Anuradha Negi

Action

4.5  

Anuradha Negi

Action

मेरी काल्पनिक दुनिया

मेरी काल्पनिक दुनिया

3 mins
449


यूं तो बहुत से जरिए हैं जीवन को सुंदर और सफल रूप में जीने के लिए पर मैं तो एक पिंजरे की कैद पक्षी हूं।जिसे सपने देखना तो अच्छा लगता है किंतु उन्हें साकार करने के लिए उड़ान भरने की अनुमति नहीं मिली कभी।बचपन से लेकर अब तक सपने देखते आई हूं कभी सोने में वो पल जिए तो कभी खुले आसमान के नीचे खुली आंखों में ही कुछ सपनों की कल्पना की।

 यहां कुछ चीजें सत्यता है तो कुछ को सत्य करने की कोशिश चेष्टा मैं करना चाहती हूं।मैं चाहती हूं मुझे भी अवसर मिले अपना भावनाओं अपने जज्बातों की लहर को दुनिया में फैलाने का, मैं चाहती हूं कि लोग ये दुनिया मुझे जाने मेरी प्रतिभाओं से मेरी सफलता से।क्यों मैं हर एक सपने को बस आंखों में कैद और मन में दफन करके रख रही हूं?मुझे क्यों इस दुनिया प्रकृति से दूर किया हुआ है जिसे मैं खुलकर समझना देखना और उसे समस्त दुनिया को दिखाना चाहती हूं। ये जो प्रकृति की विद्यमान शोभाएं आभाएं मौन हैं जो कुछ कहना चाहती अपने को प्रदर्शित करना चाहती हैं उससे क्यों मुझे मिलने नहीं दिया जा रहा ? मैं क्यों शब्दों में ही सिमटकर रह गई हूं ,इसे क्यूं ना मैं एक दूसरे मानचित्र की तरह हमेशा के लिए प्रकाशित कर दूं ?

 क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि मुझे एक सुनसान खुला मैदान जो छोटी छोटी हरी घास से भरा हो , जिसके सामने वो पहाड़ी हो जहां प्रभात होते ही सूर्य की लालिमा शोभायित हो। जिस मैदान में सूर्य की पहली किरण एक हल्की सी ताप की छुअन का आभास दिलाए। जहां पहाड़ी की तलहटी में नदी बह रही हो और मैदान के एक छोर से मिलती हो। उस नदी में प्रवाह जल का रंग हल्का नीला हो और उसमें श्वेत बत्तख पक्षी आवाज करता सैर कर रहा हो, जिसमें कभी कभी मत्स्य बीचों बीच छलांग मार कर वापस नदी में समा जाती हो।मैं चाहती उस मैदान में सोना जहां मैं घोर रात्रि के समय अपनी पूरी ऊर्जा में खिले उन चमक रहे तारों से कुछ बातें कर सकूं और उन्हें इस कदर निहारती जाऊं कि मुझे वो आसमान और जमीन की दूरी का जरा भी पता न चले और उन्हें मैं अपने बिल्कुल पास ही महसूस कर सकूं।

 क्या ऐसा होगा कभी कि मैं उस चांद का दीदार इस कदर करूं कि मुझे वो चमकता हुआ खूबसूरत गोले के बजाय अपने चारों ओर फैली सिर्फ चांदनी ही दिखे।क्या वो मैदान मुझे मिलेगा जहां भोर होते समय हरी घास पर पड़ रहे ओस पर नंगे पैरों चलने का आनंद मिल सके। नदी किनारे वो पेड़ मिलेगा जिस पर खुद से एक सुंदर झूला बांध सकूं और पास में एक लकड़ी से बनी एक कुर्सी लगाऊं, उस पर बैठे मैं नदी किनारे उगे छोटे छोटे फूल के पोंधों पर गुनगुना रहे भंवरों और तितलियों की दिनचर्या को कलम और कागज पर खींच लाऊं। पेड़ पर बैठी कोयल के गीत सुनूं और उसे मानव भाषा में परिवर्तित कर सकूं।ताकि लोग उसे समझ सके और उसके लिए उनके अंदर कोयल के लिए भी इंसान स्वरूप भावनाएं जागृत हों।और पक्षियों को ये न लगे कि वो सिर्फ पक्षी हैं उन्हें ये लगे कि वो भी उतनी ही इस प्रकृति की स्वामी हैं जितना मानव है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Action