कोविड धरती के धैर्य का अंत
कोविड धरती के धैर्य का अंत
सृष्टि का सृजन और सभ्यता का विस्तार करोड़ों वर्ष पूर्व हुआ। सृजन की क्षमता प्रकृति को प्रदान की गई है। संसार की संरचना हुई। संसार बिना संसाधन के कभी रूपायित नहीं हो सकता। संसाधन से पृथ्वी को सुंदर तरीके से नवाजा गया है। इन्हीं संसाधनों को आधार बनाकर पृथ्वी पर मनुष्य विकास और विचरण कर रहे हैं। संसार को सृजित होने में करोड़ों, विकसित होने में लाखों और पूर्णतः आज का वर्तमान स्वरूप प्राप्त करने में हजारों वर्ष गुजर गए।
आज मनुष्य सभ्य समाज का वासी है। आधुनिक तकनीकियों का उपयोग करता है। समुद्र की गहराइयों में जाता है, पहाड़ों की ऊंचाइयों को नाप लेता है, आसमान में उड़ता है। विज्ञान और तकनीकी में इस समय के मनुष्यों को रोकना या इनका रुक पाना बहुत मुश्किल है। मनुष्य आज चांद और मंगल की धरती पर जीवन की तलाश कर रहा है।
वो कहते है न, चिड़िया कितनी भी उंचाई तक उड़ आए मगर वो लौट कर घोंसले में ही आती है।
आज के वर्तमान समय में एक वायरस से ग्रसित होकर करोड़ों लोग मर रहे हैं। एक वायरस जो अदृश्य है, वो दुनिया भर के कई करोड़ लोगों की जिंदगियां बर्बाद कर चुका है। न केवल प्राणहानि वरन् लोगों की चलती-फिरती जिंदगी बिल्कुल ठप हो गई। गरीब लोग और अधिक गरीब हो गए। लोग इस प्रकार की बीमारी से बिल्कुल ही अनभिज्ञ थे। वैसे लोग कई प्रकार के वायरसों या विषाणुओं के बारे में सुन चुके हैं। कई प्रकार के वैक्सीन भी बच्चों को जन्म के समय में ही दे दी जाती है, परंतु कोविड १९ का कोई भी वैक्सीन अब तक उपलब्ध नहीं है या फिर था
जो भी वैक्सीन है उसके असर की अवधि कितने समय तक होगी , यह कोई भी सटीक रूप से नहीं बतला सकता।
कोविड १९ का प्रसार पूरे विश्व में हो चुका है। अब इस वायरस को तबाही मचाने से रोक पाना काफी कठिन कार्य होगा। लोगों के जीवन में मास्क, सैनिटाइजर, अस्पताल और एम्बूलेंस एक अहम हिस्सा बन चुके हैं।
पृथ्वी की वर्तमान जनसंख्या ७ अरब से ज्यादा है। प्रदूषण का स्तर बढ़ कर रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच चुका है। प्रदूषण के कारण धीरे - धीरे सब कुछ खत्म होता चला जा रहा है। पृथ्वी पर शुद्ध जल, साफ वायु और स्वच्छ वातावरण की कमी होती जा रही है , जिसे कोई नकार नहीं सकता।
पृथ्वी पर मनुष्य सत्तर या अस्सी साल के लिए आता है और इस पृथ्वी के दिए हुए संसाधनों पर ही पलता- बढ़ता है। संसाधनों का दोहन करता है और पृथ्वी को प्रदूषण के जाल में फंसा देता है।
मनुष्य का मूल कार्य , सभी धर्मों के अनुसार ये बताया गया है कि प्रत्येक मनुष्य को सुखी जीवन जीने के साथ - साथ मोक्ष प्राप्ति के लिए भी प्रयासरत रहना चाहिए। लेकिन मनुष्य को सुखी जीवन जीने और जीवन को अत्यधिक सुखी बनाने के लिए वनस्पतियों को काटा, नदियों को बांधा , प्रदूषण का अंबार लगा दिया।
जिस जिंदगी में रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य की आवश्यकता थी वह विलासिता का पहाड़ बन चुका है।
ऐसे में वायरस के आक्रमण से लोगों को समझाया कि जीवन को कैसे न्यूनताओं के साथ जीवित रहा था सकता हैं। स्वास्थ्य विभाग और शिक्षा व्यवस्था का क्या महत्व है इसे समझा दिया। मनुष्य को सिर्फ लेना नहीं बल्कि देना भी आना चाहिए। केवल संग्रह करके इंसान संसाधनों को नष्ट करता है।
अतः इस कोरोना वायरस ने पृथ्वी पर मनुष्य को बहुत कुछ सिखाया और जीवन के महत्व को समझाया। अपने आंखों के सामने लोग अपने परिवार वालों को खो रहें हैं, कभी इलाज के अभाव में तो कभी इलाज के दौरान। पृथ्वी एक ध्वंस की ओर अग्रसर हो रही है। पृथ्वी अपने बोझ को कम कर रही है। संसार का सर्वाधिक बुद्धि सम्पन्न मानव जब अपनी माता अपनी प्रकृति के लिए शत्रु बन जाता , तो सर्वदा धीरज धरने वाली पृथ्वी इस प्रकार ही स्वयं को पुनः शुद्ध कर स्थापित करती हैं।
संसार कितना निर्मम है और किस प्रकार कोई किसी से न मिल रहा है न कोई किसी को मदद कर रहा है। संसार में मनुष्य अकेला आया और अकेला ही जाएगा। विषम परिस्थितियों में सहजता से , सीधा-सीधा जीवन यापन करना अति आवश्यक है।
संसार में आप खत्म हो जाएंगे मगर आपके भीतर की सांसारिकता भी खत्म होनी चाहिए।