ईश्वर की अनुपम देह है मानव
ईश्वर की अनुपम देह है मानव
कहानी लिखने का आशय किसी को निम्न दिखाना या किसी की सोच को परखना नहीं है, सच कहूं तो मुझे यह भी नहीं मालूम था कि जून माह समलेंगिकों को उपहार तौर पर सौंपा गया है, धन्यवाद इस प्लेटफार्म का लेखक को एक अनंत कोटि की जानकारियां और नई नई उपलब्धियों से साक्षात्कार करवाने के लिए।
आज आपको एक समलैंगिक समुदाय से जुड़े व्यक्ति के रूप में बताने जा रहे हैं जो वर्तमान में एक नामी किराने के लालाजी हैं और अपने परिवार के बड़े बेटे के रूप में संपूर्ण जिम्मेदारी जिन्होंने ली है और एक रईसी शान शौक के साथ अपनी जीवन यात्रा को जी रहे हैं। यहां उन सज्जन के वास्तविक पहचान से आपको परिचय नहीं करवाऊंगी किंतु इतना ज़रूर आपको कहानी में बताऊंगी जिससे आपको आभास होगा कि प्रभु जो बनाते हैं जो अवतरित करते हैं वह उनकी अद्भुत संरचना होती है, हम जो इस समुदाय के लिए भेदभाव करते हैं एक शर्म महसूस करते हैं,वो हमें नहीं करनी चाहिए , क्योंकि वह भगवान की देन है उसमें उसका कोई दोष नहीं है , और हम भी उसी भगवान की एक कला है तो हमें कोई अधिकार नहीं होता है कि हम उन्हें निम्नता में रखें उनसे खुद को श्रेष्ठ समझकर उन पर कोई अत्याचार करें। वो भी उतनी ही आत्मीयता और आदर के हकदार हैं जितना आम इंसान होता है। तो प्रयास कीजिए समाज में किसी भी समुदाय को लेकर भेदभाव न करें हम खुद ही समाज के रचयिता हैं और खुद ही न्याय अन्याय करने वाले हैं अगर हमारा मन सत्य है तो वही सत्य ईश्वर का स्वरूप है तो ईश्वर कभी भी अपनी रचना में भिन्नता नहीं करते।
एक गांव की बात है जो जनसंख्या में काफी बड़ा था जहां एक परिवार रहता था खेती बाड़ी करते अपने परिवार की आजीविका चलाते थे, बात है इस परिवार के सदस्य एक किन्नर की सत्यता का जो शायद बहुत लंबे समय बाद समाज के सामने उजागर हुआ था। अगर किसी को पता होगा तो वे उनके माता पिता और वे खुद हो सकते हैं, बचपन सामान्य बच्चों की तरह बीता बड़े हुए स्कूल गए पढ़ाई की । वे चार भाई बहन थे दो बड़ी बहनें एक छोटा भाई और एक वो खुद । ज्यों ज्यों अवस्था बड़ी हुई पढ़ाई पूरी हुई सबने घर के काम काजों में माता पिता का हाथ बंटाया खेती के काम किए साथ में नौकरी के अवसर भी ढूंढते रहे ,दोनों बहनों की शादी करवा दी गई दोनों ही काम काज में दक्ष थी और ससुराल पक्ष भी उन्हें नामी खानदानों में मिला था , उधर छोटे भाई को गांव की ही किसी युवती से प्रेम हुआ था कुछ वर्ष गांव में छुपते मिलते कभी योजना बनाकर बाहर बाजार घूम आते तो कभी गांव से हटकर खेतों में बातचीत होती , उस समय फोन का इतना प्रचलन नहीं था कि हर छोटी से छोटी समस्या या बातें आज की तरह संदेश या कॉल करके बताई जा सके। समय बीतता गया और दोनों ने अब आजीवन साथ रहने का फैसला किया पर दोनों अपने अपने परिवार को बताने में असमर्थ थे । डर था कि हैं से उन्हें बाहर कर दिया जायेगा या मार दिया जाएगा ।इसलिए दोनों ने भागकर विवाह करने की योजना बनाई क्योंकि वे भलीभांति जानते थे कि परिणाम गांव से बरी किया जाना होगा इसलिए वे मारने मरने का जोखिम न उठाते हुए एक दिन अवसर पाकर दोनों भागकर शहर चले गए । उधर घर वाले इस उम्मीद में थे कि कोई नौकरी यदि मिल जाती तो छोटे बेटे का विवाह करा देते, क्योंकि वे अपनी समाज में सम्मान को लेकर भयभीत थे यदि बड़े बेटे की शादी हुई तो जल्द ही सत्य बाहर आएगा और सम्मान के साथ साथ फिर उन्हें कोई अपनी लड़की छोटे लड़के की शादी के लिए नहीं देगा । किंतु जब ये घटना हुई तो पूरा परिवार सहम गया एक तरफ बेटा गवा दिया था जिससे वंश की उम्मीद होगी दूसरी तरफ लड़की पक्ष वाले मार काट पर उतर आए थे, ऐसे में परिवार बिखर गया ओर सालों तक दोनों परिवारों में लड़ाई चलती रही आज भी दोनों परिवार एक दूसरे के सुख दुख के साथी नहीं बनते।
ऐसा कहते हैं कि सालों बाद छोटे बेटे ने घर आना चाहा किंतु गांव वालों ने और उनके खुद के परिवार ने फिर उन्हें नहीं अपनाया और बड़े बेटे अर्थात् किन्नर ने खेती के साथ साथ एक छोटी सी दुकान खोली जिसमें रोज की जरूरतों का घरेलू सामान रखा गया और अपनी आजीविका का साधन बना लिया । कुछ साल बाद किन्नर का विवाह हुआ और विवाह भी झूठ के सहारे ही संपन्न हुआ लड़की पक्ष सत्य से परे थे विवाह के कुछ समय उपरांत सत्य सभी को ज्ञात हुआ जब लड़की को ज्ञात हुआ और उसने अपने मायके वालों को सूचित किया जिस कारण दोनों पक्षों में काफी अपशब्द और अपमान भरे शब्दों का युद्ध हुआ। पर कुछ समय बाद आपसी कानाफूसी के अलावा और कुछ नहीं हुआ ,कैसे दांपत्य जीवन शांत रहते अपना समय गुजर कर रहा था कोई नहीं जानता, कभी कभी बहू की बातों से मालूम होता कि उसे दुख है उसे धोखे में रखा गया है और दुख हो भी क्यों नही जीवन भर का फैसला आपका एक झूठ की नींव पर जो रखा गया था। किंतु जैसे जैसे समय बीता दोनों में मतभेद कम और सुकून और प्रेम की चीजें अधिक दिखने लगी थीं और यह सब देख कर हैरान भी थे। धीरे धीरे उन्होंने सौदा किया खुद से और जैसे जीवन भर इस सत्य के साथ एक दूसरे को अपनाने का विचार कर लिया था । फिर किन्नर बेटे ने सारा घर खुद की जिम्मेदारी पर संभालते हुए अपनी पत्नी को आवश्यकता अनुसार धन देकर दिल्ली शहर भेजा और सर्जरी के द्वारा संतान सुख की उम्मीद जगाई और दो साल बाद पत्नी वापस आई और एक नन्ही सी गुड़िया साथ में लाई पूरे परिवार में खुशियां मनाई गई और गांव में भोज करवाया गया।
बेटी के आ जाने के बाद उनके घर में धन वैभव की वृद्धि हुई जो दुकान छोटी चीजों से सजती थी वो हर प्रकार के उत्पाद फलों, सब्जियों ,कपड़ों, सौंदर्य प्रसाधन , पुस्तकालय से जुड़ी तथा हर तरह के उत्पाद जो मानव के दैनिक उपभोग में आते हैं परिवर्तित हो गई जो परिवार एक घर में रहता था, उस परिवार की अब तीन तीन सुंदर कोठियां हैं जो किराए भाड़े पर पर्यटकों और अन्य आगामी यात्रियों को दिए जाते हैं। बेटी के पांच वर्ष पूर्व होने पर उन्होंने एक और संतान की उम्मीद की ओर यहां भगवान भी उनके साथ दिखे जिन्होंने कोई सर्जरी का सहारा न देकर उनकी मदद की, एक विवाहित जोड़े ने तलाक लेने की खबर पूरे गांव में फैला रखी थी, साल हुआ था विवाह को ओर पत्नी गर्भवती थी किंतु दंपति एक दूसरे के साथ जीवन यापन करने में इच्छुक नहीं थे, इसलिए कोर्ट से उन्हें आदेश था की बच्चे के जन्म तक युवती को सम्पूर्ण सुरक्षा और सुविधा दी जाए । और उसके बाद फैसला होगा और युवती की रजामंदी से बच्चे के जन्म लेने के पहले से ही उन्होंने उसे गोद लेने का प्रस्ताव रखा था ,जो युवती ने स्वीकारा और जन्म देकर बच्चा दूसरे दंपति को सुपुर्द कर दिया, दंपति ने बच्चे के पोषण और विकास के लिए युवती को छः माह तक अपने घर रहने तथा बच्चे को उसके अधिकार का दूध पिलाने के लिए कहा। और उसका सारा व्यय खुद उठाने का विश्वास दिलाया युवती काफी सोच विचार और बहस के बाद राजी हुई। और बच्चे को उसके बौद्धिक और मानसिक विकास होने में सहायता की। सात माह बाद एक मां ने अपने पुत्र को दूसरी मां को सौंप दिया और चली गई बिना किसी को ये बताए के वे आगे की जिंदगी कहां और कैसे गुजारेगी??
समय बीतता गया दोनों बच्चे बड़े हुए, पढ़ने में दोनों अव्वल थे हर तरह की सुविधा से संपन्न थे गांव के ही स्कूलों से दोनों ने अपनी पढ़ाई पूर्ण की और फिर अपने पैरो पर खड़ा होकर दिखाने को शहर चले गए जहां उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई की और अपनी प्रतिभा से आज किन्नर की बेटी गांव से दूर शहर में ए. एन. एम हैं और दत्तक पुत्र इंजीनियरिंग कर रहा है, दांपत्य जीवन गांव में कोठी में आराम और सुकून की जिंदगी जी रहे हैं पालतू कुत्ता है कोठी की रखवाली करता है ,बगीचे में माली फलों की देख भाल करते हैं, घूमने के लिए अपना वाहन उन्होंने रखा है, उनकी वो बड़ी दुकान उनके नौकर देखते हैं।
ये एक मिसाल है उन लोगों के लिए जो समलैंगिक समुदाय के हैं और अपने समलैंगिक होने पर भाग्य और भगवान को दोष देते है, या नीचा महसूस करते हैं ,आप समाज में सम्मान प्राप्त कर सकते हैं यदि आप नकारात्मकता को नजरंदाज करेंगे । और वे लोग जो इस क्षण की प्रतीक्षा में रहते हैं कि अब सत्य जानकर इनका परिवार बिखर जायेगा टूट जायेगा। ये उसी समुदाय में शामिल होंगे और हमारा समाज छोड़ देंगे।, ऐसे लोग ना खुद सफल होते हैं ना ही अन्य को सफलता प्राप्त करते खुश रह सकते हैं । उन महानुभावों से नम्र निवेदन है कि प्रयास कीजिए यदि आप उनकी मदद न करें तो कृपया उनके रास्ते में कभी बाधा भी न बनें । और बनना है तो वो बनें जो उन्होंने बन कर दिखाया और आप आलोचक ही बने रहे हैं अब तक। मानव जीवन एक अद्भुत देन है ईश्वर की इसे कर्मों से व्यर्थ न जाने दिन आप कर्म अच्छे कर सकते हैं, और वो मनुष्य में महानता है।