Anuradha Negi

Inspirational

4.5  

Anuradha Negi

Inspirational

निस्वार्थ सेवाभाव

निस्वार्थ सेवाभाव

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आज के युग में सेवा करते सभी हैं,लेकिन उसके पीछे कुछ न कुछ सबका निजी स्वार्थ लाभ छुपा होता है। जैसे समयनुसार वेतन और विनिमय वस्तुएं जो मनुष्य को छल कपट करने में भी सहायक होते हैं। और तब सेवा का असल अर्थ भावहीन हो जाता है। किंतु इन्हीं में से कुछ व्यक्ति और उनका व्यक्तित्व ऐसा होता है जो आज भी सबको एक समान समझते हैं अमीर गरीब ऊंच नीच के भावनाओं से परे पूरे तन मन से अपना सर्वस्व समाज की सेवा में न्योछावर कर देते हैं और अपनी सेवा हर जरूरतमंद तक पहुंचाने का निरंतर प्रयत्न करते हैं।

बहुत ही कम शब्दों में आज मैं आपको एक डॉक्टर के बारे में बताने जा रही हूं जो फोर्टीज हॉस्पिटल में हैं और सहायक सर्जन हैं, जिनके बारे में कुछ पंक्तियां ही आपको उनके निस्वार्थ सेवा के दर्श कराएंगे । आज में एक छोटी सी कहानी की माध्यम से आपको उन पुरुष का पुरुषार्थ बताने जा रही हूं जिनकी मैं आजीवन कर्जदार हूं मुझे पुनर्जन्म मिला है जिनसे , इस जीवनदान में कुछ मेरे अपनों का आशीष है और कुछ जिन्हे मैंने अपना बनाया है उनका सहयोग है। तो चलिए आरंभ करते हैं एक लघुकथा जो साल २०२० की है जब कोरोना ने भारत में प्रवेश कर लिया था और धीरे धीरे सभी को अपनी चपेट में ले रहा था।

 मुझे निमोनिया हुआ था और काफी महीनों से नोएडा के सरकारी अस्पताल से मेरा इलाज चल रहा था, इलाज था किंतु सिर्फ दवाइयों का और जो भी इस कहानी को पढ़ेगा उससे मेरा अनुरोध है कि अगर आप गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं तो नोएडा के सेक्टर ३१ सरकारी अस्पताल के भरोष ना रहें और अपना इलाज किसी विशेष अस्पताल से समय से करवा लें आपको पछताना नहीं पड़ेगा। मैं सरकारी अस्पताल पर यकीन होने से ही वहां गई थी किंतु मेरी दशा दुर्दशा में बदल गई, मेरा निनोमिया अंतिम स्तर पर था मैं इतनी कमजोर हो गई थी कि मैं चल फिर नहीं सकती थी बिना किसी के सहारे । एक रात सांस लेने की परेशानी से मुझे बहुत ज्यादा तकलीफ हुई और मुझे लगा कि बस अब कुछ ही देर की मेहमान मैं इस धरती पर हूं मैंने पापा को इशारा करके अस्पताल चलने को कहा , इतने में पड़ोसी ने वाहन १०८ से संपर्क करके गली के बाहर बुला लिया था। मुझे फिर उसी अस्पताल में जाना पड़ा।

शनिवार का दिन था और रात १ बजे का समय सारा स्टाफ छुट्टी पर और आपातकालीन सर्जन भी नहीं थे । मुझे कुछ दवाइयां भरी सुइयां दी जिससे थोड़ा सांस में राहत मिली, फिर मेरी प्लेट्स और धड़कन को नापा गया तथा ऑक्सीजन मशीन का सहारा दिया गया । और दिल्ली सफदरजंग को रेफर कर दिया गया। मैं और पापा साथ में कोई नहीं कोई जानकारी नहीं पापा के मुंह पर चिंता साफ दिख रही थी ये क्या दिन उन्हें मिले देखने को ,, घर फोन करके बता दिया गया तब भाई ने अपने किसी साथी को रात में मदद कर देने और सलामत अस्पताल में पहुंचाने के लिए भेजा जो अस्पताल पहुंचने के बाद हमें मिले ,,और फिर कागजी कार्यवाही सब उन्हीं ने की इधर उधर दौड़ भाग पापा का खाना पीना बाकी सभी जरूरत का समान उन्होंने दिया।सुबह ८ बजे मेरे छोटे भाई भी वहां पहुंचे मुझे भर्ती करा दिया गया और सोलह दिन के इलाज़ के बाद मैं निमोनिया से तो बच गई किंतु अत्यधिक दवाई का सेवन मुझे पेट की बीमारी दे गया और मुझे आंत की समस्या हुई जिसमें असहनीय दर्द मुझे होता और मैं रो रोकर बुरा हाल कर देती थी, फिर मेरा आंत का ऑपरेशन किया गया और दुर्भाग्यवश उसी दिन किसी कोरोना मरीज ने सातवें मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली पूरे अस्पताल में अफरा तफरी का माहोल था , जो लोग अपने ऑपरेशन का इंतजार कर रहे थे उन्हें कुछ दिन बाद का समय दे दिया गया और बाकी को छुट्टी देने लगे मेरी हालत ऐसी की एक ही दिन में उठना तो दूर बेड पर हिलना भी दुसवार था। पर डॉक्टर्स की बार बार सलाह और जिद से मुझे उसी दिन छुट्टी दे दी गई और हम जल्दबाजी में वहां से फरीदाबाद मामा के यहां को चले गए । ये अचानक सब हुआ था २१ मार्च की बात है जब लॉक डाउन घोषित कर दिया और मेरे घाव की ना कोई सफाई एक बार भी ना कोई दर्दनाशक दवा का इंजेक्शन मुझे मिला था। अब मुसीबत ये थी कि फरीदाबाद की कच्ची गलियों से उस हालत में सफर मुश्किल और उपर से लॉक डाउन और अस्पताल दूर।खर्चे अलग और सुविधा भी खुल कर नहीं। फिर मामाजी ने दो तीन दिन में पहचान से एक डॉक्टर को बुलाया उन्हें सारी स्थिति बताई और घर पर ही घाव की सफाई तथा अन्य इलाज के लिए अनुरोध किया, ये तो नहीं पता कि कब और कैसे उन्हें मनाया या कहा गया।

अगले दिन प्रातः ही डॉक्टर का गुड मॉर्निंग और हाउ आर यू का कहना मुझे आत्मीयता से भर गया और एक उम्मीद फिर से जागी। पूरे तन मन से उन्होंने इलाज किया मेरा उदास चेहरा देख वो मुझे हंसाने की कोशिश करते पापा लोगों के साथ बैठकर खूब बातें करते वे भी हमारे पहाड़ से थे। तो कभी कभी अपनी भाषा में जब बोलना होता था तब तो बिलकुल ही ऐसा प्रतीत होता कि ये हमारे ही डॉक्टर हैं हमारे लिए ही बने हैं हम बिना किसी चिंता के इन्हें अपनी हर परेशानी बता सकते हैं, लेकिन वहीं दूसरी तरफ एक कैमिस्ट को एक दिन के इंजेक्शन के लिए बोला जब डॉक्टर को कहीं दूर ड्यूटी पर जाना था और मुझे इंजेक्शन लेना ही था तो उन कैमिस्ट ने साफ मना कर दिया ये बोलकर कि छुआ छूत की बीमारी है कोरोना और मैं किसी के घर जा ही नहीं सकता। बड़ी मिन्नतों और पैसों के लालच के बाद वह माना और मुझसे दूरी बनाकर सिर्फ उंगलियों से टिकाकर अपने हाथ को मुझे इंजेक्शन लगा कर गया। अपनी मजबूरी पर पछतावा था इसलिए कुछ कह भी नहीं सकते थे। यह बात मैंने अगले दिन डॉक्टर को कहीं तब उन्होंने कहा पहली बार तुम बोली हो इतना मैं आज के बाद सुबह जल्दी अपना काम कर जाऊंगा फिर ड्यूटी जाया करूंगा।उस दिन हमारे बीच काफी बातें हुई हमारे रहन सहन परिचय शैक्षिक योग्यता और नौकरी को लेकर। और मां आम का जूस ले आई थी क्योंकि वे चाय नहीं पीते थे और मैंने मम्मी को कहा था काफी दिन से आ रहे हैं उन्हें कुछ खिला पिला दिया होता ।

कुछ हद तक ठीक होने के बाद में गांव लौट आई थी मम्मी पापा के साथ और मामा जी के फोन से डॉक्टर का नंबर ले आई थी,,काफी चीजें स्वास्थ्य से जुड़ी तथा अपने ऑपरेशन के बाद परहेज और सावधानी के लिए मैंने उनकी सलाह फोन पर ली। और वे हमेशा किसी न किसी कोरोना मरीज के पास होते ,घरेलू चिकित्सा कर रहे होते थे,मैंने पूछा क्या वे फोर्टिस नहीं जाते अपने अस्पताल तब उन्होंने कहा मैंने कुछ समय के लिए जाने से मना कर दिया है मैं घर घर जाकर लोगों की सहायता करना चाहता हूं इस महामारी को लेकर उनकी घबराहट को कम करना चाहता हूं उनकी हिम्मत बनना चाहता हूं,,जिंदगी का कोई भरोसा नहीं कि कब सांसे साथ छोड़ कर चली जाएं,, कम से कम किसी का तो जीवन मेरे हाथों से बच जाय इस मुश्किल घड़ी में।

  


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