भरम टूट गया
भरम टूट गया


आसमान में सुबह का सूरज मुस्कुरा रहा था। पेड़ पौधे सूरज को देख खुश हो रहे थे। पंछी चहक रहे थे। हवा भी मंद मंद बह रही थी। एक खुशनुमा सुबह ने फिर दस्तक दी थी।
रविवार था। शशांक लान में बैठकर चाय की चुस्कियां लेते हुए सुबह का आनंद ले रहे थे। पत्नी रोहिणी भी पास में बैठी थी। रोहिणी की नजर हमेशा की तरह मोबाइल में गढ़ी थी। ना ही सुबह के सौंदर्य में कोई रस था और ना ही पास बैठे पति में। वह तो सोशल मीडिया पर व्यस्त थी।
अचानक से रोहिणी ने खुशी से उछलते हुए पति से कहा" देखिए मेरे फोटो को कितने सारे लाईक्स मिले है। मेरे ड्रेसिंग सेंस को भी सराहा गया है । "
रोहिणी ! ये सब दिखावा है। परायों की झूठी तारीफ से क्या हासिल होगा। तुम व्यर्थ ही अपना समय इन बातों में क्यों बर्बाद कर रही हो। तारीफ गुणों व अच्छे कार्यों से होती है। बच्चे बड़े हो रहे हैं उनकी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दो। उनके साथ घड़ी दो घड़ी बैठो। उन्हें तुम्हारी जरूरत है।
ठीक है ठीक है आपसे तो मेरी खुशी देखी नहीं जाती। इतने में ही बच्चे भी आ जाते हैं। बच्चे रोहिणी से पूछ उठते हैं-मां आप हर वक्त मोबाइल में क्या देखते हो। हमें भी देखना है। कुछ नहीं, चलो मैं नाश्ता बनाती हूं। वह उठकर चली जाती है।
बच्चे पापा बतियाने लगते हैं। इंम्तिहान की बातें। स्कूल के सालाना उत्सव की बातें। इस बार तुम लोग किस एक्टिविटी में भाग ले रहे हो। पापा मैं कविता पाठ में भाग लेना चाहती थी किंतु मां ने मेरी कोई मदद ही नहीं की। बिटिया मुझे क्यों नहीं बताया। पापा आप तो बैंक के काम से टुअर पर ज्यादा रहे। सो तो है। शशांक ने बेटे की तरफ मुखातिब होकर पूछा और तुम बेटे किस में भाग लोगे। पापा मैं 200 मीटर की दौड़ में भाग ले रहा हूं। मां एक दिन भी मेरे साथ प्रैक्टिस करवाने नहीं आई।
पहले इंम्तिहान हुए और फिर सालाना उत्सव हुआ। प्रतियोगिताएं हुईं। परीक्षा रिजल्ट घोषित हुआ और इनाम वितरण हुआ। हमेशा की तरह कुछ बच्चों का प्रदर्शन शानदार रहा। कुछ का सुंदर और कुछ का ठीक-ठाक रहा। रोहिणी के बच्चे ठीक-ठाक श्रेणी में रहे। कोलोनी के बच्चों की माताएं अपने बच्चों के शानदार प्रदर्शन के लिए खुश हो रही थी। लेकिन रोहिणी पर तंज कसते हुए कह रही थी-रोहिणी अपने बच्चों पर जरा सा भी ध्यान नहीं देती है। बस सोशल मीडिया पर बैठी रहती है। हां मैंने भी ऑब्जर्व किया है। अपने महिला ग्रुप पर सबसे ज्यादा फोटो रोहिणी ही डालती है। रात पड़े जब मैं पटल देखती हूं तो रोहिणी किसी न किसी बहाने से दिनभर पटल पर सक्रियता दिखाई पड़ती है। पड़ोसन होने के नाते मैंने तो कईबार समझाया भी था कि बच्चों पर ध्यान दो। बच्चों की सफलता में ही हमारी शान है। मीडिया की गतिविधियों से नहीं। ना जाने कब समझेगी। पार्क में शाम को रोहिणी के मीडिया नशे चर्चा रहती है,सब खूब हंसते हैं।
तमाम बातें सुनकर रोहिणी की मीडिया पर मिले लाइक्स का भरम टूट गया था। उसने तय कर लिया था कि आज से वह अपना समय बच्चों को देगी। पटल पर समय बर्बाद नहीं करेगी।