आम या खास

आम या खास

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"भाई तू तो बहुत किस्मत वाला है जो तुझे साथ खड़े रहने वाले माँ बाप मिले। अपने सपने पूरे करने का हक़ मिला। वरना देख हमें ! वही आम आदमी की जिंदगी, नौकरी, घर गृहस्थी में ही घिस रहे हैं, जिंदगी तो तू जी रहा है भाई !" रोहन ने शशांक पर तंज कसते हुए कहा।

"सही कहते हो तुम, किस्मत वाला तो हूँ मैं। मेरे माँ बाप, मेरी पत्नी मुझ पर पूरा विश्वास करते हैं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी मुझ अकेले पर है। यहाँ नौकरी करता हूँ तभी घर में आटे दाल का इंतज़ाम हो पाता है।" शशांक ने शांत भाव से कहा तो रोहन हैरान सा उसे देखता रह गया।

"फिर ये फुटबॉल कैसे और कब खेलता है भाई ?" रोहन से रहा नहीं गया।

"यहाँ से जाकर 1 घण्टा परिवार के साथ बिताता हूँ। माँ बाबूजी बिस्तर पर ही रहते हैं। उन्हें सुकून मिलता है मेरे पास होने से। पत्नी और बच्चों को कम ही समय दे पाता हूँ क्योंकि सुबह साढ़े तीन बजे उठना होता है, चार से आठ तक फुटबॉल प्रैक्टिस करता हूँ। इतने सालों की मेहनत के बाद अब स्टेट लेवल चैंपियनशिप में सिलेक्शन हुआ है।" 

"बाप रे ! इतनी मेहनत ! भाई तुम तो हिम्मती और मेहनती हो। हम तो आम ही रह गए। सही कहते हो तुम, माँ बाप को दोष देकर हम बस खुद की कमियों को छुपाते हैं और अपनों को तसल्ली देते हैं। सफल तो वही होते हैं जो समय से हारते नहीं, समय को हराते हैं। माफ करना दोस्त ! तुमसे जलन होने लगी थी मगर मैं ये भूल गया था कि किस्मत बनाना तो अपने ही हाथ होता है। अब मैं भी अपने शौक को जज़्बा बनाऊँगा, शिकायतों से ऊपर उठकर मेहनत करूँगा।" 


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