प्रेम या रोटी की तलाश
प्रेम या रोटी की तलाश
रीना : रोटी आपको पसंद हैं?
रमेश : हां, बहुत पसंद हैं।
रीना : मुझे भी पसंद हैं, लेकिन कैसी रोटी?
रमेश : कैसी रोटी, मतलब?
रीना : गोल, टेढ़ी, मोटी, पतली, मैदे वाली, आंटें वाली, अपने घर की, दूसरों के घर की ... आखिर कौन सी?
रमेश : रोटियों की इतनी किस्में होती हैं, मुझे पता ही नहीं था।
रीना : ये मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं था।
रमेश : ठीक है , बताता हूं। मुझे अपने मम्मी की हाथ की बनी रोटी बहुत पसंद हैं और मैं अपने हाथों की बनी रोटी को भी पसंद करता हूं।
रीना : तुम , साॅरी, आप रोटी बना लेते हो?
रमेश : खाना आता है, तो बनाना कैसे नहीं आएगा?
रीना : मुझे जान कर अच्छा लगा।
रमेश : मगर, अब तुम्हारी हाथों की बनी गोल, टेढ़ी, मोटी, पतली, मैदे की, आंटें की रोटी....सब ट्राई करना चाहता हूं, और मौका मिलें तो, तुम्हें अपनी बनी रोटी भी खिलाऊंगा।
रीना : मैं तो रोटी नहीं बना पाती, और ये सब मैंने आपको इसलिए कहा ताकि आप मुझसे शादी करने से मना कर दे।
रमेश : तुम्हें रोटी बनाना नहीं आता, कोई बात नहीं। तुम बातें बनाना मैं रोटी बनाऊंगा। अगर तुम्हारी इच्छा हो तो?
रीना : ठीक है।

