Anuradha Negi

Others

4.7  

Anuradha Negi

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प्रेम ऐसा कहाँ रहा......

प्रेम ऐसा कहाँ रहा......

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यह कहानी सत्य घटना है किंतु प्रत्यक्ष रूप से पात्र और कहानी को स्पष्ट नहीं किया जा सकता है। आशा है आपको यह कहानी पसन्द आयेगी तो आइये शुरू करते हैं। 

चंडीगढ़ शहर जो अपने आप में काफी मशहूर है, आई टी आई करके वीर यहाँ नौकरी के लिए आ गया। एक ही बेटा होने के कारण उस पर जिम्मेदारियां थी अपने माता पिता और अपनी उनकी आगे की जिंदगी की। 

 वीर के द्वारा बताई गयी उसकी प्रेम कहानी कुछ इस तरह है.... 


 मैं उस शहर में नया था मुझे एक गरीब किसान की लड़की से प्यार हो गया।जो मंडी में सब्जियां बेचा करती थी। लड़की सुंदर होने के साथ-साथ काफी समझदार थी। एक दिन जब मैंने उस लड़की को बताया कि "वह उससे प्यार करता है, और उससे शादी करना चाहता है" तो लड़की ने कुछ सोचने के बाद उस लड़के को शादी करने से इनकार कर दिया। 

क्योंकि वह गरीब परिवार से रिश्ता रखती थी, मुझे बहुत दुःख हुआ उसके मना करने से। 


 लेकिन कुछ समय बाद जब ये बात मुझे पता चली, तो उस ने सुमन के माता-पिता से बात की और सुमन को भी समझाया। काफी समझाने के बाद वह के बाद वह मान गयी और हम दोनों की शादी हो गयी, शादी के बाद मैं उसे बहुत प्यार करता था। हम दोनों ही बहुत खुश थे और हमारा दांपत्य जीवन काफी अच्छा चल रहा था। 


 लेकिन कुछ महीनों बाद सुमन को चर्मरोग हो गया। जिसके कारण उसकी खूबसूरती ढलने लगी अब उसे यह डर भी सताने लगा, "कि उसकी खूबसूरती ढलने के कारण, कहीं मैं उसे छोड़ न दूँ। मैं समझता था क्योंकि जितना वो रोग से पीड़ित थी उससे कहीं ज्यादा चिंता से वह झुलस रही थी। सुमन उस चर्म रोग को ठीक करने का हर संभव प्रयास कर रही थी। 


 समय बीत रहा था और सुमन की खूबसूरती धीरे-धीरे ढल रही थी। एक दिन मैं ज्यादा काम होने की वजह से देर रात ऑफिस से घर को आ रहा था। रास्ते में एक बड़े माल के ट्रक के साथ मेरा एक्सीडेंट हो गया. उस दुर्घटना के दौरान मुझे बहुत चोट आई गर्दन और मेरे एक पैर की हड्डी जांघ से टूट चुकी थी। इलाज चला लेकिन मैं लंगडा कर चलने लगा। 


 इस दुर्घटना से सुमन और दुखी हो गयी किंतु कुछ समय के बाद हमार जीवन फिर से सामान्य और सुखी बीतने लगा। सुमन चर्मरोग की वजह से दिन प्रतिदिन कमजोर और बदसूरत होती गई और इस बीच हमारी एक बेटी हुई अनन्या मैं विकलांग होने के कारण उसे ज्यादा संभाल नहीं पाता था। सुमन को मैं जरा भी उसके रोग वजह से तकलीफ का आभास नहीं होने देता था और उस से पहले की तरह प्यार करता रहा। 


कुछ सालो बाद बीमारी के कारण सुमन की मृत्यु हो गई वह सच में मुझे छोड़ गयी। उसकी मृत्यु होने के बाद, वह मैं अंदर से दुखी हो गया, और वह शहर छोड़कर जाने वाला था , तभी सुमन के माता पिता अनन्या को लेने आये उन्होंने मुझे सांत्वना देते हुए कहा-- "अब आप तो अपनी सुमन के बिना अकेले पड़ जाएंगे। वह आपका काफी ख्याल रखती थी। अब आपका जीवन इस परेशानी के साथ अकेले में कैसे व्यतीत होगा बेटे। बच्ची को हम अपने साथ रखेंगे आप अपने जीवन को अकेला न व्यर्थ करें।


 तब मैंने अपने सास ससुर की ओर देखा जो रोना चाह रहे थे फफक रहे थे। मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा-- "मैं अनन्या को लेकर आता हूँ। मुझे अंदर जाते देख वो चौंक गए और मुझे आवाज देते रहे, वीर बेटे तुम... बेटे तुमने... मैं अनन्या को ले आया और उनके साथ बैठा सोचकर। अपनी बेटी को गले लगाकर मैंने उनसे कहा मैं यह सोचकर लंगडा होने का नाटक करता रहा, कि कहीं मेरी पत्नी को उसकी बीमारी और बदसूरती के कारण यह ना लगे मैं उससे प्यार नहीं करता। इसीलिए मैं इतने सालों तक बिना कुछ कहे हुए अपनी पत्नी की खुशी के लिए ऐसा बना रहा." यह बात सुनकर उनकी आंखों से आंसू छलक आए । मैंने उन्हें कभी शादी न करने और अपनी बेटी के साथ ही रहने का भरोसा दिलाया। 

 मैं तो ठीक हो गया था मेरे पैर में लोहे की रौड लगा दी गयी थी। 


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