मेरा गुड़धानी वाला गांव
मेरा गुड़धानी वाला गांव
गुड़धानी खाने का जब भी मन करता है,अपना बचपन वाला गांव याद आ जाता है।बचपन में स्कूल की गर्मी की छुट्टियों में छात्रावास से घर आकर गाँव की ग्रीष्म ऋतु का दिनभर आनंद लेना आज भी नहीं भूलता।बचपन को भला कोई कैसे भुला सकता है।
ये उस समय की बात है जब हमारे गांव में बिजली भी नहीं पंहुच पाई थी। उन दिनों हर घर के आगे नीम का पेड़ हुआ करता था।दोपहरी में नीम के पेड़ की छांव में ही गर्मी से गुजारा होता था।गांव के सभी बच्चे बूढ़े और जवान गर्मी की दोपहर पेडों के नीचे या छप्परों में बतियाते रहते, घणी दो घणी सुस्ता भी लेते।
उन दिनों गांव की दिनचर्या अनुसार सुबह जल्दी उठना,नीम की दातुन करना,दूर कुएँ पर जाकर बाल्टी से पानी खींच कर नहाना होता था।
सुबह के नाश्ते में छाछ,राबड़ी(जौ ,
बाजरे का दलिया) छाछ के साथ खाया जाता था ।इसे कलेवा कहते थे।सबके घरों में पशुपालन होता था।दूध दही की कोई कमी ना थी। छाछ राबड़ी जल्दी ही पच जाती थी। इसलिए लगभग बारह बजे तक दोपहर का भोजन हो जाता था।
ग्रीष्म ऋतु में दिन बडे होते हैं।अतः लगभाग चार बजे फिर भूख लगती थी और इस समय खाई जाती थी गुड धानी(भुना हुआ जौ और गेहूं )जिसे गुड के साथ खाया जाता था।कोई झोली में लेकर खा रहा होता था, कोई गमछे पर रख कर,कोई थाली में लेकर खा रहा होता था।
गर्मियों की शाम के लिए गुड धानी गांव का पारंपरिक भोज्य था।ये सुपाच्य और वात नाशक होती है।शास्त्र अनुसार दिन में सोना वर्जित है किंतु गर्मियों में लंबे दिन होने से नींद लेना योग्य माना गया है,दिन में सोने से वात से बचने के लिए गुड धानी खाया जाता था।कितने सयाने थे, हमारे पुरखे,जो वाग्भट्ट के द्वारा बताए गए नियमों पर चलते थे।
गुडधानी बनाने के लिए हर साल नई फसल आते ही भडभूजा गांव में अपना भाड बना लेता था।लगभग पंद्रह दिन तक उसका भाड चला करता था।गांव के सभी परिवार गेहूं ,जौ ,चना को रात भर भिगोकर सुबह भुनाने के लिए जाते थे ।अपने परिवार के सदस्य संख्या अनुसार धानी बनाई जाती थी।अपनी बहन बेटियों को भी भिजवाई जाती थी।शहर आने के बाद मां मेरे लिए हर गर्मी में धानी भिजवाया करती थीं।
किंतु करोना के चलते इसबार गांव में गुडधानी नहीं बन पाई।ना भडभूजा आया न भाड लगा।इस साल गांव की गर्मी बिन गुड धानी निकल गई।
रवि की फसल को घर लाने के बाद किसान आषाढ़ तक हल बैल ,खेत और खलिहान से मुक्त रहता है।इन दिनों दोपहर के खाने के बाद पुरूष ,सन और मूंज की डोरी बुनते थे।जिससे भैंस और बैलों के गले में बांधने के लिए,कुए से पानी खींचने के लिए रस्सी तैयार की जाती थी।खाटें बनाई जाती थीं, छप्परों की मरम्मत की जाती थी।
औरतें सरकंडों से पंखा बनाती थीं, पेपर मैसी की डलिया,सर पर गागर रखने हेतु एंडी( गोल रिंग) बनाती थीं, मिलझुल कर खाट पर मशीन लगा कर आटे की सिवईयां बनाती थीं,कुछ औरतें चुनरी और लहगों पर शीशे का काम और कढाई करती थीं।
हम बच्चे बाग,बगीचों में आम नीम के पेडों पर चढते खेलते थे,।गर्मी की दोपहर न जाने कब फुर्र से उड जाती थी। धूल भरी आंधी चलती थी,हम मां की चूनर ओढ खाट पर आंधी के चले जाने तक छुप कर बैठे रहते,आंखों में धूल मिट्टी भरने से बचाव हो जाता था।
गर्मियों में ही फुर्सत होने से आसपास के गांव मिल कर गीत प्रतियोगिता रखते थे।
कुछेक घरों को छोड़ सभी घर कच्चे होते थे।गर्मियों में कई बार आग लग जाया करती थी।सभी गांव वाले अपने घरों से पानी की बाल्टी लिए दौड़ कर आगबुझाने में मदद करते थे।
अब तो मेरे गांव ने शहर सा रूप ले लिया है।बिजली,पानी सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। समय के साथ खानपान रहन सहन,वेशभूषा सब बदल गया है।परंपरागत मूल्यों में भी बदलाव आ गया है।
गांव ने भी सादगी की जगह शहरी चमक दमक अपना ली है।पोषाक बदली ठीक है किंतु आचार विचार भी बदल रहे हैं।
अब पहले सा भाईचारा नहीं रहा।गांव टुकड़ों में बंट गए हैं।बहन बेटी को लेकर भी पहले वाली बात नहीं रही क्योंकि अब पुरानी पीढी नहीं रही,नैतिक मूल्यों में भी कमी होने लगी है।
कुछ सकारात्मक बदलाव भी आयें हैं।शिक्षा के प्रति रूझान बढा है, सरकारी नौकरी में भर्ती होने का प्रतिशत बढा है।कन्याओं को शिक्षित करने की पहल हुई है।
खेतीबाडी करने के साधनों में सुधार हुआ है।जीवन स्तर ऊंचा उठा है।खानपान पहनावे में बदलाव आया है।भारी भरकम लहंगे की जगह सारी और हल्के फुल्के लहंगे ने लेली है।कन्याएं लहंगा चोली की जगह सलवार कुर्ती डालने लगी हैं।
अब दातुन की जगह टूथब्रश आ गया है।छाछ राबड़ी की जगह बच्चे मैगी खा रहे हैं।सूती वस्त्र की जगह पोलिस्टर आ गया है।अब बच्चे आम नीम के नीचे नहीं बैठते,गेंद से नहीं खेलते। पंखे में बैठकर मोबाइल पर खेल रहे हैं।
लेकिन मुझे तो मेरा बचपन वाला सादगी भरा, बुजुर्गो वाला, गुडधानी वाला गांव बहुत याद आता है।
मां के हाथ की छाछ, घोणुवा (लस्सी),लौणी घी, (घर पर बनाया हुआ बटर )', चूल्हे की रोटी बडी याद आती है।