फिर भी हम तो सभ्य समाज के बासिंदे होने का सीना ठोककर दावा करते ही हैं। फिर भी हम तो सभ्य समाज के बासिंदे होने का सीना ठोककर दावा करते ही हैं।
मगर यह सचमुच विकास है या उनकी आँखों का भ्रम। मगर यह सचमुच विकास है या उनकी आँखों का भ्रम।
वाकई में हम लोग विकास की ओर नहीं बल्कि विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। वाकई में हम लोग विकास की ओर नहीं बल्कि विनाश की ओर बढ़ रहे हैं।
सब के पास घर और काम नहीं होता,ऐसे लोगों को समाज अपना मानता भी तो नहीं सब के पास घर और काम नहीं होता,ऐसे लोगों को समाज अपना मानता भी तो नहीं