श्राद्ध
श्राद्ध


श्राद्ध पक्ष प्रारम्भ हो गया था। पंडित सुखराम को सभी यजमानों के घरों से न्योते आ गये थे। पंडित सुखराम का बेटा दस वर्ष का हो गया था। सुखराम ने सोचा आज बेटे को भी साथ ले जाऊंगा ।वह भी धीरे धीरे पंडिताई सीख जायेगा। मेरी तरह पंडिताई करके अपना परिवार का भरण पोषण कर लेगा। पंडित ने स्वस्ति वाचन किया। भगवान से प्रार्थना की "हे प्रभु आज का दिन सबके लिए शुभ रहे सब खुश रहें।" फिर बेटे शशांक को नहा धोकर तैयार होने को कहा। पंडित जी ने अपनी पूजा की किताब उठाई। पत्नी को टिफिन पकड़ाने को कहा और बेटे को साथ लेकर चल दिए।
पंडित जी बेटे से बोले आज हम श्राद्ध कर्म करवाने जा रहे हैं। आज से पंद्रह दिन श्राद्ध पक्ष रहेगा। बेटे ने पूछा "पिताजी श्राद्ध क्या होता है।" परिवार के बुजुर्ग की मरण तिथि मनाई जाती है। वह श्राद्ध कहलाता है। कहते हैं श्राद्ध पक्ष में स्वर्गवासी पितृ धरती पर आते हैं। उनके लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया जाता है। ब्राह्मण, गरीब और कौवे को भोजन खिलाया जाता है।
पंडित घर लौटे पत्नी ने बताया मोहल्ले वाले श्री धनंजय प्रसाद जी का स्वर्गवास हो गया है। अच्छा हुआ मुक्ति मिल गई। बेटों ने परेशान कर रखा था। फुटबॉल की तरह गोल गोल घुमा रहे थे। चार महीने यहां चार महीने वहां। पिछले हफ्ते मिले थे। काफी कमजोर दिख रहे थे। बीमारी में न ढंग से खाना ही मिलता था और न दवा दारू। कितने सज्जन धर्म कर्म को मानने वाले व्यक्ति थे बेचारे। ईश्वर उन्हें सदगति प्रदान करें।
इंसान कितना खुद गर्ज हो गया है। अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर सकता। मां पिता पाल पोस कर बड़ा करते हैं। हर जरूरत पूरी करते हैं। सब भूल जाती हैं औलाद। बुजुर्गो की अवहेलना कर उन्हें जीते जी मार डालते हैं। दुख की बात ये है कि जीवित माता पिता को ढंग से खिलाते पिलाते नहीं मरने पर उनका श्राद्ध करते हैं। पकवान खिलाते हैं।