कितना बदल गया इंसान
कितना बदल गया इंसान


"ए भाई ! तू बाबा आदम के जमाने का है क्या ? ये मिट्टी की बोतल, ये पत्तलों में खाना खाना, ये सब क्या है ? लोग चाँद के भी पार पहुँचकर दूसरे जीवन वाले ग्रहों पे पहुंच रहे हैं। एक तू है जो येति के जमाने की तरफ बढ़ रहा है। हा हा हा।" वातावरण अंगद का अट्टहास करते लोगों की फुसफुसाहट से गूँज उठा।
मगर अंगद की निश्छल मुस्कुराहट ज्यों की त्यों बनी देख उन्हें हीनता महसूस हुई।
"बाबा आदम के जमाने का ही सही भाई ! प्रकृति को कुछ वापस ही दे रहा हूँ। वैसे मंगल तक पहुँच कर भी तुम्हारे पैर तो धरती पर ही टिके हैं। एक धरती को
बर्बाद करके कौनसा ग्रह तुम्हें अपनाएगा यह भी जरूर सोचना।" इतना कहकर अंगद वहाँ से उठ कर चला गया।
वहाँ मौजूद हर व्यक्ति यह नहीं समझ पा रहा था कि बाबा आदम से भी पुराने और असभ्य वो हैं जो प्लास्टिक की बोतल, प्लेट्स सब इधर उधर फेंक रहे हैं या अंगद, जो पत्तल को भी सभ्य रूप से कूड़ेदान में फेंक कर गया। क्या उन्हें ससम्मान सभ्य कहलाने का हक़ है ! या असली मनुष्य अंगद है जिसके परिधान के साथ सोच भी विकसित हुई है। सब एक दूसरे को देखकर पूछना चाहते थे कि इंसान कितना बदल गया है। मगर यह सचमुच विकास है या उनकी आँखों का भ्रम।