इतने बड़े-बड़े लोगों के सामने इतनी लम्बी-लम्बी फेंक रहा था। इतने बड़े-बड़े लोगों के सामने इतनी लम्बी-लम्बी फेंक रहा था।
यही सुकून सुबह रमा के आने पर उसके चेहरे पर देखना चाहती थी मैं। यही सुकून सुबह रमा के आने पर उसके चेहरे पर देखना चाहती थी मैं।
अब न मैं स्त्री हूँ और तुम पुरुष अब न मैं स्त्री हूँ और तुम पुरुष
उस हादसे को दु:स्वप्न की तरह भुला देना चाहती हूं। सोलमेट हा, हा, हा, ना मिला। उस हादसे को दु:स्वप्न की तरह भुला देना चाहती हूं। सोलमेट हा, हा, हा, ना मिला।
क्यूँ एक असहाय मासूम को काँच समझ के हज़ार टुकड़ो में तोड़ देते हैं, क्यूँ एक असहाय मासूम को काँच समझ के हज़ार टुकड़ो में तोड़ देते हैं,
वाकई में हम लोग विकास की ओर नहीं बल्कि विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। वाकई में हम लोग विकास की ओर नहीं बल्कि विनाश की ओर बढ़ रहे हैं।