...तुम और वो...
...तुम और वो...
हर इंसान की जिंदगी में एक इंसान सबसे खास होता है । वो खास जिसे बाकी खासों से अलग रखता है।
उस खास के बारे में वो किसी को कुछ नहीं बताना चाहता है लेकिन एक तीसरा व्यक्ति अवश्य होता है जो दोनों को जानता है और उनकी हर एक गतिविधि पर नजर रखता है। इस तरह वह आधी अधूरी जानकारी से धमकाता पूरी कहानी जानने की कोशिश करता है।
मैं जानती हूँ नील तुम मुझे चाहते हो पर कब तक चाहोगे ये तय नहीं है ना इसका कोई साक्ष्य है। मुझे मालूम है तुम्हें चाहने वाले बहुत हैं और तुम किसी की बात ठुकराते नहीं न किसी का दिल दुखाते हो। किंतु इस बात का तुम जरा भी अंदाज नहीं लगा सकते कि सबका दिल रखने के लिए तुम बार बार किसी एक के दिल को दर्द देते हो। वो दिल जो चाहकर भी तुम्हें भूलता नहीं, कद्र करना छोड़ता नहीं तुम हो कि उसे ऐसे प्रतीत करते हो जैसे सामान्य रूप से कोई उपहार तुम्हें हमेशा के लिए दे दिया गया हो। जिसे चाहो जब तक तुम सजा के रखो उसके बाद भंडार गृह में रखवा दो पुराने समान के साथ ये कहकर कि किसी का दिया हुआ है इसे कबाड़ में नहीं दे सकते।
कभी कभी मन करता है छोड़ दूँ तुम्हारी कद्र फिक्र करना पर रुक जाती हूँ कि कलंक तुमने लगाने मुझ पर ही हैं। अपराध किसी का भी होगा वफादारी मेरी ही बदनाम होगी।
जब भी मधु या निशु को तुमसे बात करते देख लूँ या तुम्हारे पास बैठे हुए देख लूं लगता है हक से कह दूँ। मत घुमा करो मधुमक्खी इस मिठास के पास ये वो शहद है जो न खाने में आता है न पूरी तरह दवा करने में जरूरत होती है और ये होकर भी पूरा नहीं होता।
जानती हूँ पढ़कर समझ जाओगे पर कोई बात नहीं तुम ये भी बस दो दिन गाओगे फिर अपनी पर ही आ जाओगे।