"उसका कद"
"उसका कद"
ऋग्वेद कहता है कि माता-पिता अपनी बेटी को धन का दहेज नहीं संस्कार दहेज में दें। गरीब बाप की बेटी गौरी दहेज में रुपए पैसे की जगह संस्कारों की गठरी अपने साथ लेकर आई थी। किंतु उसकी सासू मां को संस्कारों से ज्यादा धन दौलत से प्यार था।वे खुद एक अमीर खानदान से जो ताल्लुक रखती थी। उनके पिता बड़े अफसर थे।इसका उन्हें बड़ा गुमान था।
गौरी चूंकि साधारण परिवार से थी इसलिए उसके प्रति सासू मां का व्यवहार भेदभावपूर्ण था ।वे गौरी को अपने से सदा कमतर समझती थी। जिसके चलते वे गौरी को कभी बेटी तो दूर बहु का मान भी न दे सकी।
गौरी थोड़े ही दिनों में घर में ऐसे घुल मिल गई जैसे दूध में चीनी घुल जाती है। सास-ससुर को मां पिता की तरह आदर देना और सेवा करना अपना धर्म बना लिया था। ननद व देवर को भाई बहन का प्यार दे रही थी। लेकिन सासू मां उसकी सादगी और सरलता को हमेशा धन की तराजू से तोल रही थी। उसके गुण और अच्छे व्यवहार की उनकी नजरों में कोई कद्र न थी।
गौरी ने अपने आत्मविश्वास को कभी कम न होने दिया। अपना गृहस्थ धर्म अच्छी तरह से निभा रही थी। सरल हृदया गौरी ने कभी किसी कोई गिला शिकवा नहीं किया।
साल भर बाद देवर का रिश्ता तय हुआ। इसबार सासूमां अपनी मर्जी चलाने में कामयाब हो गई। देवर का मोल भाव कर धनाढ्य घर की बेटी को बहू बनाकर ढेर सारा धन दहेज़ में ले आई।
देवरानी चूंकि सास की तरह से अमीर थी सासू मां ने उसे अपने बराबर बिठा लिया था।वे दोनों मम्मी बेटी बनी एक दूजे के आगे पीछे घूमती रहती। घर के हर कामकाज में सासूमां गौरा से नहीं देवरानी से राय लेती थी।
गौरी पूर्ववत घर की जिम्मेदारी निभा रही थी। अब तक गौरी एक पायदान नीचे थी। देवरानी के आते ही दो पायदान नीचे उतर गई थी।
अगले ही वर्ष ननद की भी शादी तय हो गई थी।धर में शादी की तैयारियां होने लगी। सासूमां खरीददारी के लिए देवरानी को साथ लेकर जाती थी। दोनों शाम पड़े बाजार से घर लौटती थी।घर आते ही बहुत थक गई हैं कह कर सोफे पर पसर जाती थी।
सासूमां गौरी को आवाज लगाकर कहती "बहू चाय पानी ले आओ"
एक शाम चर्चा हो रही थी कि शादी की किस रस्म में कौन सा जेवर, कौन से कपड़े पहने जायेंगे।किसको क्या लिया दिया जायेगा। तभी ननद बोल उठी
"मां बड़ी भाभी को आने दें उनकी राय भी तो ले लें"।
सासू मां तपाक से बोल उठी"उसे क्या पूछना वो क्या जाने ये बातें।उसके मायके में इतना भव्य आयोजन हुआ है कभी भला।इतने कीमती जेवर कपड़े पहने हैं "।
गौरा पास ही रसोई में चाय बनाते हुए सब सुन रही थी।उसकी आंखें नम हो गई। धन के अभिमान में सासूमां बड़ी बहू छोटी बहू का लिहाज भी भूल गई थी। उसका कद देवरानी से भी छोटा कर दिया था।
घर में गौरा का कद छोटा होने का एक कारण और भी था। उसके पति का पुश्तैनी धंधे पर बैठना। ससुर जी की अस्वस्थता के चलते उसके पति ने स्कूल की पढ़ाई लिखाई के बाद ही पिता का व्यापार संभाल लिया था जबकि देवर उच्च शिक्षा पाकर अफसर बन गया था।