satish bhardwaj

Tragedy Inspirational

4.0  

satish bhardwaj

Tragedy Inspirational

लॉकडाउन

लॉकडाउन

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बिंदा, अब ये नाम किसने रखा या कौन थे इसके माँ बाप ये तो बिंदा को भी नहीं पता था। कभी छोटा सा ही बिछड़ गया था अपने माँ-बाप से। धुँधली सी याद थी वो भी मज़दूर ही थे शायद।

जिन्दगी ऐसे ही बीती कभी मजदूरी मिली तो मजदूरी, कभी भीख मिली तो भीख। उसे अपने जैसी ही बेघर युवती शज्जो मिली तो दोनों साथ रहने लगे। बस यूँ ही हो गया गठबंधन और गृहस्थी चल पड़ी। अब इन दोनों के तीन बच्चे भी हो गए थे।

भारत में कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी थी। टोटल लॉक डाउन हो गया था और बिंदा और शज्जो जो कबाड़ चुगने का काम करते थे, उन्हें अपने झोपड़े में ही रहना पड़ता था। ये झोपड़ा भी कबाड़ के ढेर में से मिले सामान से ही बनाया था, शहर से बाहर जहाँ शहर का कूड़ा इकट्ठा होता था। इस छोटे से घर को कबाड़ में मिले मतलब के समान से सजाया था। बच्चों को कुछ टूटे फूटे खिलौने दे रखे थे जो कबाड़ के ढेर में से ही मिले थे। इनकी पूरी ज़िदगी पक्के मकानों में रहने वाले लोगो के द्वारा फेंक दिए गए कबाड़ से ही चलती थी।

शज्जो और बिंदा बैठे देख रहे थे बच्चों को..

शज्जो ने कहा “पुलस डंडा मार मार के भगारी, अब पन्नी-पलासटिक तो मिले ना, किसी के घर भी रोटी ना मांग सके अब तो”

बिंदा ने एक पुरानी सी पन्नी में इकट्ठे किये गये सिगरेट के ठुन्टो में से एक ठुन्ट निकाला और सुलगा कर शज्जो की तरफ बढ़ा दिया। और मुस्कान लाते हुए बोला “ले दम्म मार ले, ये भी आज ही आज है बस”

शज्जो ने सिगरेट के ठोटक में कश खींचते हुए कहा “पेट कमर से मिल्ल गिया, कल से कुछ ना खाया दोनों ने”

बिंदा ने कुछ सोचते हुए कहा “शान्ज कु क्या देगी बालकों कु, बचरा कुछ”

शज्जो ने इस सवाल का जवाब अपनी भीगती आँखों से दिया।

बिन्दा की आँखें भी नम हो गयीं थी प्रतिउत्तर में।

आँसू सबसे ज्यादा सरलता से समझ आने वाली सांकेतिक भाषा होती है।

शज्जो ने झल्लाकर कहा “जान क्यूँ नी देरे काम करन कु, इस पास वाले मोहल्ले में भी ना घुसन देरे।.... नी तो मांग लात्ती थोड़ा सा आट्टा”

बिंदा ने आखरी कश खींचते हुए कहा “बीमारी फैलरी, कसी आदमी के धोरै जात्ते ई लगजा”

शज्जो ने अपने उलझे बालों को सख़्ती से सुलझाते हुए कहा “अमीरन की बीमारी है, कल बतारे अक बिदेश सै लाया कोई हुवाई जिहाज में बैठके”

बिंदा अपनी गर्दन के दाद को खुजलाते हुए बोला “वो तो बैठगे अपने महल्ल में, हम कहाँ जा?”

सरकार के लॉक डाउन को 3 दिन गुजर गए थे। बिंदा शज्जो की ज़िदगी में भविष्य के सपनों के नाम पर अगले समय पर भर पेट मिल जाने वाले खाने के ख़्वाब होते थे बस। पन्नी चुगकर पैसे मिल गये तो कभी दुकान से लेकर कुछ खा लिया बच्चों के साथ। वैसे उससे इतना पैसा नहीं मिल पाता था। कभी कभी कूड़े में किसी घर का बचा हुआ खाना मिल गया तो वो खा लिया। कभी कबाड़ चुगते चुगते किसी घर से कुछ खाने को मांग लिया और भाग्य से गर्म और ताज़ा खाना मिल गया तो इनके परिवार की दावत हो जाती थी। इनकी पूरी जिन्दगी भीख और कबाड़े में मिली चीजो से ही गुंथकर बनायीं थी इन्होंने।और इस ज़िदगी की जद्दोजहद हर शाम और हर सुबह के साथ खाने की तलाश से शुरू होकर उसकी तलाश पूर्ण होने पर सिमट जाती थी बस।

सरकार ने मज़दूरों को 1000 देने की घोषणा की थी। लेकिन दुनिया में बिन्दा और शज्जो जैसे भी लोग थे जिनका नाम शायद ही दुनिया के किसी सरकारी दस्तावेज़ पर इतने ढंग से लिखा हो और बैंक खाता क्या होता है ये तो इन्होंने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था। इनके भाग्य को देखकर लगता था कि इनका नाम तो शायद विधाता के भी किसी कागज़ पर अंकित नहीं था। इनके समय बदलने का तात्त्पर्य बस इतना था कि सुबह से शाम और शाम से सुबह। सरकारों की कोई घोषणा या योजना इनसे बहुत दूर कर बचकर निकल जाती थी कुछ ऐसे ही जैसे कि आम लोग इनसे बचकर निकलते थे।


पिछले चार दिन के लॉक डाउन से इनकी जिन्दगी भी लॉक डाउन हो गयी थी। पिछली सुबह से बिन्दा और शज्जो ने कुछ नहीं खाया था। क्योंकि तीनों बच्चों की भूख मिटानी ज़रुरी थी। अब कूड़ा भी कम ही आ रहा था तो उसमें भी कुछ खाने लायक नहीं मिल रहा था। अब तो बच्चों के लिए भी कुछ नहीं बचा था।

बिन्दा कुछ सोचकर उठकर चल दिया और ठेकेदार जिसे ये पन्नी और कबाड़ बेचते थे उसके हत्ते के बाहर चल रही चर्चा को सुनने लगा। वहाँ भी कोरोना महामारी को लेकर ही चर्चा चल रही थी।

बिन्दा ने उस चर्चा में कुछ ऐसा सुना कि वो फुर्ती से वहाँ से शहर की और चल दिया। अभी वो पार्स कोलोनी की तरफ गया ही था कि पुलिस वाले ने एक भद्दी गाली देते हुए उसे रोक लिया और पूछा “रै कहाँ भाग्गा जारा... रुक।"

बिन्दा जो कभी इनके सामने सर भी नहीं उठाता था आज डटकर दुस्साहस के साथ बोला “कुरोना के पास”

पुलिस वाले को लगा कोई पागल है तो ठिठोली करते हुए पूछा “रै तू के बाल पाडैगा कुरोणा का, चल भाग यहन्तै”

बिन्दा ने भावुकता से कहा “दीवन जी सरकार कुरोना के बीमार कु अस्पत्ताल में रोट्टी भी देरी जी। तो बीमार होकै रोट्टी तो मिल जागी। कुरोना मारे पता ना पर बाबूजी बालको कु भूख सै मरते ना देख सकू”

पुलिस के तीन चार सिपाही और एक अधिकारी भी यहाँ आ गया था। बिन्दा की बात सुनकर उन सबको चेहरे जो विनोदपूर्ण मुस्कराहट से भरे थे अब मलिन हो गए।

सिपाही अब विनम्रता से बोला “सरकार पैसा भिजवायेगी तेरे खात्ते में भी चिंता मत कर, अर और भी व्यवस्था करेगी भाई”

बिन्दा ने अब आँखों में आँसू लाते हुए कहा “बाबूजी हर सरकारी व्यवस्था के लिए जितने कागज़ पत्तर चाह उतने तो ना म्हारे पास, बस कुछेक बना दिए हैं उन सरकारी बाबूजी ने। आर अब कद आगि सरकार यो भी ना पता”

फिर बिन्दा ने उस सिपाही ने पैरो में गिरते हुए कहा “बाबूजी यो हाड मॉस की देह है.... जीता जागता हूँ जी, पर यो ना दिक्खै जी किसी कु बी। मुझे कुछ ना मिलै खान कु फिकर ना पर वहाँ शज्जो... मेरी घरवाली अर तीन बालक है जी। कल तक जो हा खुद ना खाके बालको कु खुला दिया। पर अबजा तो बालको लाक बि ना जी”

इतना कहकर बिन्दा पुलिस वाले के पैरो में गिरकर फुट फुट कर रोने लगा, सिपाही ने पीछे हटकर खुद को उससे दूर किया।

बिन्दा बोला “बाबूजी जान दो कुछ मांग लाऊंगा खान कु, अर जो कुरोना हो गिया तो सरकार केम्प मैं कुछ खान कु दे ई देगी”

पुलिस अधिकारी जो ये सब देख और सुन रहे थे। उन्होंने बिन्दा को उठने को कहा और पूछा “तेरे जैसे और भी होंगे वहाँ, कितने हैं?”

बिन्दा ने आँसू पोछते हुए कहा “कोई पन्द्रै झोपड़े है जी कुल मिला कै 100 होंगे जी”

अधिकारी ने एक सिपाही को बुलाकर पुलिस मैस से खाना मंगवाने का निर्देश दिया और बिन्दा से कहा “ये जिन्दा देह जिन्दा रहे इसलिए ही ये सब किया जा जा रहा है। तू फिकर मत कर कोई भूखा नहीं रहेगा”

तभी थोड़ा फासले से एक आवाज़ आई “सर”

पुलिस अधिकारी ने आवाज़ का श्रोत तलाशने के प्रयास में इधर उधर गर्दन घुमाई, तभी पुन: आवाज़ आई “सर यहाँ ऊपर”

पास के ऊँचे अपार्टमेंट के फ़्लैट बालकोनीयों में खड़े लोगो में से एक ही एक व्यक्ति की आवाज़ थी ये। उसने कहा “सर आप बस परमिसन दीजिए और ये देखिये कि शहर में और कहाँ कहाँ खाने कि जरुरत है? बाकी हम देख लेंगे। हमारी कोलोनी के लोग ही नहीं शहर में और भी लोग हैं जो इसमें साथ दे देंगे”

पुलिस अधिकारी अभी कुछ सोच ही रहे थे कि एक अन्य व्यक्ति अपनी बालकोनी में से ही बोला “आप कोरोना से लड़िये सर... हम इस भूख से लड़ लेंगे, लड़ाई हमारी भी है।”

पुलिस अधिकारी के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी और गरिमा के साथ उत्तर दिया “जी अभी तो इनके खाने की व्यवस्था हम ही कर देते हैं। बाकी आप लोगो से मिलकर इस योजना पर आज शाम से काम कर लेते हैं, लेकिन हमें सोसल डिसटेन्सिंग का ख्याल भी रखना होगा... याद रखिये”

इसके उत्तर में विभिन्न बालकोनियों में खड़े लोगो की तरफ से एक हर्ष पूर्ण सहमती की आवाज़ आई।

अधिकारी ने बिन्दा से रोबदार अंदाज़ में कहा “जा अपने साथ के लोगो को इकट्ठा कर, सबको खाना मिलेगा। लेकिन सभी दूर दूर खड़े होना, एक दूसरे के पास खड़े दिखाई दिए तो पहले लट्ठ मिलेगा... फिर खाना, समझा गया”

बिन्दा ने अपनी आँखों के आंसूओं से गिले चेहरे को पूछा और वापस अपनी झोपड़ी की तरफ भाग लिया।


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