रूचि का गिनीपिग
रूचि का गिनीपिग
वैज्ञानिकों की दुनिया भी अजीब होती है, कभी भी वो खाली नहीं रह पाते।
अपने वैवाहिक जीवन से रुचि बहुत दुःखी रहती थी। उसके पास मन लगाने के लिए कोई न था।
उसके पति की महीने में सिर्फ एक बार ही दो चार दिनों के लिए घर लौटते थे।
रुचि के पति एक वैज्ञानिक थे, विभिन्न प्रकार के जीवों पर विभिन्न प्रकार की दवाइयों का टेस्ट करते थे। इन सब टेस्ट के दौरान कई जीव मर जाते थे, मगर वैज्ञानिकों का तो यही काम है।
रुचि के वैज्ञानिक पति कल चार दिनों के लिए घर लौटने वाले हैं। रुचि ने ये बात अपनी मां को बताई। मां ने कहा कि " तुम दोनों की शादी को तीन साल होने को आए , अब तक तुम लोगों ने हमें कोई खुशी नहीं दी।"
मां कि बातें रुचि को बहुत दर्द दे गई। रुचि ने इस बार सोच लिया था कि वह यह बात अपने पति से जरूर करेगी।
पति देव जब भी घर लौटते , वो हमेशा रुचि के लिए कुछ न कुछ लाते, जरूर थे।
लेकिन इस बार तो कमाल हो गया।
अपनी गाड़ी से निकलते ही रुचि को उन्होंने रुचि को बड़े ही गर्मजोशी से गले लगाया और कहा " गेस करो इस बार क्या लाया हूं "
रुचि ने कहा "आपको फुर्सत कहां, कि अपनी बीवी पर ध्यान दें"
रुचि के पति ने कहा " चलो आंखें बंद करो और हाथ आगे करो"
रुचि के पति ने उसे एक पिंजरा गिफ्ट किया।
रुचि ने आंखें खोली तो देखा कि, उसमें एक गिनीपिग का बच्चा है"
रुचि खुश हुई और बोली " तुमसे तो मैं कुछ और मांगने वाली थी।"
रुचि के पति ने कहा " मुझे वो बात भी मालूम है, मां ने बताया था।"
रुचि और उसके पति घर के अंदर चले गए और उस गिनीपिग के पिंजरे को अपने कमरे के सामने लटका दिया।
सुबह हुई रुचि ने उस गिनीपिग को बिस्किट खाने को दिया। गिनीपिग मजे से बिस्किट खाने लगा।
थोड़ी देर बाद रुचि उस पिंजरे के पास जाकर बैठ जाती है और उससे यूं ही बातें करने लगती है। रुचि के पति उसी समय एक सिरिंज में कैमिकल भरकर उस गिनीपिग को इंजेक्शन लगाने जा रहा होता है, तभी रुचि अपने पति को रोक लेती है और कहती हैं "आप ऐसा मत कीजिए न, उसे दर्द होगा "
उधर से उत्तर आता है कि " ये हमारा काम है, अगर हम टेस्ट नहीं करेंगे तो हमारी कंपनी के हाथों से करोड़ों रुपए का प्रोजेक्ट निकल जाएगा...तुम्हें डर लगता है तो तुम जाओ।"
रुचि अपने किचन में चली जाती है।
थोड़ी देर बाद जब वो कमरे की तरफ आती है तो उस गिनीपिग को बेहोश पाती है। उसका मन उदास हो जाता है।
रात के समय जब रुचि और उसके पति डिनर कर चुके थे तब रुचि ने कहा "थोड़ा चलिए न उस गिनीपिग के पिंजरे के पास .... मैं उसे रोटी खिलाना चाहती हूं"
रुचि के पति और रुचि दोनों उस गिनीपिग के पास पहुंचे तो देखा कि वो गिनीपिग अपने पिंजरे में खेल रहा था। रुचि खुश हुई और बोली अब मुझे अच्छा लग रहा है ।
रुचि और उसके पति अपने कमरे में सोने के लिए चले गए। रुचि के पति ने उसके कंधों पर अपना सिर रख कर कहा, "मुझे अब ये सब जानवरों के जीवन को लेकर खिलवाड़ करना अच्छा नहीं लगता... लेकिन मैं क्या करूं।"
रुचि ने अपने पति के माथे पर हाथ रख कर कहा "तो छोड़ दीजिए न और लौट आइए, हम यहां एक साथ रहेंगे।"
दोनों ने अपनी वो रात इसी तरह जागकर बिताई।
चार दिन पूरे हो चुके थे, अब उसके पति को फिर से लौटना था।
इस बार रुचि के पति अपने उस गिनीपिग को, रुचि के हवाले कर गए और बोला "ओ गिनीपिग महाराज, हमारी मैडम का दिल लगाए रखना।"
गिनीपिग ने रुचि का दिल लगाए रखा, रुचि उसे खिलाती, नहलाती और उसके पिंजरे की सफाई करती।
इस तरह कब नौ महीने बीत गए पता ही नहीं चला।
उस रात बहुत बारिश हो रही थी, गिनीपिग के पिंजरा ठंड में बाहर ही रह गया।
रुचि को डाक्टर ने प्रेगनैन्सी के महीने में बहुत सावधानी रखने को बोला था, इसलिए रुचि ने अपने पास एक नौकरानी रख ली थी।
रात भर गिनीपिग भीगता रहा, जब रुचि ने सुबह देखा तो गिनीपिग बिल्कुल ठंडा हो चुका था।
रुचि ने अपनी नौकरानी को ऊंची आवाज में डांट लगाई। ज्यादा जोर से चीखने के कारण उसके पेट में दर्द होने लगा। रुचि चिल्लाने लगी, उसे अस्पताल ले जाया गया।
रुचि के पति भी वहां पहुंचे, रुचि ने उनका हाथ पकड़ कर कहा, "आपका गिनीपिग चला गया"
थोड़ी देर बाद डाक्टर ने कहा "रुचि के पति को अंदर भेजिए।"
रुचि के पति अंदर गए तो उन्होंने देखा कि उनका बच्चा आधा इंसान और आधा गिनीपिग की तरह दिखाई देता है।