Anita Koiri

Classics

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Anita Koiri

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बंगलादेश की बुढ़ी अम्मा

बंगलादेश की बुढ़ी अम्मा

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मैंने तो उन्हें कभी देखा नहीं ।बस अपनी दादी के मुंह से उनकी कहानी सुनी थी।वो एक औरत थी जो बंगलादेश में रहती थी। उसकी उम्र बहुत कम लगभग १४ साल की थी , जब उनकी शादी ३०साल के लड़के से कर दी गई। वो लड़का किसी भी लड़की से शादी नहीं करना चाहता था लेकिन जब उसकी शादी हो गई तो , एक बेटे की चाह में सात बेटियों ने जन्म लिया था । अंततः एक बेटा हो गया और शायद अगर बेटा न होता, तो वो जो पहले शादी नहीं करना चाहता था, दूसरी शादी एकमात्र बेटे की आस में कर ही लेता।

कहानी यहीं से घुमना शुरू कर देती हैं, देश, काल और परिस्थिति बदलना शुरू होता है। बूढ़े को लगभग ५०के उम्र में बेटा नसीब हुआ और बेटियों के लिए उनका प्रेम और स्नेह का वर्णन करना, मेरे बस कि बात नहीं।

खैर, साल था १९७० का , भारत से पूर्वी पाकिस्तान या बांग्लादेश बनने का समय आ चुका था। सिर्फ देश बनने और टूटने में कितने ही लोगों की जिंदगियां बर्बाद हो गई ये समझने के लिए आपको आत्ममंथन नहीं इतिहास के अध्ययन करने कि कोशिश करनी चाहिए।बूढ़े को अपना पैसा, बेटा और घर - बार से इतना प्यार था कि वो अपनी बच्चियों को लेकर कभी माथापच्ची नहीं करते थे। उस रात उन आताताइयों ने आक्रमण कर दिया था, भारत सरकार बंगाल के लोगों को बचाने का प्रयास कर रही थी। उस समय वह देश और उसका समाज सब इतना बदल गया कि वहां के हजारों लोग डर के साए में जी रहे थे , वे अपने और अपने भविष्य को लेकर आशंकित थे। लोगों का पलायन जारी रहा, उन लोगों के पास कोई उपाय नहीं था, न तो वे मरना चाहते थे, न ही ऐसी डर की जिंदगी के साथ जी सकते थे।

मरने मारने मंदिर मस्जिद तोड़ने, महिलाओं के साथ अत्याचार बहुत बढ़ चुके थे। बूढ़े कि पत्नी ने जब अपनी सातों बेटियों की चिंता जताई तो बूढ़े ने उन्हें कहा कि उन्हें जो अच्छा लगता हैं करें, उनके जीने मरने से बूढ़े को कोई फर्क नहीं पड़ता।बूढ़े की पत्नी एक शाम जब बूढ़ा घर पर नहीं था तब अपनी सात बेटियों, छोटे बेटे और कुछ पैसे और गहने लेकर वहां से भाग कर आ गई। भाग कर बंगलादेश से भारत आना आसान नहीं था लेकिन बूढ़ी को अपनी एक मौसेरी बहन और उसके पति का सहारा मिला। भारत को वे लोग कभी भारत नहीं कहते थे हमेशा इंडिया कह कर ही पुकारते थे।

बुढिया को कुछ ही दिनों तक अपनी बहन का सहारा मिला, किसी भी परिवार के लिए आठ नौ लोगों का खर्च उठाना संभव नहीं। बहन के पति ने घर भाड़ा ढूंढ दिया बूढिया वहां से अपना परिवार लेकर चली गई।

भाड़ा भरने के लिए खुद और अपनी बेटियों के साथ घर - घर काम करने लगी। जितने भी पैसे मिलते उन पैसों को बचाकर अपनी बच्चियों की शादी करना चाहती थी। इसी जद्दोजहद में उनकी एक बेटी जो मिर्गी की रोगी थी उसकी मृत्यु हो गई। छोटा बेटा स्कूल जाता था लेकिन संगत का असर और पिता का सहारा न होने के कारण बिगड़ता जा रहा था। छोटी बच्चियां जो काम पर नहीं जाती थी, सिलाई का काम करती थी और एक बच्ची को एक डाक्टर ने अपने बेटी की तरह पाल लिया था।

समय बीतता गया लड़कियां बड़ी हो रही थी ,अब उनकी शादी करवानी थी। कुछ लोग ऐसे बंग्लादेशियों से शादी नहीं करना चाहते थे ।अंततः बूढी अम्मा की बड़ी बेटी के साथ एक उत्तर प्रदेश के विधुर और एक दस साल के बेटे के बाप से शादी हुई । एक बेटी ने स्वयं भाग कर शादी कर ली। एक को बूढ़ी अम्मा ने खुद शादी करवा दी। एक को एक विकलांग पति मिला। बाकी के बच्चे छोटे थे तभी बूढ़ी अम्मा बीमार पड़ी और उनकी मृत्यु हो गई।बाकी भाई बहनों की जिंदगी भी उसी पटरी पर चलती रही।

कभी - कभी जिंदगी भागने का मौका देती हैं और कभी मजबूर कर देती है भागने के लिए मगर जिंदगी जीते रहने के लिए भागना भी जरूरी है।



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