चिराग
चिराग
"माँ! क्या मिला भैया को फ़ौज में जाकर! बिना किसी गुनाह के इतनी बेरहमी से आतंकवादियों के हाथों वो शहीद हो गए।" अपने भाई को खो देने का ग़म गुस्सा बनकर फूट पड़ा था।
"बेटा! वो शहीद हुआ है। मरा नहीं है। और तू पूछती है क्या मिला!" माँ गर्वित हो बोलीं।
"माँ! देश जश्न मना रहा है जंग जीत जाने का और हमारे और न जाने कितने घरों का चिराग हमेशा के लिए बुझ गया। दूसरों की जिंदगी रोशन करके अपने घर में सिर्फ खामोशी, तन्हाई और दर्द की कालिख छोड़कर...!" कहते कहते बहन फिर बिलख पड़ी।
"बिटिया! चिराग भी मिट्टी से बनकर अंधेरे को मिटाता है और फिर मिट्टी में ही मिल जाता है। जीवन की यही सच्चाई है। जो जिंदगी किसी के काम आयी, वो व्यर्थ कभी हो ही नहीं सकती। मेरे बेटे ने उसी मिट्टी से बने कीचड़ का सफ़ाया कर शहादत हासिल की है। और मुझे कोई पछतावा नहीं कि मेरे घर में आज अंधेरा हो गया।" माँ सम्मान से अपने बेटे की तस्वीर पर हार चढ़ाने को खड़ी हो गयी।
तभी दरवाज़े पर ढेरों लोग जमा हो गए। सब आवाज़ों में एक स्वर उभर रहा था-"
माँ! आपका एक बेटा देश पर क़ुर्बान हो गया। मगर हम सब आपके बेटे हैं। इस माँ और बहन को अंधेरों में नहीं रहने देंगे।"
एक चिराग बूझकर हज़ारों चरागों को रौशन कर गया था।