राखी इस बार की
राखी इस बार की
कहते हैं राखी का मुहूर्त शुभ होना अनिवार्य है, भद्रा है या अशुभ समय में नहीं बांधनी चाहिए। कैसे हो सकता है कि हर काम के लिए मुहूर्त की राह देखें?? मुहूर्त के विपरीत जाकर मैं किसी ज्योतिष विद्या किसी शास्त्र विद्या को निम्न नहीं दिखाना चाह रही न ही उनका विरोध कर रही हूं। किंतु आप स्वयं विचार कीजिए कि अगर हर छोटे बड़े कार्य के लिए हम मुहूर्त निकलवाएं तो क्या हमारे या आपके अनुसार हमारा कोई विशेष या रोज की दिनचर्या का कार्य समय से या हमारे अंदर पूर्ण होगा, चाय बनाने का मुहूर्त से लेकर उसे पीने तक का मुहूर्त परिवर्तित हो सकता है। मुहूर्त पर आश्रित रहकर हम सुई में धागा भी नहीं डाल सकते हैं।
हर कार्य के लिए सही समय होना और शुभ मुहूर्त होना दोनों में अंतर है । प्लेटफार्म पर प्रतियोगिता भले ही भाई बहन के स्नेह और अटूट बंधन के लिए चलाई गई हो, किंतु मैंने उसी बंधन और उस बंधन के परंपरागत रूप से चलने के लिए सिद्ध किए गए मुहूर्त के बारे में लिखना चाहा है। जी हां मैं इस साल २०२२ की राखी के बारे में बताने जा रही हूं, जो दो दिवस में मनाई गई है। इसी मुहूर्त और और शुभ क्षण में भद्रा के चलते ऐसा हुआ है। जबकि रक्षा बंधन भाई बहन के प्यार , उनकी रिश्ते में दूरियों , तथा जन्मभर का सुरक्षा और प्रार्थना के विश्ववास पर कायम है।
यह राखी इस साल की जिसमें दो दिन ये रिश्ता निभाने के साथ साथ मुहूर्त का मोहताज नहीं रहा गया। किसी कलाई पर कवच मुहूर्त में बंधा तो किसी ने दूरी के चलते डाक के द्वारा अपनी रक्षा का इंतजार किया कहीं बहनें घर से बाहर गई भाई से मिलने तो कहीं बॉर्डर पर बैठे भाई ने भावुकता में बहन का स्मरण किया। अगर मुहूर्त प्रभात का था तो बॉर्डर पर बैठा भाई उस चिट्ठी और लिफाफे को नहीं खोलेगा जिसमें उसकी भगिनी का स्नेह पिरोया होगा ,,क्या वह लिफाफा बंद ही रहेगा जिसमें उसकी रक्षा का कवच होगा। कहीं मुहूर्त में रक्षा बंध कर भी वो अनहोनी हुई जो कोई बहन राखी पर तो क्या अपने आजीवन में कल्पना मात्र भी नहीं कर सकती है।
तो बात यह है कि मेरे एक भाई को ३ दिन से राखी मिली थी उसने एक राखी ११ को बांधी और दूसरी राखी १२ को यानी दोनों दिन मुझे याद किया। सालोंसे बांधते आ रही अपने फुफेरे भाइयों को मैंने दिल्ली राखी भिजवाई थी किंतु उन्हें राखी पर अपने गांव आना हुआ और मुझे बार बार फोन पर बुलाए जाने पर भी मैं पहुंचने के लिए हां नहीं कर पाई। पर बंधन की शक्ति थी कि १२ को ११ बजे घर से निकलकर ३/४ किलोमीटर पैदल ऊंची चढ़ाई करके मैं उनके पास पहुंची और रक्षा बांध पाई ; ये राखी की डोर थी जो खींची चली गई इससे पहले मैंने रक्षाबंधन नई दिल्ली में मनाया था ये पहली बार था जब मैं उन भाइयों को गांव में राखी बांधती । दोपहर बाद ३ बजे चिलचिलाती धूप और चढ़ाई चढ़ने में मुझे मेरी सहेली की याद आई और मैंने उसे कॉल किया और उस समय रास्ता काटना आसान हो इसलिए भी किया किंतु वह कहती है कि वह उसकी राखी पहुंचने का इंतजार कर रही हैं उसका भाई फौज में है और आज सालों बाद उसने पहली बार रक्षा ऑनलाइन भेजी है। सुबह ७:३० तक का शुभ मुहूर्त अब कहां था जहां प्यार के धागे एक दूसरे को उनके अटूट बंधन में एक और मजबूत कदम के रूप में साथ निभा रहे थे। लगभग शाम के ५ बजे मैं सड़क पर पहुंची और अपने घर आने लगी। बाजार पहुंची तो मेरा एक भाई वहां दुकान में बैठा इंतजार कर रहा था घर फोन करके उसे पता चला था कि मैं घर पर नहीं हूं और वहीं मिलूंगी। अब भी मुहूर्त देखूं क्या???
भाई को राखी बांधकर घर आना हुआ तो क्या दिखा एक नौजवान खून से लतपथ तेज कदमों और तेज तेज सांसें ले रहा है जो दुकान के सामने वाले भवन में प्रवेश कर गया। आखिरी क्या हुआ होगा कौन है वहां खड़े कुछ लोगों ने चर्चा की। और मुझे भी घबराहट हो गई हाथों में इतनी चौड़ी लाइन लगी राखी की इस भाई को क्या हुआ होगा???
काफी देर बातचीत के बाद पता चला वह भाई अकस्मात दुर्घटना में बाघ का शिकार होते होते बचा है। बाघ जिसने इस समय बहुत ही आतंक मचाया हुआ है आदमखोर तेंदुआ जिसने कई बाइक सवार पर हमला कर अपना निवाला बनाया है। सतर्क किए जाने के बाद भी शायद वह भाई सूचना से अज्ञात था जिसकी वजह से वह अपनी दीदी के ससुराल उससे अपनी कलाई पर राखी बंधवाने आ रहा था। उसने एक अविश्वनीय दर्दनाक घटना बताई जिसे वह अभी कुछ समय पहले ही अपनी आंखो के सामने देखकर आया है और अब भी उसी डर में खोया हुआ है।
उसने कहा, " मैं बाइक से रामनगर की तरफ से आ रहा था भतरोजखान को,और मेरे आगे एक और युवा बाइक से आ रहा था हम दोनों के बीच लगभग २५ से ३० फुट की दूरी थी। हम एक दूसरे को जानते नहीं थे लेकिन एक साथ हम महसूस कर सकते थे कि हमने जाना एक ही दिशा में है आगे जाकर कहीं पर रुकना हुआ तो परिचय भी हो जायेगा। गर्जिया से थोड़ा आगे आने पर एक ही झटके में मेरे आगे से उस युवा को किसी ने बाइक से दूर फेंक दिया था जब तक मैं उसे देखता मैंने एक बड़े तेंदुए को उस पर लपकता हुआ देखा मैं घबराकर गिर गया था और मेरी बाइक भी ।
जितने पल में मैंने बाइक उठाई और खुद को संभालता वह तेंदुआ न जाने उसे किस दिशा में और कितनी दूर ले गया था पता नहीं और मुझे इतनी हिम्मत ही नहीं हुई कि मैं अकेले उसका सामना कर सकूं क्योंकि उस लड़के का अचेत गिरना कोई प्रतिक्रिया ना करना मैं समझ चुका था कि वह तेंदुए के हमले और बाइक से दूर सड़क पर गिरने से शायद जा चुका था या मूर्छित था। और इस हाल में मैं उसे अकेले बचाता भी कैसे वहां कोई बस्ती नहीं ना कोई मनुष्य और शायद उस खूंखार का मैं अगला लेकिन बहुत जल्द ही शिकार होता। मुझे नहीं पता मैं कैसे संभला और हड़बड़ाहट में कैसे बाइक खड़ी की ओर यहां तक पहुंचा मैंने अभी तक अपने घर बताया नहीं है।
अब क्या कहेंगे कि उस भाई को जो चला गया शायद राखी बंधाकर आया था या बंधवाने जा रहा था,उसके लिए किस मुहूर्त को निकालते कि वो रक्षा उसके प्राणों को बचा लेती?? समय बलवान है जब जो अनहोनी होनी होगी वह होकर रहेगी। इसलिए समय उचित रहे अपना कर्म निरंतर करते रहिए समय किसी का इंतजार नहीं करता है वह तब तक आपका है जब तक निर्धारित है तो हम मुहूर्त का इंतजार करके उसे नष्ट ना करें।