Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract Comedy

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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract Comedy

मीटिंग छोटी सी

मीटिंग छोटी सी

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लाठी के सहारे अपने भारी बदन को मुश्किल से सम्भाले,ठक ठक करती कभी कभार आँगन में आ बैठ जाती। देर तक बातें करती रहती। फलाने की बहु ऐसी है, फलाने का बेटा। सच ही कहा है निन्दा रस से बड़कर प्यारा और रसीला फल शायद ही कोई हो।जब बराबर की ताल से ताल मिला कर संगत करने वाला मिल जाये फिर क्या कहने।गुड्डन दादी और झलकी दादी निन्दा रस की चैम्पीयन थी, कम से कम हम लोगों को तो ऐसा ही लगता था।झलकी नाम उनका असली नाम नहीं था, असली नाम रमा था, पर शायद ही किसी को उनका असली नाम याद हो। झलकी नाम क्यों पड़ा इसके पीछे भी एक कहानी थी।

तो झलकी दादी की सवारी तीन सौ मीटर दूर से नज़र आ जाती, ठक / ठक ख़ेत के उस पार अपने घर से चलती तो कम से कम आधा घंटा लग जाता हमारे घर तक आते आते।दौड़ कर गुड्डन दादी को ख़बर की जाती।”फिर से आ रही है ” भागो तुम लोग दिखाने के लिये बोलती, पर अंदरखाने लड्डू फूट रहे होते।

“पटरे रख दें आँगन में ”? कोई बच्चा पूछता। ठीक रख दे, गुड्डन दादी अहसान जताते बोलती। हम बच्चों का स्वार्थ छिपा था सारी सेवा में।एक तो झलकी दादी का बड़ा सा आँगन कम से कम दो से तीन घंटे तक खेलने को मिल जाता, दूसरे उनके आँगन में लगा आड़ू का पेड़। कच्चे /पक्के आड़ू हज़म कर जाते,झलकी दादी की बाद में मिलने वाली गालियों के साथ। गालियाँ भी वो मर्दों की टक्कर की देती थी, विशुद्ध ( देसी वाली)।पति गुज़र गये थे, बेटा था नहीं, दो बेटियों की शादी हो गयी थी। अकेले मगन रहती। आस पास कोई घर भी नही था, गाँव के बाक़ी घर कम से कम आधा किलोमीटर दूर।”कोई गला दबा देगा रात में चिल्ला भी नहीं पाओगी चाची, किसी को रख लो अपने साथ ” एक बार रामस्वरूप ने मज़ाक़ में बोल दिया था।किस की माँ ने ऐसा लाल जना है (गाली), मेरा गला दबवा रहा है (गाली )।जब तक चलने फिरने लायक़ रहीं अकेले ही रही। घुटनो में जब दिक़्क़त बड़ गयी तो गाँव का उनका दूर का रिश्तेदार अपने बीवी बच्चों के साथ आ कर रहने लगा। उस परिवार के आने का मतलब हम लोगों का आँगन और आड़ू का सुख ख़त्म।निन्दा रस श्रवण करना हम लोगों की मजबूरी हो गयी।

नमस्कार दीदी गुड्डन दादी को देखते ही झलकी दादी बोलती, पैर तो छू नही सकती, आग लगे इन घुटनो में।

रहने दे झलकी। आजकल की तो नयी बहुएँ भी आधा झुकती है। 

सो तो है, घूँघट भी माथा छुपाने के लिये करती है, ना जेठ की शर्म न ससुर की(गाली)। 

सुना है पार वाले गाँव के जोगिन्दर की बहु तो बहुत तेज है ? अपनी सास को गिन गिन कर सुनाती है। कामिनी का तो बुड़ापा ख़राब हो गया।

तो कामिनी कौन कम है ? कितना तो सामान लिया था शादी में, कैसे इतरा /इतरा कर बताती थी गाँव भर में झलकी दादी आवाज़ एकदम धीमी कर के बोली।

वो तो ठीक है, कौन नहीं लेता सामान आज कल।इसका मतलब ससुराल वालों को ख़रीद लिया ?। और कामिनी काम तो बहुत करती है अभी भी। तुरंत पैर छूती है क़ायदे से। अपना /अपना भाग्य क्या कर सकते हैं ? 

कुछ काम नहीं करती, गाती ज़्यादा है। नस / नस पहचानती हूँ। चलो क्या करना वो जाने उसकी बहू जाने।” उर्मिला नहीं दिख रही ” झलकी दादी ने रसोई में झांका।

गाय को पानी देने गयी है। चाय मैं बना दूँ ? गुड्डन दादी बोली।

अरे उर्मिला बनायेगी, आप से चाय बनवाने से पहले मेरे प्राण न निकल जाये दीदी।बीड़ी पीते हैं तब तक, कुर्ते की जेब से बीड़ी निकालते हुये, झलकी थोड़ी हिचकी। 

लाओ पी लेते हैं, तुम लोग भागो यहाँ से। गुड्डन दादी ने हम सबको डाँटा। जाओ खेलो, सिर पर चड़े रह्ते हो हर वक़्त। भागो जल्दी। सुलगा ले एक बीड़ी। भीम ! जा चूल्हे से आग ले आ। 

भीम एक सुलगती लकड़ी ला झलकी दादी को दिया।

चल जा तू भी खेल।

मैं नहीं जाऊँगा, भीम ने ज़िद्द की। सबसे छोटा जो था।

अपनी दादी के पास रहेगा, गुड्डन दुलारते हुये बोलीं। आ बैठ जा।

भीम चुपचाप गुड्डन के पास बैठ गया। 

जाओ तुम लोग खेलो। सुट्टा लगाते झलकी बोलीं।

आओ यार,खेलते हैं। मैंने किशोर को खींचा।

चलो। 

हम दोनो छुप कर ड्रम के पीछे जा बैठे।

आज कल के बच्चों से भगवान बचाये। दिन भर प्राण खा जाते है। बेचारा हरिया सुबह से काम पर चला जाता है। उर्मिला जानवर देखें या ख़ेत, फिर घर का काम। इन लोगों का स्कूल खुल जाये तो कुछ चैन मिले।

मैं और किशोर एक दूसरे को देख मुस्कुराये।

तुम दोनो क्या कर रहे हो यहाँ ? कौशल्या बुआ ने पीछे से हम लोगों को देख लिया।

छुपम /छुपाई खेल रहे हैं।

ताई नमस्ते।

आ कौशल्या, बैठ। 

नही ताई, बहुत काम है। फिर आती हूँ।

बैठ जा दो मिनट बुड्डियों के पास भी, चाय पी ले फिर चली जाना।

चाय नहीं पीयूँगी। कौशल्या बैठते हुये बोली।

पी ले आधा कप। गुड्डन बोली। 

भाभी नहीं दिख रही।

आ रही होगी अभी, मैं बनाती हूँ चाय।

अरे ताई मैं बना देती हूँ। 

ठीक चीनी / पत्ती रखी है।

किशोर मेरी तरफ़ देख मुस्कुराया। देखा कैसे फँसाया बुआ को।

एक बात तो है झलकी अब शादी / ब्याह में जाने का मन नहीं करता। नये /नये रिवाज़ चलने लगे। बैंड / बाजा कान फोड़ देता है।

आग लगे बैंड में। सिर दर्द करने लगता है। बीन / शहनाई तो किसी को अब पसंद ही नहीं आती। बीड़ी के आख़िरी हिस्से को रगड़ कर बुझाती झलकी बोली। खाना भी तो कैसा बनने लगा। देशी घी का तो नाम ही रह गया है। कल्याणु के लड़के की शादी में हलवा भी पॉम तेल में बना था। पत्तल भर फेंका मैंने। गले से उतरा ही नहीं।

पॉम /पूम पता नहीं क्या /क्या आ गया। स्वाद तो अब रह ही नहीं गया।

लो ताई चाय।

तू भी ले ले बेटा।

नहीं मैं नहीं पीयूँगी। देर हो रही है, चलती हूँ।

कितना काम करती हो ? भागती ही रहती हो दिन भर।

कौशल्या मुस्कुरा कर चली गयी।

इसके लछन भी ठीक नहीं है, कौशल्या के जाते झलकी धीरे से बोली।

अच्छी लड़की है, दिन भर दौड़ती है। अब बाप शादी नहीं कर रहा, तो इसमें इसकी क्या गलती। बाईस की हो गयी है। सोलह साल में तो मेरी रानी पैदा हो गयी थी। क्या करना जब बाप को ही चिंता नहीं, पर भगतु को शादी कर देनी चाहिये। यह उम्र बड़ी ख़राब होती है। कुछ ऊँच / नीच हो गया तो ? 

वही तो संजय के साथ ज़्यादा ही जम रही है आजकल कौशल्या की। मैंने तो रम्भा को उस दिन कह भी दिया “ नज़र रख बेटी पर, बाद में पछताना ना पड़े ” बुरा मान गयी। बोली क्या कह रही हो, बोलने से पहले सोच लिया करो।

सलाह देना तो आजकल, राम! राम ! सब को बुरा लगता है।पर चुप भी तो नहीं रहा जाता।पूरे गाँव की बेज़्ज़ती होती है।

मत बोला कर छुट्टन, वैसे भी रम्भा को मिर्ची कुछ ज़्यादा ही लगती है। लड़ने के लिये हरदम तैयार। मैं तो ज़्यादा बोलचाल नहीं रखती। संजय कौन? जीतू का लड़का, काला सा नाटा। 

वही दीदी, जीतू का लड़का। दोनो का कुछ तो चल रहा है। जब माँ /बाप को ही चिंता नहीं तो हमें क्या करना। 

अच्छा दीदी चलती हूँ। 

बैठ थोड़ी देर। 

नहीं राजेंद्र आ जायेगा ढूँढते हुये।

ठीक संभल कर जाना।

आज तो बड़ी जल्दी ख़त्म हो गयी मीटिंग। चलो कुछ खेलते हैं, मैंने किशोर से बोला।

चलो।किशोर मुस्कुराते हुये बोला।


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