Pallavi PS

Inspirational Tragedy

4.7  

Pallavi PS

Inspirational Tragedy

काँच सी छवि

काँच सी छवि

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कहते हैं कि काँच बहुत ही खूबसूरत होता है, उसकी अपनी एक अलग ही चमक होती है। पर हाँ ये भी सच है कि काँच अगर ग़लती से भी हाथ से छूटा तो वो ज़मीन पर जाते ही हज़ार टुकड़ो में बिखर जाता है। पर टूटने के बाद भी काँच का हौसला नहीं टूटता उसकी चमक टूटने के बाद भी उतनी ही रहती है,भले ही वह हज़ार टुकड़ो में बिखर ही क्यों न जाये पर उसकी चमक खत्म नहीं होती। वो हज़ार टुकड़ो में बिखर कर भी लोगो के छवि को साफ़ ही दिखाता है ।


 ये कहानी उस छवि की है, जो ख़ूबसूरत और नाजुक सी गुलाब के पंखुड़ी की भांति है, उसके गाल हमेशा गुलाब के रंगों के तरह लाल चमकते रहते हैं ,और उसके होठों पे हमेशा एक निश्छल सी मुस्कुराहट रहती है। वो छोटी सी एक गुड़िया थी ,जिसे समाज के छल-कपट का कोई ज्ञान नहीं।


कभी-कभी समझ ही नहीं आता मुझे! कि लोग क्यूँ लड़की को गंदी नज़र से देखते हैं उस समाज के कुछ लोगो को ये क्यूँ नहीं दिखाई देता की उस लड़की की उम्र क्या है ? क्यूँ समझ नहीं आता कि वो किसी की बहन, किसी की बेटी या किसी की पत्नी और किसी की प्रेमिका है, उस खोखले लोगो को ये भी नहीं दिखता की वो एक इंसान है ,उस पर गंदी नज़र न डाले, उसे अच्छे कपड़े में देख उसे अपनी हवस का शिकार न समझे। जहाँ लड़की देवी मानी जाती हैं हमारे देश मे वहीं कुछ लोग उसे अपने हवस का प्याला समझ लेते हैं। क्यूँ एक असहाय मासूम को काँच समझ के हज़ार टुकड़ो में तोड़ देते हैं, उसे बर्बाद कर देते है ।

छवि एक बच्ची है जो मात्र 12साल की थी उसके कुछ दोस्त थे ,जिसके साथ वो हर शाम अपने घर के बाहर खेलने जाया करती थी। उसे किसी से कोई मतलब नहीं होता था, उसकी दुनिया,उसकी पढ़ाई उसके दोस्त थे। वो एक छोटे से शहर में अपने परिवार के साथ रहती थी। पर दुर्भाग्य से छवि पर किसी की बुरी नज़र पर गयी थी वो हमेशा छवि के करीब आने की कोशिश करते रहता था उसे छूने के बहाने ढूंढते रहता था, छवि बच्ची थी उसे समझ नहीं आता था कि उसके साथ वो ऐसा क्यूँ करता है,उसे इन सब छल-कपट का ज्ञान भी नहीं था, छोटी सी बच्ची को ये सब एहसास होता था कि उसके साथ जो हो रहा है वो गलत है, पर वो किसी से अपने मन की बात नहीं कहती थी, छवि बहुत दुखी होकर काँच में घण्टों देखती रहती थी और अपने मन से बातें किया करती थी। क्योंकि वो डरती थी किसी को ये सब बताने से, की कहीं उसे कोई घर में मरेगा तो नहीं, उधर उसे वो लड़का डराया करता था, वो बच्ची काँच की तरह टूट चुकी थी चारों तरफ़ से, हर दिन उसके साथ कुछ न कुछ अनहोनी होती थी पर वो दिमाग लगा कर उस पाप से अंत-अंत तक बच जाती थी। पर उसके रुह सहम से गये थे, उसके हालात ने उससे उसकी बचपन छीनने की कोशिश की, पर उसने ऐसा होने नहीं दिया, वो हर रोज़ भगवान से प्रार्थना करते रहती थी कि भगवान उसे इस नरक से निकाल ले। फ़िर कुछ महीनों बाद उसके यहाँ उसके रिश्तेदार आये तो छवि उनके साथ वहाँ चली गयी और सालों तक वो अपने घर नहीं आयी , उसने खुल कर अपनी ज़िन्दगी नए तरीक़े से जीना सीख लिया। उसे सबने भले हीं काँच के तरह हज़ार टुकड़ो में तोड़ दिया पर छवि ने खुद की ज़िंदगी बर्बाद नहीं होने दी। दिमाग से काम लेकर उसने खुद को उस दुःखद परिस्थितियों से निकाला ।

 और आज उसके चेहरे की चमक काँच के चमक से भी अधिक है, वो टूटी है अंदर से, क्यूँकि कभी-कभी वो घटना आज भी उसे याद आ जातीहै ,पर फिर भी वो हमेशा हँसते रहती है और हज़ार टुकड़ो को समेट कर उसने खुद को एक बहुत ही ख़ूबसूरत नगीना का रूप दिया है। छवि को मुस्कुराने के लिए किसी बात या किसी के साथ कि जरूरत नहीं वो काँच में खुद को देख के हमेशा मुस्कुराया करती है क्यूँकि काँच ही उसका सबसे सच्चा और अच्छा मित्र है ।


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