लाकडाउन- साल बदला, हाल नहीं
लाकडाउन- साल बदला, हाल नहीं
लाॅकडाउन के साथ परिचय पिछले साल हुई। ये तब एक न्यु शब्द था लेकिन अब साल भर बाद भी यह नार्मल के परिवार में शामिल नहीं हो पाया है। लाॅकडाउन को मात्र चार घंटे के भीतर पूरे देश में लागू कर दिया गया। इसका मूल कारण कोरोना वायरस को बताया जाता है। लाॅकडाउन पहले तो मात्र कहकर इक्कीस दिनों के लिए लाया गया फिर इसको बढ़ाते हुए तीन महीनों तक बढ़ा दिया गया। हालांकि लाॅकडाउन के बढ़ते क्रम के साथ साथ कोरोना वायरस भी क्रमशः बढ़ता ही रहा। महामारी की अपनी ही त्रासदी है लेकिन इसको लाॅकडाउन के दौरान एक मजेदार रूप देने कि कोशिश की बार की गई चाहें वह थाली बजवाने की बात हो या फिर दिए जलाने का क्रम हो या फ्रंट लाइन वर्करस पर फूल बरसाने कि बात हो।
पूरे दुनिया में खलबली मची हुई रही। किसी को दवाइयां नहीं मिल रही तो किसी को अस्पताल में बेड नहीं मिल रहा । समस्याएं पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं लेती । कोरोना कब जाएगा इस प्रश्न का उत्तर भविष्य बताने वाले महाराज भी नहीं दे पाते, तब लगता है कि पता नहीं ये रोज़ क्या भविष्य देखते हैं।
महामारी के बीच सबसे ज्यादा पिसता चला गया वह आम इंसान जो दो जून की रोटी के लिए अपना राज्य छोड़कर दूसरे राज्यों की ओर चला गया है एक नयी उम्मीद लेकर, लेकिन अब उसे सभी प्रवासी मजदूर कहते हैं। उस मजदूर को भी पता नहीं चला होगा कि कब वह प्रवासी बन गया वो भी अपने ही देश में।
बहुत सारे नये नजारों के बीच आम इंसान ने जिंदगी जीने की नई परिभाषा सीखी, किस प्रकार हमें अपने भविष्य के लिए कुछ न कुछ जोड़ कर रखना चाहिए ताकि हम जैसे तैसे जी सकें। भविष्य के लिए कुछ पूंजी अवश्य रखें।
"वर्तमान के मोह जाल में आने वाला कल न भुलाएं "
कोरोना के दौरान एक नई चुनौती देखी गई शिक्षा की। शिक्षा जो केवल पैसे वालों के पास सिमट कर रह गई है उसके पास गरीब बच्चा नहीं पहुंच सकता, क्योंकि उनके पास मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा नहीं है। ये सुविधाएं तो सिर्फ अमीरों के पास ही होता है, सबको ये सुविधाएं नहीं मिल सकती।
महामारी के बीच चुनाव करना अपने आप में बड़ी महान बात होती होगी नहीं तो पूरे देश के नेता अर्थव्यवस्था शिक्षा-व्यवस्था और स्वास्थ्य व्यवस्था को छोड़कर सिर्फ चुनावी मैदान में ही थोड़ी पड़े रहते। चुनाव सिर्फ अब चुनाव नहीं रह गया ये जो जीता वही सिकंदर का खेल है, और अगर नहीं भी जीतता तो तिकड़म पर तिकड़म करके नया खेल रच दिया जाता है।
महामारी को लेकर हम कितने सचेत हुए हैं ये हम आसपास देख सकते हैं लेकिन जिस परिवार ने अपने सदस्य को खोया है वह जानता है कि महामारी क्या होती हैं।
क्या कभी उजाला होगा फिर से
क्या कभी सूरज वह निकलेगा फिर से
क्या कभी सांस लेंगे हम खुली हवा में फिर से
अब मिलेगी हमें मुक्ति इस कोरोना वायरस से??