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Gita Parihar

Tragedy

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Gita Parihar

Tragedy

सोलमेट

सोलमेट

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तीसरी बार जेल की सलाखों के पीछे हूं, वजह वही है, प्रतिबंधित ड्रग्स की खेप पहुंचाने के जुर्म में । इस बार इस बार मुझे सात साल की सजा हुई है । मुझे मेरे बच्चों के सामने गिरफ्तार किया गया। मैं उनसे आंख नहीं मिला पाई। समीरा, मेरी सबसे छोटी बेटी इस समय 14 महीने की है। मैं 4 साल तक अपने बच्चों से नहीं मिल पाउंगी।

मुझे याद आते हैं वो दिन मैं एक सीधी - सादी लड़की हुआ करती थी। हमारा परिवार हर सप्ताहांत पर फुटबॉल मैच देखने जाया करता था। पिता और बड़े भाई खेल की बारीकियों पर बात करते, मैं कब उस खिलाड़ी, जुआन की बारीकियों में उलझ गई, पता ही नहीं चला। यह आकर्षण था, या निहायत बचपना, जब तक समझूं, देर हो गई थी।

जुआन बहुत अच्छा खिलाड़ी था, अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलरों में एक जाना - माना नाम था। बस मुझे उससे मिलना था। मैं उस तक कैसे पहुंच सकती थी ?मैने स्थानीय फुटबॉल क्लब में आना - जाना शुरू कर दिया, जल्द ही मेरी दोस्ती सुहैल से हो गई। उसके साथ अक्सर मेरी मुलाकात हो जाती थी। एक बार जब मैं दोस्तों के साथ कैंपिंग करने गई थी, सुहैल भी अपने दोस्तों के साथ वहीं आया हुआ था। उसने मेरा परिचय अपने दोस्तों से करवाया।

"मिशेल, ये मेरे दोस्त हैं, मैने इन्हें तुम्हारी जुआन की दीवानगी के बारे में बताया। इनका कहना है, अगर तुम एक छोटे से काम का हिस्सा बन पाओ, तो तुम खुद ही उससे मिल सकती हो। ये उस फुटबॉल टीम के मेंबर्स को पहले से जानते हैं। "

 अंधा क्या मांगे, दो आंखें, " कैसा काम, कहां चलना होगा ?"एक सांस में मेरी उत्कंठा जुआन से मुलाकात का सोच कर ही छलक पड़ी। किसी को पाने की चरम लालसा ऐसी होती है कि उससे आगे सोच के रास्ते बंद हो जाते हैं। करीब - करीब फुसफुसाते हुए, चौकन्नी निगाहें चारों तरफ डालते हुए सुहैल ने फसिल को इशारा किया, वह बोला, "हम तुम्हें कुछ सामान देंगे, तुम्हें वह हमारी बताई हुई जगह पर पहुंचाना होगा। यहीं तुम्हारी मुलाकात जुआन से हो जाएगी। आगे तुम देख लेना। "

जुआन से मिलना ! क्या मैं कुछ सोच ही नहीं पाई, तुरंत राज़ी हो गई। हम अक्सर अपने सोलमेट की तलाश में असफल रहते हैं और एक अधूरा जीवन जी कर इस दुनिया से चले जाते हैं। मुझे लगा मैं उनमें से नहीं हूं। शायद मेरी तलाश मुझे अपनी मंजिल तक ले आई है, वह भी इतनी आसानी से, इतनी जल्दी ?

अब प्रश्न यह भी उठा कि क्या वही मेरा सोलमेट होगा ? मुझे लगा उससे मिलकर वह पहेली भी सुलझ जायेगी।

स्वाभाविक है कि मैं जिस मकड़ जाल में फंस गई थी, उससे निकलना आसान नहीं था। ये तलाश इस मोड़ पर ला खड़ा करेगी, काश, मेंने जाना होता !

जुआन तो मुझे मिला और मिले जिंदगी के कड़वे, कठोर और बेरहम अनुभव। वह खिलाड़ी जबरदस्त अच्छा था मगर इंसान बेरहम। उसने मुझे ऐसे दलदल में धकेल दिया जिससे निकलने की जद्दोजहद में मैं आज तक लगी हूं। हर बार मैं यहीं वापिस धकेल दी जाती हूं। आज तीसरी बार फिर मुझे अपनी उस मासूम सी नादानी की सज़ा मिली है।

अब चार साल बाद मुझे सशर्त बेल मिल पाएगी। मेरी छोटी बेटी मुझे नहीं जान पाएगी, न पहचान पाएगी। मेरी बड़ी बेटी ही उसे शायद मेरी फोटो दिखा कर मुझे उसकी यादों में , पहचान बनाए रखने में कुछ कामयाब हो पाएगी कि देखो , मां कैसी दिखती है। अगर वह पूछेगी मां मां कहां है, वह हमारे साथ क्यों नहीं है?तब?

यह सब कितना दुखद है । मैं यहां जेल में परिवार से दूर है , समाज से तिरस्कृत जीवन बिता रही हूं , क्यों उन दरिंदों पर कोई हाथ नहीं डालता, जो मुझ जैसी लड़कियों को अंधेरों में धकेल देते हैं?वह भी केवल इसलिए कि तुम सपने भी देखने कि जुर्रत रखती हो ? 

बस इस बार इस बार नहीं। डरती हूं,  मेरे निश्चय को वह दरिंदे कभी पूरा नहीं होने देंगे। मैं चाहूं भी कि रिहाई के बाद फिर कभी इस दुनिया में कदम न रखूंगी, तो क्या यह हो पाएगा ?

इस बार एक संस्था ने मेरी उस नरक से मुक्ति के लिए बहुत उम्मीद जताई है, मुझे एक नया जीवन देने की कोशिश की है। काउंसलिंग कहते हैं उस प्रक्रिया कोकितनी मेहनत की है इस संस्था ने मेरे जैसी औरत के साथ ! उसे जाया नहीं जाने दूंगी।

हर सप्ताह इस संस्था के स्वयंसेवक मेरे जैसी मांओं के बच्चों से भी मिलते हैं। बच्चों को पढ़ाने - लिखाने की जिम्मेदारी भी लेते हैं। उन्होंने हमारे और बच्चों के बीच में एक कड़ी जोड़ने का बेहद नायाब तरीका निकाला है। ये हमारी आवाज में कहानियां वीडियो रिकॉर्ड करते हैं और हमारे बच्चों को दिखाते हैं, साथ ही साथ जब बच्चों को यह वीडियो दिखाया जा रहा होता है, उस समय बच्चों के रेस्पॉन्स का भी वीडियो बनाते हैं। आज मैने अपनी बच्चियों को देखा, उनकी आंखों का इंतेज़ार, उम्मीद और खुशी मिलजुल कर मेरे इरादे को मजबूत कर रहे हैं 

 मेरा प्रण और भी दृढ़ हो गया है, चाहे जो हो जाए , फिर उन अंधेरी गलियों की ओर नहीं मुड़ना है। उस हादसे को दु:स्वप्न की तरह भुला देना चाहती हूं। सोलमेट हा, हा, हा, ना मिला।


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