लक्ष्य
लक्ष्य
"माँ ये मुझसे नहीं होगा। इन कृत्रिम पैरों के साथ मैं ढंग से चल भी नहीं पाता और आप मुझे एथलिट बनाने के सपने बुन रही हो! आपने तो देखा भी है, कैसे कक्षा में वो सब बच्चे मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। आपका बेटा इतना सक्षम नहीं है माँ। आप मुझसे बहुत ज्यादा ही उम्मीद लगा रही हैं।"
दस वर्षीय रोहन ने रुआँसा होकर कहा।
शालिनी जी ने दृढ़ता से उसकी आँखों में झाँक कर जवाब दिया-"तुझे किसने कहा मुझे तुझसे कोई उम्मीद है? मुझे तो तुझ पर विश्वास है।" कहते हुए वो मुस्कुरा दीं।
"पर..माँ...।"
"पहले तुझे आत्म परिचय करना होगा। तू बस शुरुआत कर। हौसला और हिम्मत रख, तुझे तेरे सिवा कोई नहीं हरा सकता। अपने लक्ष्य पर ध्यान जमा। एक न एक दिन साध भी लेगा।"
शालिनी जी का जताया हुआ विश्वास और जगाया हुआ हौसला आज सितारा बनकर जगमगा रहा था।
आज दस साल बाद अंतरराष्ट्रीय खेल समारोह में प्रथम पुरस्कार के लिए राष्ट्रीय गान बज रहा था। शालिनी जी की आँखों में गर्व और खुशी के आँसू थे। रोहन ने पुरस्कार ग्रहण कर दो पंक्तियाँ कहने के लिए माइक लिया और भावुक शब्दों में माँ को श्रेय देते हुए कहा-
"जान लो तो खुद में भगवान है।"
"ठान लो तो हर मुश्किल आसान है।"
धन्यवाद!
