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Bharti Ankush Sharma

Inspirational

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Bharti Ankush Sharma

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मैले हाथ

मैले हाथ

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रह रह कर कृपा का मन उन छोटे लाचार पिल्लों की करुण पुकार से विचलित हो रहा था जिनकी माँ रोते रोते मदद के लिए इंसानों को पुकार रही थी। पिल्लों का रोना भी किसी मासूम इंसानी बच्चे सा "माँ माँ" का ही स्वर था।

एक अमीरजादे ने बंद नाली में ढेर सारा पानी चला दिया था, जबकि वो जानता था कि गली की आवारा कुतिया ने इस सर्द मौसम में अपने बच्चों को जन कर उनके लिए एक सुरक्षित घरौंदा उसी नाली की सुरंग में बनाया है।

सब पड़ोसी इकट्ठा हो गए मगर उस अमीरजादे का पानी बहाना तटस्थ था। कोई कितना भी आपस में फुसफुसाता रहे, उसे जैसे फर्क ही नहीं पड़ रहा था। कृपा भी मन ही मन न जाने कितनी बद्दुआ देती रही मगर कुत्तों से डर के चलते चाह कर भी उनकी कोई मदद नहीं कर पा रही थी।

तभी उसकी मकान मालकिन, जो सज धज कर किसी कार्यक्रम में जाने को गाड़ी निकाल रहीं थीं, ने आगे आकर एक एक कर उन पिल्लों को निकाला और एक सुरक्षित स्थान पर रख दिया।

कृतज्ञता से कुतिया का स्वर भी भर्रा आया था। 

"आंटी जी ! आपके हाथ तो गंदे हो गए। लाइये मैं धुलवा देती हूँ।" कृपा ने आगे बढ़कर इंसानियत दिखाते हुए कहा।

"कोई बात नहीं बिटिया ! किसी जीव की मदद करने में अक्सर अपने हाथ गंदे हो जाते हैं। ये तो धुल जाएँगे। मगर इंसान होकर इंसानियत न दिखाने का जो कीचड़ मन पर चढ़ेगा, उसे कोई पानी नहीं धो पाएगा।" कहकर आंटी तो गाड़ी लेकर चली गयी।

मगर कृपा खुद को अपराधी सा महसूस कर रही थी। एक हृदयहीन आदमी को न रोक पाने का अपराध, अपने डर पर जीत न पाने का अपराध।

तभी उसने देखा, बाकी पड़ोसी भी चादर, दूध का इंतज़ाम करने लगे थे। कृपा भी भाग कर रोटी लेकर आई और उन जीवों को खिलाते हुए मन ही मन उसने निश्चय किया कि कोई डर उसके इंसानियत धर्म पर अब हावी नहीं होगा। गंदे हाथ तो कोई धुला ही देगा मगर अपनी आत्मा पर ये मैल वो दुबारा नहीं चढ़ने देगी।


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