थी। शादी के एक वर्ष बाद से ही राशि राजन के परिवार के लिए एक बोझ बन गयी थी।

राजन पुन: अपनी अतीत की यादों में खो गया। जब उसके रिश्ते की बात राशि से चल रही थी।

राशि के पिता ने सुरेश को भरोसा दिया कि राशि उनकी अकेली लड़की है और वो उसके लिए राजन जैसा ही सज्जन लड़का तलाश रहे थे। सुरेश भी उत्साहित था कि उसके CA पुत्र के कारण एक अमीर परिवार में उसकी रिश्तेदारी हो रही है। सुरेश के सामने बस एक ही समस्या थी उसका एक कमरे का घर वैसे उस प्लाट का आकार तो पर्याप्त था लेकिन उसमें निर्माण को काफी पैसा चाहिए था।

राशि के पिता ने सुरेश को विश्वास में लेते हुए कहा “सुरेश जी मेरी एक लड़की है। बहुत सोच रखा है उसके लिए, मुझसे आप दावत से अलग 50 लाख नकद ले लो और उसका क्या करना है आप खुद देख लेना। लेकिन शादी जल्दी ही करनी पड़ेगी, मेरे बेटे का रिश्ता पक्का हो चूका है उन्हें बस इसलिए रोक रखा है कि पहले बेटी की शादी करूँगा”

सुरेश के दिमाग में सारे समीकरण घूम गए थे। उसने कृतज्ञता प्रकट करते हुए राशि के पिता से कहा “ये तो जी आपकी महानता है। मेरे पास तो जी बस मेरी औलाद ही है संपत्ति के नाम पर। आप कहाँ और हम कहाँ? समस्या ये ही है जी कि इस एक कमरे में कैसे बहु को ब्याह कर लाऊं?”

राशि के पिता ने अब थोडा खोलकर सारा समीकरण समझाया “देखो जी राशि का 50 लाख राजन का ही है। दो तीन महीने में मकान खड़ा हो जाता है। प्लाट आपका है ही बढ़िया, शादी के बाद जबतक गौना होगा तब तक तो जी मकान बन के खड़ा हो जागा”

हालाँकि ये समीकरण सुरेश के दिमाग में भी था लेकिन वो अपने मुहँ से बोलने से बच रहा था। सुरेश के पास कुल संपत्ति के नाम पर बस ये एक प्लाट ही था। इसकी कीमत भी ज्यादा से ज्यादा 25 लाख होगी, बाकी इससे अलग कुल जमा तो 2 लाख भी सुरेश के पास नहीं थे। जो थे वो भी राजन की तनख्वाह ही थी। बिटिया की शादी का 3 लाख का क़र्ज़ भी सुरेश पर था। सुरेश के भीतर की मज़बूरी और लालच को राशि के पिता ने अपने प्रस्ताव से बंधक बना लिया था।

राजन और राशि का विवाह हो गया। सुरेश की उम्मीदों से भी ज्यादा ही बढ़िया शादी हुई थी। लेकिन जिन 50 का वादा था उसमें थोड़ी सी कमी रह गयी थी। राशि के पिता ने 25 लाख नकद दिए थे और 25 लाख की एक फिक्स करवा दी थी।

सुरेश ने जब ये प्रश्न किया तो राशि के पिता ने समझा दिया “25 लाख में तो जी मकान भी बन जागा और जो समान एसी-टीबी हो वो भी आ जागा। बाकी वो 25 लाख पहले से ही फिक्स थे जी, बीच में तुडवा के आपका ही नुक्सान होगा। आप मकान का काम छेड़ो जी, क्यूँ अपनी फिक्स तोड़ो? जो कुछ कमी बेसी रह जागी तो हम हैं जी। अब राजन थारा ई ना म्हारा भी बेट्टा है जी”

सुरेश को भी ये बात सही लगी। वैसे भी राशि के पिता ने वो 25 लाख की फिक्स सुरेश को सौंप दी थी।

शादी के बाद राजन की सुहाग रात नहीं मन सकी थी क्योंकि एक ही कमरा था। राजन जिसने कभी ब्लू फिल्म भी ढंग से नहीं देखी थी उसके लिए ये एक बड़ी सजा के सामान था। राशि अपने घर गयी और पूरे तीन महीने बाद गौना होकर वापस आई जबतक मकान बन चुका था।

विवाह के तीन महीने बाद राजन और राशि का मिलन हुआ था।

अपने अतीत की यादों में खोये हुए ही राजन को नींद आ गयी।


सुमेधा अपने घर से वापस आ गयी। आज रात सुमेधा अपनी सुहाग रात को एक बार और विशेष बना देना चाहती थी। वैसे तो इन दोनों के मध्य शादी से पहले भी कुछ ऐसा बचा नहीं था जो विशेष हो।

राजन को सुमेधा ने कमरे से बाहर भेजा और 30 मिनट बाद आने को कहा। 30 मिनट बाद जब राजन कमरे आया तो वो सुमेधा को देखता ही रह गया।

सुमेधा ने एक बेहद ही उत्तेजक लाल रंग की लौन्जरी पहनी थी। उस पारदर्शक लौन्जरी में सुमेधा के पतले शरीर के पुष्ट उभार और भी ज्यादा उभर कर दिखाई दे रहें थे। राजन वैसे भी सुमेधा का दीवाना था तो उसके इस रूप ने राजन को सम्मोहित कर दिया। राजन के भीतर एक बेसब्री जाग गयी और उसने झटके से अपने सारे कपडे उतार कर सुमेधा को बाहों में भर लिया। दोनों एक दूसरे में समां जाने को आतुर थे। दोनों ने एक दूसरे के शरीर को अपने मुहँ के द्रव्य से सराबोर कर दिया था।

राजन उत्तेजना के वशीभूत एकदम पागल सा हो चुका था। इस सब में राजन का बाज़ू सुमेधा की गर्दन पर आ गया और उसका दबाव इतना ज्यादा हो गया कि सुमेधा का दम घुटने लगा। राजन सुमेधा के कानों को चूम रहा रहा था और अपनी प्रणय यात्रा को तीव्रता से आगे बढ़ा रहा था।

सुमेधा ने अपनी घुटी सी आवाज़ में राजन से कहा “मार कैई दम लोगे क्या? मेरा गला दबा दिया तमनै तो”

ये शब्द राजन के कानों में बिजली की तरह कौंध गए, वो ही आवाज़ और वो ही शब्द और वो ही भाषा शैली। उसने झटके से ऊपर उठते हुए देखा तो कमरे के नाईट बल्ब की हलकी नीली रौशनी में उसे अपने आगोश में राशि दिखाई दी। वो झटके से पीछे हट गया। उसके मुहँ से एक भयाक्रांत आवाज़ निकली “राशि”।

आज फिर सुमेधा के सपनों पर प्रहार हो गया था। सुमेधा जल उठी थी, वो लगबघ चीखते हुए बोली “तुम पागल हो चुके हो, अपना इलाज करवाओ समझे”

राजन एकदम से यथार्थ में वापस आया था। उसने सुमेधा के आगे हाथ जोड़ने की मुद्रा में कहा “प्लीज चिल्लाओ मत सुम्मो, पापा मम्मी जाग जायेंगे”

सुमेधा एकदम से शांत हो गयी और गुस्से में बोली “तुम क्या बक रहे हो, वो भी तो देखो”

सुमेधा आज कुछ ज्यादा ही अभद्रता पर उतर गयी थी। राजन ने सुमेधा से कहा “तुमने क्या बोला था ...वो कुछ ऐसा.. “मार कैई दम लोगे क्या?...”

सुमेधा ने अपने माथे पर हाथ रखते हुए कहा “अब यार जब तुम मेरा गला दबाओगे तो कुछ तो कहूँगी ना। या फिर मर जाऊं...यू आर सच अ डैम डंप”

राजन ने गुस्से में कहा “मेरा हाथ तुम्हारे गले पर नहीं था...और इतने देशी अंदाज़ में तुम बात नहीं करती”

सुमेधा : तो मैं झूठ बोल रहीं हूँ क्या? मैं तुम्हारी तरह बेवकूफ नहीं समझे। अगर तुमसे कुछ नहीं होता है या फिर आज भी तुम्हें उस गवाँर की ही याद आती है तो मुझसे शादी क्यों की? और किसी देशी अंदाज़ में नहीं बात की मैंने, मैंने बस ये कहा “गला घूंट रहा है मार डालोगे क्या?”

राजन को अब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने सुमेधा से याचना करते हुए उसको बाहों में भरने का प्रयास किया और कहा “सॉरी बेबी, फॉरगेट इट, बट यार तुम तो कभी इस अंदाज़ में बात भी नहीं करती एकदम देशी”

सुमेधा ने झटके से उसे अलग किया और बोली “भाड़ में जाओ यार तुम”

सुमेधा की आँखें सजल हो गयी थी। वो बिस्तर पर जाकर लेट गयी। राजन ने एक बार फिर उसके कंधे को छूने का प्रयास किया तो उसने एक झटके से अलग कर दिया।

राजन भी एक तरफ को लेट गया।


लेटते ही राजन पुन: अपने द्वन्द में खो गया। राजन को ये ही लग रहा था कि उसका हाथ सुमेधा के गले पर नहीं था। और सुमेधा की भाषा शैली बहुत ही सभ्य है लेकिन वो अंदाज़ तो एकदम देहाती था बिलकुल राशि की तरह। राजन पूर्ण निश्चिन्त था कि वो आवाज़ और वो शब्द सुमेधा के नहीं वो तो राशि के ही थे।

राजन एक बार फिर अतीत की यादों में खो गया।

शादी के बाद राशि अपने मायके चली गयी थी। दोनों का मिलन अधूरा ही रहा था क्योंकि एक कमरे में जब परिवार के अन्य सदस्य और मेहमान भी हों तो वो संभव ही नहीं था।

लगभग तीन महीने में मकान बना और तब तक राशि अपने मायके में ही रही। इस दौरान राजन और राशि फोन के माध्यम से संपर्क में रहे। राशि की देशज भाषा और शैली राजन को बहुत अच्छी लगती थी। हालाँकि राशि काफी संभलकर बात करती थी लेकिन जैसे ही बातों का दौर लम्बा खींचता तो राशि अपनी नैसर्गिक शैली में पहुँच जाती थी। तुम या आप की जगह तम बोलकर राजन को संबोधित कर देती थी। राजन को ये बहुत अच्छा लगता था। ऐसे ही और भी कई अपभ्रंश थे जो राजन को राशि की शैली में भाते थे और वो बातों में उलझा कर प्रयास करता कि राशि उन शब्दों को बोले।

दोनों के मध्य बहुत अच्छा समय बीत रहा था। दोनों फोन पर बात करते तो वो अधूरे रह गए मिलन की पीड़ा इनके प्रेम को और भी गहरा कर देती थी। लेकिन फिर भी इस सम्बन्ध में वासना की प्रधानता नहीं थी।

राजन अपनी यादों से वर्तमान में वापस आया तो सहसा ही उसके मस्तिष्क में एक प्रश्न आया कि क्या सुमेधा उन परिस्थितियों में उसे अपनाती? जब उसके पास रहने को घर भी नहीं था। फिर उसने स्वयं को ही उत्तर दिया “नहीं...कभी नहीं”


वो ना चाहते हुए भी पुन: अतीत में खोने लगा।

राशि ससुराल वापस आ गयी थी और आज कोई कारण नहीं था जो इन दो आत्माओं के मिलन को रोक सके।

दोनों के मिलन की बेला वो खूबसूरत रात आ गयी थी। जैसा सामान्यतया होता है, ऐसी इनकी सुहागरात थी ही नहीं। क्योंकि शादी के तीन महीने बाद ना तो कोई हँसी ठिठोली करने वाला था और ना ही कोई ऐसा जो इनकी सुहाग सेज को फूलों से महकाता या सजाता। जब सुहाग रात थी तब ये संभव नहीं हो पाया था और तीन महीने बाद, आज कोई औचित्य नहीं था इस सब का। परन्तु एक सुहाग रात को सुन्दर और अविस्मरणीय बनाने हेतु फूलों से सजी सुहाग सेज नहीं बल्कि दो प्रेम करने वाले ह्रदय चाहिए होते हैं। और इन दोनों का प्रेम एक दूसरे के प्रति अविरल और निश्छल था। दोनों ने ही आज से पहले अपने परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त किसी विपरीत लिंगी के साथ कोई आत्मीय संपर्क नहीं रखा था। राजन कभी अपनी किताबों से बाहर नहीं आ पाया था तो राशि ने कभी अपने परिवार के कड़े अनुशासन में पारिवारिक मर्यादों को नहीं लांघा था। दोनों एक दूसरे से मिलन को तड़पे थे तीन महीने तक। प्रेम क्या है? ये दोनों को अपने विवाह के बाद मिली इस विरह वेदना ने बताया था। लगातार हुई फोन के माध्यम से बातचीत ने दोनों मध्य व्याप्त झिझक को दूर कर दिया था और दोनों ने एक दूसरे को अपने ऊपर पूर्ण अधिकार प्रदान कर दिया था।

प्रारम्भ में इन दोनों के मध्य इतनी ज्यादा झिझक थी कि इनकी रिंग सेरेमनी में जब दोनों ने एक दूसरे को अंगूठी पहनायी तो सभी ने इन दोनों के चेहरे की घबराहट और चेहरों पर आये पसीने को देखा था। खूब मज़ाक उड़ाया था सभी ने इनका।

राजन को आज भी मिलन की वो पहली रात याद थी। दोनों ने अपने जीवन का पहला चुम्बन लिया था। एकदूसरे के शरीर के स्पर्श ने दोनों को उत्तेजना के चरम पर पहुंचा दिया था। कब शुरुआत हुई और कब दोनों संसर्ग पथ पर आगे बढ़ लिए ये दोनों को ही ध्यान नहीं था। दोनों ने एकदूसरे को अपना सबकुछ समर्पित कर दिया था। इन उत्तेजना और प्रेम के रोमांच से भरपूर क्षणों में राजन का बाजू राशि की गर्दन पर चला गया और अपनी उत्तेजना में राजन को ध्यान ही नहीं रहा और उसने राशि का गला जोर से दबा दिया तभी राशि की आवाज़ आई “मार कैई दम लोगे क्या?, मेरा गला दबा दिया तमनै तो”

प्यार और उत्तेजना से भरपूर इन क्षणों में राशि की इस बात और इस अंदाज़ पर राजन की हंसी छूट पड़ी और दोनों ही कुछ क्षणों तक हँसते रहे थे। ये घटना राजन और राशि की यादों से चिपक गयी थी क्योंकि उनके प्रथम मिलन से जुड़ी थी ये घटना।


सुबह राजन अपने ऑफिस चला गया लेकिन दोपहर तक ही वापस भी आ गया। सुमेधा ने छुट्टी ले रखी थी। उनके कमरे में रात हुई बहस के समय सुमेधा तेज़ आवाज़ में बोल रही थी तो सुरेश और मंजू तक भी आवाजें पहुँच गयी थी।

दोपहर के समय सुमेधा अपने कमरे में अकेले थी और राजन बाहर जाकर बैठ गया था। तभी कमरे के दरवाज़े को किसी ने खटखटाया। सुमेधा ने देखा सुरेश था। राशि बेड से उठकर खड़ी हो गयी और सुरेश भीतर आ गया।

सुरेश ने प्यार से पूछा “और बेटे जी ठीक तो हो? कोई समस्या तो नहीं?”

सुमेधा ने एक औपचारिक मुस्कान के साथ कहा “बढ़िया पापा जी”

फिर सुरेश ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा “बेटा जी मुझे नहीं पता देखो रात क्या हुआ और क्यों हुआ? लेकिन तुम्हारी गुस्स्से में चिल्लाने की आवाज़ बाहर तक आ रही थी। कोई दिक्कत हो तो बताओ?...राजन ने कोई गलती की हो तो बताओ?”

राशि ने कहा “कुछ नहीं पापा जी वो बस ऐसे ही बहस हो गयी थी”

सुरेश ने एक सत्यान्वेषण मुस्कान लाते हुए कहा “फिर तुम दोनों आपस में बात क्यों नहीं कर रहे हो”

राशि को अब कुछ सूझ नहीं रहा था क्या कहे? उसने बनाते हुए जवाब दिया “वो पापा ऐसा कुछ नहीं है, नथिंग इज सीरियस, सब ठीक है, आप परेशान मत होइए, ये हम दोनो के बीच का इश्यु है हम दोनों रिजोल्व कर लेंगे”

अब सुरेश ने अधिकार के साथ कहा “देखो बेटा... मैं इस घर का मुखिया हूँ। अब कुछ भी होगा तो उसे ठीक करना और देखना मेरा काम है”

राशि को अब सुरेश की बातें अच्छी नहीं लग रहीं थी। उसे ये सुरेश का अपनी व्यक्तिगत जिन्दगी में अनाधिकृत अतिक्रमण लग रहा था। वैसे भी उसकी मन:स्थिति बहुत खराब थी क्योंकि शादी के बाद तीन रातें बीत चुकी थी जिनमे से दो रातें उसने राजन के साथ बिताई थी और दोनों ही रातों में उसको एक बहुत ही खराब अनुभव से गुजरना पड़ा था। विवाह के बाद जो एक पति पत्नी के मध्य होता है वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ था।

सुमेधा ने अब थोड़ा सख़्ती के साथ कहा “पापा आप मुखिया हो इससे मुझे कोई समस्या नहीं, घर के निर्णय आप लेते हो और लेते रहो, आई डोन् माइंड बट ...... मेरे और राजन के बीच के मामले को हम ही सुलझाएंगे। उस बारे में आपको मैं क्या बताऊ? ......ये हम दोनो पति पत्नी की पर्सनल लाइफ है। इसमें तो आपको या मेरे मम्मी पापा को इंटरफेयर करने का कोई हक नहीं है। और ना ही ये सही है”

सुमेधा ने ये बात बेहद ही कड़क अंदाज़ में कही थी। सुरेश की आगे कुछ बोलने कि हिम्मत ही नहीं हुई।


सुरेश बाहर आकर बैठ गया। उसकी हिम्मत ही नहीं हुई किसी और से भी इस विषय में बात करने की। वो पुरानी यादों में खो गया।

उसे याद आया राशि और राजन की शादी को 6 महीने बीत चुके थे। इस दौरान एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि राशि और राजन दोनों अकेले कहीं घुमने गए हों। रिश्तेदारियों में हुए कुछ कार्यक्रमों में भी राशि और राजन यदि गए भी तो सुरेश और मंजू साथ होते थे। राशि से जुड़े मामलो पर भी राजन अकेले निर्णय नहीं लेता था बल्कि वो पहले सुरेश से पूछता था। यहाँ तक कि राशि की बहुत सी छोटी छोटी खरीदारी के लिए भी राजन बोल देता था कि मम्मी से बोल दो वो ला देंगी।

राशि अपना व्यक्तिगत ज़रुरी सामान मायके से ही ले आती थी। एक दिन राशि को एक पड़ोस की महिला ने एक टिक्की वाले के सम्बन्ध में बताया तो राशि का भी मन हुआ कि राजन के साथ जाकर खाए।

राशि ने राजन को फोन करके अपनी इच्छा बताई और उसे थोड़ा जल्दी आने को कहा।

राजन शाम को ऑफिस से आ गया तो राशि तैयार थी। लेकिन राजन ने तबियत खराब होने का बहाना भर दिया। राशी का मुड़ ख़राब हो गया और दोनों के मध्य गर्मागर्मी होने लगी। राजन उसे बाहर ले जाने से बच रहा था। तभी सुरेश भी कमरे में आ गया और मामले की जानकारी होने पर राशि को बाहर का ना खाने पर खूब लम्बा प्रवचन सुनाया। और चलते हुए कहा “बेटा राशि, कुछ भी चाहिए मुझसे बोल, मैं लाकर दूँगा, मैं इस घर का मुखिया हूँ, और जैसे मेरे लिए राजन है ऐसे ही तू”

सुरेश अतीत से वापस आया तो उसको याद आया कि उसके इतना कहने पर भी उस दिन राशि कुछ नहीं बोली थी। लेकिन आज सुमेधा के कड़े शब्द उसके दंभ को भीतर तक भेद गए थे।  


उस रात सुमेधा और राजन में कोई वार्तालाप नहीं हुआ। राजन सुमेधा के निकट जाने से डर रहा था। पिछले दिनों घटी घटनाओं ने उसे बहुत डरा दिया था। जबकि सुमेधा को लगता था कि राजन के दिलो दिमाग पर राशि ही छाई है। सुमेधा बस ये सोच सोच कर परेशान थी कि जिस राशि से छुटकारा पाने को और उससे शादी करने के लिए पता नहीं राजन ने क्या-क्या किया था? आज बार बार उसे उस राशि की ही याद क्यों आ जाती है?

अगले दिन सुबह ही सुमेधा भी तैयार होकर अपने ऑफ़िस के लिए चल दी। राजन ने आश्चर्य से पूछा “तुमने तो छुट्टी ली हुई थी”

सुमेधा ने बेपरवाही से जवाब दिया “अरे अब पेंडिंग वर्क बाद में भी तो मुझे ही करना पड़ेगा ना। यहाँ भी कौन सा काम है तो ऑफ़िस ही चलती हूँ।”

राजन ने समझाने के अंदाज़ में कहा “यार जब लीव सेंक्शन हैं तो क्यों जा रही हो? यहाँ अभी तुम मिलने के लिए मेहमान भी आ ही जाते हैं। इतनी जल्दी ऑफिस जाना शुरू कर दोगी तो यार..... इसका अच्छा इम्प्रेसन नहीं जाएगा”

सुमेधा पहले से ही क्रोध के आवेग को दबाये हुए थी लेकिन राजन की बात उसे एसी लगी जैसे कि ये तो उसकी अस्मिता का खुला अतिक्रमण है। सुमेधा ने धीमी आवाज़ लेकिन कड़े लहजे में कहा “राजन आई एम् नोट राशि....आई एम् नोट अ ब्लडी फूल एंड इलिट्रेट रूरल वुमन। आई एम् अ प्रोफेशनल एंड आई हैव माई चोइस एंड माई ओन व्यू...सो डोन्ट इंट्रूज़”

राजन को राशि का ये रवैया बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई प्रत्युत्तर देने की।


अपने ऑफिस में सुमेधा ने काम तो कुछ भी नहीं किया। उसे राजन से किये आने व्यवहार को लेकर भी आत्मग्लानी हुई।

सुमेधा ऑफिस से बीच में ही समय निकालकर सीधे बाज़ार गयी और राजन के लिए कुछ ख़रीदा।

शाम को दोनो एक साथ अपने ऑफिस से वापस आये। सुमेधा का मुड अब सही था। रात्रि में जब राजन कमरे में आया तो सुमेधा ने उल्लास के साथ एक गिफ्ट रैप राजन के हाथ में रख दिया।

राजन सुमेधा के चेहरे पर मुस्कराहट देखकर एकदम ताज़ा हो गया था। राजन ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हुए गर्दन को बलखाते हुए बिना शब्दों के सुमेधा से इस गिफ्ट के सम्बन्ध में पूछा तो सुमेधा ने चहक कर उत्तर दिया “तुम्हारा गिफ्ट है। खोलकर देख लो”

फिर उसने मादक अंदाज़ में अपनी छाती के उभारो को राजन के सामने प्रदर्शित करते हुए कहा “और फिर अपने इस गिफ्ट को भी खोल लेना”

राजन ने तेज़ी से गिफ्ट को खोलना शुरू कर दिया। रैपिंग खोलते ही उसके सामने मुफ़्ती शर्ट्स का एक गत्ते का डब्बा था। राजन ने डब्बा खोला तो उसमें हलके नीले रंग की और गहरे नीले रंग से कढ़ाई की हुई एक सुन्दर कमीज थी।

राजन जिसके चेहरे पर एक उत्त्सुकता और उल्लास भरी मुस्कान तैर रही थी अब उसके भाव बदल गए थे। उसकी आँखें फट गयी थी और उसके चेहरे पर पसीना तैर गया था और भय से चीखते हुए राजन ने उस डब्बे को ऐसे दूर फेंक दिया जैसे कि उसके हाथ में कोई बम हो।

सुमेधा भी घबरा गयी थी उसने राजन को पकड़ते हुए कहा “क्या हुआ राजन?”

राजन ने डरते हुए पूछा “कहाँ से लायी ये कमीज तुम?”

सुमेधा ने राजन के माथे पर हाथ रखते हुए कहा “यार ऑफिस के बीच से ही मुफ़्ती कलेक्सन पर गयी थी वहीँ से लायी, आपके लिए”

सुमेधा ने उस पैकेट को उठाकर उसकी जाँच की और बोली “कुछ भी तो नहीं है, हो क्या गया है तुम्हें?”

फिर सुमेधा ने वो पैकेट राजन की तरफ बढ़ाया, लेकिन राजन घबरा कर पीछे हट गया।

राजन तुरंत कमरे से बाहर चला गया और मकान की छत पर जाकर बैठ गया।

सुमेधा परेशान हालत में कमरे में ही खड़ी रह गयी।


राजन को छत पर भी अकेले डर लग रहा था। उसे बिलकुल समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है। उसने इतनी धीमी आवाज़ में कि वो अन्य किसी को ना सुने आवाज़ लगायी “राशि ..राशि..राशि ...राशि”

राजन चारों तरफ देख रहा था। फिर उसने कहा “राशि तुम यहीं हो ना? सामने आओ ... अब क्या मरकर भी मेरा पीछा नहीं छोड़ोगी?”

राजन दीवार से सट कर अपने घुटनों को सिकोड़ कर उन मे अपना सर घुसा कर बैठ गया। बैठे बैठे राजन फिर से अतीत की याद में खो गया।

राशि और राजन के मिलन की रात के अगली सुबह ही जब राजन ऑफ़िस जाने को तैयार हो रहा था तो राशि ने एक गिफ्ट राजन की तरफ बढ़ाया।

राजन ने गिफ्ट लेते हुए पूछा “क्या है ये?”

राशि ने शर्माते हुए कहा “वो आपके लिए बुरशैट ख़रीदी थी, आज इसे ही पहनकर जाओ ना ऑफिस”

राजन ने खुश होते हुए उस पैक को खोला तो हलके नीले रंग की एक कमीज जिस पर गहरे नीले रंग की सुंदर कढ़ाई थी। आज सुमेधा जो कमीज लायी थी वो हुबहू उस कमीज जैसी ही थी।

राजन झटके से वर्तमान में आया।

राजन का दिमाग चकराया हुआ था। जब भी वो सुमेधा के निकट जाने का प्रयास करता था तो राशि कहीं ना कहीं बीच खड़ी महसूस हो रही थी। ये घटनाएँ बता रहीं थी कि राशि यहीं कहीं हैं, बिलकुल उसके पास... हर समय , हर क्षण।

राजन भागकर नीचे आया। राजन जिस कमरे में आया था ये छोटा सा कमरा था जो स्टोर की तरह उपयोग हो रहा था। राजन ने उसमें से एक छोटा सा लोहे का संदूक निकाला और उसे ऊपर लेकर गया। छत पर जाकर उसने उस संदूक को खोलकर उसमें से कुछ सामान निकालना शुरू किया। ये वो सामान था जो राशि ने कभी उसे उपहार स्वरूप दिया था। इसमें ही उसने उस कमीज को निकाल कर देखा वो वाकई में हुबहू वैसी ही थी।

राजन की घबराहट अब और ज्यादा बढ़ गयी थी। राजन ने अपना सर पकड़ कर खुद से ही कहा “क्यों रखी थी ये मनहूस चीजे संभालकर मैंने? क्यों?”

उसे कुछ सुझा और वो भागकर नीचे गया। राजन नीचे से माचिस लेकर आया और उसने उस कमीज को आग के हवाले कर दिया और एक-एक कर के उस सन्दुक के सारे सामान को उस आग के हवाले करता चला गया। उस संदूक में सभी उपहार कपड़े या फिर कागज़ के कार्ड थे। इन्होंने आग तेजी से पकड़ ली। लेकिन आग की ज्वाला कुछ ज्यादा ही तेज़ हो गयी थी, बहुत ही ज्यादा बुलंद। ये देखकर राजन पीछे हट गया।

तब ही राजन को उस भड़कती हुई आग में ही राशि दिखाई दी। राजन पागलपन में बोला “जाओ, जाओ यहाँ से....कोई नहीं यहाँ तुम्हारा”

लेकिन राशि उस आग की ज्वाला से बाहर आकर राजन के सामने खड़ी हो गयी।

राजन की आँखें पथरा गयी थी। राशि का चेहरा शांत था। राशि ने राजन से कहा “इस आग के फेरे लेकर ही तो तुमसे गठबंधन हुआ था। याद है ना सात जन्मो का गठबंधन जोड़ा था हमने। इस आग के सामने ही मेरे हाथ पर हाथ रखकर आपने भी तो वचन उठाया था कि सात जन्मो तक साथ रहेंगे। वो गठबंधन हमारे शरीरों का ही नहीं था हमारी आत्माओं का भी था। ये चीज़े जल जाएँगी, मेरा शरीर भी जल गया, लेकिन क्या इस आत्मा को जला पाओगे? और ये आग तो गवाह है उस गठबंधन की, तो याद रखना ये अग्नि ही उस गठबंधन की साक्षि है और ये ही उसकी रक्षा करेगी.... हमेशा”

राशि पीछे को मुड़ी और उस अग्नि की ज्वाला में ही समा गयी। राजन पागलों की तरह चिल्लाने लगा “माफ़ कर दो मुझे.... प्लीज राशि माफ़ कर दो मुझे.... मैंने गलत किया.... मेरा पीछा छोड़ दो।”

राजन जोर जोर से चिल्ला रहा था तो सुरेश, मंजू और सुमेधा भी ऊपर आ गए। कुछ पड़ोसी भी आ गए। सुरेश ने राशि का नाम राजन के मुहँ से सुन लिया था। तो वो राजन को शांत करवाते हुए नीचे ले आया।


सुमेधा ने सुरेश से कहा “पापा एक मिनट बाहर आओ”

सुरेश चुपचाप बाहर आ गया।

सुमेधा ने सुरेश को पिछले दिनों राजन की अजीब हरकतों के बारे में बताया। सुरेश सुमेधा से बोला “बेटा जी राजन बहुत सीधा है ज़रुर उसके दिमाग में डर बैठ गया है।”

तभी पीछे से मंजू आई और बोली “मंदिर पै बाबा जी कु दिखा लाओ कल कु”

सुरेश ने झल्लाते हुए कहा “तू चुप रहकर, फ़ालतू बोल्लो जा, मैं खुद कर लूँगा”

सुमेधा को सुरेश का इस तरह मंजू से बात करना पसंद नहीं था लेकिन अभी उसने इसपर ध्यान नहीं दिया।

सुमेधा ने सुरेश से कहा “पापा हनीमून अभी मैं कैंसिल कर रही हूँ। कल ऑफ़िस न जाकर मेरठ के साईकैट्रीस्ट है बहुत अच्छे, मुझे और राजन को जानते भी हैं, उन्हें राजन को दिखा लेती हूँ”

मंजू ने हिचकते हुए पूछा “वो कौन होवै हैं”

सुमेधा अभी सोच ही रही थी कि कैसे समझाए तभी सुरेश ने जवाब दिया “दिमाग का डाक्टर”

ये सुनते ही मंजू को झटका सा लगा और वो बोली “अरी मेरा लोंडा पागल थोड़ी ना हो गिया। हद करदी तुन्नै तो”

सुमेधा ने माथे पर हाथ मारते हुए अपनी झल्लाहट का प्रदर्शन किया। सुरेश समझ गया था कि सुमेधा अब कड़ा जवाब देने वाली है तो वो मंजू को फटकार लगाते हुए अन्दर ले गया।


राजन बिस्तर पर तन्द्रावस्था में था। वो बाकी दुनिया से तो दूर अपने अतीत खोया हुआ था।

शादी के कुछ दिन बाद तक सब कुछ एकदम सही था। राशि एक देहाती परिवार से थी और बस इंटर पास थी लेकिन फिर भी राजन को बहुत भाती थी। परन्तु स्थितियां बदलने के साथ साथ सुरेश की महत्वाकांक्षाओ को भी पंख लग रहे थे। सुरेश ने हमेशा गरीबी देखी थी लेकिन बेटे के “सी० ऐ०” बनने के बाद उसकी जिंदगी आरामदायक हो गयी थी। राजन के “सी० ऐ०” बनते ही राशि का रिश्ता आया था। जो उस समय सुरेश के लिए सौभाग्य की बात थी। क्योंकि राशि का परिवार एक धनाढ्य परिवार था और दहेज़ भी खूब दिया था। इतना कि सुरेश का मकान बन गया और घर में सारे सुख सुविधा के सामान भी आ गए।

लेकिन जैसे जैसे समय बिता और लोगो ने बातें करनी शुरू की तो सुरेश को अपना फैसला अपनी गलती लगने लगा था। सामान्यतया सुरेश को ये सुनना पड़ता था “राजन की शादी तो किसी भी बड़े परिवार में हो जाती, दहेज़ इससे भी ज्यादा मिल जाता। बल्कि सुरेश तूने गलत किया, राजन का ब्याह किसी “सी० ऐ०” लड़की से ही करना था।”

सुरेश के साथ-साथ मंजू को भी अब लगने लगा था कि उन्होंने जल्दबाजी कर दी।

सुरेश की ये छटपटाहट रह रह कर बाहर भी आने लगी थी। अब वो अक्सर राशि को उसके देहाती अंदाज़ के कारण टोकने लगा था। मंजू को भी अब राशि के पहरने ओढने और खाना बनाने जैसे हर काम में खामी दिखाई देने लगी थी।

लगभग रोज ही शाम को राजन से भी इस विषय में शिकायत की जाती थी। और एक दिन राशि के भी सब्र का बांध टूट ही गया और वो अपनी सास से काफी बहस कर बैठी। मंजू और राशि की बहस जब ज्यादा ही बढ़ने लगी तो सुरेश का गुस्सा कुछ ज्यादा ही चढ़ गया और उसने अपनी बहु राशि पर हाथ उठा दिया। राशि के लिए ये बहुत ही अजीब और हृदय विदारक घटना थी कि ससुर ने उसपर हाथ उठाया।

शाम को आते ही राशि ने राजन से सब बात कही लेकिन राजन पर तो जैसे कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा। राशी ने गुस्से में राजन से कहा “शादी से आजतक आप मुझे कहीं बाहर घुमाने भी नहीं ले गए। जब मैंने आपसे बाहर जाने को कहा तो जवाब मेरे ससुर जी ने दिया कि बाहर नहीं जाओगे, हर बात अपने बाप से ही पूछ कर करोगे क्या? बाप बोल दे, छोड़ दो तो छोड़ भी दोगे... मुझे पता है”

राजन ने कुछ जवाब नहीं दिया। और वो रात राशि ने आंसूओं के सहारे गुजारी।

लेकिन अब लगभग रोज ही ये होता था। जब भी राजन घर वापस आता था तो उसे सुरेश और मंजू से राशि की शिकायत ही सुनने को मिलती थी। इस गुस्से में राजन ने भी अब राशि पर हाथ उठाना शुरू का दिया था और राशि भी राजन, सुरेश और मंजू से बहस करने लगी थी।

मामला अब दोनों परिवारों के मध्य भी पहुँच गया और दो तीन बार समाज की पंचायते भी हुई।

लेकिन इस सब के बावजूद भी राजन राशि से बहुत ज्यादा दूर नहीं हुआ था। पर अब सुरेश को ये लगने लगा था कि राशि इस घर के लिए मुसीबत है और इससे छुटकारा लेना ही होगा। अक्सर वो राजन के सामने कह दिया करता था “बेटा ये रिश्ता चलने वाला ना ज्यादा दिन”

लेकिन फिर राजन के जीवन में भी कुछ ख़ास बदलाव आये जिन्होंने उसे राशि से दूर करना शुरू दिया।


राजन जिस कम्पनी में था उसमें ही सुमेधा ने ज्वाइन किया था। वो बहुत ही हँसमुख और आत्मविश्वास से पूर्ण युवती थी। उसका चेहरा सामान्य था परन्तु उसकी देहयष्टि और उसका आत्मविश्वास से परिपूर्ण आचरण और हसमुख स्वभाव उसे एक आकर्षक व्यक्तित्व बना देते थे। राजन से उसका संवाद काम को लेकर काफी होता था। राजन उसकी तरफ आकर्षित था और वो भी राजन से आकर्षित थी। ये सम्बन्ध धीरे धीरे आत्मीय होते चले गए। सुमेधा का जीवन खुशहाली में गुज़रा था। उसके पिता एक “आई० ऐ० एस०” थे। लेकिन राजन के जीवन में उसके वैवाहिक जीवन को लेकर पेचीदगियां शुरू हो चुकीं थी। वो सुमेधा से अपनी वैवाहिक जीवन में चल रही परेशानियों के सम्बन्ध में बात करता रहता था।

एक बार एक ओफिसियल गेटटुगेदर में राजन राशि को अपने साथ ले गया था। राशि की साधारणता और उसकी देशज भाषा तथा हद से ज्यादा हिचकिचाहट के कारण राजन को बहुत शर्मिदगी उठानी पड़ी थी। राशि के साथ समस्या ये थी कि एसा कोई नहीं था जो उसे बताये कि समय और परिवेश के साथ प्राथमिकताएं और आचरण दोनों में बदलाव जरुरी है। राजन ने भी कभी ये प्रयास नहीं किया। राशि के माता पिता अपने धन के दंभ में इस मामले को सुलझाने की दिशा में ना बढ़कर हर बार अपने द्वरा दिए गये दहेज़ और राजन के परिवार की अतीत की दरिद्रता को लक्ष्य करते हुए राजन को निचा दिखा देते थे। इससे राजन और राशि एक दुसरे से दूर होते जा रहे थे। अपने पिता के प्रभाव के वशीभूत राजन ने भी कभी स्वतंत्र होकर राशि से बात करने का प्रयास नहीं किया और सुरेश ने भी उसे ऐसा नहीं करने दिया। क्योंकि सुरेश एक भय से ग्रस्त रहता था कि कहीं राजन उनसे दूर ना हो जाए। सुरेश को हमेशा परिवार में अपने मुखिया के ओहदे की फ़िक्र और उसका दंभ ज्यादा रहता था।

सुमेधा और राजन के सम्बन्ध समय के साथ सीमाएं तोड़ते जा रहे थे और अब उनके मध्य कोई मर्यादा नहीं बची थी। और वहीँ राजन और राशि के मध्य दूरियाँ बढ़ती ही जा रही थी। बल्कि यदि कभी राशि और राजन के मध्य सहवास होता भी था तो उस समय भी राजन के मस्तिष्क में सुमेधा ही होती थी।

राजन और सुमेधा एक दूसरे के साथ रहना चाहते थे। लेकिन राशि का राजन के जीवन में होना बड़ी समस्या थी। एक दिन सुमेधा राजन के घर आई तो उसके व्यवहार और सबसे बड़ी बात कि वो भी राजन के जितना ही कमा रही थी, इससे सुरेश को भी उसके और राजन के प्रति संभावनाएँ मिल गयी थीं।

सुमेधा जा चुकी थी। जब तक सुमेधा रही राजन बहुत ही प्रफ्फुलित रहा पर अब राजन ने पुन: वो ही मायूसी का लबादा ओढ़ लिया। ये बात राशि ने भी महसूस की। राजन ऊपर छत पर अकेला खड़ा था। सुरेश ने पीछे से आकर उसके कंधे पर हाथ रखा। राजन एकदम से चोंक गया।

सुरेश :क्या सोच रहे हो

राजन :कुछ नहीं पापा जी

सुरेश :बेटा तेरी जिन्दगी मैंने जल्दबाजी में बर्बाद कर दी

राजन :ऐसा मत कहिये पापा जी

सुरेश :बेटा थोड़ा रुक जाता तो सुमेधा जैसी लड़की मिलती तुझे। वो तेरे लिए सबसे अच्छी रहती। इस राशि ने तो तेरी जिन्दगी बर्बाद कर दी

राजन ने कोई उत्तर नहीं दिया।

सुरेश : बेटा तेरी माँ भी कह रही थी और मुझे भी लगता है कि अब ऐसे और नहीं चलने वाला। तेरा और राशि का रिश्ता ठीक नहीं है। इसके बारे में कुछ सोचना पड़ेगा।

राजन सुरेश का अपनी दृष्टि से अन्वेषण करता है।

सुरेश :बेटा जितना लम्बा खिंचेंगे उतना बर्बादी ही होगी,

सुरेश ने एक मौन धारण किया और फिर बोला “देख बेटा अगर सुमेधा जैसी लड़की अब भी तेरी जिन्दगी में आ जाये तो घर बन जाएगा”

राजन इस बात को सुनकर थोडा सकपका गया तो सुरेश ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा “अब बड़ा हो गया है तू और ये कुछ मामले ऐसे होतें हैं जिन पर खुलकर बात कर लेनी चाहिए”

राजन को कुछ हल्का महसूस हुआ। सुरेश ने राजन के मन की बात कही थी, राजन की कल्पनाओं में अब सुमेधा ही थी और वैसे भी दोनों अब हर मर्यादा को लांघकर एक दूसरे को अपना सर्वस्व सौंप चुके थे।

राजन ने एक हलकी सी हिचकिचाहट के साथ अपनी बात कही “लेकिन राशि का क्या पापा?”

सुरेश : बेटा तुझे लगता है ये रिश्ता अब चल पायेगा? और जैसी बेज्जती इसने और इसके घर वालो ने तेरी और हमारी करी है उसके बाद भी तू कहेगा कि तेरे और इसके बिच पति-पत्नी जैसा कुछ बचा है? बेटा अब भी समय है दोनों तलाक लो और वो भी अपनी जिन्दगी को नए तरीके से बनाये और तू भी। इसमें दोनों का ही भला है.....इस बारे में राशि से बात कर..”

राजन भी ये ही चाहता था लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी पर अब उसमें हिम्मत आ गयी थी। उसने निर्णय लिया कि वो इस सम्बन्ध में राशि से बात करेगा।

राजन अतीत की यात्रा में ही खोया हुआ था... फिर गहरी नींद में सो गया।


अगले दिन सुबह ही सुमेधा ने राजन से तैयार होकर चलने के लिए कहा। राजन ने भी बिना प्रतिरोध के सहमती जाता दी। सुमेधा के पिता ने एक मनोचिकित्सक से समय ले लिया था। पहली बार सुमेधा के पिता को ज्ञात हुआ था कि सुमेधा और राजन के जीवन में बहुत कुछ असामन्य चल रहा है।

सुमेधा और राजन मनोचिकित्सक के क्लिनिक पर पहुँच गए। मेरठ में गिनती के ही मनोचिकित्सक थे। ये एक महिला थी और काफी प्रसिद्द भी थी।

मनोचिकित्सक का क्लिनिक बेहद सुंदर है। राजन और सुमेधा बाहर बठे प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि भीतर से बुलावा आ गया। सुमेधा राजन को बाहर ही बैठने को कहकर भीतर गयी और लगभग आधे घंटे उस महिला चिकित्सक के साथ रही। इतने समय में सुमेधा ने राजन की पूर्ण स्थिति से उसे अवगत करवाया। पिता से जान-पहचान होने के कारण वो चिकित्सक सुमेधा को अतिरक्त गंभीरता से ले रही थी और अतिरिक्त समय भी दे रही थी। सुमेधा ने राजन के पहले के विवाह से लेकर अब तक की समस्त स्थिति अपने दृष्टिकोण से समझा दी।

महिला चिकित्सक, जो 40 वर्षीय और गंभीर व्यक्तित्व की थी, उसने सुमेधा से साफ़ शब्दों में कहा “देखिये आपने मुझे जो जानकारी दी वो अच्छी हैं और यूजफुल भी। लेकिन ये आपका व्यू है। जबकि मुझे सब्जेक्ट का व्यू भी देखना होगा। तो मुझे पेशेंट ... आई मीन आपके पति से अकेले में बात करनी होगी। आपको कोई आपत्ति तो नहीं?”

सुमेधा ने एक मुस्कान के साथ अपनी गर्दन हिलाकर सहर्ष सहमती प्रदान की।

चिकित्सक ने एक मोहक मुस्कान से सुमेधा की सहमती का स्वागत किया और कहा “तो आप बाहर ही बैठिएगा”

फिर उसने राजन को बुलाने का निर्देश अपने सहचर को दिया।

राजन एक आराम दायक कुर्सी पर बैठा हुआ था। चिकित्सक अपने किसी कार्य में व्यस्त थी और उस कार्य को करते हुए ही राजन से सामान्य बातचीत करती रही। ये क्रम लगभग 20 मिनट तक चला। चिकित्सक ने राजन को अपनी इन बातों से एकदम सामान्य कर दिया था।

अब वो राजन के पास आयीं और राजन का अपनी दृष्टि से अवलोकन करते हुए बोली “तो राजन जी मुझसे तो आपका परिचय हो गया”

राजन ने मुस्कान के साथ चिकित्सक को देखा फिर वो चिकित्सक बोली “अब कोशिश करके देखती हूँ कि आप खुद कु भी जान लो कि तुम क्या चाहते हो अपनी जिन्दगी से?” 

राजन घबरा कर उस आराम दायक कुर्सी से नीचे गिर गया। ये क्या? ये तो राशि है, एक बार फिर उसका अतीत उसके सामने था। राजन ने घबराते हुए उस महिला को देखा और जोर से चिल्लाया “राशि तू” फिर वो और भी जोर से चीखा “पापा .....सुमेधा ....बचाओ”

राजन इतनी जोर से चीखा कि बाहर भी आवाज़ चली गयी। सहचर भाग कर भीतर आया और पीछे-पीछे सुमेधा भी आ गयी। राजन बुरी तरह से घबराया हुआ था और चिकित्सक भी उसकी इस हरकत से थोडा असामान्य हो गयी थी।

सुमेधा ने राजन को आगे बढ़कर अपनी बाहों में भर लिया और उसे शांत करने लगी। तभी चिकित्सक ने पीछे से राजन की पीठ पर हाथ रखते हुए उससे कहा “राजन सर”

राजन ने झटके से उसका हाथ झटका और बस एक ही बात दोहराने लगा “चलो यहाँ से चलो...चलो”

और इतना चिल्लाते हुए वो बहर की तरफ भागा। सुमेधा भी उसके पीछे-पीछे बाहर आ गयी। राजन आकर गाड़ी में सिमट कर बैठ गया। वो काँप रहा था। पार्किंग में खड़े एक दो लोगो ने जब उसे देखा तो उन्हें भी ये असामान्य लगा।

सुमेधा भी आकर गाड़ी में बैठ गयी और काफी समय तक उसे सामान्य करती रही।

राजन अब शांत हो गया था शायद सो गया था।

पार्किंग पर और भी बहुत से लोग आ गए थे और वो चिकित्सक भी। लोगो ने सुमेधा की मदद को निवेदन भी किया।

चिकित्सक ने एक इंजेक्सन राजन को लगाया वो शायद उसको आराम देने के लिए था।

फिर उस चिकत्सक ने सुमेधा से कहा “आपके साथ अपने ड्राइवर को भेज देती हूँ”

सुमेधा ने कहा “नहीं मैं ड्राइव कर लूंगी ”

चिकित्सक ने कुछ सोचते हुए कहा “ठीक है, इन्हें नींद आएगी अब। इन्हें आराम करने देना”

सुमेधा ने बैचेनी भरे स्वर में कहा “ये हो क्या रहा है डॉक्टर, ये ठीक हो भी जायेंगे”

चिकित्सक ने गंभीरता से कहा “ठीक हो जायेंगे, बट कंडीसन क्रीटिकल है। मुझे अलग तरह से और लम्बे समय तक इनका ट्रीटमेंट करना होगा।” दो दिन बाद आप लाइए इन्हें।”

फिर उसने कुछ दवाइयाँ दी और कहा “ये अभी इन्हें दीजिए सुबह और शाम इससे ये नार्मल रहेंगे। फिर एक और रैपर सुमेधा को देते हुए कहा “यदि कभी ज्यादा टिपिकैलिटी लगे तो ये टेबलेट दे देना और फॉर फर्दर मेरा नंबर तुम्हारे पास है ही”

सुमेधा ने दवाइयां समझते हुए कहा “कोई भी प्रोब्लम होगी तो मैं आपको फोन करुँगी, प्लीज उठा लीजियेगा”

चिकित्सक ने सुमेधा के सर पर हाथ रखते हुए कहा “डोन्ट वरी .... आई विल अवेलेबल एवरीटाइम फॉर यू ”

सुमेधा घर पहुँच गयी।


इंजेक्सन ने असर किया था राजन को गहरी नींद आ गयी थी। लेकिन उसके दिमाग में अतीत का चलचित्र चल रहा था।

जब सुरेश से बात होने पर राजन ने राशि से तलाक के बारे में बात की तो राशि पर जैसे तुषारापात हो गया। वो रोने लगी और राजन से बोली “क्या इसलिए ही शादी की थी? इस घर में डोली में आई हूँ और अर्थी पर ही जाउंगी”

राजन ने विनम्रता के साथ उसे समझाने की कोशिश की “देखो हम दोनों साथ रहेंगे तो ना तुम खुश रहोगी और ना मैं, अभी तुम्हें कोई भी अच्छा लड़का मिल जायेगा। और हम दोनों की जिन्दगी भी खुश हाल हो जाएगी”

लेकिन राशि के लिए ये बेहद ही अजीब था और इसको स्वीकारने को वो किसी भी स्थिति में सहमत नही थी।

पहले की ही भाँती राशि ने ये बात अपने घर बताई और राशि का परिवार इकट्ठा होकर राजन के घर आ गया। उन्होंने राजन और राजन के परिवार पर बहुत से इल्जाम लगाये। इधर राजन और राजन के परिवार ने भी राशि पर बहुत सारे आरोप लगाये।

मोहल्ले के लोगो ने दोनों पक्षों को बैठाकर बात की तो तब भी दोनों तरफ से सत्य और असत्य आरोप-प्रत्यारोप होते रहे। लेकिन राशि को तलाक देने की बात का समर्थन किसी ने नहीं किया। सुरेश इस विषय पर अब खुद को घिरता हुआ महसूस कर रहा था। सुरेश के भाई जिनसे उसके पहले से ही सम्बन्ध अच्छे नहीं थे उन्होंने भी सुरेश को ही गलत ठहराया और कहा “जब तो तुझै इतनी जल्दी होरी ही कि परिवार में भी किसी कु ना पुच्छा। आर भाई अब सालभर पिच्छै ई तू तलाक लेन कु कहरा”

इस बहस में राशि ने सुमेधा को लेकर भी राजन पर खुलकर आरोप लगा दिया। सुमेधा और राजन के सम्बन्धो के प्रति राशि काफी समय से आशंकित थी। इस विषय पर राजन ने भी खुद को घिरता हुआ पाया। दोनों पक्षों में सहमती बनायी गयी और राशि और राजन दोनों को ही रिश्ता सुधारने के निर्देश दिए गए।

दो-तीन दिन तक राशि और राजन के मध्य उस विवाद को लेकर तल्खियाँ रही। राजन ऊपर छत पर अकेला खड़ा था विचारमग्न, तब ही पीछे से सुरेश आया। सुरेश को देखते ही राजन की आँखें पनीली हो गयीं।

सुरेश ने राजन को दिलासा देते हुए कहा “तू फ़िक्र मत कर, मैं सब संभाल लूँगा। तू बस जैसे कहूँ वैसे करता रह”

राजन जिसकी सुमेधा को लेकर सारी आशाएं खत्म हो गयी थी, उसके भीतर अपने पिता की बात से एकबार पुन: उम्मीद जाग गयी।

सुरेश ने कहा “देख तू इसके साथ नार्मल रह इसे घुमा-फिरा रोज़। रोज़ बाहर लेजा और बाहर होटल अर रेस्टोरेंट मैं ई खिलाकर ला। हमारी इससे कोई बहस भी हो तो तू चुप रह”

राजन ने कहा “इससे क्या होगा?”

सुरेश ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा “बेट्टे सब कु यो लगरा कि हम गलत यो सही, तो सबकी गलत फहमी दूर करनी पड़ेगी।”

तब ही नीचे से राशि आ गयी तो सुरेश चुप हो गया और नीचे चला गया।

राशि ने राजन के हाथ पर अपना हाथ रखा और कहा “क्या हो गया, किसकी नज़र लग गई। देखो मैं मानती हूँ कि आपके जितनी पड़ी-लिखी ना, पर मैं बदल लुंगी खुद को, जैसे आप कहोगे वैसे ही रहूंगी। अपनी भाषा भी सुधार लूंगी । लेकिन मैं आपके बिना नहीं रह सकती”

फिर राशि के आँखों से एक अश्रुधारा बह चली, जिसे उसने अपनी साड़ी के पल्लू से पूछा और बोली “मैंने ये शादी कोई खेल समझकर नहीं की थी। मैं आपसे अलग होने की सोच भी नही सकती। और मेरी ग़लती क्या है? आप जैसे कहोगे वैसे रहूंगी”

राजन को राशि की बातो से कोफ़्त हो रही थी लेकिन उसे सुरेश की बात याद आई कि तू इसके साथ नॉर्मल रह।सुरेश की पूरी बात तो राजन के समझ आई नहीं थी क्योंकि राशि के आने से बात अधूरी रह गयी थी। लेकिन राजन ने सुरेश के निर्देश को मानते हुए ना चाहते हुए भी एक मुस्कान से राशि की बातों का अनुमोदन किया।

राशि को इससे बहुत ही सुखद अनुभूति हुई और वो माहौल को हल्का बनाने के लिए बोली “देखिये ना आज तो मैं अपने देस्सी अंदाज़ में नहीं बात कर रही”

फिर राशि ने अपना सर राजन की छाती से चिपका लिया और बोली “ठीक है... हमारा रिश्ता हमारे माँ-बाप ने तय किया है, लेकिन आगे की जिन्दगी तो हमे ही गुजारनी है। मैंने खुद को पहचानने और समझने की कोशिश की है।”

फिर राशि ने गर्दन उठा कर राजन की आँखों में देखते हुए कहा ““अब कोशिश करके देखती हूँ कि आप खुद कु भी जान लो, कि आप क्या चाहते हो अपनी जिदगी से?.........हम दोनों को ही ये फैसला करना होगा कि हमें अपनी जिन्दगी को कैसे चलाना है?”

राशि ने बहुत गूढता भरी बातें कहीं थी लेकिन राजन जो राशि के सम्बन्ध में एक पूर्वाग्रह बना चुका था कि राशि के साथ वो खुश नहीं रह सकता, उसे राशि की भावनाएं और उसकी बातें समझ ही नहीं आ रहीं थी।


उस रात के अगले दिन ही जब राजन अपने ऑफिस में गया तो वहाँ सुरेश का फोन आया राजन को।

सुरेश : कुछ बीजी तो नहीं

राजन : नहीं पापा बताओ

सुरेश : थोड़ा अलग कु हो ले, कल जो बात अधूरी रहगि थी वो पूरी करनी है। 

राजन अपनी कुर्सी से उठकर बाहर अकेले में आ गया और बोला “हाँ पापा जी, अब बताओ”

सुरेश : देख यो राशि अर इसका परिवार बहुत तेज़ है तो ये ऐसे तो मानने के ना, अर बेटा उन्हें पता है कि उनकी इस लड़की को तेरे से अच्छा लड़का ना मिलने का तो वे तो अब इसे तेरे गले में ही गेरे रखेंगे।

राजन ने एक हुंकार भर कर सहमती जताई

सुरेश : तो करना यो है कि ये जो सब कहरे कि हम गलत हैं अर यो राशि सही तो उनकी गलत फहमी भी दूर करनी पड़ेगी। तू इसके साथ नोर्मल रह। लेकिन भाई हम कुछ ना कुछ ऐसा करेंगे कि यो लड़े। जब यो काम रोज़ होगा तो सबको लगेगा कि यो राशि चैन से रहने वाली है ही नहीं। भाई सबकू बताना ही ना दिखाना भी पड़ेगा कि यो राशि लड़ाकू-बदतमीज़ ही नहीं बल्कि करेक्टरलैस बी है।

राजन ने कुछ नहीं कहा और सहमती में हुंकार भरी

सुरेश ने फिर कहा “मेरी वकील से बात हो गयी है। इसकी कुछ लड़ते हुए या बदतमीजी करते हुए रिकोर्डिंग करनी पड़ेगी।”

तभी राजन ने कहा “लेकिन अगर बदतमीजी ना की तो”

सुरेश : तो बेट्टे करवानी पड़ेगी। तुझे जैसे मैं कहूँ तू वैसे करता रहिये बस बाकी मैं संभाल लूँगा।

राजन ने सहमती जताते हुए फोन काट दिया।

राजन ने कभी भी या किसी भी विषय में अपने पिता से कोई असहमति प्रकट नहीं की थी। राजन के जीवन का हर निर्णय उसके पिता ही लेते थे।

तन्द्रावस्था में अतीत की इन यादों में खोये-खोये ही राजन गहरी नींद में समा गया।


अगले दिन राजन ऑफिस नहीं गया। बल्कि अपने कमरे में लेटा रहा। सुमेधा ऑफिस गयी थी।

शाम को जब सुमेधा वापस आई तो उसने देखा कि घर में पूजा पाठ हो रहा है। सुमेधा को सुरेश ने बैठने को कहा तो वो भी बैठ गयी पूजा में। राजन भी उस पूजा पाठ में बैठा हुआ है।

एक कमरा जो स्टोर की तरह उपयोग किया जा रहा था। उसे खाली कर दिया गया था। वो तांत्रिक उस कमरे में कुछ ख़ास अनुष्ठान कर रहा था। अपना अनुष्ठान पूर्ण करने के बाद पुजारी ने उस कमरे को बंद करके उसपर ताला लगवा दिया और कुछ ख़ास अनुष्ठान उस ताले और दरवाज़े पर भी किये।

तांत्रिक ने अनुष्ठान के अंतिम चरण में परिवार को कुछ ख़ास निर्देश देते हुए कहा “इस कमरे को कभी मत खोलना और ये जो इस दरवाज़े पर यन्त्र टाँगे हैं, ये अभिमंत्रित यन्त्र हैं इन्हें बिलकुल मत हटाना। मैंने उसकी आत्मा को इस कमरे में ही बंदी कर दिया है और बाकी घर को भी कील दिया है। लेकिन सुरेश तुम्हे ये घर छोड़ना पड़ेगा, जितनी जल्दी हो सके छोड़ दो इस घर को।

तांत्रिक अपना काम करके वापस चला गया। और राजन वापस अपने कमरे में आकर लेट गया। सुमेधा अपने कार्यों में लग गयी और बाकी लोग भी।

राजन उठकर घर की छत पर आ गया और घूमने लगा। छत पर एक हलकी रौशनी का बल्ब जल रहा था जिससे हल्का सा प्रकाश छत के आगे वाले एक कोने को प्रकाशित किये हुए था। तभी सुमेधा ऊपर आई और राजन को प्यार से गले से लगाया। राजन को सुमेधा का ये प्रेमालाप बहुत सुखद लगा। दोनों का जबसे विवाह हुआ था तबसे ये एक दूसरे के निकट आ ही नहीं पा रहे थे।

राजन ने निराशा भरे स्वर में कहा “ये घर छोड़ना पड़ेगा”

सुमेधा ने बड़े प्यार से राजन की आँखों में आँखें डालकर कहा “मैंने आपसे शादी की है आपके घर से नहीं.....ऐसे हज़ार घर कुर्बान कर दूंगी आपके प्यार पर।”

राजन ने ये शब्द सुनते ही सुमेधा के चेहरे को देखा तो उसका हृदय मानो एक दम रुक गया। क्योंकि सुमेधा नहीं राशि उसे अपनी बाहों में जकड़े खड़ी थी। राजन ने स्वयं को उसकी जकड़ से दूर करने का प्रयास किया तो जैसे उसके हाथ पैर काम ही नहीं कर पा रहे थे। और राशि मुस्कुराते हुए बोल रही थी “मुझे ये घर नहीं चाहिए बस आप की जरुरत है”

राजन के हाथ पैर और समस्त शक्ति जैसे ख़त्म हो गयी थीं और वो एकदम से चिल्लाया “सुमेधाआआआ.....बचाओ”

राजन इतनी तेज आवाज़ में चिल्लाया था कि पड़ोसियों को भी उसकी आवाज़ आ गयी थी। सुरेश और मंजू ऊपर आ गए, एक दो पड़ोसी भी आ गए। सुमेधा उसे संभालने का और समझाने का प्रयास कर रही थी लेकिन राजन डर से एक कोने में ज़मीन पर सिकुड़ कर बैठ गया था और बस ये ही बोल रहा था “जाओ जाओ यहाँ से, जाओ.... सुमेधा और मेरी जिदगी से”

पड़ोसियों की मदद से राजन को नीचे उसके कमरे में लाकर लिटा दिया और मोहल्ले से ही एक चिकित्सक को बुलाकर जो इंजेक्सन मनोचिकित्सक ने दिया था वो लगवा दिया गया।

राजन अभी भी बुदबुदाए जा रहा था। लेकिन उस दवाई का असर उस पर होना शुरू हो गया था।

सुरेश ने सुमेधा से पूछा “क्या हुआ था?”

सुमेधा ने रुआंसी होकर कहा “कुछ भी तो नहीं, ऊपर अकेले खड़े थे तो मैं चली गयी। बस यूँ ही बातें कर रहे थे कि वो चिल्लाने लगे। इन्हें हर वक़्त लगता है राशि इनके सामने ही खड़ी है।”

मंजू ने रोते हुए कहा “कल फिर बुलाओ बाबा जी को कुछ करके जायेंगे”

सुरेश ने एक झिड़की देते हुए उसे चुप करवा दिया।

राजन को उसके कमरे में लाकर मनोचिकत्सक की बतायी दावा दे दी गयी और राजन नींद के नशे में खोने लगा। नींद के नशे में ही वो पुन: अतीत की यादों में खो गया।


इसके बाद राशि के साथ एक तरह का प्रपंच शुरू हो गया। वो नहीं समझ पा रही थी कि ये हो क्या रहा है? उसको उकसाया जाता था फिर जब वो कुछ भी कहना शुरू करती तो सुरेश और मंजू घर से बाहर निकल जाते और चीखने चिल्लाने लगते कि देखो हमारी बहु हमारे साथ मारपीट कर रही है या हमें घर से निकाल रही है।

राशि को मोहल्ले वालो ने समझाना शुरू कर दिया “तू ये गलत कर रही है, सास ससुर भी माता पिता के ही समान हैं, अब बुढ़ापे में ये कहाँ जायेंगे?”

लेकिन राशि के कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। अब राजन ने भी राशि से बात करना बंद कर दिया था। लेकिन कभी-कभी सुरेश, मंजू और राजन एकदम से अत्यंत मधुरता से राशि से बात करने लगते थे। राशि के समझ ही नहीं आता था कि अब उसकी रिकोर्डिंग की जा रही है। ये रिकोर्डिंग वो इसलिए कर रहे थे ताकि दिखा सकें कि वो राशि का कितना ख्याल रखते हैं? कभी कभी राशि के साथ खूब बदतमीज़ी की जाती थी और फिर कुछ समय पश्चात सभी उसके साथ बेहद ही विनम्रता से पेश आने लगते थे। लेकिन राशि गुस्से में उल्टा सीधा कहती रहती थी। उन घटनाओं की भी योजनाबद्ध रूप से रिकोर्डिंग की जाती थी फिर सभी को वो दिखाई जाती थी कि देखो हम कितने प्यार से पेश आतें हैं लेकिन राशि लगातार बदतमीज़ी करती रहती है।

 सुरेश, मंजू और राजन सब सुरेश की योजना के अनुसार काम कर रहे थे। राजन, सुरेश और मंजू के द्वारा उसे चरित्रहीन भी बताया जा रहा था। ये तीनो सफल भी हो रहे थे। इनके सभी पड़ोसियों को लगने लगा था कि राशि चरित्रहीन भी है और असभ्य भी। लोकल थाने में भी बात करके और कुछ पैसे दरोगा को देकर उसे भी अपने विश्वास में ले लिया गया था। कई बार पुलिस को बुलवाकर भी राशि को महिला पुलिस से डांट लगवाई गयी थी। राजन लगभग रोज़ उसे पीटने लगा था। लेकिन दुनिया को वो ये ही बोलता कि राशि उसके साथ मारपीट करती है। ये सारा षडयंत्र सुरेश के दिमाग की उपज था। राशि को भीतर ही भीतर मानसिक रूप से तोड़ा जा रहा था और उसको बदनाम भी किया जा रहा था। कई बार पुलिस को बुलाया गया ये कहकर की राशि ने आत्महत्या की कोशिश की है।

एक दिन राशि ने रात्रि के समय राजन से इस विषय पर बात करने का प्रयास किया। राजन अपने लैपटॉप पर ही कुछ कार्य कर रहा था।

राशि ने राजन को पीछे से प्यार से उसके कंधो पर अपनी बाहों का पाश बनाया और उसके सर को चूमा। राजन जो एक पहियों वाली कुर्सी पर बैठा था उसने अपनी कुर्सी को घूमा कर बेहद ही रूखे अंदाज़ में राशि को पीछे हटाया और कहा “काम करने दो यार”

राशि ने फिर राजन को अपनी बाहों में भर लिया और प्यार से बोली “आपको लगता है मैं मम्मी या पापा जी को घर से निकल जाने को कहूँगी?”

राजन ने रूखे अंदाज़ में कहा “क्या कहूँ? तुमने मेरा विश्वास ही तोड़ दिया है पूरी तरह”

राशि ने प्रेम पूर्ण भाव से कहा “मैंने आपसे शादी की है आपके घर से नहीं.....ऐसे हज़ार घर कुर्बान कर दूंगी आपके प्यार पर। मुझे ये घर नहीं चाहिए बस आप की जरुरत है,

राजन ने एक झटके से राशि को अपने दूर किया और कमरे से बाहर चला गया। उस कमरे में राशि के साथ अब उसके अंशु ही रहते थे। राशि जब भी राजन से बात करना चाहती थी तो राजन उसे अनदेखा कर देता था।


राजन की स्थिति को लेकर सुमेधा बहुत परेशान रहने लगी थी। अब राजन अकेले में भी बड़बड़ाता रहता था।

सुमेधा जब भी राजन को मनोचिकित्सक के पास चलने को कहती तो वो टाल देता था। बल्कि अब तो वो झल्लाकर राशि को डांट देता था। आज फिर राशि ने हिम्मत करके राजन को मनोचिकत्सक के पास चलने को कहा तो राजन एक दम से बोखला गया।

राजन ने चिल्ला कर कहा “मैं पागल नहीं हूँ, लेकिन तुम मुझे पागल सिद्ध करना चाहती हो। तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है? क्यों तुम मुझे पागल सिद्ध करने पर तुली हो?”

सुमेधा को ये आरोप असहनीय था वो भी चिल्लाकर बोली “पागल नहीं तो और क्या हो? शादी के बाद से एक भी दिन हम दोनों पति-पत्नी की तरह नहीं रह पायें हैं।”

राजन ने चिल्लाकर कहा “क्या होता है पति-पत्नी? बस वो बिस्तर की गर्मी मिटाना। तुम्हें बस वो ही चाहिए”

सुमेधा : मैंने उस बारे में नहीं कहा, और जब तुम वहाँ तक बात को ले ही जा रहे हो तो सुनो किसको नहीं चाहिए वो? ये भी जिन्दगी का हिस्सा है और बहुत जरुरी हिस्सा है।

राजन : अरे तुम्हारी जिन्दगी का बस वो ही एक हिस्सा है। और तुम जैसी औरत से उम्मीद भी क्या है जो शादी से पहले ही मेरे साथ सबकुछ कर चुकी थी। और सिर्फ मेरे साथ ही क्यों ...... इतना कहकर राजन रुक गया था

राजन मानसिक रूप से विक्षिप्त हो चूका था उसे स्वयं नहीं पता था कि वो क्या कह रहा है?

सुमेधा को अपने चरित्र पर ये आरोप बहुत ही ज्यादा असहनीय पीड़ा दे गया और वो आप खो बैठी। गुस्से में उसने मेज पर रखा लेपटोप उठाकर फेंक दिया। और चिल्लाते हुए बोली “क्या कहा तुमने? मेरे तुम्हारे अलावा और भी रिलेसन रहे होंगे तो सुनो वो तुम्हारा मैटर नहीं है। तुम तड़प रहे थे मुझसे शादी करने को और तुमने ही साजिशे करके अपनी पहली बीवी को आत्महत्या करने पर मजबूर किया। और अपनी मर्दानगी की गलत फहमी निकाल दो। कभी भी तुम एक नार्मल मेल तो साबित हुए ही नहीं हो। अगर तुम इम्पोटेंट हो तो बोलो, उसका भी इलाज़ संभव है”

राशि भी गुस्से में आपा खो बैठी थी तो अब वो भी बिना सोचे समझे तीखे शब्द बाणों से प्रहार कर रही थी।”

कोई कमज़ोर से कमज़ोर मर्द भी अपनी मर्दानगी पर सवाल उठते नहीं देख सकता। राजन के लिए भी सुमेधा का ये हमला असहनीय था। उसने गुस्से में आकर सुमेधा को एक जोरदार तमाचा जड़ दिया। इस पर सुमेधा और भी ज्यादा तेज़ चिल्लाने लगी और अब तो वो राजन को बार बार नामर्द, जाहिल और गवांर बोल रही थी । सुरेश और मंजू बाहर बैठे सब सुन रहे थे, उनसे भी अब नहीं रहा गया और मंजू ने कमरे में आकर सुमेधा को सुनाना शुरू कर दिया।

मंजू : सुमेधा तू तो जाहिलों से भी बड़ी जाहिल है। शर्म ना आरी तुझै, अपने पति कु क्या-क्या भोंकरी तू? कोई सुनेगा तो क्या कहगा?

सुमेधा को उनके मध्य मंजू का बोलना अच्छा नहीं लगा और वो गुस्से में भी थी तो उसने मंजू को भी कड़क अंदाज़ में कहा “तुम्हारे पुरे परिवार का पता है मुझे ज्यादा संस्कारों की बात मत करो। जानती हूँ क्या-क्या नहीं किया तुमने उस राशि के साथ। तुम गवाँरु लोगो के लिए वो ही सही थी”

इस पर सुरेश बीच में बोल पड़ा “राजन अपनी घरवाली को समझा, ये इज्जतदार घर है, यहाँ उस इस अच्छी तरह से ही रहे”

सुमेधा अब सुरेश पर बिखर गयी “क्या बकवास कर रहे हो? हो क्या आप लोग मेरे पापा के सामने? आप जैसे लोग मेरे पापा के ऑफिस में घुस भी नहीं सकते।”

इतने में ही राजन ने एक और चांटा सुमेधा को मार दिया, इस पर सुमेधा पूरी तरह बिखर गयी और राजन को एक जोरदार धक्का दिया जिससे वो निचे गिर गया। सुरेश ने आगे बढ़कर सुमेधा को एक जोरदार धक्का पीछे को दिया। अब सुमेधा चिल्लाती हुई घर से निकली “तुम जंगली लोगो की इतनी हिम्मत कि मुझे मारोगे। मैं अनपढ़ राशि नहीं हूँ, अभी पापा को फोन करती हूँ और देखो क्या हाल होगा तुम्हारा। जानते भी हो मेरे पापा आई०ऐ०एस० हैं और मेरा भाई भी आई०ऐ०एस० है”

अब सुरेश को थोड़ा होश आया तो उसे एहसास हुआ कि वाकई में ये राशि नहीं है और ना ही इसका परिवार राशि के परिवार जैसा है। वो सुमेधा के पीछे गया और उससे गिड़गिड़ाने लगा “बेट्टी तू म्हारे घर की मालकिन है। तू समझ नहीं रही, तेरे साथ की जरुरत है राजन को। हमारा क्या? हम तो कुछ दिन हैं फिर तुम दोनों का ही है ये सब”

सुमेधा ने चिल्लाकर कहा “है क्या तुम्हारे पास? जितना है उतना तो मेरा परिवार एक साल में खर्च कर देता है। ये घर जो राशि के घर वालो के पैसे से बना है ये सामान जो मेरे और राशि से पैसे से ख़रीदा गया है। क्या हो तुम लोग?”

इतने में मंजू फिर बाहर आई और गुस्से में बोली “तेरे भित्तर दिखरे तेरे संस्कार तो”

मंजू मौके की नज़ाकत को नहीं समझ रही थी लेकिन सुरेश समझ चुका था। उसने मंजू को चुप करने के लिए मंजू की पीठ पर एक जोरदार थप्पड़ मारकर उसे धक्के देकर उसके कमरे में धकेल दिया और मंजू को डांटते हुए बोला “अन्दर मर बदतमीज औरत, तुझे पता ई ना कि बहु बेटियों से कैसे बात की जा”

सुरेश को मंजू को यूँ मारते देख सुमेधा को और भी ज्यादा बुरा लगा और उसने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा “तुम सब जंगली हो, जंगली”

सुमेधा ऊपर छत पर चली गयी और फोन पर अपने पिता से बात करने लगी।

राजन दुनिया से बेखबर अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करके लेट गया। दरअसल में अब राजन को बाहरी दुनिया से कोई मतलब रह ही नहीं गया था। वो एक बेहद ही असामान्य मानसिक स्थिति में जा चुका था।

सुरेश अब घबराया हुआ था।


सुमेधा ने अपने पिता को फ़ोन लगाया और रोते हुए सारा विषय बताया।

उधर से सुमेधा के पिता ने बेहद ही शांत भाव से कहा “बेटा समझाया था तुम्हें कि तुम गलती कर रही हो। इतने अच्छे अच्छे प्रपोजल को ठुकरा कर तुम इसकी दूसरी पत्नी बनी। आस्ट्रेलिया से इतना अच्छा जॉब ऑफर था जिसे तुमने ठुकरा दिया। तब तो तुमने ना हमारी सुनी और ना अपने भाई की। पूरी फैमिली में कोई भी नहीं था जो तुम्हारे डिसीजन को सही बताये लेकिन तुमने अपनी ज़िद पूरी की”

सुमेधा ने रोत हुआ कहा “पापा राजन गलत नहीं है”

इतना सुनते ही सुमेधा के पिता ने कड़क अंदाज़ में कहा “चुप रहो तुम, वो भी उस परिवार का ही हिस्सा है। लालची हैं ये सब लोग, पहली शादी भी दहेज़ के लालच मे की, फिर इस राजन ने ही तुम्हें बेवकूफ बनाया”

सुमेधा अब कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं थी। सुमेधा के पिता ने प्यार भरे अंदाज़ में कहा “सुनो सुमेधा अब जो होगा मेरे हिसाब से होगा। भेज रहा हूँ ड्राइवर को चुपचाप यहाँ आ जाओ”

सुमेधा ने सहमती जाता दी।  


सुरेश पर सुमेधा के पिता का फोन आया। सुरेश के चेहरे पर पसीना आ गया। वैसे भी सुरेश सुमेधा के परिवार से घबराता था क्योंकि सुमेधा का पिता और भाई दोनों बड़े अधिकारी थे। सुरेश ने फोन उठाते ही चापलूसी वाले अंदाज़ में कहा “नमस्कार सर को”

सुमेधा के पिता ने अभिवादन का कोई जवाब ना देते हुए सीधे कहा “वो मेरा ड्राइवर आ रहा है... सुमेधा को लेने, उसकी पैकिंग करवा दो”

सुरेश ने गिड़गिड़ाने वाले अंदाज़ में कहा “अजी वो बच्चों के बीच में थोड़ी सी गलत फहमी हो गयी थी जी, मै सब संभाल लूँगा”

सुमेधा के पिता ने अब कड़क अंदाज़ में कहा “मैं पूछ नहीं रहा हूँ बता रहा हूँ”

सुरेश अब निरुत्तर था फिर भी बोला “अजी वो ऐसे झगड़ों में घर जाना ठीक नहीं होगा। दो चार दिन में राजन खुद छोड़ आएगा।”

सुमेधा के पिता ने कहा “दो चार दिन सुमेधा यहाँ रह लेगी तो उसका मन ठीक हो जायेगा फिर ले जाना”

इतना कहकर सुमेधा के पिता ने फोन काट दिया।

सुरेश भी चुप हो गया। कुछ देर में ही ड्राइवर आ गया था। मेरठ से यहाँ तक आने में वैसे भी आधा घंटे से ज्यादा नहीं लगता था। सुमेधा ने अपना कुछ सामन पैक कर लिया था। वो सामान लेकर चली गयी। राजन अपनी ही धुन में अपने कमरे में लेटा रहा। और अपने अतीत की यादों में खोया रहा।


राशि के साथ राजन रोज झगड़ा और मारपीट कर रहा था। अब तो मंजू और सुरेश भी उस पर हाथ उठा देते थे। बात बढ़ने पर एक दिन राशि के घरवाले आये और मोहल्ले के लोगो को बैठकर बात-चित हुई। अब सुरेश का षडयंत्र काम कर गया था। मोहल्ले के कुछ लोगो ने भी कहा कि राशि ही झगड़ा करती है। राशि पर खुलकर झूठे आरोप लगाये गए उसके चरित्र पर भी लांछन लगाया गया।

सुरेश ने खुलकर कहा “अब कोई सोलुसन ना बचा जी, अब तो एक ई रास्ता है कि इन दोनों का तलाक होजा अर दोनों अपने हिसाब से अपनी जिन्दगी को आगे बढायें”

लेकिन सुरेश की इस बात का विरोध सभी ने किया और राशि के माँ-बाप से कहा कि राशि को समझाएं।

ये सब सुनकर राशि के परिवार वाले भी निरुत्तर थे। राशि के पिता ने राशि को कड़े लहजे में कहा “सुन तू डोली में विदा होकर आई है तो याद रख... यहाँ से विदाई अर्थी पर ही होगी। क्यूँ अपने कुनबे का नाम उछाल रही है”

राशि ने रोते हुए कहा “झूठ बोल रहें हैं ये सब”

इसपर मंजू बोल पड़ी “देख लो जी यो तो तुम सब के सामनेई जुबान लड़ा री तो सोच्चो बाद में क्या हाल करती होगी”

राशि के पिता ने राशि को डांटते हुए कहा “सुन मेरी बात अब तेरी शिकायत झूठ कु बी ना सुन लूँ, याद रखिये तू”

राशि अब एकदम शांत हो गयी और जब वो लोग चलने लगे तो राशि ने बेहद ही शांत भाव से कहा “पिताजी अब आपको कोई शिकायत नहीं मिलेगी”

राशि के घरवाले बेफिक्र होकर चले गए।

राशि के घरवाले इस मामले को पुलिस या कोर्ट तक नहीं ले जाना चाहते थे क्योंकि वो जानते थे कि वहाँ मामला गया तो तलाक निश्चित है। और वो लोग इस स्थिति के लिए तैयार नहीं थे। अत: राशि के परिवार वालो का बस एक ही प्रयास था कि सामाजिक दबाव से इस रिश्ते में आ चुकी दरारों को भरा जाए।


सुमेधा को अपने घर गए हुए 2 दिन हो गए थे। सुमेधा की माँ, उसके पिता और उसके भाई ने उसे विभिन्न तरीकों से बस ये ही समझाया था कि उसने राजन से शादी करके एक बहुत बड़ी गलती की है। सुमेधा के पिता ने सुमेधा को गंभीरता से बताया था “सुमेधा मेरी वहाँ के थाना इंचार्ज से बात हुई है। वो बता रहा था कि शायद राजन और उसके परिवार ने राशि का मर्डर किया है लेकिन राशि के परिवार की चुप्पी की वजह से इंवेस्टिगेसन ऑफिसर से मिलकर मामले को आत्म हत्या बना दिया गया।”

सुमेधा ने आश्चर्य चकित होकर कहा “लेकिन पापा मैंने वो वीडियोज भी देखि हैं, जिनमे राशि सुसाइड कन्फेस कर रही है”

सुमेधा के पापा ने सुमेधा के सर पर हाथ रख कर कहा “बेटा सिस्टम को मेरे ज्यादा तुम नहीं समझ सकती हो, यहाँ कुछ भी हो जाता है, कुछ भी मतलब... कुछ भी।”

सुमेधा के पिता ने एक दिन उस महिला मनोचिकित्सक को अपने घर पर बुलाया और उसने भी सुमेधा से बात की

मनोचिकित्सक : बेटा सॉरी बट राजन की सिचुवेसन बेहद ही क्रिटिकल है।

सुमेधा : आखिर उसकी प्रोबलम क्या है?

मनोचिकत्सक : बेटा उस दिन मुझे बस 30 मिनट का समय ही मिला उतने से कुछ बातें मैं डाइग्नोसिस कर पायी हूँ, एंड आई ऍम टोटली श्योर अबाउट दीज थिंग्स

सुमेधा की आँखों में उसकी उत्सुकता साफ़ दिख रही थी। उसने पूछा “क्या बातें?”

मनोचिकत्सक : बेटा पहली बात राजन इज अ ग्रीडी पर्सन, और तुमसे शादी करने के पीछे उसकी कोई बड़ी महत्वाकांक्षा थी।

सुमेधा : तो अब तो मुझसे शादी हो गयी ना फिर वो पागल क्यों है?

मनोचिकत्सक : सुमेधा कोई ऐसा पाप है जो उसने किया और अब वो उसके अपराधबोध में जी रहा है। शायद उसकी पहली पत्नी की आत्महत्या का जिम्मेदार वो खुद को मानता है। और सुमेधा तुम तो अब उसके दिमाग में या उसकी जिन्दगी में कहीं हो ही नहीं। वो बस अपने उस अपराधबोध से घिरा है पूरी तरह। उसे अपनी पहली पत्नी दिखाई देती है तो साफ़ है कि वो अपनी पहली पत्नी का अपराधी मानता है खुद को। वो अपराधबोध से पूरी तरह से घिरा है सुमेधा।

सुमेधा को ये बात सुनकर अपने पिता की वो बात याद आई कि शायद राजन के परिवार ने राशि की हत्या की है। सुमेधा के मस्तिष्क में ख्याल आया कि हो ना हो राजन ने राशि की हत्या की है। सुमेधा का ह्रदय इस पीड़ा और धोखे से करहा उठा।

सुमेधा के परिवार के द्वारा लगातार सुमेधा को समझाया जा रहा था। सुमेधा राजन को फोन करने का प्रयास कर रही थी तो वो फोन नहीं उठा रहा था। धीरे धीरे सुमेधा में राजन के परिवार और राजन के प्रति घृणा और राशि के प्रति एक सहानुभूति पैदा होने लगी थी। सुमेधा एक हद तक खुद को भी राशि का अपराधी मानकर चल रही थी। क्योंकि राजन के विवाहित होने के बाद भी सुमेधा ने उससे सम्बन्ध बनाये और कहीं ना कहीं राजन को राशि से दूर करने में सुमेधा की भी भूमिका रही थी।

ऐसे ही लगभग 10 दिन बीत गए थे। इस दौरान सुमेधा ने राजन को देखने जाने की इच्छा प्रकट की तो उसके परिवार ने रोक दिया। और अब सुमेधा के भीतर ही राजन से मिलने की इच्छा नहीं हो रही थी। सुमेधा अपनी नौकरी पर भी नहीं जा रही थी। सुमेधा ने नौकरी से त्यागपत्र भी दे दिया था।


सुमेधा ड्राइंगरूम में बैठकर एक पत्रिका पढ़ रही है। तभी उसके पिता ने सुमेधा के एयर टिकेट्स और आस्ट्रेलिया का वीजा उसके हाथ में ला कर रख दिया।

सुमेधा : ये क्या है पापा?

सुमेधा के पिता ने बेफिक्री से उत्तर दिया “आस्ट्रेलिया में एक बड़े बिजनिस ग्रुप में अच्छा प्रोफाइल है। कल ही आस्ट्रेलिया के लिए फ्लाईट है, वहाँ पर मेरे दोस्त का बेटा जो खुद एक बड़े ग्रुप में “सी ई ओ” है वो तुम्हें पूरा सपोर्ट करेगा।”

सुमेधा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर सुमेधा की माँ आई और आँखों में आँसू बहते हुए बोली “देख सुमेधा अब जो हम कहें वो कर, अगर अब भी तू उन भिखारियों के घर में गयी तो हमसे तेरा कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा। तू खुद देख चुकी हैं अब उनको।

सुमेधा के दिमाग में वो मंजर घूम गया कि कैसे राजन ने उसको मारा और राजन के पिता ने भी हाथ उठाया।

फिर उसको सहसा ही ख्याल आया कि यदि परिवार से नाता तोड़कर वहाँ गयी भी तो क्या है वहाँ?

लालची सास ससुर और एक पागल पति जो उसे कभी भी पीटेगा।

फिर सुमेधा को सहसा फाँसी के फंदे पर लटकता अपना मृत शरीर दिखाई दिया जैसे कभी राशि फाँसी पर झूल गयी थी।

सुमेधा अब अपने परिवार के सामने समर्पण कर चुकी थी।

सुमेधा ने बस एक ही सवाल अपने पिता से किया “पापा राजन की और मेरी शादी हुई है”

सुमेधा के पिता ने सुमध के कंधे पर हाथ रखकर कहा “वो मैं देख लूँगा, तुम बस अपनी पैकिंग करो और वहाँ जाकर यहाँ का सब भूलकर अपने कैरियर पर ध्यान लगाओ बस”

सुमेधा चुपचाप अपने कमरे में चली गयी और अपनी तैयारी में लग गयी।


सुमेधा अपने घर गयी लेकिन राजन पर जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था। वो अपने कमरे में ही रहा और अगले दिन भी कमरे में ही बंद रहा। राजन कमरे में बैठा अपने अतीत की यादों में चला गया।

जब राशि के घरवाले भी राशि को ही गलत ठहरा कर चले गए तो पहली बार जीवन में राशि ने अकेलापन महसूस किया। राशि के लिए एक वर्ष पहले तक जीवन बेहद ही खूबसूरत था, जब उसकी शादी हुई थी। तब वो एक इज्ज़तदार परिवार की बेटी थी और एक पढ़े लिखे लड़के से ब्याह कर इस घर में आई थी। लेकिन इतनी जल्दी, जीवन सच्चाई उसके लिए बदल गयी थी। राशि पर उसके परिवार के सामने पता नहीं क्या-क्या आरोप लगाये गए, उसे चरित्रहीन तक कहा गया। वो मानसिक रूप से अब बिलकुल टूट गयी थी। सुरेश ये ही चाहता था कि राशि मानसिक रूप से टूट जाए। लेकिन राशि को उसके परिवार वाले वापस नहीं ले गए तो इससे राजन और सुरेश को झटका लगा।

राजन ने राशि से किसी भी तरह का संवाद करना अब पूरी तरह से बन्द कर दिया था। अब राशि उस घर में तो थी लेकिन जैसे वो किसी को दीखाई ही नहीं देती थी। उसे कोई खाने को भी नहीं पूछता था। रसोई में वो जाकर जो मिलता बनाकर खा लेती। उस समय भी राजन की माँ कुछ ना कुछ ताने देती रहती थी।

राजन अब राशि के सामने ही सुमेधा से खुलकर फोन पर प्यार भरी बातें करता था।

राशि को अब खुद अपने अस्तित्व से घृणा हो रही थी।

राजन सुबह ऑफिस जाने की तैयारी कर रहा था, तब ही राशि आई और बोली “सुनिए आप मुझसे कितनी भी नफरत कीजिये, लेकिन पता नहीं क्यों? मै आपसे प्यार करना नहीं छोड़ सकती”

राजन ने राशि कि तरफ देखे बिना उससे कहा “प्यार? कैसा प्यार है? यार करती होती तो मुझे खुश रहने देती...छोड़कर चली जाती मुझे”

राशि की आँखों में आँसू आ गए और उसने कहा “आपकी ख़ुशी के लिए मैं अपना कुछ भी क़ुर्बान कर दूंगी”

राजन कमरे से बाहर निकल गया था। पता नहीं उसने ये सुना भी या नहीं।


राजन ऑफिस में ही था तभी उस पर सुरेश का फोन आया, सुरेश घबराया हुआ था “राजन तू घर ना आइयो अभी”

राजन ने कहा “क्या हुआ”

सुरेश : वो ई जिसका डर था बेट्टे, राशि ने आत्महत्या कर ली, तू अभी ऑफिस मैं ई रहियो।

इतना कहकर सुरेश ने फोन काट दिया।

तभी राजन की दृष्टि मोबाइल के नॉटीफिकेसन पर गयी, जिसे वो अनदेखा कर रहा था। राशि ने उसे व्हाट्सएप पर मैसेज किया हुआ था। राजन राशि के मैसेज को देखता ही नहीं था।

राजन ने तुरन्त व्हाट्सएप खोला तो उसमें राशि ने वीडियो भेज रखा था। विडिओ में राशि ने नेत्रों से कहा “आज मैं आपकी हर मुसीबत को दूर कर दूंगी। अब मुझे भी खुद से घृणा हो गयी है, मेरी जिन्दगी सबके लिए मुसीबत है। कोई भी तो ऐसा नहीं जिसकी ख़ुशी का कारण मैं बन सकूँ, सब परेशान हैं। देखिये ना... मेरे घरवाले भी मुझसे परेशान हैं।”

राशि ने फिर एक रुमाल से पाने आँसू पोछे और फिर एक करुण मुस्कान चेहरे पर लाकर बोली “आपसे मुझे आज भी प्यार है। आज जब इस दुनिया को छोड़कर जाने का फैसला कर लिया है, तब भी मुझे दुःख है तो बस आपसे दूर होने का, पता नहीं मर कर भी आपको भुला पाउंगी या नहीं। और हाँ आप घबराइयेगा नहीं ये विडिओ दिखा देना पुलिस को”

फिर राशि चेहरे के सभी भावों को छुपाते हुए एक गंभीरता चेहरे पर लाते हुए बोली “देखिये मेरे पति बहुत अच्छे हैं, इनसे मुझे किसी तरह की कोई शिकायत नहीं। मुझे किसी से भी कोई शिकायत नहीं। मैं खुद अपनी जिन्दगी से परेशान होकर अपनी जिन्दगी को ख़त्म कर रहीं हूँ। यदि मेरा परिवार भी आकर इसके लिए मेरे पति या मेरे ससुरालियों पर कोई केस करना चाहे तो उनकी बात ना मानी जाये”

यहाँ विडिओ ख़तम हो गया।

राजन की आँखों से एक बूंद बाहर को निकली लेकिन फिर उसकी आँखों के सामने सुमेधा का चेहरा आया और उसने अपनी आँखों को पोंछ लिया। लेकिन राजन समझ नहीं पा रहा था कि वो खुश है या दुखि।


राशि ने उस स्टोर नुमा कमरे में ही फाँसी लगाकर आत्महत्या की थी जिसका ताला तांत्रिक ने लगवाया था।

राशि ने अपने पिता को भी एक वीडियो भेजी थी जिसमें उसने उनसे कोई भी केस ना करने को कहा था। राशि के परिवार वालों ने हंगामा भी किया लेकिन राशि के ही मोबाइल से दोनों वीडियो मिल गए थे तो सुरेश के लिए आसानी हो गयी थी मामले को दबाने में।

राशि के पिता को अपने वो शब्द कचोट रहे थे जो उसने आखरी बार राशि को बोले थे। इस मामले में राजन या राजन के परिवार का कुछ नहीं बिगड़ा और फिर राशि के परिवार वाले भी चुप बैठ गए थे।

इसके कुछ समय बाद ही सुमेधा और राजन ने शादी कर ली।


सुरेश ने कई बार सुमेधा के फोन पर उससे संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन वो नंबर लगातार स्विच ऑफ आ रहा था। इधर राजन की हालत लगातार बिगडती जा रही थी। उसने अपने ऑफ़िस जाना छोड़ दिया था। वो बस अपने ही कमरे में रहता था और अपने आप से ही बातें करता रहता था।

राजन के ऑफ़िस से भी जब कुछ लोग मिलने आये तो राजन उनसे नहीं मिला। राजन का खाना यदि उसके कमरे में पहुंचा दिया जाता तो ले लेता था। अपने आप से तो वो कुछ बोलता ही नहीं था। कई बार तो वो खाने के लिए भी दरवाज़ा नहीं खोलता था।

इस तरह लगभग एक महिना बीत गया था। सुरेश परेशान होकर सुमेधा के घर पर गया तो वहाँ उसे कोई नहीं मिला वो वापस आ गया। अगले दिन सुरेश सुबह जल्दी ही निकल लिया और सुबह के 8 भी नहीं बजे थे कि वो सुमेधा के घर पहुँच चूका था।

चोकीदार ने उसे अन्दर नहीं घुसने दिया। ये सुरेश को बहुत ख़राब लगा और उसका माथा भी ठनक गया। सुमेधा का पिता बाहर आया और बहुत ही रूखे अंदाज़ में बोला “क्या बात है क्यों आये हो यहाँ?”

सुरेश ने चेहेरे पर जबरदस्ती एक मुस्कान लाते हुए कहा “समधि जी वो बहु से बात नहीं हो पा रही थी तो”

 सुमेधा के पिता ने चेहरे पर कड़ी बेरुखी लाते हुए कहा “कौन समधी और कौन बहु? अपनी औकात में रहो और फिर कभी इधर दिखे तो मैं क्या कर सकता हूँ? ये तुम्हे बताने या दिखाने की जरुरत नहीं है। रुको दो मिनट”

फिर सुमेधा का पिता घर के भीतर गया और कुछ कागज़ लेकर आया और उन्हें सुरेश की तरफ बढ़ाते हुए बोला “वो जो एक गलती मेरी बेटी से हो गयी थी जिसके कारण तुम्हारी हिम्मत उसे बहु कहकर बुलाने की हो गयी.....उसे भी ठीक करना पड़ेगा। ये हैं तलाक के पेपर्स इनपर राजन के सिग्नेचर करवा कर बता देना मेरा कोई भी आदमी आकर ले जायेगा”

सुरेश के लिए ये अनुभव बहुत ही बुरा था। वो अपमानित महसूस कर रहा था लेकिन कुछ कह नहीं सकता था। सुरश ने बस इतना ही कहा “सुमेधा से बात करवाओ जी एकबार और वो लेकर जाए ना राजन के पास आप कौन या मैं कौन जी इन दोनों की जिन्दगी का फैसला करने वाले”

सुमेधा के पिता ने एक कुटिल मुस्कराहट लाते हुए कहा “ठीक है, कोई नहीं...सुमेधा अपनी जिन्दगी का फैसला ले चुकी है। वो इण्डिया से बाहर है.. पिछले 10 दिन से। बाकी अगर तुम ऐसे नहीं माने तो और भी बहुत से तरीके हैं। याद रखना अगर तुम्हारी वजह से मेरी बेटी को जरा सी भी परेशानी होती है तो तुम ही नहीं वो तुम्हारा सरकारी नौकरी वाला दमाद .....क्या है वो रोडवेज में क्लर्क ना....ऐसे क्लर्को की नौकरी लगाना या छीन लेना मेरे लिए मिनटों खेल है। और हो सकता है कि इससे भी बुरा कुछ हो जाए”

सुरेश पेपर लेकर चुपचाप घर वापस आ गया। वो जानता था कि एक आई ऐ एस क्या नहीं कर सकता?


सुरेश घर आया। राजन अपने कमरे में ही था।

सुरेश ने राजन को आवाज़ लगाकर कहा “बेटा राजन दरवाज़ा खोल सुमेधा के बारे में बात करनी है”

राजन ने दरवाज़ा खोला तो सुरेश वो कागज़ राजन को पकड़ा कर बदहवास सा बोलने लगा “बेटा वो सुमेधा का बाप बोल रहा था कि सुमेधा विदेश चली गयी। अर देखिये ये कागज़ दिए तलाक के। बेटा ऐसे कैसे होगी? एक बार सुमेधा से तो बात कर”

सुरेश ने बदहवासी में और पता नहीं क्या क्या कहा लेकिन उसने ध्यान ही नहीं दिया कि राजन उन कागजों पर हस्ताक्षर कर रहा है। राजन ने वो कागज़ सुरेश को दिए और बोला “इन्हें सुमेधा के पापा को दे देना”

और सुरेश को लगभग कमरे से धकेल कर बाहर करते हुए अपने कमरे का दरवाज़ा फिर से बंद कर लिया।


राजन अपने उस कमरे की जिन्दगी में खो चुका था। लोगो को लगता था कि वो खुद से बातें करता है लेकिन राजन राशि से बातें कर रहा होता था। उसके कमरे में बाकी लोगो को जब वो अकेला दीखता था तो वहीँ राजन उस कमरे में राशि के साथ होता था। राजन की नौकरी भी छूट गयी थी। लोग अब उसे पागल मानते थे। घर का खर्च चलाने के लिए सुरेश को एकबार फिर लकड़ी की टाल पर मुनीम की नौकरी करनी पड़ रही थी।

शुरू में सुरेश ने कुछ तांत्रिकों और चिकित्सकों को राजन को दिखाया भी, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा था। सुरेश को मुनीम की नौकरी से बस इतने ही पैसे बचते थे कि घर में दाने पानी का काम चल सके। 

राजन की इस हालत को सुरेश ने स्वीकार कर लिया था। अब उसके दिमाग कोई ऐसी कुटिल चाल नहीं थी जो इन हालात को सुधार सके।

सुमेधा जहाँ राजन को छोड़कर अपनी जिन्दगी में आगे बढ़ गयी थी तो राशि मौत के बाद भी इस दुनिया में राजन के साथ ही थी। राशि और राजन के बंधन को मौत भी नहीं तोड़ पायी थी।


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